नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस 1987 से हर साल 26 जून को जनजागृति के रूप में मनाया जाता है, इस वर्ष 2021 की थीम "ड्रग्स पर तथ्य साझा करें, जीवन बचाएं" है। इसका उद्देश्य गलत सूचनाओं का मुकाबला करना और दवाओं पर तथ्यों को साझा करने को बढ़ावा देना है, अर्थात स्वास्थ्य जोखिमों और समाधानों से लेकर विश्व नशीली दवाओं की समस्या से निपटने के लिए, साक्ष्य-आधारित रोकथाम, उपचार और देखभाल तक सभी आवश्यक घटक शामिल हैं जो अनमोल जीवन को बचा सकते हैं। नवीनतम विश्व ड्रग रिपोर्ट - 2020 अनुसार, 2018 में दुनियाभर में लगभग 269 मिलियन लोगों ने ड्रग्स का इस्तेमाल किया, जो 2009 की तुलना में 30 प्रतिशत अधिक है, जबकि 35.6 मिलियन से अधिक लोग ड्रग के उपयोग संबंधी विकारों से पीड़ित हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ती बेरोजगारी और कोरोना महामारी के कारण घटते अवसरों से भी सबसे गरीब लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दशक में नशीली दवाओं और संबंधित विकारों के कारण होने वाली मौतों की संख्या में 71 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। हमारे देश में बड़े पैमाने पर नशीले पदार्थों की तस्करी की जाती है। अभी 23 जून 2021 को ही जम्मू-कश्मीर में सीमा सुरक्षा बलों ने कठुआ जिले में अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास एक पाकिस्तानी ड्रग तस्कर को मार गिराया, उसके पास से 135 करोड़ रुपये की हेरोइन बरामद की गई।
आजकल
समाज में नशे की ओर किशोर अधिक आकर्षित नजर आते है और उनके द्वारा हानेवाले अपराधों
का ग्राफ भी लगातार बढ़ते ही जा रहा है। बच्चे जल्दी उत्तेजित हो जाते हैं, जल्द आकर्षित
होते है, जिद पकड़ लेते है, हर वस्तु को शीघ्र प्राप्त करना चाहते हैं। ज्यादातर बच्चे,
देश के लिए आहुति देने वाले महान क्रांतिकारी शहीदों या समाज सुधारक या कडी मेहनत करके
देश का नाम रोशन करनेवाले महान बुद्धिजीवी शख्सियतों को आदर्श के रूप में न रखकर फिल्मों
और फैशन के कलाकारों को अपना आदर्श मानते है और जैसा देखते है वैसा बनना चाहते है,
फिर चाहे इसके लिए शॉर्टकट का रास्ता क्यो न अपनाना पडे। सिगरेट तंबाकू हुक्का और शराब
से नशा शुरू होकर आगे भांग, नशीली दवा, हेरोईन, गांजा, अफीम, चरस की तरफ बढता जाता
है बाद में नशे की लालसा ऐसे बढती जाती है। महंगे शौक, फैशन, दिखावा, शॉर्टकट में पैसा
कमाने की चाहत, कम उम्र में ही खुद को दबंग दिखाने और दूसरों पर रौब डालने के चक्कर
मे ये किशोर जघन्य अपराध करते हैं, अक्सर लोग छोटे बच्चों की गलतियों को नज़रअंदाज़
कर देते हैं, लेकिन कई बार यह गलती आगे जाकर बड़े हादसे का रूप ले लेती है।
दिल दहला देने वाला मुंबई का शक्ति मिल गैंगरेप
केस और निर्भया केस, दिल्ली - कड़कड़डूमा कोर्ट में गोलीबारी केस में पकड़े गए चारों आरोपी
नाबालिग पाए गए, मुंबई हमला- कसाब ने खुद को नाबालिग बताया था, कानपुर मे किशोर ने
10 साल के मासूम का गला रेतकर की हत्या व जंगल में फेंकी लाश, महाराष्ट्र के नागपुर
मे पिछले कुछ वर्षो में फिरौती के लिए छोटे बच्चों का अपहरण करके जान से मार डालने
के केस में किशोर अपराधी शामिल पाए गए। देश में ऐसे हजारों अपराधों में नाबालिग शामिल
पाए गए हैं, हर शहर और बड़े महानगरों में, आपराधिक गिरोह या टोली में किशोर अपराधी
देखे जाते हैं। किशोर अपराधी, अपनी गर्लफ्रेंड को महंगे उपहारों और मौज-मस्ती भरी जिंदगी
जीने के लिए नशा करके गलत रास्तों पर चल पड़ते है। नाबालिगों का आपराधिक गतिविधियों
