पृथ्वी पर प्रत्येक सजीव को जीवित रहने के लिए आवश्यक ऊर्जा भोजन द्वारा प्राप्त होती है, बिना भोजन के ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह सकते, परन्तु सभी जीवो में केवल मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो अपनी जरूरत पूरी होते ही भोजन को महत्वहीन समझकर व्यर्थ कर देता है। मनुष्य के पास खाद्य सामग्री के रूप में स्वाद अनुसार चयन के लिए विविध व्यंजन का विकल्प है, जिसका वह अपने हिसाब से उपभोग करता है। दुनिया में भारत ऐसा देश है, जहां खाद्य बर्बादी और भुखमरी दोनों बड़ी मात्रा में मौजूद है। हमारे यहां सबसे बड़ी समस्या यह है कि हम अनाज का मोल केवल पैसे से लगाते हैं, जो संपन्न लोग है, वे अपने पसंद अनुरूप भोजन पर ज्यादा खर्च करते हैं, तो दूसरी तरफ कुपोषितों को पौष्टिक खाना तो दूर, भर पेट अन्न तक नहीं मिलता। भूख सबकी साधारण एक जैसी होती है, फिर भी अनाज का इतना ज्यादा अपव्यय बेहद दुखद है।
अनाज के हर दाने का मोल कीमत से परे (Value of Grain Beyond Price) :- धरती पर भोजन का दर्जा भगवान के समतुल्य मानकर दुनिया के हर धर्म में विशेष सन्मान दिया है। भोजन का पहला भोग ईश्वर को लगाते हैं, फिर हम भोजन ग्रहण करते है। किसान फसल बुआई से पहले और फसल कटाई पर ईश्वर और प्रकृति को धन्यवाद स्वरूप त्यौहार मनाते है। हमारे समाज में अन्नदान को सर्वोपरि माना गया है। जीवन देनेवाले भोजन को हम जरूरत के बाद अगर कचरे में फेंक देते हैं तो हमारे लिए यह बहुत ही शर्मनाक बात हैं, भोजन प्रकृति द्वारा मनुष्य की कड़ी मेहनत से प्राप्त होता है, इसका मोल उसकी कीमत से परे समझना बहुत जरूरी है। पहले अभिभावक अनाज के हर एक दाने का मोल समझें, फिर अपने बच्चों को भी इसकी अहमियत समझाएं।
दो वक्त के अनाज के लिए जिंदगी का संघर्ष चलता है (The Struggle of Life goes on for Two Meals a Day) :- अनाज को उगाने से लेकर हमारी थाली तक पहुंचाने में अनेक लोगों का संघर्ष जुड़ा होता है, किसान अनाज को उगाने के लिए दिन-रात खेत में मेहनत करता है, अनेक बार प्राकृतिक आपदा और आर्थिक संकट से किसान जूझता है, इतनी मेहनत के बावजूद भी बहुत बार उनके अनाज को मंडी में योग्य दाम नहीं मिलता। मंडियों में संग्रहण हेतु गोदामों के कमी के चलते अनाज खुले में रखने को मजबूर होते है, बारिश और खराब मौसम से ऐसा अनाज भीगकर सड़ता है। गोदाम के उचित रखरखाव की कमी के कारण हर साल सैकड़ों टन अनाज चूहे खा जाते है, संघर्ष करते हुए अनेक किसान हताश होकर आत्महत्या करते हैं, विधानसभा में विपक्ष के नेता विजय वडेट्टीवार ने चौंकाने वाली खबर दी है कि पिछले सात महीनों में महाराष्ट्र राज्य में कुल 1555 किसानों ने आत्महत्या की है। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्र में किसानों की आत्महत्याएं ज्यादा दर्ज होती है। हाल ही में संभागीय आयुक्त विभाग की जारी रिपोर्ट अनुसार, मराठवाड़ा क्षेत्र में 1 जनवरी 2023 से 31 अगस्त 2023 के बीच 685 किसानों ने आत्महत्या की है, जो हमारे आधुनिक एवं उन्नत कहलाने वाले समाज के लिए बेहद शर्मनाक और चिंताजनक बात है।
