देश
में बढ़ती जानलेवा बीमारियां, मानसिक तनाव, घटती जीवन प्रत्याशा और असमय मौत में
हमारी आधुनिक जीवनशैली की खास भूमिका है। आधुनिक जीवनशैली जीने वाले युवाओं में दिल
का दौरा पड़ने की संभावना अधिक होती है। छोटे बच्चों से लेकर किशोरवयीन युवाओं तक खेलते
हुए चक्कर आकर गिरने की घटनाएं आजकल देखने-सुनने मिलती है, बैठे-बैठे लोग चक्कर आकर
गिर जाते है और चिकित्सक बताते है कि हृदयघात हुआ है। बहुत बार आवश्यक आपातकाल चिकित्सकीय
सहायता न मिलने के कारण जान चली जाती है। आज हम वो खा-पी रहे हैं जो पशु के खाने
लायक भी नहीं है। हमारे पारंपरिक खाद्य पदार्थों की जगह पाश्चिमात्य फास्ट फूड और अस्वास्थ्यकर
आहार आ गया है। छोटी-सी जबान के जायके के लिए सम्पूर्ण शरीर को नुकसान पहुंचाया जाता
है। ये बड़ी दुख की बात है, कि हम खाद्य व्यंजनों का चयन स्वाद के आधार पर करते है,
जबकि ये सर्वदा स्वास्थ्य के आधार पर होने चाहिए। अक्सर देखा जाता है कि अधिकतर लोग
पेट भरने के लिए खाते है, लेकिन वे कितनी कैलरी, किस प्रकार, किस गुणवत्ता में ले रहे
है, शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल की मात्रा लगातार बढ़ रही, पाचन तंत्र कमजोर हो रहा है,
इसका विचार नहीं करते। भोजन में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी, अस्वच्छता, अशुद्ध हवा
पानी, पर्याप्त नींद न लेना, बढ़ता वजन, व्यायाम की कमी, अशुद्ध वातावरण, शोर, काम का
दबाव, घरेलू कलह, मानसिक तनाव, नशाखोरी से बीमारियां तेजी से बढ़ रही है। मानवीय शरीर
पहले के दशक के मुकाबले कमजोर प्रतीत हो रहा है, अब मौसम बदलते ही मानवीय शरीर को विविध
बीमारियां जल्द जकड लेती है, क्योंकि रोग प्रतिकारक शक्ति कम हो रही है।
हानिकारक खाद्य पदार्थों से जानलेवा बीमारियां (Deadly
Diseases from Harmful Foods) :- तले हुए खाद्य पदार्थ,
प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, प्रसंस्कृत मांस, अतिरिक्त चीनी वाले खाद्य पदार्थ व पेय,
वसायुक्त खाद्य पदार्थ, नमकीन पदार्थ, मैदा युक्त पदार्थ, सोडा, उच्च वसायुक्त
डेयरी उत्पाद, आइसक्रीम, ट्रांस वसा, मक्खन, लाल मांस, आलू चिप्स, फ्रेंच फ्राईज,
कुकीज़, पाम तेल, पिज़्ज़ा, बेकन, बेक्ड उत्पाद, सफेद चावल, सफेद ब्रेड, पास्ता,
सॉसेज, पॉलिश अनाज, डिब्बाबंद सूप या फ़ूड कंपनियों के प्रक्रिया किये गए पदार्थ, मानवीय
शरीर के लिए अस्वास्थ्यकर होते है क्योंकि इनसे हमें आवश्यक पोषकतत्वों की जरुरत
पूरी नहीं होती, इनका प्रयोग न हो तो बेहतर है, लेकिन चीनी और नमक का उपयोग बंद
नहीं कर सकते, लेकिन मर्यादित करना या अन्य पर्याय जरुरी है। ये पदार्थ शरीर में स्लो
पॉइजन के रूप में काम करते है और सीमा के बाहर होने पर शरीर में मौजूद ख़राब तत्व बढ़ते
हुए मानवीय अंगो को विफल करते हुए घातक बीमारी में तब्दील हो जाते है।
हृदय विकार से भारतीयों की मौत में लगातार वृद्धि (The
death rate of Indians due to heart disease is increasing steadily) :- भारत में अधिकांश मौतों और विकलांगताओं के लिए हृदय संबंधी
बीमारियाँ जिम्मेदार हैं। साल 2022 में भारतीयों में दिल के दौरे में 12.5 प्रतिशत
की वृद्धि हुयी। अस्वास्थ्यकर आहार, उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल, मधुमेह और अधिक
