शनिवार, 26 जून 2021

नशे की गिरफ्त में अपराध कर रहे किशोर (अंतर्राष्ट्रीय मादक पदार्थ सेवन और तस्करी निरोधक दिवस - 26 जून 2021) Teenagers committing crimes under the influence of drugs (International Day against Drug Abuse and Illicit Trafficking - June 26, 2021)

 

नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस 1987 से हर साल 26 जून को जनजागृति के रूप में मनाया जाता है, इस वर्ष 2021 की थीम "ड्रग्स पर तथ्य साझा करें, जीवन बचाएं" है। इसका उद्देश्य गलत सूचनाओं का मुकाबला करना और दवाओं पर तथ्यों को साझा करने को बढ़ावा देना है, अर्थात स्वास्थ्य जोखिमों और समाधानों से लेकर विश्व नशीली दवाओं की समस्या से निपटने के लिए, साक्ष्य-आधारित रोकथाम, उपचार और देखभाल तक सभी आवश्यक घटक शामिल हैं जो अनमोल जीवन को बचा सकते हैं। नवीनतम विश्व ड्रग रिपोर्ट - 2020 अनुसार, 2018 में दुनियाभर में लगभग 269 मिलियन लोगों ने ड्रग्स का इस्तेमाल किया, जो 2009 की तुलना में 30 प्रतिशत अधिक है, जबकि 35.6 मिलियन से अधिक लोग ड्रग के उपयोग संबंधी विकारों से पीड़ित हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ती बेरोजगारी और कोरोना महामारी के कारण घटते अवसरों से भी सबसे गरीब लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दशक में नशीली दवाओं और संबंधित विकारों के कारण होने वाली मौतों की संख्या में 71 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। हमारे देश में बड़े पैमाने पर नशीले पदार्थों की तस्करी की जाती है। अभी 23 जून 2021 को ही जम्मू-कश्मीर में सीमा सुरक्षा बलों ने कठुआ जिले में अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास एक पाकिस्तानी ड्रग तस्कर को मार गिराया, उसके पास से 135 करोड़ रुपये की हेरोइन बरामद की गई।

आजकल समाज में नशे की ओर किशोर अधिक आकर्षित नजर आते है और उनके द्वारा हानेवाले अपराधों का ग्राफ भी लगातार बढ़ते ही जा रहा है। बच्चे जल्दी उत्तेजित हो जाते हैं, जल्द आकर्षित होते है, जिद पकड़ लेते है, हर वस्तु को शीघ्र प्राप्त करना चाहते हैं। ज्यादातर बच्चे, देश के लिए आहुति देने वाले महान क्रांतिकारी शहीदों या समाज सुधारक या कडी मेहनत करके देश का नाम रोशन करनेवाले महान बुद्धिजीवी शख्सियतों को आदर्श के रूप में न रखकर फिल्मों और फैशन के कलाकारों को अपना आदर्श मानते है और जैसा देखते है वैसा बनना चाहते है, फिर चाहे इसके लिए शॉर्टकट का रास्ता क्यो न अपनाना पडे। सिगरेट तंबाकू हुक्का और शराब से नशा शुरू होकर आगे भांग, नशीली दवा, हेरोईन, गांजा, अफीम, चरस की तरफ बढता जाता है बाद में नशे की लालसा ऐसे बढती जाती है। महंगे शौक, फैशन, दिखावा, शॉर्टकट में पैसा कमाने की चाहत, कम उम्र में ही खुद को दबंग दिखाने और दूसरों पर रौब डालने के चक्कर मे ये किशोर जघन्य अपराध करते हैं, अक्सर लोग छोटे बच्चों की गलतियों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं, लेकिन कई बार यह गलती आगे जाकर बड़े हादसे का रूप ले लेती है।

दिल दहला देने वाला मुंबई का शक्ति मिल गैंगरेप केस और निर्भया केस, दिल्ली - कड़कड़डूमा कोर्ट में गोलीबारी केस में पकड़े गए चारों आरोपी नाबालिग पाए गए, मुंबई हमला- कसाब ने खुद को नाबालिग बताया था, कानपुर मे किशोर ने 10 साल के मासूम का गला रेतकर की हत्या व जंगल में फेंकी लाश, महाराष्ट्र के नागपुर मे पिछले कुछ वर्षो में फिरौती के लिए छोटे बच्चों का अपहरण करके जान से मार डालने के केस में किशोर अपराधी शामिल पाए गए। देश में ऐसे हजारों अपराधों में नाबालिग शामिल पाए गए हैं, हर शहर और बड़े महानगरों में, आपराधिक गिरोह या टोली में किशोर अपराधी देखे जाते हैं। किशोर अपराधी, अपनी गर्लफ्रेंड को महंगे उपहारों और मौज-मस्ती भरी जिंदगी जीने के लिए नशा करके गलत रास्तों पर चल पड़ते है। नाबालिगों का आपराधिक गतिविधियों में शामिल होना बेहद गंभीर मामला है। किशोरों की आपराधिक प्रवृत्ति को बढ़ाने में फिल्मों और टेलीविजन, विशेषकर मोबाइल की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। असंख्य लोग, छोटे से लेकर बड़े तक, सोशल मीडिया के आदी बन चुके है, हाल के जघन्य अपराधों के अपराधियों ने कबूल किया है कि उन्हें अपराध करने का तरीका सोशल मीडिया, इंटरनेट और वेब सीरीज देखकर पता चला है।

बच्चों में नशे का प्रमाण लगातार बढ़ रहा :- भारत सरकार के सामाजिक न्याय एंव अधिकारीता मंत्रालय के वर्ष 2018 के राष्ट्रिय सर्वेक्षण अनुसार देश में 10 से 17 साल के 1.48 करोड बच्चे नशीले पदार्थों का सेवन कर रहे है। नशेड़ी नशे के विकल्प तलाशते रहते हैं, गोमफिक्स, फोर्टबीन इंजेक्शन, कोर्डिनयुक्त कफ सिरप, लिक्विड, इरेजर, व्हाइटनर, पंचर बनाने के सोलूशन, पेट्रोल, थिनर, सनफिक्स बॉन्ड फिक्स जैसे तेज हानिकारक रासायनिक ज्वलनशील नशीले पदार्थों को सूंघकर नशा करनेवाले बच्चों की संख्या साधारणत 50 लाख है, तकरीबन 30 लाख बच्चे शराब पीते हैं, 40 लाख बच्चे नशे के लिए अफीम लेते हैं और 20 लाख बच्चे भांग का नशा करते हैं इसके अलावा नशीली दवाओं से इंजेक्शन लगाना, इत्यादि का नशा भी बडी मात्रा में कर रहे हैं। ये बच्चे रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, स्लम एरिया, सुनसान खंडहर, सार्वजनिक पार्क में समूह बनाकर नशे करते पाए जाते हैं। सबसे बड़ी समस्या समाज में इन नशे की आसान उपलब्धता है। दिल्ली सरकार के समाज कल्याण विभाग की पहल पर 2016 में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, राजधानी में 70 हजार बच्चें नशा करनेवाले पाये गये थे। आज कोरोना काल में, नशे के लिए बच्चों से लेकर वयस्कों तक, हैंड सैनिटाइजर पीने की भी लत लग रही है क्योंकि इसमें अल्कोहल होता है, अल्कोहल बेस्ड सैनिटाइजर पीने कई मामले सामने आए हैं जिसमें नशेड़ीयों की मौत हुईं हैं।