एक तरफ खाद्य बर्बादी तो दूसरी
ओर भुखमरी और कुपोषण (Food Wastage and Malnutrition Together in the Country) :-
भारतीय
खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण अनुसार, भारत देश में खाने से पहले ही एक-तिहाई
अनाज बर्बाद हो जाता है। यूएनईपी खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट 2021 बताती है कि,
भारत में घरेलू भोजन की बर्बादी हर दिन 137 ग्राम खाना, सालाना प्रति व्यक्ति लगभग
50 किलोग्राम है। खाद्य और कृषि संगठन के अनुमानित आंकड़े अनुसार, भारत में 40%
खाना बर्बाद हो जाता है जो एक साल में 92,000 करोड़ रुपये के बराबर होता है, 30
प्रतिशत सब्जियां और फल कोल्ड स्टोरेज की कमी के कारण समाप्त हो जाते है। जब हम
भोजन बर्बाद करते हैं, तो हम उसे उगाने, फसल काटने, परिवहन करने और पैकेज करने में
लगने वाली सारी ऊर्जा, पानी, श्रम, प्रयास, निवेश और बहुमूल्य संसाधनों को भी
बर्बाद कर देते हैं।
सीमित
संसाधनों का अनावश्यक विनाश होता है, जिससे ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन बढ़ता है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट 2021,
दर्शाती हैं कि, 61% खाद्य अपशिष्ट घरों से, 26% खाद्य सेवा से और 13% खुदरा से
आता है। दुनिया भर में किसी भी अन्य देश की तुलना में चीन और भारत हर साल अनुमानित
92 मिलियन और 69 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक घरेलू खाद्य अपशिष्ट पैदा करते हैं।
उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने खुलासा किया था कि पांच
वर्षों के दौरान (2016 - 2020) केंद्रीय अन्न भंडार में 25,000 मीट्रिक टन से अधिक
खाद्यान्न बर्बाद हो गया। लोकसभा में अपने लिखित जवाब में यह भी बताया था कि मार्च
2020 से दिसंबर 2021 के बीच लगभग 3,500 मीट्रिक टन अनाज बर्बाद हो गया। ग्लोबल
हंगर इंडेक्स 2022 में भारत 121 देशों में से 107वें स्थान पर है। संयुक्त राष्ट्र
के खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति, 2022 रिपोर्ट के अनुसार, 224.3 मिलियन लोग या
भारत की 16 प्रतिशत आबादी अल्पपोषित है, जिनमें से 53 प्रतिशत कुपोषित हैं। सभी के
लिए पर्याप्त भोजन होने के बावजूद दुनिया में, 690 मिलियन लोग भूखे सोते हैं,
जिनमें भारत के 189.2 मिलियन लोग शामिल हैं। 2019-20 में भारत में 69 प्रतिशत
बच्चों की मौत का कारण कुपोषण है।
अन्न का मोल समझें बगैर उसकी
बर्बादी रोकना मुश्किल (Without understanding the Value of Food, it is Difficult
to Stop its Wastage) :- कुछ दिन पहले मैंने देश के एक
प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के भोजनगृह में भोजन करने के लिए भेट दी, वहां
विद्यार्थियों के साथ मैं भोजन कर रहा था, भोजन होने के बाद मैं अपनी थाली उठाकर
जब आगे बढ़ा तो मैं सामने का नजारा देखकर स्तब्ध रह गया, अनेक विद्यार्थियों ने
