सोमवार, 11 जुलाई 2022

बढ़ती आबादी - समस्याओं की जननी (विश्व जनसंख्या दिवस विशेष - 11 जुलाई 2022) Growing Population – Mother of Problems (World Population Day Special – 11 July 2022)

          वैश्विक जनसंख्या मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व जनसंख्या दिवस एक वार्षिक कार्यक्रम है, जो 1990 से लेकर हर साल 11 जुलाई को मनाया जाता है। इस विशेष दिवस का उद्देश्य विभिन्न जनसंख्या मुद्दों जैसे परिवार नियोजन, लिंग समानता, गरीबी, मातृ स्वास्थ्य, मानवाधिकार, आदि के महत्व के बारे में और बढ़ती जनसँख्या से उत्पन्न समस्याओं के प्रति आम जनता को जागरूक करना है। इस साल विश्व जनसंख्या दिवस २०२२ की थीम “8 बिलियन की दुनिया : सभी के लिए एक लचीले भविष्य की ओर - अवसरों का उपयोग और सभी के लिए अधिकार और विकल्प सुनिश्चित करना" यह है। दुनिया की आबादी को 1 अरब तक बढ़ने में सैकड़ों-हजारों साल लगे, फिर बाद में सिर्फ 200 साल में, यह सात गुना बढ़ गई। 20वीं सदी के मध्य से, दुनिया ने अभूतपूर्व जनसंख्या वृद्धि का अनुभव किया है। 1950 और 2020 के बीच विश्व की जनसंख्या आकार में तीन गुना से अधिक हो गई है। 2011 में, वैश्विक जनसंख्या 7 बिलियन तक पहुंच गई तथा 2021 में लगभग 7.9 बिलियन हो गई, और 2030 में लगभग 8.5 बिलियन, 2050 में 9.7 बिलियन और 2100 में 10.9 बिलियन तक बढ़ने की संभावना है। 

आनेवाले कुछ सालो में भारत, दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश चीन से आगे निकलने के लिए तैयार है। देश में हर साल जनसंख्या में लगभग 1.60 करोड़ की वृद्धि होती है, जिसके लिए लाखो टन खाद्यान्न, 1.9 लाख मीटर कपड़ा और 2.6 लाख घरों और 52 लाख अतिरिक्त नौकरियों की आवश्यकता होती है, साथ ही नैसर्गीक व मानव निर्मीत संसाधनो पर आवश्यकता पुर्ती हेतु भारी दबाव पडता हैं। जिस देश की बडी आबादी 2 डॉलर प्रतिदिन से कम पर जीवन यापन करती हैं, वहां बढ़ती जनसंख्या, खाद्य सुरक्षा की स्थिति को अधिक खराब ही करेगी। 2050 तक दुनिया की लगभग 66 प्रतिशत आबादी शहरों में रह रही होगी। जनसँख्या वृद्धि सीधे आर्थिक विकास, रोजगार, आय वितरण, गरीबी और सामाजिक सुरक्षा को प्रभावित करती हैं। वे स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, आवास, स्वच्छता, पानी, भोजन और ऊर्जा तक सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करने के प्रयासों को भी प्रभावित करती हैं। यूथ इन इंडिया, 2017 की रिपोर्ट के अनुसार, 1971 से 2011 के बीच युवाओं की वृद्धि 16.8 करोड़ से बढ़कर 42.2 करोड़ हो गई।

संयुक्त राष्ट्र, आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग, जनसंख्या प्रभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, 8 जुलाई, 2022 तक भारत की वर्तमान जनसंख्या 1,40,78,73,998 है और विश्व की 7,95,91,50,845 संपूर्ण जनसंख्या है, जो संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम आंकड़ों के वर्ल्डोमीटर विस्तार पर आधारित है। भारत की जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या के 17.7 प्रतिशत है, लेकिन विश्व के मीठे पानी के संसाधनों का केवल 4 प्रतिशत है। कुल भूमि क्षेत्र 2,973,190 वर्ग किमी. है, अर्थात भारत विश्व के कुल क्षेत्रफल के 2.4 प्रतिशत भाग हमारे हिस्से है। खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार, भारत की लगभग 14.8 प्रतिशत (22.4 करोड) आबादी कुपोषित है। भारत में पांच साल से कम उम्र के 69 फीसदी बच्चों की मौत कुपोषण के कारण होती हैं, कुपोषण के अंतर्निहित कारणों में से एक गरीबी है और गरीबी उन्मूलन कोसों दूर है। भारत में डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात 1:1456 है, जबकि डब्ल्यूएचओ की 1:1000 की सिफारिश है। संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक शहरीकरण संभावनाओं अनुसार, देश में मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों की संख्या 10.40 करोड़ या भारत की कुल जनसंख्या का 9 प्रतिशत होने का अनुमान है। झुग्गी-झोपड़ी के प्रत्येक 10 में से छह घरों में जल निकासी की समुचित व्यवस्था नहीं है। भारत में 63 प्रतिशत झुग्गी-झोपड़ी घर या तो बिना जल निकासी कनेक्शन के हैं या खुले नालों से जुड़े हैं। दुनिया के अविकसित देशों की तरह भारत में भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिन्हें जीवित रहने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं मिलता है। इतना ही नहीं, उन्हें जो भोजन मिलता है उसमें पोषक तत्वों की भी कमी होती है। प्यू रिसर्च सेंटर ने बताया था कि भारत में ऐसे लोगों की संख्या पिछले एक साल में तीव्र गति से बढ़ गई हैं जो 150 रुपये प्रति दिन (क्रय शक्ति के आधार पर आय) नहीं कमा सके। सालभर में ऐसे लोगों की संख्या में छह करोड़ की वृद्धि हुई है, जिससे कुल गरीबों की संख्या 13.4 करोड़ हो गई है।