नशे के कारण अपराध में तेजी से वृद्धि :- अपराध ब्यूरो रिकॉर्ड के अनुसार, बड़े-बड़े अपराधों, हत्या, डकैती, लूट, अपहरण आदि सभी प्रकार की घटनाओं में, नशे का मामला लगभग 73.5 प्रतिशत और बलात्कार जैसे जघन्य अपराध में 87 प्रतिशत तक होता है। देश में बढ़ते अपराध, बीमारियों और हिंसा में भी नशा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नशाखोरी के कारण इन मासूमों का बचपन बर्बाद होता है, साथ ही उनमें अपराध की प्रवृत्ति भी पैदा होती है। नशे के चंगुल में बच्चों का मानसिक विकास रुक जाता है। नशे में मनुष्य का मस्तिष्क पर नियंत्रण नही होता और नकारात्मक विचारो मे वृद्धि होती हैं। पैसों की खातिर, बच्चे अक्सर झूठ बोलना, जिम्मेदारी से भागना, कुछ गलती होने पर वो बड़ों से छुपाना, वाहन चोरी करना, रफ ड्राइविंग करना और नशे के लिए अपराध करना शुरू कर देते हैं। ये ही बच्चें बड़े होकर संगीन अपराधों को अंजाम देने लगते हैं। इस तरह हमारे समाज में एक नया आपराधिक साम्राज्य शुरू होता है आजकल बड़े अपराधों में नाबालिग अपराधी बहुत सक्रिय प्रतीत होते हैं, ऐसी खबरें हम रोज देखते और पढ़ते हैं। कभी-कभी लोग इन बच्चों को चोरी करते हुए पकड़ लेते हैं, डाट डपटकर, तमाचा लगाकर छोड़ देते है, लेकिन जमीनी तौर पर उन्हें उचित मार्गदर्शन देने का कोई प्रयास नहीं किया जाता। ये बच्चे हमारे देश का उज्ज्वल भविष्य हैं। अगर हम आज इनके अस्तित्व को नहीं संभालेंगे तो इन्हें भविष्य का आधारस्तंभ कैसे कह सकते हैं?

बढ़ते किशोर अपराध के कारण :- समाज की परिस्थितियां भी बच्चों को अपराध की दुनिया में जाने को मजबूर करती हैं। अगर महानगरों की बात करें तो रोजगार के सिलसिले में लोगों का पलायन, खराब पड़ोस, बुरी संगति, संस्कारों का अभाव, अस्वस्थ वातावरण, घर में कलह का माहौल, मां-बाप का बच्चों की देखभाल करने की बजाय जीविकोपार्जन में व्यस्त रहना, टूटते संयुक्त परिवारों में बुजुर्गों की कमी जो माता-पिता के पीछे बच्चों की देखभाल कर सकें और बदलते तकनीकी युग में मोबाइल-टीवी के माध्यम से अवांछित चीजें बच्चों तक पहुंचना, ऐसे कई कारण हैं जो बच्चों को ऐसे कई अवसर देते हैं जिसकी वजह से वे अपराध की दुनिया में कदम रख देते हैं। माता-पिता की लापरवाही और कुछ अन्य लोगों की गलत मंशा के कारण बच्चे नशे की चपेट में आ जाते हैं। एक बार आदी हो जाने के बाद, ये नशे की खातिर छोटी-छोटी चोरी जैसे अपराध करने लगते हैं। इसके बाद इनके गंभीर अपराध करने की संभावना भी बढ़ जाती है। ये हालात ऐसे हो जाते हैं कि जिस उम्र में उनके हाथ में पेंसिल पेन और पेंट ब्रश होने चाहिए थे, उसी उम्र में उनके हाथों में चाकू, ताले तोड़ने के औजार  और नशे के इंजेक्शन आ गए।

किशोर अपराध पर कानून :- किशोर अपराध 16 वर्ष से कम आयु के बालक द्वारा किया गया कानून विरोधी कार्य है जिसे कानूनी कार्यवाही के लिये बाल न्यायालय के समक्ष उपस्थित किया जाता है. भारत में बाल न्याय अधिनियम 1986 (संशोधित 2000) के अनुसार 16 वर्ष तक की आयु के लड़कों एवं 18 वर्ष तक की आयु की लड़कियों के अपराध करने पर किशोर अपराधी की श्रेणी में सम्मिलित किया गया है. किशोर उम्र के बालक द्वारा किया गया कानूनी विरोधी कार्य किशोर अपराध है। किशोर न्याय (देखभाल और सुरक्षा) अधिनियम, 2000 के अनुसार एक किशोर यदि वो किसी भी अपराधिक गतिविधि में शामिल है तो कानूनी सुनवाई और सजा के लिये उसके साथ एक वयस्क की तरह व्यवहार नहीं किया जायेगा।

हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी :- कहीं कुछ गलत होता है तो उसे वही रोककर सुधार देना ही सबसे बड़ी समझदारी है वर्ना यह आगे जाकर बहुत विकराल समस्या बन सकती हैं और फिर पछतावे के अलावा कुछ नहीं रहता, नशे की लत छुड़ाने के लिए राष्ट्रीय टोल फ्री नशा मुक्ति हेल्पलाइन नंबर 1800-11-0031 पर संपर्क करें। बच्चों द्वारा होनेवाली नशाखोरी और बढ़ते किशोर अपराध के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार बच्चों के अभिभावक है जो अपने बच्चों को समय रहते नियंत्रित नही कर पाते, अच्छे संस्कार, परवरिश, सही-गलत का ज्ञान नहीं देते और समाज के लिए घातक नासूर के रूप में ये बच्चे बढते जाते है। हमारे बच्चे, हमारी जिम्मेदारी है, हमारी लापरवाही से बच्चे बिगड़ते है और कलंकित अपराध द्वारा इसकी सजा पूरे समाज को भुगतनी पडती है। बच्चे देश का भविष्य, अनमोल राष्ट्रीय धरोहर हैं और आने वाले समय में उनके मजबूत कंधों पर देश व परिवार के भविष्य की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होगी, इसलिए सरकार, समाज, माता-पिता, अभिभावक के रूप में हम सभी का एक नैतिक कर्तव्य है कि हम स्वस्थ सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण में बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए बढ़ने का मौका दें, ताकि वह बड़े होकर देश के एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में शारीरिक रूप से स्वस्थ, मानसिक रूप से बुद्धिमान और नैतिक रूप से सदाचारी होकर वह अपने जिम्मेदारी का सही ढंग से निर्वहन कर सकें।

डॉ. प्रितम भि. गेडाम 

नशेच्या विळख्यात अडकून गंभीर गुन्हे करताहेत किशोरवयीन मुलं (जागतिक अमली पदार्थ विरोधी दिन - 26 जून 2021)

 

दरवर्षी 26 जून रोजी “ड्रग गैरवर्तन आणि अवैध तस्करी विरुद्ध आंतरराष्ट्रीय दिन” 1987 पासून जनजागृती म्हणून साजरा केला जातो, या 2021 वर्षाची थीम आहे "औषधांवर तथ्य सामायिक करा, जीव वाचवा". याचे उद्दिष्ट चुकीची माहिती विरूद्ध लढा आणि औषधांवरील तथ्ये सामायिकरणास प्रोत्साहित करणे आहे, म्हणजेच आरोग्यासंबंधी जोखीम आणि निराकरण, जागतिक पातळीवर औषधांची समस्या सोडविण्यासाठी, पुरावा-आधारित प्रतिबंध, उपचार आणि काळजी घेईपर्यंत सर्व आवश्यक घटक असतात, जे मौल्यवान जीव वाचवू शकेल. 2020 च्या जागतिक औषध अहवालानुसार 2018 मध्ये जगभरातील सुमारे 269 दशलक्ष लोकांनी ड्रग्स वापरली, जे 2009 च्या तुलनेत 30 टक्के जास्त आहे, तर 35.6 दशलक्षाहून अधिक लोक ड्रग वापराच्या विकारांनी ग्रस्त आहेत. अहवालात म्हटले आहे की वाढती बेरोजगारी आणि कोरोना साथीच्या आजारामुळे गरीब लोकांवर प्रतिकूल परिणाम होण्याची शक्यता आहे. संयुक्त राष्ट्रांच्या अहवालानुसार, गेल्या दशकात अमली पदार्थ आणि संबंधित विकारांमुळे मृत्यूच्या संख्येत 71 टक्के वाढ झाली आहे. आपल्या देशात मादक पदार्थांची तस्करी सर्रासपणे सुरू आहे. आत्ताच 23 जून 2021 रोजी जम्मू-काश्मीर मधे सीमा सुरक्षा दलांनी कठुआ जिल्ह्यातील आंतरराष्ट्रीय सीमेजवळ एक पाकिस्तानी मादक पदार्थ तस्कराला मारले, त्याच्याकडून 135 कोटी रुपयांची हेरॉईन जप्त करण्यात आली.

