आज
हमारा देश विश्व में सबसे ज्यादा युवाओं वाला देश है लेकिन उन्हें गुणवत्तापुर्ण
शिक्षा, उचित स्वास्थ्य सुविधाएं, रोजगार, विकास के सुअवसर, कौशल्य को निखारने के
लिए योजनाएं, मौके व योग्य वातावरण का निर्माण कर देंगे तभी यह युवा शक्ति सही
दिशा में अग्रसर होंगी अन्यथा यह शक्ति देश के लिए परेशानियों का सबब बनकर रह
जायेगी। जनसंख्या की तीव्र वृद्धि भारत में निम्न जीवन स्तर के लिए जिम्मेदार है।
यहां तक कि जीवन की आवश्यक वस्तुएं व सुविधाएं भी पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं
हैं। देश में हर साल जनसंख्या में लगभग 1.60 करोड़ की वृद्धि होती है, जिसके लिए
लाखो टन खाद्यान्न, 1.9 लाख मीटर कपड़ा और 2.6 लाख घरों और 52 लाख अतिरिक्त
नौकरियों की आवश्यकता होती है, साथ ही नैसर्गीक व मानव निर्मीत संसाधनो पर
आवश्यकता पुर्ती हेतु भारी दबाव पडता हैं। 2001 में, कामकाजी आबादी 39.2 प्रतिशत
थी जबकि 60.8 प्रतिशत आबादी आश्रित उपभोक्ता की थी, निर्भरता का यह उच्च स्तर
आश्रित बच्चों की उच्च दर के कारण है। यह निर्भरता प्रभावी बचत पर प्रतिकूल प्रभाव
डालती है। जिस देश की बडी आबादी 2 डॉलर प्रतिदिन से कम पर जीवन यापन करती हैं,
वहां बढ़ती जनसंख्या, खाद्य सुरक्षा की स्थिति को अधिक खराब ही करेगी। कुपोषण के
अंतर्निहित कारणों में से एक गरीबी है और देश में गरीबी उन्मूलन कोसों दूर है। इस
वर्ष के “विश्व जनसंख्या दिवस” की थीम है अधिकार और विकल्प उत्तर हैं : चाहे बेबी
बूम हो या बस्ट, प्रजनन दर में बदलाव का समाधान सभी लोगों के प्रजनन स्वास्थ्य और
अधिकारों को प्राथमिकता देना है।
विश्व
की 50 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या 30 वर्ष से कम आयु की है। शरणार्थियों में 80
प्रतिशत महिलाएं, लड़कियां और छोटे बच्चे हैं। दुनिया में 4.2 करोड शरणार्थी हैं। 3
अरब से अधिक लोग प्रतिदिन 2 डॉलर से भी कम पर गुजारा करते हैं। जीविका के लिए
वित्त की कमी के कारण जिवनस्तर न्यूनतम है। स्थिति इस तथ्य से और भी बदतर हो जाती
है कि प्रत्येक 1 अमीर व्यक्ति के अनुपात में लगभग 100 गरीब लोग हैं। दुनिया की
लगभग 50 प्रतिशत आबादी शहरों में रहती है। दुनिया में महिलाओं की तुलना में
पुरुषों की संख्या अधिक है। पुरुषों की आबादी कुल जनसंख्या का 50.4 प्रतिशत है
जबकि महिलाएं शेष 49.6 प्रतिशत को पूरा करती हैं। करोडों लड़कियों की शादी 18 साल
से पहले कर दी जाती है। विश्व स्तर पर दस लाख से अधिक की आबादी वाले 400 से अधिक
शहर हैं। हर सेकेंड में 4.3 जन्म और 1.8 मौतें होती हैं अर्थात जनसंख्या सेकेंड
में 2.5 बच्चों की वृद्धी की दर से बढती हैं। 5 साल से कम उम्र के करीब 23 करोड़
शिशुओं का कभी भी आधिकारिक रूप से पंजीकरण नहीं हुआ है। यह इस उम्र से कम की
वर्तमान शिशु आबादी का एक तिहाई है। यह संख्या उन क्षेत्रों में अधिक है जहां
उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया जैसे साक्षरता का स्तर कम है। 75 करोड से
अधिक लोगों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं है। एशिया में विश्व की 60 प्रतिशत
जनसंख्या निवास करती है। 10000 ईसा पूर्व में विश्व की जनसंख्या 5 लाख थी।
भारत देश की वर्तमान स्थिति :-
