शनिवार, 12 अगस्त 2023

विकसित पुस्तकालयों में आदर्श पीढ़ी का निर्माण करने की ताकत (राष्ट्रीय पुस्तकालयाध्यक्ष दिवस विशेष - 12 अगस्त 2023) Developed Libraries have the power to Create an ideal generation (National Librarian Day Special - 12 August 2023)

 

पुस्तकें मनुष्य के सबसे अच्छे मित्र और मार्गदर्शक होते हैं जो सतत ज्ञानरूपी प्रकाश से उनके जीवन को पथ प्रदर्शक में रूप में प्रगति का मार्ग दर्शाते हैं। गुणवत्तापूर्ण मनुष्यबल, एवं शिक्षित समाज के निर्माण में पुस्तकालय की भूमिका महत्वपूर्ण है। देश-दुनिया में जितने भी सफल बुद्धिजीवी लोग हैं उनके जीवन में भी पुस्तकों के लिए विशेष स्थान होता है, वे भी पुस्तकें पढ़ने के लिए व्यस्त होते हुए भी समय निकालते ही हैं। देश के महान समाजसुधारक, क्रांतिकारी, महान वैज्ञानिक से लेकर आज के नेता - अभिनेता भी पुस्तकें पढ़ना पसंद करते हैं, अधिकतर लोगों ने तो अपने घर में ही खुद के संग्रहण की छोटी-सी लाइब्रेरी बनाई है। पुस्तकें मनुष्य को बेहतर जीवन चरित्र निर्माण करने में अमूल्य योगदान देते हैं। पुस्तकों ने आज के आधुनिक युग में डिजिटल स्वरूप धारण किया हैं अर्थात दुनियाभर का साहित्य इंटरनेट और यांत्रिक संसाधनों के द्वारा हमारे पास पहुंच गया हैं, जिसे हम कभी भी, कही भी पढ़ सकते हैं। ई-साहित्य ऑनलाइन लाइब्रेरी के रूप में उपलब्ध हैं, लेकिन पुस्तकालयों में उपलब्ध गुणवत्तापूर्ण साहित्य संग्रह के योग्य व्यवस्थापन और बेहतर सेवा सुविधा द्वारा ही पुस्तकालय के उद्देश्य की पूर्ति हो सकती हैं।  

बड़े दुख की बात है कि हमारे देश में अधिकतर स्कूली बच्चों को पुस्तकालय के बारे में जानकारी ही नहीं होती हैं क्योंकि उन्होंने अपने स्कूली जीवन में कभी पुस्तकालय देखा ही नहीं हैं। यह हाल सिर्फ पिछड़े ग्रामीण इलाकों का ही नहीं अपितु शहरों, महानगरों में भी अनेक स्कूल पुस्तकालय बगैर चल रहे हैं, तो कई स्कूलों में दिखावे के लिए एक बंद कमरे में कुछ रद्दी की किताबें पुस्तकालय के तौर पर नजर आती हैं, अधिकतर राज्यों के सरकारी और शासन द्वारा अनुदानित स्कूलों में भी ये हालात हैं। ऐसे में विद्यार्थियों को पुस्तकालय का मोल कैसे समझेगा? यह एक गंभीर विषय हैं। स्कूली शिक्षा मनुष्य के जीवन का आधारस्तंभ होता हैं, अगर नींव बेहतर रही तो सफल जीवन की इमारत निश्चित ही मजबूत होगी।  

आज समाज में ज्ञान के स्रोत के रूप में स्थापित अधिकतर पुस्तकालय उपेक्षा के शिकार हैं, जिसके कारण नई पीढ़ी पुस्तकालयों से मुँह मोड़ती नजर आ रही हैं। एक समय था जब छोटे-छोटे बच्चे भी घर के बड़े बुजुर्गों के साथ परिसर के सार्वजानिक पुस्तकालयों में बाल साहित्य पढ़ने के लिए जाया करते थे। बच्चों में पढ़ने की वह उमंग, ललक, खुशी शायद अब दुर्लभ जान पड़ती हैं, क्योंकि बच्चों को अब ऑनलाइन गेम्स, सोशल मीडिया ने व्यस्त कर दिया हैं, जो आने वाले कल को बर्बादी की ओर धकेल रहे हैं। पालक ही बच्चों को बचपन से ही मोबाइल की लत लगवा रहे हैं, जब बच्चे मोबाइल से बिगड़ते हैं तो पालक परेशान होते हैं। कच्ची मिट्टी की भांति बच्चों को जैसा सिखाओगे वैसा वें सीखेंगे। एक बार मिट्टी पक्की हो गयी तो उनका आकार बदलना मुश्किल हैं। अभिभावकों और शिक्षकों ने बच्चों को प्राथमिक स्कूली शिक्षा से ही बाल साहित्य व पठन सामग्री से परिचय करवाना चाहिए। 