समाजात आजकाल किशोरवयीन मुले ड्रग्जकडे अधिक आकर्षित होतांनी आणि त्यांच्याकडून होणाऱ्या गुन्ह्यांचा आलेखही सतत वाढतांनी दिसून येतो. मुले पटकन उग्र होतात, आकर्षित होतात, हट्टीपणा करतात, सर्व काही द्रुतपणे मिळवण्याचा प्रयत्न करतात. बहुतेक मुले, महान समाज सुधारकांना किंवा क्रांतिकारक शहीद ज्यांनी देशासाठी बलिदान दिले आहे किंवा कठोर मेहनत घेऊन देशासाठी गौरव घडवून आणणाऱ्या महान बौद्धिक व्यक्तिमत्त्वांना आदर्श म्हणून नव्हे तर चित्रपट, फॅशनमधील कलाकारांना आणि दबंगई करणाऱ्या लोकांना त्यांचे रोल मॉडेल मानतात आणि त्यांना जसे दिसते, तसेच व्हायचे असते, यासाठी मग त्यांना शॉर्टकट मार्ग जरी घ्यावा लागला तरी बरं. सिगारेट तंबाखू हुक्का आणि अल्कोहोलपासून नशा सुरू होवून समोर गांजा, ड्रग्स, हेरोइन, अफू, चरस चा दिशेने पुढे जातात. नंतर आम्ल पदार्थाची तल्लफ अशा प्रकारे वाढतच जाते. महागडे छंद, फॅशन, देखावा, शॉर्टकटमध्ये पैसे कमवायची इच्छा, स्वत:चा दबदबा दाखवण्यासाठी आणि इतरांवर वर्चस्व गाजवण्यासाठी ही किशोरवयीन मुले गंभीर गुन्हे करतात. अनेकदा लोक लहान मुलांच्या चुकांकडे दुर्लक्ष करतात, परंतु काहीवेळा ही चूक पुढे जाऊन मोठ्या अपघाताचे रूप धारण करते.



मुंबईतील धक्कादायक शक्ती मिल सामूहिक बलात्कार प्रकरण आणि निर्भया प्रकरण, दिल्ली - कड़कड़डूमा कोर्टात गोळीबार प्रकरणात अटक केलेले चार आरोपी अल्पवयीन असल्याचे आढळले, मुंबई हल्ला - कसाबने स्वत: ला नाबालिग म्हटले होते, कानपूरमध्ये एका किशोरवयीन मुलाने दहा वर्षांच्या निरागस बालकाचा गळा कापून त्याचा मृत्यूदेह जंगलात फेकला, महाराष्ट्रातील नागपूरमध्ये गेल्या काही वर्षांत खंडणीसाठी अल्पवयीन मुलांचे अपहरण आणि हत्या करण्यात बाल गुन्हेगार गुंतले असल्याचे आढळले. देशातील अशा हजारो गंभीर गुन्ह्यांमध्ये अल्पवयीन बालकांचा सहभाग असल्याचे आढळून आले आहे, प्रत्येक शहरात आणि मोठ्या महानगरांमध्ये, बाल अपराधी हे गुन्हेगारी टोळ्यांमध्ये दिसतात. बाल अपराधी, गर्लफ्रेंडला महागड्या भेटवस्तू देणे, आणि मजा-मस्तीचे आयुष्य जगण्यासाठी, नशा केल्यानंतर ते चुकीच्या मार्गावर जातात. अल्पवयीन मुलांचा गुन्हेगारीत सहभाग घेणे ही अत्यंत गंभीर बाब आहे. बाल गुन्हेगारी प्रवृत्ती वाढविण्यात चित्रपट, टिवी, विशेषतः मोबाइलच्या भूमिकेकडे दुर्लक्ष केले जाऊ शकत नाही. असंख्य लोक, लहान ते मोठे, सोशल मीडियाचे व्यसनी झाले आहेत, त्यामुळे रोज त्यांचा घरी तणावाचे वातावरण देखील असते, नुकत्याच झालेल्या गंभीर गुन्ह्यांतील दोषींनी कबूल केले आहे की सोशल मीडिया, इंटरनेट आणि वेब सिरीज पाहून त्यांना गुन्हा करण्याचे मार्ग कळले आहेत.

मुलांमध्ये अमली पदार्थांचे व्यसन करण्याचे प्रमाण सातत्याने वाढत आहेत :- भारतीय शासनाच्या सामाजिक न्याय व अधिकारीता मंत्रालय तर्फे वर्ष 2018 मधील राष्ट्रिय सर्वेक्षणानुसार देशात 10 ते 17 वर्षाचा वयोगटातील तब्बल 1.48 कोटी मुले व्यसन करतात. व्हाइटनर, पंचर सोल्यूशन, कफ सिरप, पेट्रोल, थिनर, सनफिक्स बॉन्ड फिक्स यासारख्या हानिकारक तीक्ष्ण रासायनिक ज्वलनशील पदार्थांचा वास घेवून नशा करणाऱ्या मुलांची संख्या 50 लाख आहे आणि 20 लाख मुले भांग, 30 लाख मुलं दारू, तर 40 लाख मुलं अफीमचा नशा करतात. सिगारेट, तंबाखू, ड्रग्स सह इंजेक्शन व इतर पदार्थांचा नशा ही मोठ्या प्रमाणावर करतात. ही मुले रेल्वे स्थानक, बसस्थानक, झोपडपट्टी, निर्जन भागात, सार्वजनिक उद्याने अशा ठिकाणी गटांमध्ये मिळून नशा करतांनी आढळतात. लहान मुलापर्यंत हे जीवघेणे नशेचे विष सहज उपलब्धता ही सर्वात मोठी समस्या आहे. 2016 मध्ये दिल्ली सरकारच्या समाजकल्याण विभागाच्या पुढाकाराने केलेल्या सर्वेक्षणानुसार, देशाच्या राजधानीत 70 हजार मुले अमली पदार्थांच्या आहारी असल्याचे आढळले. आज कोरोना काळात, नशा करण्यासाठी अल्कोहोल आधारित हैंड सेनेटिझर प्यायचे व्यसन लागत आहे, असे अनेक प्रकरण समोर आलेत, ज्यामध्ये सेनेटिझरचे प्राशन करणारी व्यसनी व्यक्ती मृत्युमुखी पडली आहेत.

