अमर जवान का नाम आते ही हमारे जेहन में जो तस्वीर उभरकर आती है वह साहस, जुनून, अनुशासन, देशभक्ति से भरपूर देश के रक्षक की छवि। देश में सबसे ज्यादा सन्मान लोगो के दिलो में देश के वीर जवानों के लिए ही होता है। देश के जवान किसी भी परिस्थिति से लड़ने के लिए सर्वदा तत्पर रहते हैं, चिलचिलाती गर्मी, मूसलाधार बारिश, जमा देने वाली ठंड में घर-परिवार से दूर सैनिक अपने लक्ष्य पर डटे रहते हैं। अगर हमारा जवान दुश्मन देश में उनके कब्जे में हो तो, हमारे वीर जवान पर अमानवीय अत्याचार करके, भूखा-प्यासा रख कर रूह कांप जाए ऐसी भयावह यातनाएं दी जाती है, फिर भी देश का जवान अपने लक्ष्य पर डटा रहता है। इसलिए वीर जवानों के लिए हमारा सिर हमेशा फक्र से ऊँचा होता हैं। आज ही के दिन भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों को धूल चटाते हुए कारगिल की चोटियों पर तिरंगा फहराया था। लद्दाख में उत्तरी कारगिल जिले की पर्वत चोटियों पर पाकिस्तानी सेना को वर्ष 1999 में उनके कब्जे वाले स्थानों से खदेड़ कर भारत देश ने ऐतिहासिक जीत हासिल की थी, उन कारगिल युद्ध के नायकों की याद में हर साल 26 जुलाई को “कारगिल विजय दिवस” मनाया जाता है। यह दिन हर भारतीय के लिए गर्व का है। कारगिल युद्ध 3 मई 1999 से 26 जुलाई 1999 तक चला, इस युद्ध में देश के 527 वीर जवान शहीद और 1,363 घायल हुए।
मानवता को शर्मसार कर देने वाली मणिपुर की वीभत्स घटना (Gruesome incident of Manipur which tarnishes humanity) :- एक ओर देश का सिपाही शहीद होकर अपनी देशसेवा से लोगों के दिलों में हमेशा के लिए अमर हो जाता हैं तो दूसरी ओर देश में भ्रष्टाचार, सत्ता के लिए झगड़े, धोखाधड़ी, स्वार्थ, लालच, अपराध, राजनीतिक हस्तक्षेप, दबंगई, क्लेश, तनाव नजर आता हैं। मणिपुर की वीभत्स घटना ने पूरे देश का सिर शर्म से झुका दिया हैं, आये दिन महिलाओं पर हो रहे अमानवीय अत्याचार समाज की घिनौनी तस्वीर बयां करती हैं। जुल्म, अत्याचार की घटनाएं होते हुए हजारों की भीड़ बूत बनी देखती रहती हैं और मुट्ठीभर असामाजिक तत्व सबके सामने खुलेआम मानवता को शर्मसार करते हैं। असम रेजिमेंट के पूर्व सूबेदार ने बोला कि, मैंने कारगिल युद्ध लड़ा, भारतीय शांति सेना का हिस्सा बनकर श्रीलंका में भी रहा, देश की रक्षा की, आज सेना से रिटायर होने के बाद मैं अपनी पत्नी, घर, गांव की रक्षा नहीं कर सका, मुझे बहुत दुख है।
देश की रक्षा के लिए शहीद सैनिक की तुलना में हम कहाँ हैं? (Where are we compared to the soldiers who are martyred to protect the country?) :- देश का जवान मौत को सामने देखकर भी अपने फर्ज के लिए, देश के लिए, जनता के लिए ख़ुशी से जान न्यौछावर कर देता है, ताकि देश में अमन चैन बना रहें और मातृभूमि की, देश की रक्षा हों, देश सुरक्षित रहें। लेकिन देश के भीतर समाज, घर-परिवार, रिश्ते-नाते, जान-पहचान में आज हम देखते हैं कि सब खुद में व्यस्त है, खुद के लिए जीते हैं। कथनी और करनी में कभी एक नहीं होते, सलाह और ज्ञान देने में हमेशा आगे रहते हैं लेकिन जब मुश्किल हालात हो तो अपने भी भाग खड़े होते हैं। हम सुख-सुविधा, विलासिता से संपन्न हर चीज का आनंद लेकर जीवन व्यतीत करते हैं, घर-परिवार के साथ रहते हैं, त्यौहार-विशेष प्रसंग साथ मनाते हैं। हर ख़ुशी-गम में सहभागी के तौर पर हमारे साथ लोग होते हैं। हर रोज पसंद का खाना, पहनावा, फरमाइश पूरी होती है, हम अपनी दिनचर्या अपने हिसाब से जीते हैं। मन हुआ वैसे रहते है, मनोरंजन के साधनों का मजा लेते है, घूमते-फिरते जीवन जीते हैं, यहाँ तक कि हम अपने जीवन में अनुशासन, व्यायाम, खानपान, संस्कारों पर भी ध्यान देना अक्सर टालते हैं, लोग स्वार्थ में इतने अंधे हो चुके है कि खुद के एक रूपये के फायदे के लिए लोगों का लाखों का नुकसान करने के लिए भी तैयार रहते है। लोगों को स्लो पॉइजन के तौर पर मिलावटखोरी का जहर धड्डल्ले से बांटा जा रहा हैं। समाज में इंसानियत तेजी से विलुप्त हो रही है, लोग केवल खुद के बारे में सोचते हैं, फिर ऐसे समाज में देश के लिए अपनी जान कुर्बान करने की बात तो बहुत दूर है। अति दुर्गम क्षेत्र में अत्यल्प साधनों के साथ बगैर शिकायत के अपने कार्य को बखूबी अंजाम देना देश के जवानों से सीखना चाहिए।
