सोमवार, 26 सितंबर 2022

मानवीय अस्तित्व बचाने जीवनदायिनी प्रकृति की रक्षा बेहद आवश्यक (विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस विशेष - 26 सितंबर 2022) To save human existence, It is extremely important to protect life-giving nature


पर्यावरणीय स्वास्थ्य मानवीय शरीर पर होने वाले प्रभाव को दर्शाता है। पर्यावरण स्वास्थ्य का संतुलन बिगाड़नेवाले मुद्दों में पर्यावरणीय स्रोतों व घातक घटकों की पहचान एवं मूल्यांकन करके हवा, पानी, मिट्टी, खाद्य और अन्य में समाहित खतरनाक भौतिक, रासायनिक और जैविक घटक, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, बीमारियां बढ़ानेवाले कीटाणु, स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच की कमी, खस्ताहाल आधारभूत सुविधायें शामिल हैं। धरती पर प्रत्येक मनुष्य हेतु शुद्ध हवा-पानी, संतुलित जलवायु, आवश्यक स्वच्छता, यांत्रिक संसाधनों व रसायनों का सिमित उपयोग, ओज़ोन सुरक्षा, सुरक्षित कार्यस्थल व आवास, स्वास्थकर कृषि पद्धतियां, एक संरक्षित प्रकृति यह सभी अच्छे स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक हैं। विश्वभर में मानव स्वास्थ्य पर लगातार बढ़ते पर्यावरणीय दुष्प्रभावों बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष 26 सितम्बर को "विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस" मनाया जाता है। इस विशेष दिवस पर इस साल की थीम "सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन के लिए पर्यावरणीय स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करना" यह है। यह “पर्यावरणीय स्वास्थ्य” लोगों की सुरक्षा और समुदायों को स्वस्थ वातावरण प्रदान करने के लिए हवा, पानी, मिट्टी और भोजन में रासायनिक और अन्य पर्यावरणीय जोखिम को कम करने के लिए नीतियों और कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए काम करता है।

Nearly 1 in 4 global deaths by environmental risk factors :- कुल वैश्विक मौतों के 4 में से लगभग 1, पर्यावरणीय जोखिम कारक, जैसे वायु, जल और मृदा प्रदूषण, रासायनिक जोखिम, जलवायु परिवर्तन और पराबैंगनी विकिरण, 100 से अधिक बीमारियों और चोटों में योगदान करते हैं, जो असमय मौत का कारण है। स्ट्रोक से सालाना 2.5 मिलियन मौतें, इस्केमिक हृदय रोग से सालाना 2.3 मिलियन मौतें, अनजाने में लगी चोटें (जैसे सड़क यातायात से होने वाली मौतें) - सालाना 1.7 मिलियन मौतें, कैंसर से सालाना 1.7 मिलियन मौतें, पुरानी सांस की बीमारियों से सालाना 1.4 मिलियन मौतें, अतिसार संबंधी रोग से सालाना 846,000 मौतें, श्वसन संक्रमण से सालाना 567 000 मौतें, मलेरिया से सालाना 259 000 मौतें, नवजात की सालाना 270,000 मौतें होती है। जलवायु परिवर्तन द्वारा 2030 से 2050 के बीच, कुपोषण, मलेरिया, डायरिया और गर्मी के वजह से, प्रति वर्ष लगभग 250,000 अतिरिक्त मौतों की संभावना है।

As per Environment Performance Index (EPI) 2022 :- पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (ईपीआई) 2022 अनुसार, 180 देशों में भारत 180 वें स्थान पर है। भारत को पाकिस्तान, बांग्लादेश, वियतनाम और म्यांमार के बाद 18.9 के मामूली स्कोर के साथ यह स्थान दिया गया है। ईपीआई के अनुसार, सरकार के कानून, भ्रष्टाचार नियंत्रण और सरकारी प्रदर्शन के मामले में भी भारत खराब स्थान पर है, जिसकी भारत ने आलोचना की है। स्विस फर्म आईक्यूएयर द्वारा जारी विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट 2021 अनुसार, पृथ्वी पर 100 सबसे प्रदूषित स्थानों में 63 भारतीय शहर है। वायु प्रदूषण औसत भारतीय जीवन प्रत्याशा को 6.3 वर्ष तक कम कर देता है। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण ने 2019 में जन्म के एक महीने के भीतर 116,000 से अधिक शिशुओं की जान ले ली। भारत की लगभग पूरी आबादी ऐसी हवा में सांस लेती है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित गुणवत्ता मानकों से कम है।