नशेमुळे गुन्ह्यांमध्ये झपाट्याने वाढ :- क्राइम ब्युरोच्या नोंदीनुसार मोठ्या प्रमाणात गुन्हे, खून, दरोडा, अपहरण इतर सर्व प्रकारच्या गुन्हांमध्ये नशेचे प्रमाण 73.5% आणि बलात्कार सारख्या जघन्य गुन्ह्यात हे 87% टक्के पर्यंत आहे. देशातील वाढत्या गुन्हेगारी, गंभीर आजार आणि हिंसाचारामध्येही नशेची महत्त्वपूर्ण भूमिका आहे. नशेमुळे या लहान निर्दोषांचे बालपण उध्वस्त होत आहे, तसेच यांचात बालगुन्हेगारी, आजारपण देखील फार वाढते. मुलांचा मानसिक विकास नशेच्या तावडीत थांबून जातो. नशेत माणसाचा स्वतावर नियंत्रण नसते आणि नकारात्मक विचार वेगाने वाढतात. पैशासाठी मुले खोटे बोलायला लागतात, जबाबदारी पासून दूर पडतात, काही चूक झाल्यास पालकांशी लपविणे आणि नशेकरीता मोबाईल, पर्स, चेन स्नॅचिंग, वाहने चोरी सारखे गुन्हे करतात, रफ ड्राइविंग करतात आणि ते मोठे होवून गंभीर गुन्हे करायला लागतात. अशाप्रकारे, आपल्या समाजात एक नवीन गुन्हेगारी साम्राज्य सुरू व्हायला लागते. आजकाल ही किशोरवयीन मुले मोठ्या गुन्ह्यात खूपच सक्रिय दिसत आहेत. आपण दररोज अशा बातम्या पाहतो आणि वाचतोच. कित्येकदा आपल्याला विश्वास सुदधा बसत नाही की ही ऐवढी लहान-लहान मुले माणुसकीला काळीमा फासणारी घाण कृत्य कशी काय करू करतात? पण हे कटु सत्य आहे. कधी-कधी लोक या मुलांना चोरी करताना पकडतात आणि त्यांना थोडेसे रागाहून, थापड़ मारून सोडून देतात, परंतु मुळात त्यांना योग्य मार्गदर्शन देण्याचा किंवा सुधरविण्याचा प्रयत्न होतांना दिसतच नाही. ही मुले आपल्या राष्ट्राचे उज्ज्वल भविष्य आहेत. जर आपण आज त्यांचे अस्तित्व व्यवस्थापित केले नाही तर आपण त्यांना भविष्यातील आधारस्तंभ कसे म्हणावे?

किशोरवयीन गुन्हेगारी वाढण्याची कारणे : - समाजाच्या परिस्थितीमुळे देखील मुलांना गुन्हेगारीच्या जगात जाण्यास भाग पाडले जाते. जर आपण महानगरांबद्दल बोललो तर रोजगाराच्या बाबतीत लोकांचे स्थलांतर, वाईट शेजार, वाईट लोकांची संगत, संस्करांचा अभाव, घरात असंतोषाचे वातावरण, पालक मुलांची काळजी घेण्याऐवजी कामात व्यस्त, कुटुंबात ज्येष्ठांची कमतरता जी पालकांच्या मागे मुलांची काळजी घेऊ शकतात आणि बदलत्या तांत्रिक युगात मोबाईल-टीव्हीच्या माध्यमातून अवांछित गोष्टींपर्यंत सहज प्रवेश, ही अशी अनेक कारणे आहेत ज्यामुळे मुलांना गुन्हेगारीची संधी मिळते. पालकांच्या निष्काळजीपणामुळे आणि इतर काही लोकांच्या चुकीच्या हेतूमुळे मुले ड्रग्सची लागण करतात. एकदा व्यसनाधीन झाले की, ते अंमली पदार्थांच्या लालसेपोटी चोरीसारखे गुन्हे करण्यास सुरवात करतात. यानंतर त्यांचे गंभीर गुन्हे करण्याची शक्यताही वाढते. या परिस्थितीच अशा बनतात की ज्या वयात त्यांच्या हातात पेन्सिल, पेन आणि ब्रशेस असावेत, त्याच वयात त्यांना चाकू, कुलूप तोडण्यासाठीची साधने आणि ड्रग्सची इंजेक्शन्स मिळाली.

आपल्या सर्वांची नैतिक जबाबदारी : - जर काही चुकत असेल तर ते त्वरीत थांबविणे आणि त्यास सुधारणे हेच सर्वात मोठे शहाणपण आहे, अन्यथा ही पुढे जावून एक अतिशय त्रासदायक समस्या बनू शकते आणि त्यानंतर पश्चात्ताप करण्याशिवाय काहीच उरत नाही, व्यसनापासून मुक्त होण्यासाठी राष्ट्रीय टोल फ्री व्यसनमुक्ती हेल्पलाईन नंबर 1800-11-0031 वर संपर्क साधावे. मुलांचे अंमली पदार्थांचे गैरवर्तन आणि वाढत्या बाल अपराधांसाठी सर्वात जास्त जबाबदार त्या मुलांचे पालक असतात, जे आपल्या मुलांना वेळेवर नियंत्रित करू शकत नाहीत, चांगले संस्कार देत नाहीत, पालनपोषण, वागणून, चांगले-वाईटाची शिकवण देत नाहीत आणि ही मुले हळू-हळू समाजासाठी प्राणघातक समस्येच्या रूपाने वाढतात. आपली मुलं आपली जबाबदारी आहेत, आपल्या निष्काळजीपणाने मुलं बिगडतात आणि याची शिक्षा संपूर्ण समाजाला भोगावी लागते. मुले ही देशाचे भविष्य, मौल्यवान राष्ट्रीय वारसा आहेत आणि येणाऱ्या काळात त्यांच्या खांद्यावर, देश आणि कुटुंबाच्या भविष्यासाची मोठी जबाबदारी असेल. म्हणून सरकार, समाज, पालक, दक्ष नागरिक या नात्याने आपल्या सर्वांचे नैतिक कर्तव्य आहे की आपण मुलांच्या सर्वांगीण विकासासाठी स्वस्थ सुखरूप सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरणात वाढण्यास संधी देऊ, जेणेकरून ते देशाचे जबाबदार नागरिक म्हणून शारीरिकदृष्ट्या सुदृढ, मानसिकदृष्ट्या बुद्धिमान आणि नैतिकदृष्ट्या सद्गुणी होवून त्यांच्या जबाबदाऱ्या योग्य प्रकारे बजावण्यास सक्षम होतील.

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

 

शनिवार, 12 जून 2021

कोरोना महामारी से बाल श्रम बड़ी संख्या में बढ़ने की संभावना (अंतरराष्ट्रीय बाल मजदूरी विरोधी दिवस - 12 जून 2021)

 

कोरोना महामारी ने सम्पूर्ण विश्व को झंझोर कर रख दिया है, विश्व की दूसरी सबसे ज्यादा आबादी वाले भारत जैसे विकासशील देश में कोरोना ने देश की अर्थव्यवस्था खराब कर दी। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इस कोरोना महामारी ने देश में 30 हजार से ज्यादा बच्चों को अनाथ कर दिया है। सबसे ज्यादा नुकसान निम्न मध्यम वर्ग के गरीब परिवार को हुआ और देश में सबसे बड़ा वर्ग इन्ही लोगों का है, जो बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोजी-रोटी कमाकर तंग हाल में परिवार का भरण पोषण करते है। कोरोना महामारी ने काम-धंधे बंद करवा दिये और दूसरी ओर महंगाई आसमान पर है ऐसे में गरीबों का जीवन जीना दूभर हो गया। कोरोना के बाद स्थिति सामान्य होने पर आर्थिक रूप से पुरी तरह टूट चुके ऐसे गरीब परिवार अपने बच्चों को आधारभूत शिक्षा देने में किस हद तक सक्षम होंगे यह कहना मुश्किल हैं, कुछ गरीब परिवार अब अपने बच्चों को स्कूल भेजने का खर्च शायद न उठा पाएंगे। गरीबी, बेरोजगारी, तंगहाली, भुखमरी ही बाल श्रमिकों की संख्या में इजाफा करने की मुख्य वजह होगी। नतीजतन, अधिकतम बच्चों को शोषणकारी और खतरनाक नौकरियों में काम करने के लिए मजबूर किया जा सकता है। लैंगिक असमानताएं और अधिक तीव्र हो सकती हैं, लड़कियों के शोषण, विशेषकर कृषि, और घरेलू कार्यों में। यह परिस्थिति और भी अन्य सामाजिक समस्याओं एवं अपराध को जन्म दे सकती है।


