शनिवार, 30 जुलाई 2022

विश्व मानव तस्करी रोधी दिवस पर प्रकाशित विषय विशेष लेख देश के प्रमुख समाचारपत्रों द्वारा (World Day Against Human Trafficking in Person - 30 July 2022)

 











































मासूम जिंदगियों को लिलती मानव तस्करी की भयावहता (विश्व मानव तस्करी रोधी दिवस विशेष - 30 जुलाई) Innocent lives in the terror of human trafficking (World Anti-Human Trafficking Day Special - 30 July)

आज देश में बड़े पैमाने पर समस्याओं की बाढ़ सी आ गयी है, तेजी से बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, आर्थिक असमानता, गरीबी, भुखमरी, कुपोषण, बीमारियां, प्रदूषण, मिलावटखोरी, संस्कारहीन व्यवहार, डॉलर के मुकाबले लगातार गिरता रुपया, देश पर बढ़ता कर्ज, बढ़ता अपराध का ग्राफ, भ्रष्टाचार, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन जैसी अनेक समस्याएं समाज को खोखला कर रही है। ऐसी समस्याएं नयी समस्याओं को जन्म देती है, जिसमे से “मानव तस्करी” प्रमुख है। विश्वभर में बड़े स्तर पर मानव तस्करी का भयावह जाल फैला हुआ है, मानव तस्करी द्वारा मासूम जिंदगियों को जीते-जी जानवरों से भी बदतर नरकीय यातना देकर, गुलाम बनाकर अमानवीय व्यवहार किया जाता है। पुरुष, महिलाएं और सभी उम्र और सभी पृष्ठभूमि के बच्चे इस अपराध के शिकार हो सकते हैं। इसे भारत का दूसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध माना जाता है। व्यावसायिक यौन शोषण और जबरन विवाह के उद्देश्य से देश के भीतर महिलाओं और लड़कियों की तस्करी की जाती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां लिंग अनुपात पुरुषों के पक्ष में अत्यधिक विषम है। पुरुषों और लड़कों का अवैध व्यापार "श्रम" के उद्देश्य से किया जाता है, मानव अंग तस्करी की जाती है और अवैध व्यापार करने वालों द्वारा जिगोलो, मालिश विशेषज्ञ, अनुरक्षक आदि के रूप में काम करने के लिए उनका यौन शोषण किया जा सकता है। बच्चों को कारखाने के श्रमिकों, घरेलू नौकरों, भिखारियों के रूप में जबरन श्रम के अधीन किया जाता है। कृषि श्रमिकों, कुछ आतंकवादी और विद्रोही समूहों द्वारा सशस्त्र लड़ाकों के रूप में इस्तेमाल किया गया है। 


