विश्व में सबसे बुद्धिमान प्राणी मनुष्य कहलाता है, परन्तु कई बार मनुष्य की हैवानियत जंगली पशु से भी अधिक क्रूर नजर आती है, जिससे मानवता बार-बार शर्मसार हो जाती है। इंसान शब्द से इंसानियत और मानव से मानवता शब्द बना है, परन्तु अब मानवीय गुणों में अब बदलाव आ रहा है। दुनिया में कोई भी व्यक्ति धन या पद से कितना भी बड़ा हो लेकिन उसमे मानव के गुण न हो तो उसे मानव कहना बेकार है। सहानुभूति, सहजता, अंतर्ज्ञान, जिम्मेदार, दयालुता, प्रेरकता, सीख, ध्यान, ईमानदार, सत्यनिष्ठा, हिम्मत, आत्म-जागरूकता, प्रतिबद्धता, सुशीलता, परोपकार, सदचरित्र, धैर्यवान, रचनात्मकता, विश्वसनीयता, दृढ़निश्चय, वाग्मिता, संकल्प शक्ति, उदारता, स्वच्छता, अनुशासन, विनम्रता, परिपक्वता, आशावाद, सकारात्मकता, विवेक, संस्कारी, कर्मकर्त्ता, कर्तव्यपरायण, आदर भाव, संवेदनशीलता, एकजुटता, स्वाभिमान, प्रामाणिकता, लक्ष्य-उन्मुख, सहायकता, निष्पक्षता जैसे गुण केवल मनुष्य में होते है। मानवता सबसे अधिक मूल्यवान हैं, इसकी रक्षा करना प्रत्येक जागरूक व्यक्ति का परम कर्तव्य हैं।
झूठ, फरेब, घृणा, स्वार्थी,
लालची, भेदभाव, मिलावटखोरी, नशाखोरी, चरित्रहीनता, गैरजिम्मेदार, आलस्य, धूर्तता, कथनी-करनी
में अंतर, जालसाजी, फूहड़पन, गुस्सैल, अशांत, निष्ठुर, अहंकार, घमंड, अनादर, अभिमान,
दुर्व्यवहार, संस्कारहीनता जैसे दुर्गुण अमानुष के होते है। ऐसे लोग खुद के फायदे के
लिए दूसरे का नुकसान करने से कभी नहीं कतराते और नियमों व संस्कारों की धज्जियां उड़ाकर
समाज को कलंकित करके अपराधों को जन्म देते है। आज हर तरफ शोर, प्रदूषण, संसाधनों का
दोहन, तनाव, परेशानी और समस्याओं का जाल फैला हुआ है, साथ ही गरीबी, भुखमरी, आर्थिक
असमानता, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार लगातार बढ़ रहा है। लोगों
के दुखों पर हंसना और उनकी खुशी से जलना आजकल फैशन बन गया है, लोगो के मुसीबत में मदद
के बजाय वीडियो बनाकर परेशान किया जाता है। इन परिस्थितियों में समाज का संतुलन लगातार बिगड़ता जाता है, जो समाज
को पतन की ओर ले जाता है। आज न्यूज़ चैनल, अखबारों में लगातार मानव विनाशक समाचारों
की भरमार होती है, बिना कारण बड़ी-बड़ी घटनाओ को अंजाम दिया जाता है। घटनाओं के लिए जिम्मेदार
व्यक्ति सीधे से अपना पल्ला झाड़ देता है। अपने आपको ज्ञानी कहने का हक़ नहीं उस व्यक्ति
को, जिसको मानवता की जरा भी समझ नहीं बची हों।
19 अगस्त को विश्व मानवतावादी
दिवस के रूप में मनाया जाता है, संघर्ष में फंसे दुनिया
भर के नागरिकों की दुर्दशा के बारे में जागरूकता बढ़ाना और यह उन सहायता कर्मियों को पहचानने का समय है, जिन्होंने वैश्विक
संकट से प्रभावित लोगों की मदद के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है। हर साल इस विशेष