संयुक्त राष्ट्र, आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग, जनसंख्या प्रभाग द्वारा जारी
आंकड़ों के अनुसार, गुरुवार, 1 जुलाई, 2021 तक भारत की वर्तमान जनसंख्या
1,393,494,216 है, जो संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम आंकड़ों के वर्ल्डोमीटर विस्तार पर
आधारित है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार भारत की 2020 के मध्य वर्ष में
जनसंख्या 1,380,004,385 अनुमानित थी। भारत की जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या के
17.7 प्रतिशत है, लेकिन विश्व के मीठे पानी के संसाधनों का केवल 4 प्रतिशत है।
जनसंख्या के आधार पर विश्व में भारत दूसरे नंबर पर है लेकिन जल्द पहले नंबर पर
होगा। कुल भूमि क्षेत्र 2,973,190 वर्ग किमी. (1,147,955 वर्ग मील) है, अर्थात
भारत विश्व के कुल क्षेत्रफल के 2.4 प्रतिशत भाग हमारे हिस्से है। भारत में
जनसंख्या घनत्व 464 प्रति वर्ग किमी (1,202 व्यक्ति प्रति वर्ग मील) है। 35 फीसदी
आबादी (2020 में 483,098,640 लोग) शहरी है, भारत में मध्यम आयु 28.4 वर्ष है। शहरी
भारत में पानी की लगभग 40 प्रतिशत मांग भूजल से पूरी होती है। परिणामस्वरूप
अधिकांश शहरों में भूजल स्तर प्रति वर्ष 2-3 मीटर की खतरनाक दर से गिर रहा है। देश
की 20 में से 14 प्रमुख नदियां जल स्तर बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही हैं, नदी
अब नालों का स्वरूप ले रही हैं अर्थात प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग के कारण खराब
स्थिति से गुजर रही है। यह तब है जब हमारे सतही जल का 70 प्रतिशत प्रदूषित है और
60 प्रतिशत भूजल संसाधन गंभीर अवस्था में हैं।
कुपोषण या अल्पपोषण की गंभीर समस्या
:- भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की स्थिति सबसे खराब
(54 फीसदी) है, जो या तो अविकसित, कमजोर या अधिक वजन वाले हैं। देश में, खराब आपूर्ति
श्रृंखला प्रबंधन प्रथाओं ने उतनी ही बर्बादी की है जितनी यूनाइटेड किंगडम खपत कर
लेता है। भारत में पांच साल से कम उम्र के 69 फीसदी बच्चों की मौत कुपोषण के कारण
होती हैं। भारत में पांच साल से कम उम्र के 20 फीसदी से ज्यादा बच्चे ‘कुपोषण’
(ऊंचाई के मुकाबले कम वजन) से ग्रसित हैं। वर्तमान में भारत की 49 प्रतिशत भूमि
सूखे की चपेट में है। सूखे के दौरान, लाखों लोग अधिक गरीबी और खाद्य असुरक्षा में
पड़ने का जोखिम उठाते हैं। भारत भले ही आर्थिक रूप से संपन्न होने के मार्ग पर
अग्रसर हो, लेकिन यह अभी भी बडी मात्रा में गरीबी और भूख से ग्रस्त है। 2020
ग्लोबल हंगर इंडेक्स में, भारत 2020 जीएचआई स्कोर की गणना के साथ 107 देशों में से
94वें स्थान पर है, जो 27.2 के स्कोर के साथ भारत में भूख का स्तर गंभीर दर्शाता
है। रिपोर्ट में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के हवाले से बताया गया है
कि 1998-2002 के बीच जहां 17 फीसदी बच्चे कुपोषण का शिकार थे वहीं, इनकी संख्या
2012-2016 के बीच बढ़कर 21 प्रतिशत हो चुकी थी। भारत के अलावा दुनिया के सिर्फ तीन
देशों - जिबूती, श्रीलंका और दक्षिण सूडान में कुपोषित बच्चों की संख्या 20 फीसदी
से ज्यादा है।
देश में खाद्य सुरक्षा व खाद्य