  बाल श्रम बच्चों को मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और नैतिक रूप से नुकसान पहुंचाता है, यह उनकी स्कूली शिक्षा में हस्तक्षेप करता है, गुलाम बनना, परिवारों से अलग होना, गंभीर खतरों और बीमारियों के संपर्क में आना, साथ ही असहनीय दुर्व्यवहार शामिल है, जैसे कि बाल दासता, बाल तस्करी, ऋण बंधन, जबरन श्रम, या अवैध गतिविधियाँ। बच्चों से मासूम बचपन छीनकर जिम्मेदारियों का बोझ डालकर उनका सुनहरा भविष्य अंधकारमय किया जाता है।  

हाल ही में तमिलनाडु और पुडुचेरी के 24 जिलों में बाल श्रम के खिलाफ अभियान “कोविड-19 रिवर्सिंग द सिचुएशन ऑफ़ चाइल्ड लेबर” शीर्षक से रैपिड सर्वे के अध्ययन से पता चला है कि मुख्य रूप से कोविड-19 महामारी और स्कूलों के बंद होने के कारण, इस सर्वेक्षण में शामिल 818 बच्चों में से कामकाजी बच्चों के अनुपात में 28.2 प्रतिशत से 79.6 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और कमजोर समुदायों में बाल श्रम बढ़कर लगभग 280 प्रतिशत हो गया है। सर्वेक्षण के अनुसार, 94 प्रतिशत से अधिक बच्चों ने कहा है कि घर पर आर्थिक संकट और परिवार के दबाव ने उन्हें काम में धकेल दिया है, उनके अधिकांश माता-पिता ने अपनी नौकरी खो दी थी या महामारी के दौरान बहुत कम मजदूरी अर्जित की थी।

विश्व बैंक के अनुसार, भारत में महामारी से नौकरी छूटने के कारण करोड़ों लोगों के गरीबी रेखा से नीचे खिसकने की संभावना है। गरीबी का संबंध बाल श्रम से है, पिछले शोध ने संकेत दिया है कि गरीबी में एक प्रतिशत की वृद्धि से बाल श्रम में लगभग 0.7 प्रतिशत की वृद्धि होती है। अनिश्चित काल के लिए स्कूल बंद हैं, बिजली, कंप्युटर, स्मार्टफोन, इंटरनेट और प्रौद्योगिकी तक पहुंच की कमी वाले बच्चे, विशेष रूप से गरीब और ग्रामीण समुदायों के बच्चे, स्कूल बंद होने के दौरान ऑनलाइन शिक्षा में भाग लेने में असमर्थ साबित हो रहे हैं। एनजीओ चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) ने बताया है कि कई बच्चे स्कूल जाने के बजाय संकट के समय में अपने परिवार का समर्थन करने के लिए काम कर पैसा कमाना पसंद कर सकते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का अनुमान है कि वर्तमान में 152 मिलियन बच्चे बाल श्रम में लगे हुए हैं और उनमें से 73 मिलियन बच्चे खनन या निर्माण जैसे खतरनाक क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। कोविड-19 महामारी ने न केवल स्थिति को काफी खराब कर दिया है, बल्कि यह बाल श्रम के खिलाफ लड़ाई में वर्षों की उपलब्धियों को चुनौती भी दे रहा है (अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, 2021)। वास्तव में, जैसा कि अधिकांश ऐसे संकटों में होता है, समाज के सबसे कमजोर लोग सबसे बुरे प्रभाव को महसूस करेंगे। बाल श्रम में, 70 प्रतिशत बच्चे मुख्य रूप से निर्वाह हेतु व्यावसायिक खेती और पशुपालन में कृषि में काम करते हैं। बाल श्रम में एक तिहाई बच्चे शिक्षा व्यवस्था से पूरी तरह बाहर हैं और इसमें भाग लेने वाले भी खराब प्रदर्शन करते हैं।

भारत में बाल श्रम की स्थिति

भारत ने बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की पुष्टि की है, 2011 की जनगणना के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में अभी भी 1.1 करोड़ बाल मजदूर हैं। जिसमें 56 लाख लड़के और 45 लाख लड़कियां हैं। दुनिया के दस बच्चों में से लगभग एक बच्चा भारत से है। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश ऐसे राज्य हैं जो सबसे अधिक बाल श्रम में लगे हुए हैं। कृषि के अलावा, सेव द चिल्ड्रन फाउंडेशन के सर्वेक्षणों में पाया गया है कि बाल श्रम व्यापक रूप से कपडा उद्योग, ईंट भट्टों, तंबाकू और पटाखा उद्योग में कार्यरत है। इनमें से प्रत्येक उद्योग खतरनाक जोखिमों के साथ आता है और उनके स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव डालता है। चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) द्वारा जनगणना के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि भारत में 7-14 वर्ष की आयु के लगभग 14 लाख बाल मजदूर पंजीकरण नहीं करा सकते हैं। इसका अर्थ है कि उक्त आयु वर्ग के तीन में से एक बाल श्रमिक निरक्षर है। इसी तरह, देश में बड़ी संख्या में बच्चे कुपोषण और अधिकारों के हनन के शिकार हैं। अकेले भारत में ही हर साल दस लाख से ज्यादा बच्चे कुपोषण से मर जाते हैं।

बाल श्रम के खिलाफ और बच्चों के अधिकारों के लिए कानून

भारत का बाल श्रम संशोधन (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 2016, 14 वर्ष से कम उम्र के किसी भी बच्चे को किसी भी प्रकार के काम में नियोजित करने से रोकता है। यहां तक ​​कि 14-18 वर्ष की आयु के किशोरों को भी खतरनाक काम करने की अनुमति नहीं है। भारतीय संविधान के अनुसार, 6 से 14 आयु के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क प्रारंभिक शिक्षा अनिवार्य है जिसका उल्लेख संविधान के 86वें संशोधन, 2002 के तहत भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में किया गया है। प्रत्येक बच्चे को स्वास्थ्य का अधिकार, आवश्यक पोषण, समानता, शोषण का विरोध करने का अधिकार, भेदभाव के विरुद्ध अधिकार, जोखिम भरे कार्यों से सुरक्षा का अधिकार है, बाल विवाह, दुराचार या अपमानजनक व्यवहार, लिंग भेद कानूनी अपराध है। बच्चों की सुरक्षा के लिए कुछ कानून हैं जैसे - कारखाना अधिनियम, 1948, खान अधिनियम, 1952, बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986, बाल विवाह (निषेध) अधिनियम, 2006, पोक्सो अधिनियम, 2012, निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015, बाल श्रम (संशोधन) अधिनियम, 2016।

बाल श्रम की रोकथाम के लिए सहायता

श्रम एवं रोजगार मंत्रालय, भारत सरकार के श्रम अनुभाग के तहत कोई भी व्यक्ति ‘पेंसिल पोर्टल’ वेबसाइट पर बाल श्रम के संबंध में ऑनलाइन शिकायत दर्ज करा सकता है। कुछ आवश्यक जानकारी भरकर जैसे - बाल श्रमिक बच्चे का विवरण राज्य और जिले में जहां बच्चे को रोजगार दिया जा रहा है और शिकायतकर्ता का विवरण यानी नाम, मोबाइल नंबर और ईमेल आईडी आदि। चाइल्ड लाइन इंडिया फाउंडेशन हेल्पलाइन द्वारा संचालित 1098 एक टोल-फ्री नंबर है जो बाल अधिकारों और बाल संरक्षण के लिए पूरे भारत में काम करता है। स्थानीय पुलिस स्टेशन, श्रम आयुक्त, राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग, मानव तस्करी रोधी इकाई से भी शिकायत कर सकते हैं, इसके अलावा कई गैर सरकारी संगठन, स्वयंसेवक हैं जो ऐसी समस्याओं पर काम करते है, आप उनकी मदद भी ले सकते हैं।