ऑनलाइन का ये पहलू भी समझना होगा (This aspect of Online also has to be Understood) :- माना कि ई-साहित्य ने पाठकों के लिए नया मार्ग प्रशस्त किया हैं लेकिन यांत्रिक संसाधनों पर ज्यादा देर लगातार पढ़ना थकावट पैदा करता हैं और कोरोना महामारी ने विद्यार्थियों के ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर बहुत-सी नई परेशानियों को जन्म दिया हैं। लगातार यांत्रिक संसाधनों से घिरे रहने के कारण विद्यार्थियों में सोशल मीडिया की लत लग गई, शारीरिक और मानसिक रूप से बच्चे कमजोर और हिंसक हुए, उनमें आंखों की समस्याएं, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा, चिंता और घुटन निर्माण होने लगी। इन समस्याओं से अभिभावक भी परेशान हो गए। ई-साहित्य समय, पैसा बचाकर दुनियाभर में हमारी पहुंच बनाता हैं, परन्तु स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं कि जितना संभव हो सकें ऑनलाइन पढ़ना कम हो तो अच्छा। सभी ने पुस्तकें खूब पढ़नी चाहिए, प्रत्यक्ष रूप में पुस्तकों को पढ़ना बेहतर होता हैं। हम किसी किताब को अपने हाथ में थामकर या भौतिक किताब के साथ पढ़ते हुए जितना समय बिताते हैं, उसका आधा समय भी ऑनलाइन किताब पढ़ने में नहीं बिता सकते। ऑनलाइन द्वारा ई-साहित्य एक सीमित समय के लिए बेहतर परिणाम देते हैं।  

पुस्तकालय विकास से कोसों दूर (Development far away from Library) :- हम सब जानते ही हैं कि हमारे देश में पुस्तकालयों का विकास विशेषकर सार्वजनिक पुस्तकालय और स्कूली पुस्तकालय संतोषजनक नहीं हैं। योग्य व्यवस्थापन, कुशल कर्मचारी गण एवं आवश्यक निधि के अभाव में पुस्तकालय खराब हालत में हैं। एक वक्त था जब पुस्तकालय ज्ञान के स्रोत के रूप में शहरों, गांवों, कस्बों में लोगों के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा हुआ करता था। लोग कम शिक्षित थे फिर भी पुस्तकालयों के महत्व को जानते थे। आज वही पुस्तकालय अनमोल साहित्य के साथ खंडहरनुमा भवन में जर्जर अवस्था में बर्बादी की दास्तान बयां कर रहे हैं। अनेक पुस्तकालयों में अनमोल साहित्य जीर्ण अवस्था में पड़ा है, तो कई पुस्तकालयों में साहित्य के नाम पर कुछ समाचार पत्र दिखते हैं। तज्ञ कुशल कर्मचारी वर्ग की भारी कमी है, जिससे सेवाएं चरमराई हैं। 

प्रशासन द्वारा उपेक्षा और उदासीनता (Neglect and Apathy by the Administration) :- भले ही देश में शिक्षा के महत्व पर जोर दिया जाता हैं और ज्ञान स्रोत अर्थात पुस्तकालय के उपयोगिता को सभी मानते हैं परन्तु पुस्तकालयों के विकास का क्या? पुस्तकालयों के विकास में नई क्रांति की आज सबसे ज्यादा जरुरत हैं ऐसे में अंतराष्ट्रीय स्तर के पुस्तकालय के नेटवर्क को फैलाना तो दूर, जो पुस्तकालय अभी अस्तित्व में हैं उनमे से भी अधिकतर खत्म होने के कगार पर हैं। आज बड़े शहरों में महानगरपालिका का बजट हजार करोड़ से अधिक होता हैं लेकिन वे पुस्तकालयों पर कितना खर्च करते है, ये हम सब जानते हैं। अधिकतर राज्यों के अनेक सरकारी स्कूल, कॉलेज में केवल नाम के लिए पुस्तकालय हैं। दशकों से अनेक राज्यों में सरकारी और अनुदानित शिक्षा केंद्रों के पुस्तकालय विभाग में कर्मचारी भर्ती होते हुए नहीं दिखीं। 