विश्व मानव तस्करी रोधी दिवस पर इस वर्ष 2022 की थीम "प्रौद्योगिकी का उपयोग और दुरुपयोग" है, एक उपकरण के रूप में प्रौद्योगिकी की भूमिका पर केंद्रित है जो मानव तस्करी को सक्षम और बाधित दोनों कर सकता है, इसलिए जागरूकता सबसे जरूरी है। 2018 के ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स अनुसार, 167 देशों में से, भारत 53 वें स्थान पर है। वर्तमान में 1.4 प्रतिशत आबादी गुलामी में काम करने के लिए मजबूर है। भारत में लगभग 18.3 मिलियन लोग आधुनिक गुलामी में जी रहे। कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण अनुसार, यह पाया गया कि 21% परिवार अपनी बढ़ी हुई आर्थिक संकट स्थिति के कारण बच्चों को बाल श्रम में भेजने के लिए संभावित रूप से तैयार हैं। 2020 में वैश्विक स्तर पर गरीबी की वजह से 500,000 अधिक लड़कियों की जबरन शादी होने का अनुमान सेव द चिल्ड्रन ने लगाया था। जब कोरोना काल में जून और जुलाई में लॉकडाउन में ढील दी गई, तो बाल विवाह में वृद्धि हुई, जो पिछले वर्ष की तुलना में 17% अधिक वृद्धि थी। लॉकडाउन के दौरान एक समय में, 11 दिनों के दौरान, सरकारी हेल्पलाइन पर बाल शोषण के 92,000 मामले दर्ज किए गए थे। भारत में लीगल सर्विसेज अनुसार, हर घंटे चार लड़कियां देहव्यापार में धकेल दी जाती हैं, जिनमें से तीन उनकी इच्छा के विरुद्ध होती हैं। 2019 में, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों से पता चला कि भारत में 1,19,617 बच्चे लापता बताए गए थे। हर महीने 64,851 बच्चे, महिलाएं और पुरुष लापता हो जाते हैं। भारत में अनुमानित रूप से 300,000 बाल भिखारी हैं। अप्रैल 2020 और जून 2021 के बीच, 9,000 से अधिक बच्चों को तस्करों से बचाया गया।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा जबरन मजदूरी पर नवीनतम रिपोर्ट अनुसार :- दुनियाभर में अनुमानित 40.3 मिलियन पीड़ित आधुनिक गुलामी में फंसे हुए हैं। 27 मिलियन वयस्क और 13 मिलियन बच्चे मानव तस्करी के शिकार हैं। 24.9 मिलियन का जबरन श्रम के लिए शोषण और 15.4 मिलियन संख्या जबरन विवाह से है। दुनिया में प्रति 1,000 लोगों पर 5.4 आधुनिक गुलामी के शिकार हैं। दुनिया भर में तस्करी के शिकार 71 फीसदी महिलाएं और लड़कियां हैं और 29 फीसदी पुरुष और लड़के हैं। आधुनिक गुलामी का शिकार 4 में से 1 बच्चा है। घरेलू काम, निर्माण या कृषि जैसे निजी क्षेत्र में 16 मिलियन लोगों का शोषण किया जाता है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने खुलासा किया है कि सालाना लगभग 40,000 बच्चों का अपहरण किया जाता है, जिनमें से 11,000 का पता नहीं लगाया जा सकता है और भारत में मानव तस्करी का केवल 10% ही अंतर्राष्ट्रीय है, जबकि 90% अंतर्राज्यीय है। हालांकि जबरन और बंधुआ मजदूरी का कोई विश्वसनीय अध्ययन पूरा नहीं हुआ है, गैर सरकारी संगठनों का अनुमान है कि यह समस्या 20 से 65 मिलियन भारतीयों को प्रभावित करती है। मानव तस्करी से अवैध व्यापार करने वालों को सालाना लगभग 150 अरब डॉलर का वैश्विक मुनाफा होता है, जिसमें से 99 अरब डॉलर व्यावसायिक यौन शोषण से आता है।

भारत में मानव तस्करी अपराध प्रतिबंधित कानून :- अनुच्छेद 23 मानव तस्करी और बेगार (बिना भुगतान के जबरन श्रम) को प्रतिबंधित करता है। अनुच्छेद 24 यह 14 साल से कम उम्र के बच्चों को कारखानों और खानों जैसे खतरनाक कामों में रोजगार देने से मना करता है। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) धारा 370 और 370ए मानव तस्करी के खतरे का मुकाबला करने के लिए व्यापक उपाय प्रदान करती है, जिसमें शारीरिक शोषण या किसी भी रूप में यौन शोषण, दासता, या मानव अंगों को जबरन निकालने सहित किसी भी रूप में शोषण के लिए बच्चों की तस्करी शामिल है। धारा 372 और 373 देहव्यापार के उद्देश्य से लड़कियों को बेचने और खरीदने से संबंधित है। अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956 (आईटीपीए) व्यावसायिक यौन शोषण के लिए तस्करी की रोकथाम के लिए प्रमुख कानून है। महिलाओं और बच्चों की तस्करी से संबंधित अन्य विशिष्ट कानून बनाए गए हैं जैसे - बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006, बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम 1976, बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम 1986, मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम 1994। यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम 2012, बच्चों को यौन शोषण और अत्याचार से बचाने के लिए एक विशेष कानून है।

मानव तस्करी एक गंभीर अपराध है। सम्बंधित समस्या होने पर, शक्ति वाहिनी को +91-11-42244224, +91-9582909025 नंबर या राष्ट्रीय हेल्पलाइन चाइल्ड लाइन 1098 पर कॉल करें। इसके अलावा महिला हेल्पलाइन (संकट में) 1091, महिला हेल्पलाइन (घरेलू दुर्व्यवहार) 181, राष्ट्रीय महिला आयोग (घरेलू हिंसा, यौन हिंसा और उत्पीड़न के लिए हेल्पलाइन) 07827170170, राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) 011-26942369, 26944754, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग 011-23385368/09810298900 और राष्ट्रीय महिला आयोग (दिल्ली) में शिकायत दर्ज करने हेतु 011-26944880, 26944883 नंबर पर संपर्क कर सकते है।

थोड़ी सी सावधानियां और जागरूकता द्वारा हम ऐसी समस्याओं से काफी हद तक दूर रह सकते है

1.      मानव तस्करी में शिकार को फांसने के लिए इंटरनेट बहुत बड़ा जरिया है, इंटरनेट का संभलकर उपयोग करें, आधुनिकता के अंधे कुए में गोता लगाने के पहले सीमाएं और सावधानियों को समझ लेना जरुरी है।