बर्बादी की स्थिति :- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम
(यूएनईपी) की रिपोर्ट, संयुक्त राष्ट्र खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट 2021 के
अनुसार, विश्व स्तर पर, औसत वार्षिक खाद्य अपव्यय 121 किलोग्राम प्रति व्यक्ति है।
इसमें से घरों में बर्बाद होने वाले भोजन का हिस्सा 74 किलोग्राम है। रिपोर्ट ऐसे
समय में जारी की गई है, जब कोविड-19 के कारण सरकार अपनी तमाम खाद्य योजनाओं के
बावजूद बड़ी आबादी का पेट भरने के लिए संघर्ष कर रही है। उपभोक्ता मामले, खाद्य और
सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के मुताबिक 2017 से 2020 के बीच सरकारी गोदामों में रखा
11,520 टन अनाज सड़ गया। भारत, जहां लगभग 14 प्रतिशत आबादी (2011 की जनगणना के
अनुसार लगभग 16.94 करोड लोग) कुपोषित हैं, वहा भी सालाना 50 किलोग्राम पका हुआ
भोजन बर्बाद कर रहे है। दिसंबर 2020 में हंगर वॉच के सर्वेक्षण में कहा गया है कि
27 प्रतिशत भारतीय अक्सर कोविड -19 लॉकडाउन के दौरान भूखे सो जाते थे। ग्लोबल हंगर
इंडेक्स 2020 में भारत 107 देशों में से 94वें स्थान पर है जो 27.2 के स्कोर के
साथ भारत में भूख का स्तर गंभीर दर्शाता है और उन पड़ोसी देशों से पीछे है जिन्हें
अपेक्षाकृत कमजोर माना जाता है - पाकिस्तान (88), नेपाल (73), बांग्लादेश (45) और
इंडोनेशिया (70)। इस गंभीर भूख की समस्या के बावजूद, पिछले चार वर्षों में खराब
रखरखाव के कारण 11,520 टन खाद्यान्न बर्बाद हो गया। संयुक्त राष्ट्र संगठनों
द्वारा जारी की गई कई रिपोर्ट में प्रस्तुत अनुमान बताते हैं कि 2014 और 2019 के
बीच भारत में खाद्य असुरक्षा की व्यापकता में 3.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 2019 तक,
2014 की तुलना में 6.2 करोड़ अधिक लोग खाद्य असुरक्षा के साथ जी रहे थे। 2014-16
में भारत की 27.8 प्रतिशत आबादी मध्यम या गंभीर खाद्य असुरक्षा से पीड़ित थी, जबकि
2017-19 में यह अनुपात बढ़कर 31.6 प्रतिशत हो गया। खाद्य असुरक्षित लोगों की संख्या
2014-16 में 42.65 करोड़ से बढ़कर 2017-18 में 48.86 करोड़ हो गई। 2017-19 में खाद्य
असुरक्षा के वैश्विक बोझ में भारत का योगदान 22 प्रतिशत है, जो किसी भी देश के लिए
सबसे अधिक है।
विश्व
बैंक के आंकड़ों का उपयोग करते हुए प्यू रिसर्च सेंटर ने अनुमान लगाया है कि भारत
में गरीबों की संख्या (प्रतिदिन 2 डॉलर की आय या कम) महामारी के कारण केवल एक वर्ष
में 6 करोड से दोगुनी से अधिक 13.4 करोड हो गई है, इसका मतलब है कि भारत 45 साल
बाद “सामूहिक गरीबों का देश“ कहलाने की स्थिति में वापस आ गया है। देश में पिछले
दो दशकों में किसानों की आत्महत्याओं की संख्या लगातार बढी है। 1991 और 2011 के
बीच, 1.4 करोड से अधिक आर्थिक रूप से तनावग्रस्त किसानों ने खेती करना छोड़ दिया हैं।
गरीबी की स्थिति :-
भारत ने ‘वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक’ 2020 में 62 रैंक के साथ 0.123 स्कोर
किया। ग्लोबल एमपीआई 2020 में भारत का अनुपात 27.91 प्रतिशत था। प्रकाशित आँकड़ों
के अनुसार, 107 विकासशील देशों में, 1.3 अरब लोग बहुआयामी गरीबी से प्रभावित
हैं। वर्ष 2016 तक, भारत में 21.2 प्रतिशत लोग पोषण से वंचित थे। 26.2
