जगत में पुस्तकालय पाठकों के लिए ज्ञान रूपी सागर है, आज पुस्तकालय बिना शिक्षा और सभ्य समाज की कल्पना हो ही नहीं सकती है। पुस्तकालय का हम सभी के जीवन में अमूल्य योगदान है। जीवन के हर मोड़ पर, हर मुश्किल में पुस्तकें मनुष्य का साथ सच्चे मित्र की भांति निभाते है, यह तब भी हमारे साथ होते है जब कोई हमारा साथ नहीं देता है। जिसने जीवन में पुस्तकालय के मोल को नहीं समझा, समझो कि उसने बेहतर जीवन ही नहीं जिया है। पुस्तकालय पाठकों के जीवन को सरल, सुगम, उज्जवल और प्रगति पथ पर अग्रसर होने के लिए सतत प्रेरित करके बेहतर मार्ग प्रशस्त करते है। दुनिया भर में पुस्तकालयों का जाल फैला हुआ है, पुस्तकालयों के विकास के लिए सबसे आवश्यक तज्ञ कर्मचारी वर्ग, योग्य पाठ्य सामग्री और पर्याप्त निधि के साथ उत्कृष्ट व्यवस्थापन होता है।
देश में पुस्तकालयों की स्थिति की वास्तविकता (Reality of Libraries in the Country) :- विदेशों की भांति हमारे देश में भी पुस्तकालयों की तस्वीर काफी बदली है। देश के आईआईटी, आईआईएम, एम्स जैसे शिक्षा संस्थानों के पुस्तकालय विश्वस्तरीय नजर आते है। बहुत से निजी शिक्षा संस्थान भी पुस्तकालयों के विकास पर विशेष ध्यान देते है। आज के युग में पैसे को अधिक महत्त्व दिया जाता है एव पुस्तकालय धनोपार्जन का केंद्र नहीं है, इसलिए शायद इसके महत्त्व को कमतर आंका जाता है। आज देश में बड़ी मात्रा में अनेक पुस्तकालय अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे है। आर्थिक तंगी और कुशल कर्मचारियों की कमी से पुस्तकालय नाममात्र रह गए है। कई पुस्तकालय में सेवाओं के रूप में सिर्फ कुछ अखबार पढ़ने मिलते है, तो कई पुस्तकालयों में बेहतर रखरखाव की कमी के कारण बहुमूल्य पाठ्य साहित्य भंडार खराब हो रहे है। कई पुस्तकालयों की इमारत जीर्ण अवस्था से खंडहर बन चुकी है, तो कई पुस्तकालय तज्ञ कर्मचारियों की कमी के चलते बदहाल पड़ी है। कई पुस्तकालयों में कुर्सी, मेज, अलमारी, खिड़की, दरवाजे तक टूटे हुए अवस्था में नजर आते है। कई पुस्तकालयों की दीवारों में दरारे पड़ी है, तो कई पुस्तकालय में बारिश में छत से पानी टपकता है। ऐसी समस्याएं पुस्तकालय को दिशाहीन बना रही हैं, कई बड़े-बड़े पुस्तकालय चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के भरोसे ही चल रहे है।
जीवन में पुस्तकालय की भूमिका अनमोल (important role of library in life) :- विश्व में वही देश विकसित हुए है जिन्होंने शिक्षा क्रांति के महत्व को समझकर पुस्तकालयों को उन्नत बनाया है, क्योंकि पुस्तकालय ही शिक्षा का आधार स्तम्भ होते है, समय की बचत करके मनुष्य को ज्ञानशाली बनाते है। विश्व के महानतम हस्तियों के साथी के रूप में पुस्तकें ही जानी जाती है। जिन्होंने पुस्तकों से दोस्ती की, वे जीवन में कभी अकेले नहीं होते। स्कूली शिक्षा के प्रथम चरण से जीवन के अंत तक पुस्तकालय मनुष्य को मार्गदर्शन करते है। जहां पर शिक्षक भी ज्ञान के लिए लालायित होता है वह केंद्र होता है पुस्तकालय। पुस्तकालय जो जीवन का अभिन्न भाग है, वही उपेक्षा का केंद्र बना बैठा है। देश के बहुत से राज्यों के सार्वजनिक व शैक्षिक पुस्तकालय में आधारभूत सुख-सुविधा भी नहीं है, इस कारण विद्यार्थियों के शैक्षणिक जीवन का बेहद नुकसान हो रहा है। जिस उम्र में बच्चे अपने जीवन को योग्य दिशा देने के लिए प्रयत्नशील होते है उसी पड़ाव पर वे पुस्तकालय के ज्ञानरूपी महत्वपूर्ण मार्गदर्शन से वंचित रह जाते है।
पुस्तकालयों को नजरअंदाज करना अर्थात सुशिक्षित समाज के विकास को रोकना (Ignoring libraries means preventing the development of a well educated society) :- सबसे महत्वपूर्ण बात पुस्तकालयों के प्रति नजरिया बदलना है। पुस्तकालयों में तज्ञ कर्मचारियों की भर्ती पर विशेष ध्यान देने की नितांत आवश्यकता है। जिम्मेदार अधिकारी विभाग, व्यवस्थापक और प्रशासन ने पुस्तकालय के सेवा-सुविधा व उसकी उपयोगिता को बनाये रखने पर जोर देना होगा। उचित बजट के अभाव में अनेक पुस्तकालय खत्म होने के कगार पर है, इसलिए पुस्तकालयों के उचित व्यवस्थापन और विकास हेतु योग्य निधि की उपलब्धता लगातार होनी चाहिए। देश के सभी तरह के स्थानीय प्रशासन, राज्य सरकार व केंद्र सरकार द्वारा संचालित सभी शैक्षणिक संस्थान स्कूल महाविद्यालय, ग्रांटेड सार्वजनिक व अन्य पुस्तकालयों में हर साल आवश्यकता अनुरूप कर्मचारी भर्ती होनी चाहिए।
डॉ. प्रितम भी. गेडाम




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