थाली भरकर भोजन तो लिया लेकिन स्वाद पसंद ना आने के कारण या किसी अन्य कारण से
उन्होंने अपनी थालिया वैसी ही अन्न से भरी हुई छोड़ दी थी, जब मैंने वहां के
कर्मचारियों से बात की तो पता चला कि ऐसा नजारा रोज देखने को मिलता है, जो बहुत ही
दुखद है। देश के कोने-कोने से विद्यार्थी पढ़ते आते हैं, सबकी अपनी पसंद और
अलग-अलग व्यंजन, स्वाद होता है, परंतु थाली में भोजन लेकर रोज-रोज उसे ऐसा बर्बाद
करना कौन-सी शिक्षा हमें सिखाती है? अनाज की असली कीमत केवल एक मेहनतकश इंसान ही समझ
सकता है, जिसने भूख की तकलीफ को समझा है, जिया है, वर्ना आज तो कहने को बड़ी-बड़ी
बातें सभी करते हैं लेकिन दूसरे तरफ वही लोग घर, समारोह में खाद्य बर्बादी करते
नजर आते हैं। भारतीय समारोह में तो खाद्य बर्बादी जगजाहिर है, आखिर कब सुधरेंगे
हम? खाना मुफ्त का हो या खरीदा हुआ, हमें अपनी भूख के हिसाब से ही थाली में
थोड़ा-थोड़ा भोजन लेना चाहिए, जरूरत के अनुसार ही उपभोग होना चाहिए।
खाद्य बर्बादी पर कड़े कानून
और मजबूत व्यवस्थापन की सख्त जरुरत (There is a Need for Strict Laws and Strong
Management on Food Wastage) :- खाद्य बर्बादी को अगर अपराध मानकर
जिम्मेदार व्यक्ति से भारी जुर्माना वसूला जाएं तो शायद देश में एक महीने के अंदर
ही खाद्य बर्बादी पूरी तरह से नियंत्रित हो जाएगी और देश में अरबों रुपयों की बचत
होकर अधिक मात्रा में विकास हो सकता है, भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बनेगी, भुखमरी
कम होकर समृद्धता बढ़ेगी। समाज के सभी वर्गों को भरपेट अनाज मिलेगा, बीमारियां,
महंगाई कम होंगी, देश आर्थिक, सामाजिक, पर्यावरणीय रूप से संतुलित होगा। घर, ऑफिस,
होटल, रेस्टारेंट, कार्यक्रम, सामूहिक समारोह, संस्थान, भोजनालय, ढाबे, कैफ़े
दुकान, मॉल, गोदाम, कोल्ड-स्टोरेज अर्थात हर वो जगह जहां खाद्य सामग्री हो, चाहे
निजी हो या सरकारी विभाग, खाद्य बर्बादी पर जिम्मेदार व्यक्ति पर दंड वसूला जाए तो
हम जल्द सुधर जायेंगे। लोग जागरूक होकर भोजन सिमित मात्रा में पकाएंगे, समारोह में
लोग खाना चखने के बाद स्वाद पसंद आने पर ही सिमित मात्रा में खाना थाली में
परोसेंगे, इससे कुपोषण खत्म होने में मदद, उत्तम स्वास्थ्य, चटोरेपन पर लगाम
लगेगी। किसी कारणवश फिर भी अन्न बच जाने पर खाना सार्वजानिक फ़ूड स्टाल को भेट किया
जाएं। हर शहर, गांवो, कस्बों में भोजन संग्रहण के लिए ऐसे फ़ूड स्टाल केंद्र होने
चाहिए, जहां पर शेष भोजन को दिया जा सकें। ऐसे केंद्र पर जरूरतमंदों के लिए
सुविधानुसार मुफ्त भोजन की व्यवस्था होनी चाहिए, जहां कोई भी भूखा व्यक्ति जाकर
भरपेट खाना खा सकता है। इस व्यवस्थापन से न कोई भूखा होगा, न अनाज की बर्बादी
होगी, सिर्फ हर ओर समृद्धि होगी, कीमती जिंदगियां बचाई जाएंगी, सबको अन्न के हर
दाने का मोल समझेगा और हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या का विकास के रूप में परिवर्तन
होगा।










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