बाल श्रम को रोकने के लिए नई पहल आवश्यक

इस कोरोना महामारी में भी आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चे चाय-नाश्ता, मास्क, सब्जियां, फल बेचने जैसे छोटे व्यवसायों में काम करते हुए हम अपने आस-पास आसानी से देख सकते हैं। कोरोना के बाद की स्थिति और बाल श्रम के खतरे से निपटने के लिए अभी से नए उपायों पर काम करना अत्यावश्यक है। जैसे - सामाजिक सुरक्षा, गरीब परिवारों के लिए ऋण की आसान पहुँच, वयस्कों के लिए अच्छे काम को बढ़ावा, ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योग को सुदृढ़ बनाना, रोजगार के नये रास्ते खोलना, शिक्षा में नई नीति, बच्चों को स्कूल वापस लाने के नये उपाय योजनाओं पर अमल करना, श्रम निरीक्षण, कानून प्रवर्तन के लिए अधिक संसाधन जैसी बातों पर रणनीति तैयार करना शामिल हो। बच्चे देश का उज्ज्वल भविष्य हैं, उन्हें उनका अधिकार मिलना ही चाहिए।

डॉ. प्रितम भि. गेडाम


कोविड मुळे बाल मजूर मोठ्या संख्येने वाढण्याची दाट शक्यता (जागतिक बालकामगार निषेध दिन - 12 जून 2021)

 

कोरोना साथीने संपूर्ण जग हादरवून टाकले, कोरोनाने जगातील दुसऱ्या क्रमांकाची सर्वाधिक लोकसंख्या असलेल्या भारतासारख्या विकसनशील देशाची अर्थव्यवस्था खराब करून दिली. सरकारी आकडेवारीवरून असे दिसून येते की या कोरोना साथीने देशात 30 हजाराहून अधिक मुलांना अनाथ केले आहे. निम्न मध्यम वर्गाच्या  गरीब कुटुंबाला याचा सर्वाधिक त्रास सहन करावा लागला आणि देशातील सर्वात मोठा वर्ग याच लोकांचा आहे, जे दोन वेळच्या उपजीविका मिळवण्यासाठी काबाड कष्ट करतात आणि काटकसरीने कुटुंबाची देखभाल करतात. कोरोनामुळे कामे थांबली आणि दुसरीकडे महागाई उच्चांक गाठत आहे अशा परिस्थितीत गरिबांचे आयुष्य जगणे कठीण झाले. कोरोना नंतर परिस्थिती सामान्य झाल्यावर आर्थिक स्थिति बिघडलेली अशी गरीब कुटुंबे आपल्या मुलांना मूलभूत शिक्षण देण्यास सुद्धा किती प्रमाणात सक्षम असतील हे सांगणे कठीण आहे. काही गरीब कुटुंबे यापुढे आपल्या मुलांना शाळेत पाठविण्यास कदाचित सक्षम नसतील. गरीबी, पालकांची बेरोजगारी, उपासमार हे बालकामगारांची संख्या वाढण्याचे मुख्य कारण. परिणामी, जास्तीत जास्त मुलांना शोषणात्मक आणि धोकादायक नोकरीमध्ये काम करण्यास भाग पाडले जाऊ शकते. लिंग असमानता अधिक तीव्र होऊ शकतात, मुलींचे शोषण, विशेषत: शेती आणि घरकामात. ही परिस्थिती इतर सामाजिक समस्या आणि गुन्हेगारी वाढवू शकते.

बाल श्रम मुलांचे मानसिक, शारीरिक, सामाजिक आणि नैतिक दृष्ट्या नुकसान करते, यामुळे त्यांच्या शालेय शिक्षणात अडथळा निर्माण होतो, यात गुलामगिरीपणा, कुटूंबापासून विभक्त होणे, गंभीर धोके व रोगांचा धोका तसेच असह्य गैरवर्तन समाविष्ट आहे, जसे की बाल गुलामगिरी, मुलांची तस्करी, कर्ज गुलामी, जबरी कामगार किंवा बेकायदेशीर क्रिया. मुलांकडून निर्दोष बालपण हिसकावून आणि जबाबदारीचे ओझे लादून त्यांचे सुवर्ण भविष्य अंधकारमय केले जाते.


तामिळनाडू आणि पुडुचेरीच्या 24 जिल्ह्यांमध्ये बालकामगारांविरूद्ध राबविलेल्या मोहीम “कोविड-19 रिवर्सिंग द सिचुएशन ऑफ़ चाइल्ड लेबर” या नावाने नुकत्याच झालेल्या सर्व्हेक्षणाचा अभ्यासात असे दिसून आले आहे की मुख्यत कोविड -19 मुळे शाळा बंद झाल्याने, या सर्वेक्षणात सामील केलेल्या 818  मुलांपैकी काम करणाऱ्या मुलांचे प्रमाण 28.2 टक्क्यांवरून 79.6 टक्क्यांवर लक्षणीय वाढ झाली आहे आणि मागासलेल्या समुदायांमधील बालकामगारांची संख्या सुमारे 280 टक्क्यांपर्यंत वाढली आहे. सर्वेक्षणानुसार 94 टक्क्यांहून अधिक मुलांनी म्हटले आहे की घरात आर्थिक संकट आणि कौटुंबिक दबावामुळे त्यांना कामावर यावे लागले. कोविड साथीच्या आजारात त्याच्या बहुतेक पालकांनी नोकरी गमावली किंवा फारच कमी वेतन मिळवले.

जागतिक बँकेच्या म्हणण्यानुसार, भारतात कोविडमुळे नोकरी गमावल्याने कोट्यवधी लोक दारिद्र्य रेषेच्या खाली सरकण्याची शक्यता आहे. गरीबी हा बालमजुरीशी संबंधित आहे, मागील संशोधनात असे दिसून आले आहे की गरीबीत एक टक्का वाढ झाल्याने बालमजुरीमध्ये साधारणत: 0.7 टक्के वाढ होते. प्रत्यक्ष शाळा अनिश्चित काळासाठी बंद केल्या आहेत, वीज, संगणक, स्मार्टफोन, इंटरनेट व तंत्रज्ञानाची कमतरता असणारी मुले, विशेषतः गरीब आणि ग्रामीण भागातील मुलांना शाळा बंद झाल्यावर ऑनलाईन शिक्षणात भाग घेण्यास अवघड झाले. चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) या एनजीओने असे सांगीतले आहे की बरीच मुले शाळेत जाण्याऐवजी संकटाच्या वेळी आपल्या कुटुंबाचे पालनपोषण करण्यासाठी पैसे कमविणे पसंत करू शकतात.

आंतरराष्ट्रीय कामगार संघटनेचा अंदाज आहे की सध्या 152 दशलक्ष मुले बालकामात गुंतलेली आहेत आणि त्यापैकी 73 दशलक्ष हे खाणकाम किंवा बांधकाम अशा धोकादायक क्षेत्रात कार्यरत आहेत. आंतरराष्ट्रीय कामगार संघटना 2021 च्या मते, कोविड 19 महामारीने सर्व देशभरात केवळ परिस्थितीच बिघडवली नाही तर बालमजुरी विरूद्धच्या लढाईत वर्षांच्या कर्तृत्वाला देखील हे आव्हान देत आहे. खरं तर, अशा बहुतेक संकटांमधे, समाजातील सर्वात असुरक्षित वर्ग सर्वात वाईट परिणाम भोगतो. बालमजुरीमध्ये 70 टक्के मुले प्रामुख्याने उपजीविकेसाठी पारंपारिक शेती आणि पशुपालनमध्ये काम करतात. बालमजुरीतील एक तृतीयांश मुले पूर्णपणे शिक्षण प्रणालीच्या बाहेर आहेत आणि जे त्यात भाग घेतात ते देखील खराब प्रदर्शन करतात.