में शामिल होना बेहद गंभीर मामला है। किशोरों की आपराधिक प्रवृत्ति को बढ़ाने में फिल्मों
और टेलीविजन, विशेषकर मोबाइल की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। असंख्य लोग,
छोटे से लेकर बड़े तक, सोशल मीडिया के आदी बन चुके है, हाल के जघन्य अपराधों के अपराधियों
ने कबूल किया है कि उन्हें अपराध करने का तरीका सोशल मीडिया, इंटरनेट और वेब सीरीज
देखकर पता चला है।
बच्चों
में नशे का प्रमाण लगातार बढ़ रहा :- भारत सरकार के सामाजिक न्याय एंव अधिकारीता मंत्रालय
के वर्ष 2018 के राष्ट्रिय सर्वेक्षण अनुसार देश में 10 से 17 साल के 1.48 करोड बच्चे
नशीले पदार्थों का सेवन कर रहे है। नशेड़ी नशे के विकल्प तलाशते रहते हैं, गोमफिक्स,
फोर्टबीन इंजेक्शन, कोर्डिनयुक्त कफ सिरप, लिक्विड, इरेजर, व्हाइटनर, पंचर बनाने के
सोलूशन, पेट्रोल, थिनर, सनफिक्स बॉन्ड फिक्स
जैसे तेज हानिकारक रासायनिक ज्वलनशील
नशीले पदार्थों को सूंघकर नशा करनेवाले बच्चों की संख्या साधारणत 50 लाख है, तकरीबन
30 लाख बच्चे शराब पीते हैं, 40 लाख बच्चे नशे के लिए अफीम लेते हैं और 20 लाख बच्चे
भांग का नशा करते हैं इसके अलावा नशीली दवाओं से इंजेक्शन लगाना, इत्यादि का नशा भी
बडी मात्रा में कर रहे हैं। ये बच्चे रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, स्लम एरिया, सुनसान
खंडहर, सार्वजनिक पार्क में समूह बनाकर नशे करते पाए जाते हैं। सबसे बड़ी समस्या समाज
में इन नशे की आसान उपलब्धता है। दिल्ली सरकार के समाज कल्याण विभाग की पहल पर
2016 में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, राजधानी में 70 हजार बच्चें नशा करनेवाले
पाये गये थे। आज कोरोना काल में, नशे के लिए बच्चों से लेकर वयस्कों तक, हैंड सैनिटाइजर
पीने की भी लत लग रही है क्योंकि इसमें अल्कोहल होता है, अल्कोहल बेस्ड सैनिटाइजर पीने
कई मामले सामने आए हैं जिसमें नशेड़ीयों की मौत हुईं हैं।
नशे
के कारण अपराध में तेजी से वृद्धि :-
अपराध ब्यूरो रिकॉर्ड के अनुसार, बड़े-बड़े अपराधों, हत्या, डकैती, लूट, अपहरण आदि सभी
प्रकार की घटनाओं में, नशे का मामला लगभग 73.5 प्रतिशत और बलात्कार जैसे जघन्य अपराध
में 87 प्रतिशत तक होता है। देश में बढ़ते अपराध, बीमारियों और हिंसा में भी नशा एक
महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नशाखोरी के कारण इन मासूमों का बचपन बर्बाद होता है,
साथ ही उनमें अपराध की प्रवृत्ति भी पैदा होती है। नशे के चंगुल में बच्चों का मानसिक
विकास रुक जाता है। नशे में मनुष्य का मस्तिष्क पर नियंत्रण नही होता और नकारात्मक
विचारो मे वृद्धि होती हैं। पैसों की खातिर, बच्चे अक्सर झूठ बोलना, जिम्मेदारी से
भागना, कुछ गलती होने पर वो बड़ों से छुपाना, वाहन चोरी करना, रफ ड्राइविंग करना और
नशे के लिए अपराध करना शुरू कर देते हैं। ये ही बच्चें बड़े होकर संगीन अपराधों को अंजाम
देने लगते हैं। इस तरह हमारे समाज में एक नया आपराधिक साम्राज्य शुरू होता है आजकल
बड़े अपराधों में नाबालिग अपराधी बहुत सक्रिय प्रतीत होते हैं, ऐसी खबरें हम रोज देखते
और पढ़ते हैं। कभी-कभी लोग इन बच्चों को चोरी करते हुए पकड़ लेते हैं, डाट डपटकर, तमाचा
लगाकर छोड़ देते है, लेकिन जमीनी तौर पर उन्हें उचित मार्गदर्शन देने का कोई प्रयास
नहीं किया जाता। ये बच्चे हमारे देश का उज्ज्वल भविष्य हैं। अगर हम आज इनके अस्तित्व
को नहीं संभालेंगे तो इन्हें भविष्य का आधारस्तंभ कैसे कह सकते हैं?