2.      बच्चों को इंटरनेट के उपयोग के सही मायने समझाएं।

3.      बच्चो को संस्कार, अच्छे-बुरे का भेद और मानवीय मूल्यों की पहचान करना सिखाएं।

4.      भावनाओं में बह कर या गुस्से में कोई भी अनुचित निर्णय लेने से बचें।

5.      लोगों पर अति शीघ्र भरोसा न करें, खासकर अजनबियों पर।

6.      बुरी संगत से बचें. अच्छे कार्य छोटे हो या बड़े मेहनत करने में कभी न झिझकें।

7.      हर किसी के पास अपना दुखड़ा न रोते रहें, निजी जानकारी साझा न करें।

8.      लोगों से ज्यादा उम्मीदें न लगाएं या उन पर ज्यादा निर्भर न रहें, अपनी मजबूरी को अपनी कमजोरी न बनने दें।

9.      किसी भी विषय पर औरों के दिखावे, लालच, लुभावने बहकावे में न आये, संयम और विवेक से काम लें।

10. अच्छे और बुरे के बिच का फर्क समझना सीखें, लोगों को पहचानना सीखें.

11. अपनी वजह से औरों का कितना भी नुकसान हो, स्वार्थी लोगों को सिर्फ खुद के फायदे से मतलब है, आज के समय में सफेद झूठ को भी सच बताकर बेचा जाता है इसलिए दुनियादारी का ज्ञान रखना बहुत जरूरी हो गया है।

12. किसी भी तरह की समस्या उत्पन्न होने पर जल्द से जल्द प्रशासन या स्वयंसेवी संस्था की मदद लें।

13. हमेशा जागरूक, सावधान और तत्पर रहकर सुरक्षित बने रहें।

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

मानवी तस्करी : गुलाम बनवून निष्पापांना जिवंतपणी यमयातना (जागतिक मानव तस्करी विरोधी दिन विशेष - ३० जुलै) World Anti-Human Trafficking Day Special - 30 July

 

आज देशात समस्यांचा महापूर मोठ्या प्रमाणावर आहे. झपाट्याने वाढणारी महागाई, बेकारी, आर्थिक विषमता, गरिबी, भूक, कुपोषण, रोगराई, प्रदूषण, भेसळ, संस्कृतीहीन वागणूक, डॉलरच्या तुलनेत रुपयाची सातत्याने घसरण, देशावरील वाढते कर्जाचे डोंगर, गुन्हेगारीचा वाढता ग्राफ, भ्रष्टाचार, नैसर्गिक साधनसंपत्तीचे अतिवापर अशा अनेक समस्या समाजाला पोकळी निर्माण करत आहेत. अशा समस्या नवीन समस्यांना जन्म देतात, त्यापैकी "मानवी तस्करी" ही मुख्य समस्या आहे. मानवी तस्करी जगभर मोठ्या प्रमाणावर पसरली आहे, मानवी तस्करी करून प्राण्यांपेक्षाही भयंकर नरक यातना देऊन निष्पाप जीवांना गुलाम बनवून अमानुष वागणूक दिली जाते. पुरुष, महिला आणि सर्व वयोगटातील कोणत्याही पार्श्वभूमीतील मुले या गुन्ह्याला बळी पडू शकतात. हा भारतातील दुसरा सर्वात मोठा संघटित गुन्हेगारी मानला जातो. व्यावसायिक लैंगिक शोषण आणि सक्तीच्या विवाहाच्या उद्देशाने महिला आणि मुलींची देशात तस्करी केली जाते, विशेषत: ज्या भागात लिंग प्रमाण पुरुषांच्या बाजूने खूप कमी आहे. पुरुष आणि मुलांची श्रमिक हेतूने तस्करी केली जाते, मानवी अवयवांची तस्करी केली जाते आणि गिगोलो, मसाज विशेषज्ञ, एस्कॉर्ट इत्यादी म्हणून काम करण्यासाठी तस्करांकडून त्यांचे लैंगिक शोषण केले जाऊ शकते. कारखान्यातील कामगार, घरातील नोकर, भिकारी आणि इतरांच्या रूपात मुलांवर सक्तीचे काम केले जाते. कृषी कामगार, आणि काही दहशतवादी आणि बंडखोर गटांनी सशस्त्र लढाऊ म्हणून वापरले आहेत.