वजन ये जोखिम अब देश में कुल बीमारी के बोझ का एक चौथाई हिस्सा है। गैर-संचारी रोग
देश में होने वाली सभी मौतों में से 60 प्रतिशत से अधिक के लिए जिम्मेदार हैं। लगभग
5.8 मिलियन भारतीय हर साल हृदय और फेफड़ों की बीमारियों, स्ट्रोक, कैंसर और मधुमेह
से जान गवांते है। कैंसर और मधुमेह की बढ़ती प्रवृत्ति के साथ-साथ हृदय रोग दो दशकों
से ज्यादा समय से भारत में मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक रहा है। विश्व स्तर पर
2021 में सबसे बड़ा हत्यारा इस्केमिक हृदय रोग रहा, जो दुनिया में होने वाली सभी मौतों
में से 13 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है।
पाश्चात्य देशों के मुकाबले भारतीयों की औसत जीवन प्रत्याशा
बहुत कम (The average life expectancy of Indians is very low compared to western
countries) :- 2022 में भारत में औसत जीवन प्रत्याशा 67.74 वर्ष थी। जबकि
2023 तक मोनाको में पुरुषों और महिलाओं के लिए 84 और 89 वर्ष थी, दक्षिण कोरिया, हांगकांग,
मकाओ और जापान में पुरुषों और महिलाओं के लिए जीवन प्रत्याशा क्रमश 81 और 87 वर्ष है।
ग्रामीण क्षेत्रों में 17 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 29 प्रतिशत बुजुर्गों को पुरानी
बीमारियाँ हैं। उच्च रक्तचाप और मधुमेह सभी पुरानी बीमारियों का कुल 68 प्रतिशत हिस्सा
हैं। यह आश्चर्य की बात है कि हृदय रोग पश्चिम देशों की तुलना में भारत में 10-15 साल
पहले होता है। भारत में हृदय रोगों के कारण 24.8 प्रतिशत मौतें होती हैं, इसके बाद
श्वसन संबंधी 10.2 प्रतिशत मौतें होती हैं, जबकि जानलेवा और अन्य ट्यूमर के कारण
9.4 प्रतिशत मौतें होती हैं। लैंसेट अध्ययन में पाया गया कि 2019 में भारत में प्रदूषण
के कारण 2.3 मिलियन से अधिक लोगों की असामयिक मृत्यु हुई। यूनिसेफ और खाद्य एवं कृषि
संगठन की रिपोर्ट अनुसार, भारत देश में 45 प्रतिशत बच्चे अविकसित हैं और हर साल पांच
साल से कम उम्र के 6 लाख बच्चे अपर्याप्त शुद्ध जल आपूर्ति, पोषक भोजन की कमी और अस्वछ्ता
के कारण जान गवांते है। शुद्ध पानी की कमी के कारण हर साल लगभग 2 लाख मौतें होती हैं।
भारतीयों में मानसिक तनाव लगातार
बढ़ रहा (Mental stress is increasing continuously among Indians) :- भारत में तनाव का स्तर संयुक्त राज्य अमेरिका सहित यूके,
जर्मनी, फ़्रांस, चीन, ब्राज़ील और इंडोनेशिया जैसे देशों की तुलना में अधिक है। आईसीआईसीआई
लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस के नवीनतम 2023 इंडिया वेलनेस इंडेक्स के अध्ययनों के मुताबिक
भारत में हर तीसरा व्यक्ति तनाव का सामना कर रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 77
प्रतिशत भारतीय नियमित आधार पर तनाव के कम से कम एक लक्षण का अनुभव करते हैं। भारत
में मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की भारी कमी है, प्रति 1,00,000 लोगों पर केवल 0.07
मनोचिकित्सक और 0.12 मनोचिकित्सक नर्सें हैं। अक्सर, इन पेशेवरों के पास अवसाद से निपटने
के लिए बहुत कम या कोई प्रशिक्षण नहीं होता है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन 2024 के
अनुसार, दुनिया में भारतीयों की संख्या सबसे अधिक है, जो प्रति सप्ताह औसतन 45 घंटे