बढ़ते
किशोर अपराध के कारण :- समाज
की परिस्थितियां भी बच्चों को अपराध की दुनिया में जाने को मजबूर करती हैं। अगर महानगरों
की बात करें तो रोजगार के सिलसिले में लोगों का पलायन, खराब पड़ोस, बुरी संगति, संस्कारों
का अभाव, अस्वस्थ वातावरण, घर में कलह का माहौल, मां-बाप का बच्चों की देखभाल करने
की बजाय जीविकोपार्जन में व्यस्त रहना, टूटते संयुक्त परिवारों में बुजुर्गों की कमी
जो माता-पिता के पीछे बच्चों की देखभाल कर सकें और बदलते तकनीकी युग में मोबाइल-टीवी
के माध्यम से अवांछित चीजें बच्चों तक पहुंचना, ऐसे कई कारण हैं जो बच्चों को ऐसे कई
अवसर देते हैं जिसकी वजह से वे अपराध की दुनिया में कदम रख देते हैं। माता-पिता की
लापरवाही और कुछ अन्य लोगों की गलत मंशा के कारण बच्चे नशे की चपेट में आ जाते हैं।
एक बार आदी हो जाने के बाद, ये नशे की खातिर छोटी-छोटी चोरी जैसे अपराध करने लगते हैं।
इसके बाद इनके गंभीर अपराध करने की संभावना भी बढ़ जाती है। ये हालात ऐसे हो जाते हैं
कि जिस उम्र में उनके हाथ में पेंसिल पेन और पेंट ब्रश होने चाहिए थे, उसी उम्र में
उनके हाथों में चाकू, ताले तोड़ने के औजार और
नशे के इंजेक्शन आ गए।
किशोर
अपराध पर कानून :- किशोर अपराध
16 वर्ष से कम आयु के बालक द्वारा किया गया कानून विरोधी कार्य है जिसे कानूनी कार्यवाही
के लिये बाल न्यायालय के समक्ष उपस्थित किया जाता है. भारत में बाल न्याय अधिनियम
1986 (संशोधित 2000) के अनुसार 16 वर्ष तक की आयु के लड़कों एवं 18 वर्ष तक की आयु की
लड़कियों के अपराध करने पर किशोर अपराधी की श्रेणी में सम्मिलित किया गया है. किशोर
उम्र के बालक द्वारा किया गया कानूनी विरोधी कार्य किशोर अपराध है। किशोर न्याय (देखभाल
और सुरक्षा) अधिनियम, 2000 के अनुसार एक किशोर यदि वो किसी भी अपराधिक गतिविधि में
शामिल है तो कानूनी सुनवाई और सजा के लिये उसके साथ एक वयस्क की तरह व्यवहार नहीं किया
जायेगा।
हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी :- कहीं कुछ गलत होता है तो उसे वही रोककर सुधार
देना ही सबसे बड़ी समझदारी है वर्ना यह आगे जाकर बहुत विकराल समस्या बन सकती हैं और
फिर पछतावे के अलावा कुछ नहीं रहता, नशे की लत छुड़ाने के लिए राष्ट्रीय टोल फ्री नशा
मुक्ति हेल्पलाइन नंबर 1800-11-0031 पर संपर्क करें। बच्चों द्वारा होनेवाली नशाखोरी
और बढ़ते किशोर अपराध के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार बच्चों के अभिभावक है जो अपने बच्चों
को समय रहते नियंत्रित नही कर पाते, अच्छे संस्कार, परवरिश, सही-गलत का ज्ञान नहीं
देते और समाज के लिए घातक नासूर के रूप में ये बच्चे बढते जाते है। हमारे बच्चे, हमारी
जिम्मेदारी है, हमारी लापरवाही से बच्चे बिगड़ते है और कलंकित अपराध द्वारा इसकी सजा
पूरे समाज को भुगतनी पडती है। बच्चे देश का भविष्य, अनमोल राष्ट्रीय धरोहर हैं और आने
वाले समय में उनके मजबूत कंधों पर देश व परिवार के भविष्य की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होगी,
इसलिए सरकार, समाज, माता-पिता, अभिभावक के रूप में हम सभी का एक नैतिक कर्तव्य है कि
हम स्वस्थ सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण में बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए बढ़ने
का मौका दें, ताकि वह बड़े होकर देश के एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में शारीरिक रूप
से स्वस्थ, मानसिक रूप से बुद्धिमान और नैतिक रूप से सदाचारी होकर वह अपने जिम्मेदारी
का सही ढंग से निर्वहन कर सकें।
डॉ. प्रितम भि. गेडाम