या वर्षी २०२२ ची जागतिक मानवी तस्करी विरोधी दिनाची थीम "तंत्रज्ञानाचा वापर आणि गैरवापर" आहे, जे मानवी तस्करी सक्षम आणि अडथळा आणणारे साधन म्हणून तंत्रज्ञानाच्या भूमिकेवर लक्ष केंद्रित करते, त्यामुळे जागरूकता अत्यंत महत्त्वाची आहे. २०१८ च्या जागतिक गुलामगिरी निर्देशांकानुसार, १६७ देशांपैकी भारत ५३ व्या क्रमांकावर आहे. सध्या १.४ टक्के लोक गुलामगिरीत आहेत. भारतातील सुमारे १८.३ दशलक्ष लोक आधुनिक गुलामगिरीत जगत होते. कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशनने केलेल्या सर्वेक्षणानुसार, असे आढळून आले आहे की २१ % कुटुंबे त्यांच्या वाढत्या आर्थिक संकटामुळे मुलांना बालमजुरीमध्ये पाठवण्यास इच्छुक आहेत. जागतिक स्तरावर, २०२० मध्ये, सेव्ह द चिल्ड्रनचा अंदाज होते की गरिबीमुळे आणखी ५००,००० अल्पवयीन मुलींना जबरदस्तीने लग्नासाठी भाग पाडले जाईल. कोरोनाकाळात जून आणि जुलैमध्ये लॉकडाऊन शिथिल करण्यात आले तेव्हा मागील वर्षीच्या तुलनेत १७% बालविवाहांमध्ये वाढ झाली. टाळेबंदीच्या काळात, ११ दिवसांत, सरकारी हेल्पलाइनवर ९२,००० बाल अत्याचाराच्या प्रकरणांची नोंद झाली. भारतातील विधी सेवांनुसार, दर तासाला चार मुलींना वेश्याव्यवसाय करण्यास भाग पाडले जाते, त्यापैकी तीन त्यांच्या इच्छेविरुद्ध असतात. २०१९ मध्ये, नॅशनल क्राईम रेकॉर्ड ब्युरोच्या आकडेवारीनुसार भारतात १,१९,६१७ मुले हरवल्याची नोंद झाली आहे. दर महिन्याला ६४,८५१ मुले, महिला आणि पुरुष बेपत्ता होतात. भारतात अंदाजे ३००००० बाल भिकारी आहेत. एप्रिल २०२० ते जून २०२१ दरम्यान, ९००० हून अधिक मुलांची तस्करांपासून सुटका करण्यात आली.

आंतरराष्ट्रीय कामगार संघटनेच्या ताज्या अहवालानुसार

जगभरातील अंदाजे ४०.३ दशलक्ष आधुनिक गुलामगिरीत अडकून बळी पडले आहेत. २७ दशलक्ष प्रौढ आणि १३ दशलक्ष मुले मानवी तस्करीचे बळी आहेत. २४.९ दशलक्ष सक्तीच्या मजुरीसाठी शोषित आहेत आणि १५.४ दशलक्ष सक्तीच्या विवाहामुळे आहेत. जगात प्रति १००० लोकांमागे ५.४ आधुनिक गुलामगिरीचे बळी आहेत. जगभरात, तस्करीच्या बळींपैकी ७१ टक्के महिला आणि मुली आणि २९ टक्के पुरुष आणि मुले आहेत. आधुनिक गुलामगिरीचा बळी ४ मुलांपैकी १ आहे. घरगुती काम, बांधकाम किंवा शेती यासारख्या खाजगी क्षेत्रात १६ दशलक्ष लोकांचे शोषण केले जाते. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोगाने उघड केले आहे की दरवर्षी सुमारे ४०,००० मुलांचे अपहरण केले जाते, त्यापैकी ११,००० सापडत नाहीत आणि भारतात फक्त १०% मानवी तस्करी आंतरराष्ट्रीय आहे, तर ९०% आंतरराज्यीय आहे. सक्तीचे आणि बंधनकारक मजुरांचे कोणतेही विश्वसनीय अभ्यास पूर्ण झालेले नसले तरी, एनजीओचा अंदाज आहे की ही समस्या २० ते ६५ दशलक्ष भारतीयांना प्रभावित करते.

भारतातील मानवी तस्करी गुन्हेगारी संबंधित प्रतिबंध कायदा

·         कलम २३ मानवी तस्करी आणि बेगार (पैसे न देता सक्तीचे श्रम) प्रतिबंधित करते.

·         कलम २४ हे १४ वर्षांपेक्षा कमी वयाच्या मुलांना कारखाने आणि खाणींसारख्या धोकादायक कामात काम करण्यास मनाई करते.

·         भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) कलम ३७० आणि ३७०अ मानवी तस्करीच्या धोक्याचा सामना करण्यासाठी सर्वसमावेशक उपाय प्रदान करते, ज्यामध्ये शारीरिक शोषण किंवा कोणत्याही स्वरूपातील शोषण, लैंगिक शोषण, गुलामगिरी किंवा मानवी अवयव बळजबरीने काढून टाकणे यासह बाल तस्करीचा समावेश आहे.