116 देशों के ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2021 में भारत 2020 के 94वें स्थान से फिसलकर अब 101वें स्थान पर आ गया है। भारत अपने अधिकांश पड़ोसियों से पीछे है। पाकिस्तान 92वें, नेपाल 77वें, बांग्लादेश 76वें और श्रीलंका 65वें स्थान पर है। गरीबी उन्मूलन के लिए काम करने वाली संस्था ऑक्सफैम के मुताबिक, दुनिया भर में हर मिनट भूख से 11 लोगों की मौत हो जाती है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट 2021 अनुसार, भारत में, घरेलू खाद्य अपशिष्ट प्रतिवर्ष 50 किलोग्राम या देशभर में प्रतिवर्ष कुल 68,760,163 टन होने का अनुमान है। यूएनईपी रिपोर्ट मुताबिक 2019 में अनुमानित 93.1 करोड़ टन खाना बर्बाद हुआ। उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने खुलासा किया है कि पिछले पांच वर्षों में 38,000 मीट्रिक टन से अधिक खाद्यान्न का नुकसान हुआ है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति 2022 रिपोर्ट में कहा गया कि वर्ष 2021 में दुनियाभर में भूख से प्रभावित लोगों की संख्या 2021 में बढ़कर 82.8 करोड़ हो गई।

प्रदूषण, खाद्यमिलावट, ग्लोबल वार्मिंग, खतरनाक ई-कचरा, प्रदूषित वायु-जल, उपजाऊ खेत की कमी, प्राकृतिक संसाधनों का अधिक उपयोग, प्राकृतिक संसाधनों की कमी, वनों की कटाई, जंगलों का विनाश, वन्य जीवों और मनुष्यों के बीच बढ़ते टकराव, ईंधन की बढ़ती खपत, कभी अकाल, कभी बाढ़, शुद्ध हवा और पानी की कमी, पर्यावरण का क्षरण, बढ़ते कंक्रीट के जंगल, बेरोजगारी, भुखमरी, महंगाई, जिंदगी के लिए संघर्ष और बढ़ती गंभीर बीमारियाँ इन सभी समस्याओं का कारण बढ़ती जनसंख्या है, ज्यादा जनसंख्या अर्थात ज्यादा आवश्यकताये। आज भी हमारे समाज के कई असहाय लोग, भिखारी, बीमार, विक्षिप्त लोग, असहाय बच्चे सड़कों पर कूड़े में, खराब भोजन के ढेर में खाना चुनते नजर आते है, यह हमारे लिए बड़ी शर्म की बात है। जनसंख्या वृद्धि के कारण मलिन बस्तियों, गंदा वातावरण, अशिक्षा, गरीबी, अपर्याप्त पोषण, उचित परवरिश की कमी, आर्थिक असमानता जैसी गंभीर समस्याएं हैं, ऐसी खराब परिस्थितियों में बच्चों के जीवन का संघर्ष बचपन से ही शुरू हो जाता है।

 आज हम विश्व में सबसे बड़ी युवा शक्ति वाला देश कहलाते है, अगर युवाओं को उचित संसाधन, रोजगार, व्यवसाय, शिक्षा, स्वास्थसेवा, उज्जवल भविष्य के लिए सही नियोजन और सभी के लिए समान अवसर मिले तो युवाशक्ति देश को विश्वगुरु बना सकती है। वर्ना यही युवाशक्ति बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी, संसाधनों के अभाव में गलत दिशा में अग्रसर होगी और समाज के लिए समस्या बढ़ाएगी। आज हमारे देश में ऐसी समस्या आम हो गयी है, युवाओं में अपराध का ग्राफ बहुत बढ़ गया है। क्या हम वास्तव में अपने जीवन में एक नवजात शिशु के जन्म का आनंद उठा सकते हैं जबकि हम जानते हैं कि हम अपने बच्चे को जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं भी नहीं दे पाएंगे? आज के भागम भाग जैसे माहौल में धनी व्यक्ति के पास समय नहीं है, गरीब व्यक्ति दो वक़्त की रोटी के इंतजाम में लगा रहता है, कोई जिम्मेदारी से बंधा है तो कोई मज़बूरी से बंधा है। आधुनिकता का खुमार सभी पर छाया हुआ है, बच्चे तो बच्चे लेकिन बड़ों द्वारा भी संस्कारों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जाती है। परन्तु बच्चो को जन्म देने के बाद उस बच्चे के सुजान नागरिक बनने तक की पूरी जिम्मेदारी माता-पिता की होती है, बच्चों का भविष्य पालको के हाथों में होता है। अपनी जिम्मेदारी से हम पल्ला झाड़ नहीं सकते। बच्चों के जन्म के पहले उनके भविष्य के बारे में गंभीरता से विचार करने की आज पालको को बहुत आवश्यकता है।

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Do Leave Your Comments