दिवस पर उन बहादुर महिलाओं और पुरुषों का सम्मान करते हैं जो जरूरतमंद लोगों की मदद
करने के लिए अपना सब कुछ जोखिम में डालते हैं। 2022 में, 303 मिलियन लोगों को युद्ध
या प्राकृतिक आपदाओं के कारण हुई कठिनाई के कारण दुनिया भर में मानवीय सहायता की आवश्यकता
है।
सभी धर्म हमें सिर्फ सद्भाव, एकता, प्रेम, सुसंस्कार और अच्छे आचरण की शिक्षा देते है, परन्तु लोग ही अपने हिसाब से उनमें अंतर करने लगते है। जो व्यक्ति जितने ऊंचे पद पर आसीन होता है, वह उतना ही जनता के प्रति जवाबदेह होता है, जनता को विश्वास में लेकर ही कार्य करने चाहिए। पूरी दुनिया में मानवता से बढ़कर कुछ भी नहीं है। प्रत्येक मनुष्य में परोपकार की भावना होनी ही चाहिए, जितना भी हमसे बन पड़े, असहायों की मदद करनी चाहिए। इंसान भले ही चला जाए लेकिन उसकी इंसानियत लोगों के दिलो में हमेशा जिन्दा रहती है। अपने फायदे के लिए गरीबों मजलूमों का हक मारकर, उन पर अत्याचार करके, मासूमों को मिलावटखोरी द्वारा जहर देकर, भेदभाव करके, दबाव डालकर, अत्याचार करके जिल्लत की अमानुष भरी जिंदगी जीना भी कोई जीना है। कभी भी दूसरों के साथ वह व्यवहार न करे, जो हमें खुद के लिए पसंद नही हो। हम खुद से काबिल नहीं बन सकते इसलिए दूसरों को दबाकर जीते है, लेकिन यह जीवन मनुष्य का नहीं है। आज हर कोई सिर्फ पैसे के पीछे भागता हुआ नजर आता है, सबको जल्द बड़ा बनाना है, जिंदगी में कभी किसी की निस्वार्थ मदद करना ही सबसे बड़ी दौलत है, क्योकि हम उस लायक बने है कि किसी के काम आ सके। रोते हुए चेहरे पर मुस्कान लाना बहुत बड़ी बात है, आप पैसे से हर वस्तु खरीद सकते है लेकिन सुकून चैन कभी नहीं खरीद सकते, सुकून सिर्फ इंसानियत से मिलती है जो आप निस्वार्थ मन से असहाय लोगों, पर्यावरण, पशु-पक्षी की मदद करके पाते हो। दुनिया से हमें क्या मिला? ये सोचने से अच्छा है कि दुनिया को बेहतर बनाने के लिए हम अपना योगदान दें। लोगों की मदद करे तो कृपया कभी भी उसका दिखावा न करें, अच्छे कर्म करो और भूल जाओ। अगर महान समाज सुधारक और क्रांतिकारी भी स्वार्थी बनकर खुद के बारे में सोचते तो आज भी हम लोग कुरीतियों में फंसे गुलामों की जिंदगी जी रहे होते। मानवता की ज्योति जलाए, मतभेद भुलाए।
मशहूर गायक मन्ना डे जी द्वारा गया हुआ गीत - "अपने लिये जिये
तो क्या जिये, तू जी ऐ दिल ज़माने के लिये", आज भी इंसान को उसकी इंसानियत के पथ
पर चलने की सिख देती है। हमने इंसान के रूप में जन्म लिया है तो दुखियों के जीवन में
खुशी का सबब बनकर इंसानियत की जिंदगी बितायेंगे ये प्रण लें।
डॉ. प्रितम भि. गेडाम

बहुत बढिया प्रोफेसर साहेब आप के द्वारा लिखा गया हर एक लेख बहुत ही बढ़िया होता है
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया 🙏
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