·         कलम ३७२ आणि ३७३ वेश्याव्यवसायाच्या उद्देशाने मुलींची विक्री आणि खरेदी यांच्याशी प्रतिबंध संबंधित आहे.

·         अनैतिक धंधे (प्रतिबंध) कायदा, १९५६ (आईटीपीए) हा व्यावसायिक लैंगिक शोषणाचा तस्करी रोखण्यासाठी प्रमुख कायदा आहे.

·         स्त्रिया आणि मुलांच्या तस्करीशी संबंधित इतर विशिष्ट कायदे लागू केले गेले आहेत जसे की - बालविवाह प्रतिबंध कायदा २००६, बंधपत्रित कामगार प्रणाली (निर्मूलन) कायदा १९७६, बालकामगार (प्रतिबंध आणि नियमन) कायदा १९८६, मानवी अवयव प्रत्यारोपण कायदा १९९४.

·         लैंगिक गुन्ह्यांपासून मुलांचे संरक्षण (पॉक्सो) कायदा २०१२, लैंगिक शोषण आणि शोषणापासून मुलांचे संरक्षण करण्यासाठी एक विशेष कायदा आहे.

मानवी तस्करी हा गंभीर गुन्हा आहे. संबंधित समस्यांच्या बाबतीत, शक्ती वाहिनीला +९१-११-४२२४४२२४, +९१-९५८२९०९०२५ किंवा राष्ट्रीय हेल्पलाइन चाइल्ड लाईन १०९८ वर कॉल करा. तसेच महिला हेल्पलाइन (संकटात) १०९१, महिला हेल्पलाइन (घरगुती अत्याचार) १८१, राष्ट्रीय महिला आयोग (घरगुती हिंसाचार, लैंगिक हिंसा आणि छळासाठी हेल्पलाइन) ०७८२७१७०१७०, राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) ०११-२६९४२३६९, २६९४४७५४, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ०११-२३३८५३६८/०९८१०२९८९०० आणि राष्ट्रीय महिला आयोग (दिल्ली) मध्ये तक्रार नोंदवण्यासाठी : ०११-२६९४४८८०, २६९४४८८३ या क्रमांकावर संपर्क साधता येईल.

थोडी काळजी आणि जागरुकता ठेवली तर आपण अशा समस्यांपासून दूर राहू शकतो

·         इंटरनेट हे मानवी तस्करीच्या जाळ्यात अडकवण्याचा उत्तम मार्ग आहे, इंटरनेटचा जपून वापर करा, आधुनिकतेच्या आंधळ्या मार्गावर धावण्यापूर्वी मर्यादा आणि खबरदारी समजून घेणे आवश्यक आहे.

·         मुलांना इंटरनेट वापरण्याचा खरा अर्थ शिकवा.

·         मुलांना संस्कार, चांगले-वाईटातील भेद आणि मानवी मूल्ये ओळखायला शिकवा.

·         भावनेच्या आहारी किंवा रागाच्या भरात कोणताही अयोग्य निर्णय घेणे टाळा.

·         लोकांवर फार लवकर विश्वास ठेवू नका, विशेषतः अनोळखी लोकांवर.

·         वाईट संगत टाळा. चांगले काम लहान असो व मोठे त्यांना करण्यात कधीही संकोच करू नका.

·         प्रत्येकाकडे आपले दुःख सांगत बसू नका, वैयक्तिक माहिती सामायिक करू नका.

·         लोकांकडून जास्त अपेक्षा ठेवू नका किंवा त्यांच्यावर जास्त अवलंबून राहू नका, आपल्या मजबुरीला कमजोरी बनू देऊ नका.

·         कोणत्याही ढोंग, लोभ, मोहात पडू नका, संयम आणि विवेकाने वागा.

·         चांगले वाईट यातील फरक समजून घ्यायला शिका, माणसे ओळखायला शिका.

·         स्वत: मुळे इतरांचे कितीही नुकसान झाले तरी स्वार्थी लोकांना फक्त स्वतःच्या फायद्याची काळजी असते, आजच्या काळात असत्य देखील ठामपणे सत्य म्हणून विकले जाते, त्यामुळे दुनियादारीचे ज्ञान असणे अत्यंत गरजेचे झाले आहे.

·         कोणत्याही प्रकारची अडचण आल्यास लवकरात लवकर प्रशासन किंवा स्वयंसेवी संस्थेची मदत घ्या.

·         नेहमी सावध, सतर्क आणि जागृक राहून सुरक्षित रहा.