आज हम आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं परन्तु क्या आज भी "गांव वहां पुस्तकालय" की संकल्पना को पूरी तरह से साकार कर पाये? बच्चों को स्कूल से ही पुस्तकालयों के महत्त्व और उसकी उपयोगिता को अपने जीवन में विशेष स्थान देना चाहिए लेकिन उन्हें स्कूल में पुस्तकालय की बेहतर सेवा-सुविधा ही नहीं मिलेगी तो वें निश्चित ही पुस्तकालयों से दूरी बनाने लगेंगे। पुस्तकालयों की ओर देखने का नजरिया बदलना चाहिए, शिक्षा को महत्व देना है तो पहले पुस्तकालय समृद्ध बनाने होंगे। पुस्तकालय धनोपार्जन का केंद्र नहीं है, शायद इसलिए इन्हें महत्व नहीं मिलता, लेकिन ये केंद्र ज्ञान स्रोत कहलाते हैं अर्थात देश को समृद्ध, विकसित और संपन्न बनाने के लिए पुस्तकालय बेहद महत्वपूर्ण हैं। विकसित पुस्तकालय बेहतर पीढ़ी को निर्माण करने की ताकत रखते हैं। 


संबंधित प्रशासन की जिम्मेदारी (Responsibility of Concerned Administration) :- केंद्र सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय प्रशासन, संबंधित अधिकारी वर्ग ने अपने कार्यक्षेत्र अंतर्गत आनेवाले सभी पुस्तकालयों के विकास पर विशेष जोर देना चाहिए। उत्कृष्ट पठन सामग्री की खरीद, पुस्तकालय सेवा सुविधाएं, कुशल कर्मचारियों की भर्ती, पुस्तकालय भवन निर्माण के विस्तार पर ध्यान दिया जाना चाहिए, पुस्तकालयों में आधुनिक प्रौद्योगिकी की आवश्यकता, पर्याप्त धन, कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण और उचित वेतन की पूर्ति समयानुसार होनी ही चाहिए। लाखों की संख्या में पुस्तकालय विज्ञान क्षेत्र में उच्च शिक्षित बेरोजगारों की भरमार हैं। विद्यार्थियों में पठन साहित्य के प्रति रुचि बढ़ाने के लिए स्थानिक प्रशासन से लेकर राज्य और केंद्र सरकार ने विविध स्तर पर योजनाएं, स्पर्धा, महोत्सव, कार्यक्रम, सम्मेलन आयोजित करवाना चाहिए। हर जिले में अंतरराष्ट्रीय स्तर के पुस्तकालय स्थापित करके उसके क्षेत्र में आनेवाले सभी गांवों और कस्बों के स्कूल महाविद्यालय और सार्वजानिक पुस्तकालय भी उससे जोड़ने चाहिए, ताकि जिले के प्रत्येक पाठक को अंतराष्ट्रीय स्तर की पुस्तकालय सेवा पास में ही मिल सकें। 


सभी ओर विकसित पुस्तकालय हो तो (If there is a Developed Library Everywhere) :- अगर देश में हर ओर विकसित पुस्तकालय हो तो बच्चे बड़े उत्साह से पुस्तकालय का उपयोग कर पाएंगे, पुस्तकों से उनकी दोस्ती होगी, पुस्तकें उनके जीवन को सही राह दिखाने में मददगार साबित होंगे, बच्चें अपने खाली समय का भी सदुपयोग कर पाएंगे। बच्चों का पढ़ाई में मन लगेगा, बोरियत महसूस नहीं होगी। वें मोबाइल, सोशल मीडिया, ऑनलाइन गेमिंग से दूर होंगे। बच्चों में बुरी आदतें कम होकर भविष्य में अपराधों पर अंकुश लगेगा। विद्यार्थी के रूप में बच्चे अपने भविष्य के प्रति जागरूक व अद्यतन रहेंगे, संस्कारशील, सृजनशील और जिम्मेदार नागरिक बनेंगे। 

इससे शिक्षा प्रणाली पूर्णत समृद्ध होगी और इसका सीधा असर अन्य क्षेत्र पर होगा क्योंकि बच्चें बड़े होकर विभिन्न क्षेत्र में कार्यरत होंगे, वें उन्नत राष्ट्र के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाएंगे। धीरे-धीरे सम्पूर्ण राष्ट्र विश्वपटल अग्रगण्य स्थान पर विराजमान होगा। आज विश्व के उन विकसित देशों के शिक्षा प्रणाली के बारे में सोचिए, जहां पर बचपन से ही बच्चों को पुस्तकालयों से परिचय कराया जाता हैं और उनके भविष्य में मजबूत उड़ान भरने के लिए पुस्तक के रूप में नए पंख लगाए जाते हैं। निश्चित रूप से यही बच्चें जीवन में सफलताओं के परचम लहराते हैं और देश को तरक्की के शिखर पर पहुंचाते हैं।

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

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