प्रतिशत लोगों के पास भोजन पकाने के ईंधन का अभाव रहा। 24.6 प्रतिशत लोग स्वच्छता
और 6.2 प्रतिशत लोग पेयजल से वंचित रहे। 8.6 प्रतिशत लोग बिजली के अभाव में
एवं 23.6 प्रतिशत लोग आवास के अभाव में रहे हैं । ग्लोबल एमपीआई 2020 में भारत के
पड़ोसी देशों के रैंक : श्रीलंका - 25, नेपाल - 65, बांग्लादेश - 58, चीन - 30,
म्यांमार - 69, पाकिस्तान - 73 हैं। क्रेडिट सुईस द्वारा जारी वैश्विक
संपत्ती रिपोर्ट 2021 अनुसार कोरोना संकट होते हुए भी विश्व संपत्ती में 7.7
प्रतिशत की बढौतरी हुई है जबकि भारत की संपत्ती मे 4.4 प्रतिशत की कमी आयी है।
स्वास्थ चिकित्सको की स्थिति :-
आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 ने देश में डॉक्टरों की कमी को दर्शाने वाले चिकित्सा
बुनियादी ढांचे के बारे में जानकारी है कि भारत में डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात 1:1456
है, जबकि डब्ल्यूएचओ की 1:1000 की सिफारिश है। एमसीआई अनुसार, 2017 में एट्रिशन पर
विचार करने के बाद, यह 1.33 अरब के जनसंख्या अनुपात अनुसार एक डॉक्टर और जनसंख्या
अनुपात 0.77:1,000 देता है। अन्य देशों में तुलनीय आंकड़े इस प्रकार हैं -
ऑस्ट्रेलिया, 3.374:1,000; ब्राजील, 1.852:1,000; चीन, 1.49:1,000; फ्रांस,
3.227:1,000; जर्मनी, 4.125:1,000; रूस, 3.306:1,000; यूएसए, 2.554:1,000;
अफगानिस्तान, 0.304:1,000; बांग्लादेश, 0.389:1,000; और पाकिस्तान, 0.806:1,000।
बेरोजगारी की दर चिंताजनक :-
सीएमआईई के अनुसार, भारत में बेरोजगारी दर मई 2021 में बढ़कर 11.90 प्रतिशत हो गई
जो 2021 के अप्रैल में 8 प्रतिशत थी। राज्यस्तर पर हरियाणा 27.9, पुडुचेरी
47.1, राजस्थान 26.2, पश्चिम बंगाल 22.1, बिहार 10.5, गोवा 17.7, हिमाचल
प्रदेश 16.3, केरल 15.8 प्रतिशत संख्या दर्शाती है जबकी कुछ अन्य रिसर्च की
जानकारी अलग है बेरोजगारी की मार इससे कई गुणा अत्याधिक है जैसे दिल्ली में 45.6,
तमिलनाडू 29.1, राजस्थान 27.6 प्रतिशत है, अर्थात हर दूसरे-तीसरे घर में बेरोजगार
लोग है
या
बहुत बड़ी आबादी को योग्यता अनुसार काम नहीं मिलता है और कई उच्च शिक्षितों को तो दिहाड़ी
मजदुर से भी कम वेतन पर काम करना पड़ता है।
देश में झुग्गी झोपड़ी और मलिन
बस्तियों की आबादी व समस्याएं :- संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक शहरीकरण
संभावनाओं अनुसार, देश में मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों की संख्या 10.40
करोड़ या भारत की कुल जनसंख्या का 9 प्रतिशत होने का अनुमान है। भारत में मलिन
बस्तियों वाले 2,613 शहर हैं। इनमें से 57 फीसदी आबादी तमिलनाडु, मध्य प्रदेश,
उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में हैं। झुग्गी-झोपड़ियों की आबादी में आंध्र
प्रदेश सबसे ऊपर है, इसकी 36.1 प्रतिशत शहरी आबादी मलिन बस्तियों में रहती है, साथ
ही अन्य राज्य हैं - छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पश्चिम बंगाल,
सिक्किम, और हरियाणा हैं। 35 प्रतिशत झुग्गी-झोपड़ी घरों में उपचारित नल के पानी तक
पहुंच नहीं है। डीटीई द्वारा प्रकाशित, स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमेंट इन फिगर्स