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

सोमवार, 11 जुलाई 2022

बढ़ती आबादी - समस्याओं की जननी (विश्व जनसंख्या दिवस विशेष - 11 जुलाई 2022) Growing Population – Mother of Problems (World Population Day Special – 11 July 2022)

          वैश्विक जनसंख्या मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व जनसंख्या दिवस एक वार्षिक कार्यक्रम है, जो 1990 से लेकर हर साल 11 जुलाई को मनाया जाता है। इस विशेष दिवस का उद्देश्य विभिन्न जनसंख्या मुद्दों जैसे परिवार नियोजन, लिंग समानता, गरीबी, मातृ स्वास्थ्य, मानवाधिकार, आदि के महत्व के बारे में और बढ़ती जनसँख्या से उत्पन्न समस्याओं के प्रति आम जनता को जागरूक करना है। इस साल विश्व जनसंख्या दिवस २०२२ की थीम “8 बिलियन की दुनिया : सभी के लिए एक लचीले भविष्य की ओर - अवसरों का उपयोग और सभी के लिए अधिकार और विकल्प सुनिश्चित करना" यह है। दुनिया की आबादी को 1 अरब तक बढ़ने में सैकड़ों-हजारों साल लगे, फिर बाद में सिर्फ 200 साल में, यह सात गुना बढ़ गई। 20वीं सदी के मध्य से, दुनिया ने अभूतपूर्व जनसंख्या वृद्धि का अनुभव किया है। 1950 और 2020 के बीच विश्व की जनसंख्या आकार में तीन गुना से अधिक हो गई है। 2011 में, वैश्विक जनसंख्या 7 बिलियन तक पहुंच गई तथा 2021 में लगभग 7.9 बिलियन हो गई, और 2030 में लगभग 8.5 बिलियन, 2050 में 9.7 बिलियन और 2100 में 10.9 बिलियन तक बढ़ने की संभावना है। 

आनेवाले कुछ सालो में भारत, दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश चीन से आगे निकलने के लिए तैयार है। देश में हर साल जनसंख्या में लगभग 1.60 करोड़ की वृद्धि होती है, जिसके लिए लाखो टन खाद्यान्न, 1.9 लाख मीटर कपड़ा और 2.6 लाख घरों और 52 लाख अतिरिक्त नौकरियों की आवश्यकता होती है, साथ ही नैसर्गीक व मानव निर्मीत संसाधनो पर आवश्यकता पुर्ती हेतु भारी दबाव पडता हैं। जिस देश की बडी आबादी 2 डॉलर प्रतिदिन से कम पर जीवन यापन करती हैं, वहां बढ़ती जनसंख्या, खाद्य सुरक्षा की स्थिति को अधिक खराब ही करेगी। 2050 तक दुनिया की लगभग 66 प्रतिशत आबादी शहरों में रह रही होगी। जनसँख्या वृद्धि सीधे आर्थिक विकास, रोजगार, आय वितरण, गरीबी और सामाजिक सुरक्षा को प्रभावित करती हैं। वे स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, आवास, स्वच्छता, पानी, भोजन और ऊर्जा तक सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करने के प्रयासों को भी प्रभावित करती हैं। यूथ इन इंडिया, 2017 की रिपोर्ट के अनुसार, 1971 से 2011 के बीच युवाओं की वृद्धि 16.8 करोड़ से बढ़कर 42.2 करोड़ हो गई।

संयुक्त राष्ट्र, आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग, जनसंख्या प्रभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, 8 जुलाई, 2022 तक भारत की वर्तमान जनसंख्या 1,40,78,73,998 है और विश्व की 7,95,91,50,845 संपूर्ण जनसंख्या है, जो संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम आंकड़ों के वर्ल्डोमीटर विस्तार पर आधारित है। भारत की जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या के 17.7 प्रतिशत है, लेकिन विश्व के मीठे पानी के संसाधनों का केवल 4 प्रतिशत है। कुल भूमि क्षेत्र 2,973,190 वर्ग किमी. है, अर्थात भारत विश्व के कुल क्षेत्रफल के 2.4 प्रतिशत भाग हमारे हिस्से है। खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार, भारत की लगभग 14.8 प्रतिशत (22.4 करोड) आबादी कुपोषित है। भारत में पांच साल से कम उम्र के 69 फीसदी बच्चों की मौत कुपोषण के कारण होती हैं, कुपोषण के अंतर्निहित कारणों में से एक गरीबी है और गरीबी उन्मूलन कोसों दूर है। भारत में डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात 1:1456 है, जबकि डब्ल्यूएचओ की 1:1000 की सिफारिश है। संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक शहरीकरण संभावनाओं अनुसार, देश में मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों की संख्या 10.40 करोड़ या भारत की कुल जनसंख्या का 9 प्रतिशत होने का अनुमान है। झुग्गी-झोपड़ी के प्रत्येक 10 में से छह घरों में जल निकासी की समुचित व्यवस्था नहीं है। भारत में 63 प्रतिशत झुग्गी-झोपड़ी घर या तो बिना जल निकासी कनेक्शन के हैं या खुले नालों से जुड़े हैं। दुनिया के अविकसित देशों की तरह भारत में भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिन्हें जीवित रहने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं मिलता है। इतना ही नहीं, उन्हें जो भोजन मिलता है उसमें पोषक तत्वों की भी कमी होती है। प्यू रिसर्च सेंटर ने बताया था कि भारत में ऐसे लोगों की संख्या पिछले एक साल में तीव्र गति से बढ़ गई हैं जो 150 रुपये प्रति दिन (क्रय शक्ति के आधार पर आय) नहीं कमा सके। सालभर में ऐसे लोगों की संख्या में छह करोड़ की वृद्धि हुई है, जिससे कुल गरीबों की संख्या 13.4 करोड़ हो गई है।