According to Environment Report 2021 :- भारत देश की पर्यावरण रिपोर्ट 2021 अनुसार, 180 में से भारत 117 वें स्थान पर है। भारत देश में वायु प्रदूषण के कारण 12.5 प्रतिशत मौतें हुई हैं। रिपोर्ट के अनुसार, देश में सतही भूजल खतरे में हैं, 86 प्रतिशत जल निकाय गंभीर रूप से प्रदूषित हैं। देश में मलिन बस्तियों वाले 2,613 कस्बे हैं। भारत ने 2016-2017 के बीच खतरनाक अपशिष्ट पैदा करने वाले उद्योगों की संख्या में 56% की वृद्धि दर्ज की है। देश के प्रमुख औद्योगिक समूहों में से, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, 35 ने समग्र पर्यावरणीय गिरावट को दिखाया, 33 ने वायु गुणवत्ता के बिगड़ने की ओर इशारा किया, 45 में अधिक प्रदूषित पानी था और 17 में, भूमि प्रदूषण बदतर हो गया। कोविड-19 ने दुनिया के गरीबों को अधिक गरीब बना दिया है। कोविड-19 महामारी के कारण, वैश्विक स्तर पर 500 मिलियन से अधिक बच्चे स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर हुए और उनमें से आधे से अधिक भारत में थे।

पर्यावरणीय स्वास्थ्य सुधार सबकी जिम्मेदारी (Environmental Health Improvement Everyone's Responsibility)

आज की वास्तविक सच्चाई है कि साधारणत 1 प्रतिशत लोग समाज, पर्यावरण, नीतिनियम, सरकारी आदेश, मानवता को बचाने के लिए जागरूकता से काम करते है, लेकिन 99 प्रतिशत लोग अच्छे कामों की बात तो करते है परन्तु उन बातो पर अमल नहीं करना चाहते। जिसका जहा स्वार्थ आया, वहां वे नियम तोड़ देते है, इसका खामियाजा पुरे समाज को भुगतना पड़ता है। स्वार्थी लोग अपने फायदे के लिए किसी को भी नुकसान पहुंचाने से नहीं कतराते, इसलिए सभी लोगों के लिए पर्यावरण का महत्व समझना बहुत जरुरी है। पर्यावरण को बचाने के लिए प्रत्येक नागरिक ने जागरूक होना अत्यावश्यक है। चिपको आंदोलन, साइलेंट वैली बचाओ आंदोलन, जंगल बचाओ आंदोलन, अप्पिको मूवमेंट, नर्मदा बचाओ आंदोलन, टिहरी बांध संघर्ष जैसे अनेक आंदोलन पर्यावरण की रक्षा के लिए देश में किये गए है। आज भी रक्षाबंधन में पेड़ों को राखी बांधकर अनेक लोग उनकी रक्षा का प्रण लेते है। प्रकृति की सुंदरता को बचाने के लिए थारू जनजाति समुदाय सदियो से 60 घंटे का कडक लॉकडाउन स्वेच्छा से लगाकर अनूठा पर्व मनाते है। आज हमारे समाज को ऐसे उपक्रमों की बहुत जरूरत है।

Adopt Good Habits:-  अपने दैनिक जीवन में रीसाइक्लिंग की आदतों को लागू करना, लैंडफिल कचरे को कम करने, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, प्रदूषण को कम करने, ऊर्जा की खपत में कटौती और ग्लोबल वार्मिंग को धीमा करने में मदद करने के सबसे प्रभावी तरीकों में से एक है। अपने समुदाय में सफाई के लिए स्वयंसेवक की भूमिका निभाएं। जागरूक बने, दूसरों को हमारे प्राकृतिक संसाधनों के महत्व और मूल्य को समझाने में मदद करें। जल अनमोल है, उसका महत्त्व समझें, समझदारी से उपयोग करें। खरीदारी करते समय टिकाऊ वस्तुओं को चुनें, प्लास्टिक को ना कहकर अपनी समझदारी का परिचय दें। अंतरराष्ट्रीय मानकों द्वारा प्रमाणित वस्तुओं का इस्तेमाल करें, यांत्रिक संसाधनों का उपयोग कम करें। वृक्षारोपण को बढ़ावा दें, रेन वॉटर हार्वेस्टिंग को अमल में लायें। रोज संभव हो उतना पैदल चलें, साइकिल चलायें, सार्वजनिक परिवहन वाहनों का उपयोग करें। विशेष अवसर पर भेट स्वरुप लोगों को उनका पसंदीदा पौधा दें।

हमारे समाज में वस्तुओं की आवश्यकता से अधिक स्टेटस सिंबल को महत्व दिया जाता है। आज के आधुनिक समय में दिखावे के चक्कर में लोगों की पूरी जिंदगी खत्म हो जाती है। खुद को बर्बाद करके लोग समाज और पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि दिखावा करना बंद करें। जिंदगी बहुत आसान और सुंदर है, हमारी मुख्य जरूरते प्रकृति सहज रूप से पूरी करती है, लेकिन हमारा असमाधानी मन इच्छा आकांक्षाओं को बढ़ाते रहता है, जिस कारण लगातार समस्या बढ़ती है। प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन, यांत्रिक उपकरणों का अति उपयोग, हर जगह घातक रसायनों का उपयोग, जंगल और वन्यजीवों को बढ़ता नुकसान, बढ़ता घातक कचरा पर्यावरण के चक्र को बिगाड़ रहा है। प्रकृति की रक्षा अर्थात जीवन की सुरक्षा है। यह पृथ्वी हमारा घर है, प्रकृति हमें जीवन देती है और हम अगर उस प्रकृति को ही लगातार नुकसान पंहुचा रहे है तो हमसे बड़ा स्वार्थी शैतान कोई नहीं।

  डॉ. प्रितम भि. गेडाम

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