से अधिक काम करते हैं, विशेषत निजी संस्थानों और व्यवसायों में। इसमें हमारा देश भूटान,
लेबनान, लेसोथो, संयुक्त अरब अमीरात और पाकिस्तान जैसे देशों से भी पीछे है।
मिलावटखोरी और गुणवत्ताहीन खाद्य पदार्थों की भरमार (Widespread adulteration and poor quality of outside food) :- आज की पीढ़ी बाहर खाना पसंद करती है, हर चीज उन्हें इंस्टेंट चाहिए, गुणवत्ता पर खास ध्यान नहीं दिया जाता, सिर्फ स्वाद ही मायने रखता है। अक्सर सोशल मीडिया पर बहुत से वायरल वीडियो में स्ट्रीट फूड के रंगबिरंगे व्यंजन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक दिखाई पड़ते है। 20-30 रुपये के व्यंजन में भी खूब भर-भरकर बटर, चीज डाला जाता है, उसकी कीमत के हिसाब से गुणवत्ता क्या होगी, वह हम समझ सकते है। व्यंजन को आकर्षित करने के लिए हानिकारक कृत्रिम रंगो का प्रयोग, पॉलिश अनाज, अधिकतम पैकेट बंद मसाले, सॉसेज, चटनी, और तेल का अधिकतम प्रयोग, स्वच्छता की कमी नजर आती है। बहुत बार खाद्य पदार्थ तलने के बाद भी वह तेल बार-बार उपयोग में लाया जाता है। गर्म खाद्यपदार्थों में भी प्लास्टिक का प्रयोग बेहद हानिकारक है फिर भी उपयोग किया जाता है। ज्यादातर ऐसे व्यंजनों में गुणवत्ता से समझौता किया जाता है और अधिकतम खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों की जगह केवल विषाक्त तत्व ही दिखाई पड़ते है। हमारे देश में मिलावटखोरी की बहुत बड़ी समस्या है, उत्पादन से ज्यादा दूध बेचा जाता है, रिसर्च कहता है कि हर तीसरा व्यक्ति नकली दूध का सेवन कर रहा है। बाहरी खाद्य पदार्थों में अधिकतर मिलावटी सामग्री के प्रयोग की संभावना होती है क्योंकि ये सस्ते दाम में उपलब्ध होते है। उदाहरण के लिए अगर हम मार्केट से साबुत मसाले लाकर घर पर पिसा मसाला बनाये, मूंगफली से तेल, दूध से पनीर, टमाटर से सॉस बनाये फिर भी मार्केट में तैयार उत्पाद से कई गुना महँगा उत्पाद हमारा होगा। फिर मार्केट में इतने सस्ते में उत्पाद कैसे बिकते है? जबकि महंगाई का जमाना है।
जिम्मेदारी हम सबकी है (The responsibility belongs to
all of us) :- अब इसे नियमों का उल्लंघन कहे या लापरवाही लेकिन इसकी सजा
हम सबके मानसिक- शारीरिक स्वास्थ्य को भुगतनी पड़ती है, आर्थिक नुकसान होता है वो अलग।
क्या इसमें प्रशासन जिम्मेदार है जो मिलावटखोरी, प्रदूषण, भ्रष्टाचार पर पूर्णत नियंत्रण
नहीं रख पा रहा है और सबके लिए पर्याप्त स्वास्थ सुविधा, पोषक आहार, शुध्द जल उपलब्ध
नहीं कर पा रहा है। या वो स्वार्थी लोग जिम्मेदार है जो सिर्फ अपने फायदे के लिए गलत
काम करके पर्यावरण और आम जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर नुकसान पहुंचाते है। या फिर
हम लोग जिम्मेदार है, जो अपने स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रख सकते, क्योंकि अस्वास्थ्यकर
आहार, आलस्य, नशाखोरी, अशुद्धता, आधुनिक जीवनशैली हमारे लिए जानलेवा होकर भी हम सुधर
नहीं रहे। जिम्मेदारी सबकी है, हम सबको अमूल्य जीवन का मोल समझना होगा। अगर अभी भी
जागे तो खुशहाल स्वस्थ भारत बनाकर हर साल स्वास्थ्य समस्याओं पर होनेवाले अरबों डॉलर
की भी बचत हो सकती है और बढ़ती गंभीर बीमारियों की गति भी धीमी की जा सकती है।






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