116 देशों के ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2021 में भारत 2020 के 94वें स्थान से फिसलकर अब 101वें स्थान पर आ गया है। भारत अपने अधिकांश पड़ोसियों से पीछे है। पाकिस्तान 92वें, नेपाल 77वें, बांग्लादेश 76वें और श्रीलंका 65वें स्थान पर है। गरीबी उन्मूलन के लिए काम करने वाली संस्था ऑक्सफैम के मुताबिक, दुनिया भर में हर मिनट भूख से 11 लोगों की मौत हो जाती है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट 2021 अनुसार, भारत में, घरेलू खाद्य अपशिष्ट प्रतिवर्ष 50 किलोग्राम या देशभर में प्रतिवर्ष कुल 68,760,163 टन होने का अनुमान है। यूएनईपी रिपोर्ट मुताबिक 2019 में अनुमानित 93.1 करोड़ टन खाना बर्बाद हुआ। उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने खुलासा किया है कि पिछले पांच वर्षों में 38,000 मीट्रिक टन से अधिक खाद्यान्न का नुकसान हुआ है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति 2022 रिपोर्ट में कहा गया कि वर्ष 2021 में दुनियाभर में भूख से प्रभावित लोगों की संख्या 2021 में बढ़कर 82.8 करोड़ हो गई।

प्रदूषण, खाद्यमिलावट, ग्लोबल वार्मिंग, खतरनाक ई-कचरा, प्रदूषित वायु-जल, उपजाऊ खेत की कमी, प्राकृतिक संसाधनों का अधिक उपयोग, प्राकृतिक संसाधनों की कमी, वनों की कटाई, जंगलों का विनाश, वन्य जीवों और मनुष्यों के बीच बढ़ते टकराव, ईंधन की बढ़ती खपत, कभी अकाल, कभी बाढ़, शुद्ध हवा और पानी की कमी, पर्यावरण का क्षरण, बढ़ते कंक्रीट के जंगल, बेरोजगारी, भुखमरी, महंगाई, जिंदगी के लिए संघर्ष और बढ़ती गंभीर बीमारियाँ इन सभी समस्याओं का कारण बढ़ती जनसंख्या है, ज्यादा जनसंख्या अर्थात ज्यादा आवश्यकताये। आज भी हमारे समाज के कई असहाय लोग, भिखारी, बीमार, विक्षिप्त लोग, असहाय बच्चे सड़कों पर कूड़े में, खराब भोजन के ढेर में खाना चुनते नजर आते है, यह हमारे लिए बड़ी शर्म की बात है। जनसंख्या वृद्धि के कारण मलिन बस्तियों, गंदा वातावरण, अशिक्षा, गरीबी, अपर्याप्त पोषण, उचित परवरिश की कमी, आर्थिक असमानता जैसी गंभीर समस्याएं हैं, ऐसी खराब परिस्थितियों में बच्चों के जीवन का संघर्ष बचपन से ही शुरू हो जाता है।