भारतात बालमजुरीची स्थिती

       जनगणना 2011 च्या आकडेवारीनुसार भारतात अजूनही 11 दशलक्ष बाल मजूर आहेत. ज्यात  56 लाख मुले आणि 45 लाख मुली आहेत. जगातील जवळपास दहा बालकामगारांपैकी एक जण भारतातला आहे. उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र आणि मध्य प्रदेश ही राज्ये जास्तीत जास्त बालमजुरीसाठी गुंतलेली आहेत. सेव्ह चिल्ड्रेन फाऊंडेशनच्या सर्वेक्षणात असे आढळले आहे की शेती व्यतिरिक्त, वस्त्रोद्योग, वीटभट्ट्या, तंबाखू आणि क्रॅकर उद्योगात बालकामगार मोठ्या प्रमाणात कार्यरत आहेत. यापैकी प्रत्येक उद्योग धोकादायक जोखीम आणि त्यांच्या आरोग्यावर दीर्घकालीन प्रभाव टाकतो. चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) द्वारे जनगणनेच्या आकडेवारीच्या विश्लेषणावरून असे दिसून आले आहे की भारतात 7 ते 14 वयोगटातील सुमारे 1.4 दशलक्ष बाल कामगार नोंदणी करू शकत नाहीत, याचा अर्थ असा आहे की वरील वयोगटातील तीन बालकामगारांपैकी एक पूर्णपणे निरक्षर आहे. तसेच, देशातील मोठ्या संख्येने मुले कुपोषण आणि बाल हक्काचा उल्लंघनाने बळी पळत आहेत. केवळ भारतातच दरवर्षी दहा लाखाहून अधिक मुले कुपोषणामुळे जीव गमावतात.

बालमजुरीविरूद्ध आणि मुलांच्या हक्कांसाठी कायदे

भारताचा बाल कामगार सुधारणा (प्रतिबंध व नियमन) कायदा 2016, 14 वर्षाखालील कोणत्याही मुलाला कोणत्याही प्रकारच्या कामात नोकरी करण्यास मनाई आहे. 14-18 वर्षांच्या किशोरांना देखील धोकादायक कार्य करण्याची परवानगी नाही. भारतीय राज्यघटनेनुसार 6 ते 14 वर्षे वयोगटातील सर्व मुलांसाठी विनामूल्य प्राथमिक शिक्षण अनिवार्य आहे, प्रत्येक मुलास आरोग्याचा हक्क, आवश्यक पौष्टिकतेचा हक्क, समानता, शोषणाला विरोध करण्याचा अधिकार, भेदभावाविरूद्ध हक्क, धोकादायक उपक्रमांपासून संरक्षण मिळविण्याचा हक्क आहे, बाल विवाह, व्यभिचार किंवा अपमानास्पद वागणूक, लैंगिक भेदभाव हा कायदेशीर गुन्हा आहे. मुलांच्या संरक्षणासाठी काही कायदे आहेत जसे की- कंपनी कायदा 1948, मुंबई बालसुधार कायदा 1948, मळे कामगार कायदा 1951, खान कामगार कायदा 1952, मुलांच्या कल्याणासाठी बालगुन्हेगार अधिनियम 1958, बाल कामगार (प्रतिबंध व नियमन) कायदा 1986, बालविवाह प्रतिबंध कायदा 2006, पोक्सो कायदा 2012, बालकांचा मोफत व सक्तीच्या शिक्षणाचा अधिकार अधिनियम 2009, बाल न्याय (मुलांची काळजी व संरक्षण) अधिनियम 2015, या व्यतिरिक्त विविध धोरणे व योजना - बालकामगार विषयक राष्ट्रीय धोरण 1987, बालकांकरीता आंतरराष्ट्रीय आपत्कालीन अर्थकोष 1946, बालकांच्या हक्कांसाठीची आंतरराष्ट्रीय परिषद 1990, एकात्मिक बालविकास सेवा योजना 1975 व इतर.

बाल कामगार रोखण्यासाठी मदत

       भारत सरकारच्या श्रम व रोजगार मंत्रालयाच्या श्रम अनुभागांतर्गत कोणतीही व्यक्ती 'पेन्सिल पोर्टल' या संकेतस्थळावर बालमजुरीबाबत ऑनलाइन तक्रार करू शकतो. काही आवश्यक माहिती भरून, जसे - ज्या बालकामगाराला नोकरी दिली जाते अशा मुलाचा तपशील, जिल्ह्या, राज्याची माहिती आणि तक्रारदाराचा तपशील म्हणजे नाव, मोबाइल नंबर आणि ईमेल आयडी इतर. चाईल्ड लाईन इंडिया फाउंडेशन हेल्पलाइनद्वारे चालविण्यात येणारा टोल फ्री क्रमांक 1098 आहे जो बाल हक्क आणि बालरक्षणासाठी संपूर्ण भारतभर कार्यरत आहे. आपण स्थानिक पोलिस स्टेशन, कामगार आयुक्त, राज्य बाल हक्क संरक्षण आयोग, राष्ट्रीय बाल हक्क संरक्षण आयोग, मानव तस्करी विरोधी युनिट यांना देखील तक्रार करू शकता, या व्यतिरिक्त बऱ्याच स्वयंसेवी संस्था, स्वयंसेवक अशा समस्यांवर काम करतात, आपण त्यांची मदत देखील घेऊ शकता.

बाल श्रम रोखण्यासाठी नवीन उपक्रम आवश्यक

       या कोरोना साथीच्या आजारातही आपण चहा-नाश्ता, मास्क, भाज्या, फळे विकण्यासारख्या छोट्या छोट्या व्यवसायात आर्थिक दुर्बल कुटुंबातील मुले सहजपणे आपल्या आजूबाजूला पाहू शकतो. कोरोनानंतरची परिस्थिती आणि बालमजुरीच्या संकटांना सामोरे जाण्यासाठी आतापासून नवीन उपायांवर कार्य करणे आवश्यक आहे. जसे की सामाजिक सुरक्षा, गरीब कुटुंबांसाठी पतपुरवठा सहज उपलब्धता, युवांसाठी चांगल्या कामांना वाव, ग्रामीण भागात उद्योग बळकट करणे, रोजगाराचे नवीन मार्ग उघडणे, शिक्षणात नवे धोरण, मुलांना शाळेत परत आणण्यासाठी नवीन उपाययोजना, कामगार तपासणी पथक योजना आखणे आणि कायद्याची अंमलबजावणी करण्याच्या अधिक संसाधनांमध्ये नवे धोरण समाविष्ट असू शकते. मुले ही देशाचे उज्ज्वल भविष्य आहे, त्यांना त्यांचा हक्क मिळाला पाहिजे.