2019 के अनुसार, ओडिशा में झुग्गी बस्तियों के एक बड़े हिस्से (64.9 प्रतिशत) के
पास उपचारित नल का पानी नहीं है और वे या तो जल निकासी कनेक्शन के बिना हैं या
खुले नाले से जुड़े हैं। 12 लाख (90.6 प्रतिशत) स्लम परिवार अनुपचारित नल का पानी
पीते हैं। झुग्गी-झोपड़ी के प्रत्येक 10 में से छह घरों में जल निकासी की समुचित
व्यवस्था नहीं है। भारत में 63 प्रतिशत झुग्गी-झोपड़ी घर या तो बिना जल निकासी
कनेक्शन के हैं या खुले नालों से जुड़े हैं। महाराष्ट्र और चार अन्य राज्यों में 61
फीसदी झुग्गी-झोपड़ी वाले घर बिना जल निकासी कनेक्शन के हैं।
झुग्गी-झोपड़ियों
में रहने वाले लोगों का प्रतिशत ग्रेटर मुंबई में 41.3 प्रतिशत अर्थात 90 लाख से
अधिक लोग होने का अनुमान है। मुंबई की धारावी झुग्गी बस्ती में 10 लाख लोग रहते
हैं, जो सिर्फ 535 एकड़ अर्थात 2 वर्ग किलोमीटर में फैला है, जिसकी जनसंख्या घनत्व
अविश्वसनीय 8,69,565 लोग प्रति वर्ग मील है। धारावी में लगभग 5,000 व्यवसाय और
15,000 सिंगल-रूम फैक्ट्रियां हैं, 69 प्रतिशत साक्षरता दर के साथ स्लम देश में
सबसे अधिक साक्षर है और मुंबई का जनसंख्या घनत्व लगभग 73,000 प्रति वर्ग मील है,
जो मुंबई को दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले शहरों में से एक बनाता है।
लगातार संघर्षमय जीवन चक्र मे बढ़ोतरी
:- आज देश में कोरोना को नियंत्रित करने में भी यह भयंकर
जनसंख्या रुकावट बन रही है। प्रदूषण, खाद्य अपमिश्रण, ग्लोबल वार्मिंग, खतरनाक
ई-कचरा, प्रदूषित वायु-जल, उपजाऊ खेत की कमी, प्राकृतिक संसाधनों का अधिक उपयोग,
प्राकृतिक संसाधनों की कमी, वनों की कटाई, जंगलों का विनाश, वन्य जीवों और मनुष्यों
के बीच बढ़ते टकराव, बढ़ती ईंधन की खपत, कभी अकाल कभी बाढ़, शुद्ध हवा और पानी की
कमी, पर्यावरण का क्षरण, बढ़ते कंक्रीट के जंगल, बेरोजगारी, भुखमरी, महंगाई,
जिंदगी के लिए संघर्ष और बढ़ती गंभीर बीमारियाँ इन सभी समस्याओं का एकमात्र कारण
बढ़ती जनसंख्या है। आज भी हमारे समाज के कई असहाय लोग, भिखारी, बीमार, विक्षिप्त
लोग, असहाय बच्चे सड़कों पर कूड़े में, खराब भोजन के ढेर में खाना चुनते नजर आते
है, यह हमारे लिए बड़ी शर्म की बात है। देश में बेरोजगारी ने आत्महत्या और अपराध
में तेजी से वृद्धि की है जिससे नशाखोरी, मिलावटखोरी, सिफारिश, भ्रष्टाचार, मानसिक
तनाव और घरेलू कलह जैसी समस्या अत्याधिक बढ रही है। जनसंख्या वृद्धि के कारण मलिन
बस्तियों, अशिक्षा, गरीबी, अपर्याप्त पोषण, उचित परवरिश की कमी, आर्थिक असमानता
जैसी गंभीर समस्याएं हैं, ऐसी खराब परिस्थितियों में बच्चों के जीवन का संघर्ष
बचपन से ही शुरू हो जाता है।
बढ़ती
जनसंख्या एक समस्या है जो सैकड़ों अन्य समस्याओं की जड़ है। भोजन, अनाज, स्वच्छ जल,
स्वच्छ वायु की कमी के कारण भविष्य में पृथ्वी पर मानव जीवन अत्यंत कठिन और कष्टदायक
होगा। प्राकृतिक संसाधन खत्म होने पर मनुष्य जीवित नहीं रह पाएगा। इस गंभीर समस्या
के प्रति प्रत्येक नागरिक ने जागरूक होना अति आवश्यक है, जनसंख्या नियंत्रण के लिए
कड़े फैसले लेना और कड़े कानून बनाना जरूरी हो गया है, जो बहुत पहले हो जाना चाहिए
था।
डॉ. प्रितम भि. गेडाम

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