आजकल हम अक्सर सुनते हैं
कि "हम बहुत व्यस्त रहते है, हमारे पास समय कहा", ऐसा कथन लोगों के जुबान
पर बना रहता है और सोशल मीडिया पर कीमती समय बर्बाद करके खूब ओतप्रोत स्नेह दर्शाते
है, परन्तु प्रत्यक्ष मिलने के लिए समय नहीं होता। आधुनिकता और दिखावे के चक्कर में
हम अपनी संस्कृति, परंपरा, घर-परिवार, रिश्ते-नातों, अपनों से काफी दूर निकल गए है।
बाहरी सुख के मृगतृष्णा में हम अपनी आत्मीय खुशियों की होली खुद ही जला आये है। सुंदर,
सरल और संतुष्ट जीवन की ओर देखने का नजरिया अब बिल्कुल बदल गया है। लोग धन देखकर अब
आदरभाव दिखाते हैं। लोगों की खुशी में खुश होने वाले लोग अब ईर्ष्या से जलने लगे है
और कभी मासूम-सी मुस्कान रहने वाले चेहरों पर झूठी हंसी रहने लगी है। सच और अच्छाई
की जगह अब झूठ और बुराई तुरंत वायरल होते हैं और ऐसे ही अफवाहों का बाजार निरंतर गर्म
रहता है। मनोरंजन की दुनिया में अश्लीलता को सभ्यता का आचरण मानकर प्रोत्साहन दिया
जा रहा और दूसरी तरफ सदाचार, ज्ञान को उबाऊ मानकर अवहेलना की जा रही है। गांवों से
ज्यादा साधन सुविधा सम्पन्न शहरी लोग होकर भी ज्यादा बीमारियां लेकर घूमते हैं। शरीर
को बीमार कर अस्पतालों में बड़े-बड़े बिल भरेंगे लेकिन अपनों से दिल मिलाने का समय नहीं
हैं। हमने जो नहीं करना चाहिए बस वही कर रहे हैं इसीलिए स्वास्थ्य तेजी से बिगड़ रहा
है। सोशल नेटवर्क "पब्लिक ऐप" द्वारा किए गए एक व्यापक अखिल भारतीय सर्वेक्षण
से पता चला है कि 90% भारतीय मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों में वृद्धि का कारण आधुनिक
जीवनशैली को मानते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य उपचार प्राप्त करना मानवाधिकार (Mental Health
Treatment Human Rights) :-
विश्वभर में तेजी से बढ़ते
मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता हेतु हर साल 10 अक्टूबर को "विश्व मानसिक
स्वास्थ्य दिवस" मनाया जाता है। वर्ल्ड फाउंडेशन ऑफ मेंटल हेल्थ द्वारा निर्धारित
इस वर्ष 2023 की थीम "मानसिक स्वास्थ्य एक सार्वभौमिक मानव अधिकार" यह है।
मानसिक स्वास्थ्य बुनियादी मानव अधिकार अंतर्गत हर किसी को, चाहे वह कोई भी हो और जहां
भी हो, मानसिक स्वास्थ्य के उच्चतम प्राप्य मानक का अधिकार है। इसमें मानसिक स्वास्थ्य
जोखिमों से सुरक्षित रहने का अधिकार, उपलब्धता, सुलभता, स्वीकार्यता, अच्छी गुणवत्ता
वाली देखभाल का पूर्ण अधिकार, स्वतंत्रता और समाज में शामिल होने का अधिकार है। वैश्विक
स्तर पर आठ में से एक व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के साथ जी रहा है, किशोरों
और युवाओं को मानसिक स्वास्थ्य समस्या तेजी से प्रभावित कर रही हैं। आज मानसिक स्वास्थ्य
की स्थिति वाले लोग व्यापक स्तर पर मानवाधिकारों के उल्लंघन का सामना कर रहे है। कई
लोगों को घर-परिवार, सामाजिक जीवन से बाहर कर दिया जाता है, भेदभाव किया जाता है, कई
मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सा देखभाल से वंचित रहते है, यह उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन
है। डब्ल्यूएचओ कहता है कि मानसिक स्वास्थ्य को महत्व दिया जाए, प्रोत्साहित किया जाए,
संरक्षित किया जाए, तत्काल कार्रवाई की जाए ताकि हर कोई अपने मानवाधिकारों का उपयोग
कर सके और उन्हें आवश्यक गुणवत्तापूर्ण मानसिक स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त हो सके।
भारत सर्वाधिक अवसादग्रस्त देशों में से एक (India is one of the Most
Depressed Countries) :-
विश्व स्वास्थ्य संगठन अनुसार,
अवसाद एक सामान्य मानसिक विकार है। विश्व के लगभग 7 में से 1 किशोर को मानसिक विकार
है। हर साल 700,000 से अधिक लोग आत्महत्या से मर जाते हैं। गंभीर मानसिक विकार वाले लोग सामान्य आबादी की तुलना
में 10 से 20 साल पहले मर जाते हैं। कम आय वाले देशों में प्रति एक लाख आबादी पर एक
से भी कम मानसिक स्वास्थ्य कर्मचारी हैं, जबकि उच्च आय वाले देशों में 60 से अधिक हैं।
अवसाद और चिंता के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रति वर्ष उत्पादकता में लगभग 1 ट्रिलियन
अमेरिकी डॉलर का नुकसान होता है। कोरोना महामारी के पहले वर्ष में दुनिया भर में चिंता
और उदासी की व्यापकता में 25% की वृद्धि हुई थी। भारत को "सबसे अवसादग्रस्त देशों
में से एक" कहा गया है, देश में आत्महत्या की ग्रोथ भी अधिक है। साल 2022 में
कुल वित्तीय स्वास्थ्य बजट में से केवल 0.8% मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवंटित किया गया
था।
बढ़ते मानसिक विकारों के लिए हम सबसे अधिक जिम्मेदार (We are Most responsible
for increasing Mental Disorders) :- हमारा रहन-सहन, यांत्रिक संसाधन, प्रदूषण, व्यवहार, स्वार्थ
और असंतुलित दिनचर्या ने हमें बीमार बनाया है। भौतिक सुख कभी आत्मीय सुख की जगह नहीं
ले सकते फिर भी हम उसी के पीछे भाग रहे हैं और सुख चैन गवां रहे है। दुनिया में ऐसे
कई अमीर लोग हैं जो अपना वैभव छोड़कर प्रकृति के सानिध्य में सादा जीवन जीते हैं क्योंकि
इससे उन्हें मानसिक शांति मिलती है। आज के समय में मानसिक विकारों को बढ़ाने के लिए
सबसे ज्यादा जिम्मेदार हम खुद हैं, क्योंकि हमने खुद को नकारात्मक विचारों से घेर लिया
है। दिन-रात बुरे विचार, गलत खान-पान, दूसरों पर ज्यादा भरोसा, दूरदृष्टि की कमी, दिखावा,
गलत लोगो की संगत, सहनशीलता, मेहनत व जागरूकता की कमी ने हमारी सोच को ख़राब कर दिया
है। लोगों में सहनशीलता इस कदर खत्म हो चुकी है कि अगर किसी को गलत काम करने से रोको
तो वो आपको ही मारने पर उतारू हो जाता हैं, छोटी-छोटी बात पर आप खो देते है। अभिभावक
के डांटने भर से बच्चे अनुचित कदम उठाने लगे है। किशोरों में नशाखोरी और अपराधवृत्ति
लगातार बढ़ रही है। संस्कारों की धज्जियां तो खुले आम उड़ाई जाती है। बच्चे कहाँ जा
रहे हैं, किससे मिलते, कहाँ समय व्यतीत करते, आज यह बहुत से अभिभावकों को पता नहीं
है। अभिभावक क्या बच्चों को आवश्यक पोषक वातावरण बनाकर दे रहे है? आखिर कहा व्यस्त
होते है इतना, कि खुद के लिए या बच्चों के अच्छे परवरिश के लिए भी हमारे पास समय नहीं
होता। दुर्व्यवहार और कलह तनाव का कारण बनता है। अपनी जिम्मेदारी का निर्वाहन योग्य