डॉ. प्रितम भि. गेडाम


शनिवार, 5 जून 2021

सांसे हो रही कम, आओ पेड़ लगाएं हम (विश्व पर्यावरण दिवस - 5 जून 2021) Oxygen is running low, let's plant trees (World Environment Day - June 5, 2021)

 

आज कोरोना काल में हम सबने ऑक्सीजन के महत्व को जाना, लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर प्राप्त करने के लिए बड़ी जद्दोजहद करनी पडी, कितनो ने तो अपने प्राण त्याग दिये, यह नजारा आम था हमारे समाज में। जो पेड़ हमें मुफ्त में ऑक्सीजन देते है छाया, फुल, फल देते है, इस पेड़-पौधे, पर्यावरण के प्रति अगर हम अब भी नहीं जागे तो समाज के सबसे बड़े दुश्मन हम खुद होंगे। पेड़ों का महत्व समझों। विश्व भर में 5 जून पर्यावरण के प्रति जनजागृति के लिए “विश्व पर्यावरण दिवस” मनाया जाता है। इस वर्ष की थीम ‘इकोसिस्टम रीस्टोरेशन' है. जंगलों को नया जीवन देकर, पेड़-पौधे लगाकर, बारिश के पानी को संरक्षित करके और जल संसाधनों के निर्माण करने से हम पारिस्थितिकी तंत्र को फिर से संग्रहित कर सकते हैं. वन नीति, 1988 के अनुसार भूमि के कुल क्षेत्रफल का 33 प्रतिशत भाग वन-आच्छादित होना चाहिए। तभी प्राकृतिक संतुलन रह सकेगा, किंतु सन 2001 के रिमोट सेंसिंग द्वारा एकत्रित किए गए आकड़ों के अनुसार देश का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग कि.मी. है। इनमें वन भाग 6,75,538 वर्ग कि.मी. है, जिससे वन आवरण मात्र 20 प्रतिशत ही होता है और ये आंकड़े भी पुराने हैं।


    वनों का क्षरण अनेक प्रकार से होता है। इनमें वृक्षों को काटना, जलाना, अवैध उत्खनन, प्राकृतिक आपदाएं प्रमुख हैं। गांवों, नगरों, महानगरों का क्षेत्रफल बढ़ रहा है और जंगल संकुचित हो रहे हैं। दैनिक आवश्यकताओं के लिए लकड़ी के प्रयोग की मांग बढ़ी है। पर्यावरण का चक्र बिगड रहा है, समुद्र मे जलस्तर बढ रहा है, प्राकृतिक आपदाएं लगातार बढ़ रही है, उपजाऊ भूमि का तेजी से क्षरण हो रहा हैं, पेड़ों की कमी के कारण लगातार रेगिस्तान का विस्तार हो रहा है। बदलते जलवायु के कारण मनुष्य का स्वभाव भी चिड़चिड़ा और गुस्सैल हो गया है।

भारतीय वन स्थिति सर्वेक्षण रिपोर्ट 2017 अनुसार वन क्षेत्र के मामले में भारत दुनिया के शीर्ष 10 देशों में है। भारत के भू- भाग का 24.4 प्रतिशत हिस्सा वनों और पेड़ों से घिरा है, हालांकि यह विश्व  के कुल भू-भाग का केवल 2.4 प्रतिशत हिस्सा ही है ऐसा तब है जबकि बाकी 9 देशों में जनसंख्या घनत्व 150 व्यक्ति/वर्ग किलोमीटर है और भारत में यह 382 व्यक्ति/वर्ग किलोमीटर है और इन पर 17 प्रतिशत मनुष्यों  की आबादी व मवेशियों की 18 प्रतिशत संख्या की जरूरतों को पूरा करने का दवाब है।

नेचर जर्नल की रिपोर्ट अनुसार तो आपको अन्दाजा लग जाएगा कि हम जिस टिकाऊ विकास की बात करते हैं वो सब निरर्थक और निष्फल है। रिपोर्ट का दावा है कि हम हर साल लगभग 15.3 अरब पेड़ खो रहे हैं। प्रतिवर्ष एक व्यक्ति पर सन्निकट दो पौधे का नुकसान हो रहा है। इन सबके मुकाबले विश्वभर में मात्र 5 अरब पेड़ लगाए जाते हैं। सीधे तौर पर हमें 10 अरब पेड़ों का नुकसान हर साल उठाना पड़ता है। रिपोर्ट में भारत के हिस्से के आँकड़ों पर नजर डालें तो और भी हैरान कर देने वाले तथ्य सामने आते हैं। विश्व में प्रति व्यक्ति पेड़ों की संख्या 422 है जबकि भारत के एक व्यक्ति के हिस्से मात्र 8 पेड़ नसीब होते हैं। 35 अरब पेड़ों वाला भारत कुल पौधों की संख्या के मामले में बहुत नीचे है। सबसे ज्यादा 641 अरब पेड़ों के साथ रशिया है। कनाडा में 318 अरब तो ब्राजील में 301 अरब पेड़ हैं। वहीं अमेरिका 228 अरब पेड़ों के साथ चौथे पायदान पर है, भारत में स्थिति भयावह है। मेडिकल जर्नल द लांसेट में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, 2015 में प्रदूषण से होने वाली दुनिया भर की 90 लाख मौतों में भारत में अकेले 28 प्रतिशत लोगों को जान गँवानी पड़ी। प्रदूषण से हो रही मौतों के मामले में 188 देशों की सूची में भारत पांचवें पायदान पर आता है।

        अगर पेड़ नहीं होंते तो पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं होता, पेड़ की हमारी प्रकृति है जो की पूरी पृथ्वी को हरा भरा और खुशहाल बना कर रखते है. पेड़ जीवन भर हमें कुछ ना कुछ देते ही रहते है, फिर भी हम अपने निजी स्वार्थ के लिए पेड़ों को काट देते है. आज यह बहुत ही विडंबना का विषय है कि जो पेड़ हमें जीवन दे रहे है हम उन्हीं को नष्ट करने पर तुले हुए है. अगर हमें पृथ्वी को बचाए रखना है तो अधिक से अधिक मात्रा में पेड़ लगाने होंगे. पेड शुद्ध ऑक्सीजन देकर प्रदूषण नियंत्रण का कार्य करते है  पेड बारिश के दिनों में भूमि के कटाव को रोकते है, बाढ़ आने से रोकते है। पेड़ों के पत्तों से भूमि उपजाऊ हो जाती है, पेड़ अन्य जीव जंतु को रहने के लिए घर के समान स्थान देते है और अन्य बहुमूल्य खनिज संपदा भी इन्हीं की देन है। पेडो से जंगल समृद्ध होते है जीससे वन्यप्राणी जीवन समृद्ध होता है। पेडो से जल के स्त्रोत समृद्ध होते है। पेड़ों के कारण पृथ्वी की ओजोन परत सुरक्षित रहती है इसके कारण सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों से हमारी सुरक्षा होती है, वृक्षों के कारण पृथ्वी की सतह ठंडी रहती है पेड़ हमारी पहली साँस से लेकर अंतिम संस्कार तक मदद करते हैं।

        लेकिन धीरे-धीरे जब से औद्योगिकीकरण और शहरीकरण बढ़ा है वैसे-वैसे मानव द्वारा पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की गई है, अन्न की बर्बादी, प्राकृतिक संसाधनों का बड़े पैमाने पर उत्खनन, प्लास्टिक, ईंधन व कागज का अतीउपयोग, बड़े पैमाने पर निर्मित होने वाले ई-वेस्ट और बायो मेडिकल कचरे के व्यवस्थापन की कमी, बिजली का दूरूपयोग के कारण प्राकृतिक संतुलन गड़बड़ा गया है. शहरों में पेड़ नहीं होने के कारण वहां पर वर्षा कम होती है और वायु प्रदूषण भी अधिक मात्रा में रहता है जीससे तापमान मे लगातार बढ़ोतरी हो रही है, अगर पेड़ों की कटाई निरंतर इसी गति से चलती रही तो वह दिन दूर नहीं है जब पृथ्वी का विनाश हो जाएगा। तो आईये हम सभी लोग पर्यावरण के प्रती अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए वृक्षारोपण के कार्य मे पुरा सहयोग करे, पेड़ लगाए- जीवन बचाए।

 

डॉ. प्रितम भि. गेडाम