सोमवार, 30 जनवरी 2023

बाहरी कचरे से पहले आंतरिक अशुद्ध विचारों की स्वच्छता बेहद आवश्यक (नेशनल क्लिन्लीनेस डे विशेष - 30 जनवरी 2023) Cleaning of internal impure thoughts is more important than cleaning of external waste (National Cleanliness Day Special – January 30, 2023)


हर साल ३० जनवरी राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी की पुण्यतिथि पर नेशनल क्लीनीनेस डे के रूप में मनाकर उन्हें सही अर्थों में श्रद्धांजलि दी जाती है, क्योंकि गांधीजी ने अपने विचारो और कर्मों में स्वच्छता को विशेष स्थान दिया था, उन्ही के विचारों और साफ़-सफाई के महत्त्व को समझकर प्रत्येक ने अपने जीवन में स्वच्छता के गुणों को आत्मसात करना चाहिए। स्वच्छ वातावरण सभी के लिए सुखद होता है। पर्यावरण को स्वच्छ और स्वस्थ बनाए रखना हम सभी का कर्तव्य है। यह दिन घर के अंदर-बाहर, कार्यस्थलों, गलियों और सार्वजनिक स्थानों पर स्वच्छता के उच्च मानकों का पालन करने का आह्वान करता है। स्वच्छता स्वस्थ जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है, साथ ही स्वच्छता व  साफ-सफाई हमारी दिनचर्या में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। परिवार के बड़ो ने बच्चों को अपने पर्यावरण स्वच्छ रखने की आवश्यकता की सिख देनी चाहिए। लोगों में प्रदूषण और गंदगी के जानलेवा खतरे की अनभिज्ञता उनको दर्दनाक मौत के कगार पर पहुंचाती है।

 लोगों का स्वार्थी रवैया देश के लिए हानिकारक (People's selfish attitude is harmful to the country) :- जब स्वच्छता की बात आती है तो मनुष्य केवल खुद के बारे में सोचता है न कि समाज के प्रति अपने कर्तव्य के बारे में। जगह-जगह लोग गंदगी फैलाते नजर आते  हैं। गंदगी द्वारा मच्छर, मक्खियां, कीड़े, कीटाणु पैदा होकर पर्यावरण को प्रदूषित करते और बीमारियाँ फैलाते है। यह समाज के लिए शर्म की बात है कि हम जिस वातावरण में रहते हैं, उसे ही गंदा करने पर तुले रहते हैं। विकसित देशों में साफ-सफाई पर विशेष जोर दिया जाता है, सफाई संबंधित समस्या के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को कारावास और बड़ी मात्रा में जुर्माना भी लगाया जाता है। जब विदेशों में स्वच्छता संबंधी कानून सख्त होते हैं तभी वहां का परिसर इतना सुंदर, स्वच्छ और प्रगतिशील दिखता है क्योंकि कानूनों का अनुशासित तरीके से पालन किया जाता है।

गैर जिम्मेदाराना व्यवहार (Irresponsible behavior) :- हमारे देश में साफ-सफाई के बारे में जागरूकता की कमी के कारण अनेक दर्शनीय स्थलों, नदियों, झीलों, समुद्र तटों, ऐतिहासिक इमारतों, किलों, पर्यटन स्थलों आदि में पर्यटकों द्वारा फैलाई गंदगी और कचरा बड़ी मात्रा में देखा जा सकता है। शहर में कहीं भी खुले में कूड़ा जलाना कानूनन अपराध है, कूड़ा जलाने से वातावरण में जहरीली गैसें फैलती हैं, फिर भी कई लोग खुले में कूड़ा जलाते हैं। लोगों को न सरकार का डर दिखता है और न समाज का, सब अपने फायदे के हिसाब से जीते हैं। अक्सर शहरों की सोसायटी के आसपास, खुली जमीन या सड़क किनारे पर और बस्ती के किनारे कचरे के बड़े-बड़े ढेर देखे जा सकते हैं। कुछ जगहों पर तो लोग बिना किसी परवाह के सीधे फ्लैट, बिल्डिंग की बालकनी से ही कूड़ा फेंक देते हैं। दूसरे लोग भी एक-दूसरे को देखकर उस अशिष्ट व्यवहार की नकल करते हैं। लोग केवल अपने और अपने घरों को साफ रखते हैं लेकिन यह नहीं सोचते कि उनके बुरे व्यवहार से समाज को कितना नुकसान हो सकता है, यह उनके अशुद्ध विचारों का दोष है। हमारा घर, परिसर, गांव, शहर, राज्य, देश सब एक मानकर स्वच्छता का संकल्प लेना ही सबसे ज्यादा जरूरी है।

कार्रवाई से पहले मानसिकता में बदलाव बहुत जरूरी  (A change in mindset is very necessary before action) :- अगर हम समाज में कचरे का सही तरीके से निपटान चाहते हैं तो उसमें लोगों की भागीदारी बहुत जरूरी है। जनभागीदारी तभी प्राप्त हो सकती है जब लोग तैयार हों और अपनी जिम्मेदारी समझें, उसके लिए जरूरी है कि उनकी मानसिकता को बदला जाए, बेशक समाज को शुद्ध करने के साथ-साथ लोगों के विचारों को भी शुद्ध किया जाए, यह स्वच्छता का ही एक अहम हिस्सा है। परोपकार की भावना द्वारा किसी की निस्वार्थ मदद करना, किसी के दुख में साथ देना, किसी रोते हुए चेहरे पर मुस्कान लाना, इससे मिलने वाली खुशी और संतुष्टि की बात ही अलग है, जिसे आप कहीं से भी नहीं खरीद सकते। बाहरी कचरा मानवी स्वास्थ्य को बीमारी देता है लेकिन आंतरिक मानवीय कचरा मानसिक विकार को जन्म देता है और इसके बहुत गंभीर परिणाम होते हैं, एक का दोष पूरे समाज को प्रभावित करता है। अशुद्ध विचार से शक, स्वार्थ, अपराध, हीन भावना, लालच, भेदभाव, गंदे विचार, दूसरों में दोष ढूंढना, अहंकार, झगड़ालूपन जैसी बातें मानसिक विकार पैदा करने में मददगार हैं। ईर्ष्या, द्वेष, गुस्सा, दुर्व्यवहार, लोभ, नफरत से मनुष्य जानवर की भांति बनता जाता है। मन और मस्तिष्क में फैली गंदगी गलत कामों को बढ़ावा देकर समाज के समस्याओं में वृद्धि करती है, मनुष्य का चरित्र और व्यवहार उसके विचारो का ही परिणाम है। यदि हम अपने मन से ख़राब विचारों का कूड़ा-कचरा हटा दें तो हमें स्वतः ही समाज में अपने कर्तव्य का बोध हो जायेगा और और हम अच्छे आचरण द्वारा सामाजिक दायित्वों का निर्वाह कर समाज में फैले बाहरी कूड़ा-कचरे की समस्या को दूर करने में एक बड़ी उपलब्धि हासिल कर सकेंगे और सर्वत्र स्वच्छ, सेहतमंद वातावरण और सुखद विकास होगा।

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Do Leave Your Comments