पद्धति से न करना ही भविष्य में समस्याओं की निर्मिति हैं, जो मानसिक स्वास्थ्य विकार
बढ़ाता है।
दिखावे की आधुनिक जीवनशैली को त्यागें और संतुष्टि के साथ तनाव मुक्त जीवन
जिएं (Give up the Modern Lifestyle and Live a Stress Free Life with Satisfaction)
:- लोग इतना व्यस्त दिखते हैं
कि एक ही बस्ती में रहकर भी सालों तक पुराने परिचितों, दोस्तों से मिल नहीं पाते हैं।
लोगों की बड़ी-बड़ी बातें दिलों के बीच दूरी बढ़ाते हैं। अहंकार, द्वेष ने लोगों को
व्यस्त किया हैं वर्ना समय सबके पास होता हैं, बस आपकी इच्छाशक्ति प्रबल होनी चाहिए।
बिना किसी काम के निस्वार्थ भाव से किसी के लिए समय निकालकर उनसे मिलने जाना अब दुर्लभ
होते जा रहा हैं। रक्तदान, अन्नदान की तरह आज के समय में वक्तदान भी बहुत महत्वपूर्ण
दान बन गया हैं, औरों के लिए समय निकालना सबको सीखना होगा। मानसिक स्वास्थ्य को निरोगी
बनाए रखना बहुत आसान है, केवल हमें अपने व्यस्त जीवन शैली में थोड़ा बदलाव करना है।
रोज खुद के लिए भी समय निकालना सीखें, सकारात्मक विचारों वाले लोगों से जुड़े, नशा और
झूठे दिखावे से बचें, पोषक आहार लें, रोजाना व्यायाम और पूरी नींद जरूरी है। झगड़ालू
और रोने-धोने वाले सीरियल मस्तिष्क को पीड़ा देते है, ऐसे सीरियल ना देखें। बच्चों को
संस्कारशील और सुजान नागरिक बनाने की जिम्मेदारी अभिभावक की है, अपनी जिम्मेदारी को
बखूबी निभाएं। बड़े-बुजुर्गों का आदर करें, हेल्दी दिनचर्या बनायें। हमारी वजह से किसी
को भी हानि न हो, ईमानदारी से नियमों का पालन करें। जितना संभव हो, परोपकारिता के साथ
जिएं। प्रकृति और पशु-पक्षी से प्रेम करें। अगर हम में कोई अच्छी हॉबी या अच्छी आदत
हो तो उसे कभी भी छूटने ना दें। जिंदगी जीने का नाम है, जिंदगी काटते नहीं। अपनों से मिले, हंसते-मुस्कुराते रहें, जिंदगी खुलकर
जियें। हमारी छोटी सी जिंदगी है, समाधानी बनकर तनाव मुक्त जीवन जिएं।
अगर मानसिक स्वास्थ्य समस्या हो तो तुरंत मदद लें! (If you have Mental
Health Problems, get Help immediately) - मानसिक स्वास्थ्य समस्या होने पर जल्द मदद लें। भारत का
राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम अंतर्गत यह एक व्यापक मानसिक स्वास्थ्य
देखभाल सेवा है। काउंसलर से संपर्क करने के लिए यह 14416 या 1-800 891 4416 टोल फ्री
नंबर डायल कर सकते हैं। भारत सरकार के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान
संस्थान द्वारा मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए यह 24x7 टोल फ़्री नंबर 080 - 4611
0007 हेल्पलाइन है। देश के किसी भी हिस्से से लोग इस नंबर पर कॉल कर सकते हैं और मानसिक
स्वास्थ्य विशेषज्ञों से मनोसामाजिक सहायता और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठा
सकते हैं। राष्ट्रीय मानसिक आरोग्य पुनर्वसन संस्था हेल्पलाइन नंबर 1800 599 0019 उपलब्ध
है। इसके अलावा बहुत से संगठन और एन.जी.ओ. भी मानसिक स्वास्थ्य सम्बंधित सेवाओं के
लिए 24 घंटे तत्पर हैं, उनसे भी संपर्क कर
सकते है।
डॉ. प्रितम भि. गेडाम





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