देश पहले बाद में घर-परिवार, समाज (Country first then home-family, society) :- समाज में छोटी-छोटी बात पर लोग मरने-मारने को उतारू रहते हैं, भेदभाव करते हैं, तुरंत उग्र हो जाते है। समझदारी, नैतिकता, एकता, भाईचारा, सर्वधर्म समभाव और पूरा देश एक हैं, यह भावना और व्यवहार देश के जवान में नजर आता हैं। कैसी भी परिस्थिती हो देश में, वीर जवान कर्त्तव्य, निष्ठा, नियम, अनुशासन और आदेश का दृढ़ता से पालन करते हुए कर्मभूमि पर डटे रहते हैं। उपजीविका के लिए नौकरी, काम-धंधा तो सभी करते हैं, काम के बदले में मेहनताना लेते हैं, लेकिन देश की रक्षा की खातिर जान न्यौछावर करने वाले वीर जवान और कहाँ देखने मिलते हैं। सौं बात की एक बात कि वीर जवानों के कारण ही हम और हमारा परिवार, समाज चैन की साँस लेता हैं, वे हैं इसलिए हम हैं। अनेक वीर जवान देश के लिए शहीद हो जाते हैं, फिर भी उनके माता-पिता अपने दूसरे बच्चों को भी सेना में भेजना चाहते हैं ताकि वे भी देश की रक्षा कर सकें, ऐसे वीर सपूतों के माता-पिता भी किसी वीर सैनिक से कम नहीं हैं, देश के लिए ये हौसला, जज्बा, समर्पण की भावना बहुत बड़ी बात हैं, देश पहले बाद में घर-परिवार, समाज आता है। काश ये सोच हर देशवासी की हो तो देश में कोई समस्या ही नहीं होगी।
कीड़े-मकोड़े की तरह लड़ने झगड़नेवाले लोगों की रक्षा के लिए क्या देश का वीर जवान सरहद पर शहीद होता हैं? (Does the brave soldier of the country get martyred on the border to protect those people who fight like insects?) :- क्या आज की युवा पीढ़ी के आगे कोई लक्ष्य नहीं हैं, वह किस दिशा में वह जा रही हैं, आधुनिकता का दिखावा हमारी मौलिकता, संस्कार, मानवता, सभ्यता, मर्यादा, पुरुषत्व, आदरभाव को कुचल रही हैं। अश्लीलता, फूहड़पन, गिद्धदृष्टि, छोटी सोच, जालसाजी और भेदभाव ही लोगों में कूट-कूट कर भरा जा रहा हैं। समाज और देश के प्रति हम अपने कर्तव्यों को क्यों भूल रहे हैं। क्यों हम छोटी-छोटी बात पर भड़क उठते हैं, बहकावे में आते है , भेदभाव करते है, समाज में लगातार बढ़ती समस्याओं के लिए अधिकतर जिम्मेदार हम खुद हैं और इसकी भरपाई भी हम आम लोगों को ही करनी पड़ती हैं। नशे की लत, सोशल मीडिया और इंटरनेट गेमिंग ने तो नयी पीढ़ी को पागल बना दिया है।
नेता-अभिनेता युवा पीढ़ी के आदर्श नहीं बल्कि, देश पर
मर-मिटनेवाले वीर जवान, आज़ादी के लिए कुर्बान क्रन्तिकारी, समाज को सही दिशा देनेवाले
समाज सुधारक, देश को प्रगतिपथ पर ले जानेवाले वैज्ञानिक होने चाहिए। हम जैसे कीड़े-मकोड़े
की तरह लड़ने झगड़नेवाले लोगों की रक्षा के लिए क्या देश का वीर जवान सरहद पर शहीद होता
हैं? समाज और देश में हम सभी एक हैं, सभी भेदभाव मुक्त व्यवहार के साथ इंसान बनकर हमने
जीना चाहिए। क्या केवल इतिहास के पन्नों में ही रह गए वो महान देशभक्त देशवासी जो अपनी
परोपकारिता, बंधुता और अखंडता के लिए विश्वभर में जाने जाते थे। सिर्फ 15 अगस्त और
26 जनवरी को देशभक्ति का खूब दिखावा करने से ही हम देशभक्त नहीं होते बल्कि, देश किन
हालातों से आजाद हुआ, कितनों ने अपने प्राणों की आहुति दी, कितने अत्याचार सहें और
कितने संघर्षों के बाद ये आज़ादी मिली हैं ये सब हर देशवासी ने हर पल याद रख देश में
तिरंगे और संविधान की गरिमा को बनाये रखना हैं। जिस तरह हमें अपने देश के वीर जवानों
पर गर्व है वैसे ही उन जवानों को भी हम देशवासियों पर गर्व होने दीजिए।
डॉ. प्रितम भि. गेडाम





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