 आज हम विश्व में सबसे बड़ी युवा शक्ति वाला देश कहलाते है, अगर युवाओं को उचित संसाधन, रोजगार, व्यवसाय, शिक्षा, स्वास्थसेवा, उज्जवल भविष्य के लिए सही नियोजन और सभी के लिए समान अवसर मिले तो युवाशक्ति देश को विश्वगुरु बना सकती है। वर्ना यही युवाशक्ति बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी, संसाधनों के अभाव में गलत दिशा में अग्रसर होगी और समाज के लिए समस्या बढ़ाएगी। आज हमारे देश में ऐसी समस्या आम हो गयी है, युवाओं में अपराध का ग्राफ बहुत बढ़ गया है। क्या हम वास्तव में अपने जीवन में एक नवजात शिशु के जन्म का आनंद उठा सकते हैं जबकि हम जानते हैं कि हम अपने बच्चे को जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं भी नहीं दे पाएंगे? आज के भागम भाग जैसे माहौल में धनी व्यक्ति के पास समय नहीं है, गरीब व्यक्ति दो वक़्त की रोटी के इंतजाम में लगा रहता है, कोई जिम्मेदारी से बंधा है तो कोई मज़बूरी से बंधा है। आधुनिकता का खुमार सभी पर छाया हुआ है, बच्चे तो बच्चे लेकिन बड़ों द्वारा भी संस्कारों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जाती है। परन्तु बच्चो को जन्म देने के बाद उस बच्चे के सुजान नागरिक बनने तक की पूरी जिम्मेदारी माता-पिता की होती है, बच्चों का भविष्य पालको के हाथों में होता है। अपनी जिम्मेदारी से हम पल्ला झाड़ नहीं सकते। बच्चों के जन्म के पहले उनके भविष्य के बारे में गंभीरता से विचार करने की आज पालको को बहुत आवश्यकता है।

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

वाढती लोकसंख्या : समस्यांची जननी (जागतिक लोकसंख्या दिन विशेष - ११ जुलै २०२२) Growing Population: Mother of Problems (World Population Day Special - 11 July 2022)

         जागतिक लोकसंख्या दिन हा जागतिक लोकसंख्येच्या समस्यांबद्दल जागरुकता वाढवणारा वार्षिक कार्यक्रम आहे, जो १९९० पासून दरवर्षी ११ जुलै रोजी साजरा केला जातो. या विशेष दिवसाचा उद्देश कुटुंब नियोजन, लैंगिक समानता, गरिबी, माता आरोग्य, मानवी हक्क इत्यादींसारख्या विविध लोकसंख्येच्या मुद्द्याबद्दल जागरूकता आणि वाढत्या लोकसंख्येमुळे निर्माण होणाऱ्या समस्यांबाबत सर्वसामान्यांना जाणीव करून देणे आहे. या वर्षीच्या जागतिक लोकसंख्या दिन २०२२ ची थीम आहे "८ अब्जांचे जग: सर्वांसाठी एक लवचिक भविष्याकडे - संधीचा वापर, सर्वांसाठी हक्क आणि पर्याय सुनिश्चित करणे". जगाची लोकसंख्या १ अब्जापर्यंत वाढण्यास हजारो वर्षे लागली, नंतर केवळ २०० वर्षांत ती सात पटीने वाढली. २० व्या शतकाच्या मध्यापासून, जगाने अभूतपूर्व लोकसंख्या वाढ अनुभवली आहे. १९५० ते २०२० दरम्यान जगाची लोकसंख्या तिपटीने वाढली आहे. २०११ मध्ये, जागतिक लोकसंख्या ७ अब्जांवर पोहोचली आणि २०२१ मध्ये ती सुमारे ७.९ अब्ज पर्यंत वाढ झाली आणि २०३० मध्ये सुमारे ८.५ अब्ज, २०५० मध्ये ९.७ अब्ज आणि २१०० मध्ये १०.९ अब्ज इतकी वाढण्याची अपेक्षा आहे.

येत्या काही वर्षांत भारत जगातील सर्वाधिक लोकसंख्या असलेला देश चीनला मागे टाकणार आहे. देशात दरवर्षी सुमारे १.६० कोटी लोकसंख्येची वाढ होत आहे, ज्यासाठी लाखो टन अन्नधान्य, १.९ लाख मीटर कापड, २.६ लाख घरे आणि ५२ लाख अतिरिक्त नोकऱ्यांची आवश्यकता आहे, तसेच नैसर्गिक आणि मानव निर्मित संसाधनांवर लोकसंख्येची गरज पूर्ण करण्यासाठी दबाव पडतो. ज्या देशात मोठी लोकसंख्या दररोज २ डॉलर पेक्षा कमी वर जगते, तेथे वाढणारी लोकसंख्या अन्न सुरक्षेची परिस्थिती आणखी बिघडवेल. २०५० पर्यंत, जगातील सुमारे ६६ टक्के लोकसंख्या शहरांमध्ये राहणार आहे. लोकसंख्या वाढीचा थेट परिणाम आर्थिक वाढ, रोजगार, उत्पन्न वितरण, गरिबी आणि सामाजिक सुरक्षिततेवर होतो. ते आरोग्य सेवा, शिक्षण, गृहनिर्माण, स्वच्छता, पाणी, अन्न आणि उर्जेवर सार्वत्रिक प्रवेश सुनिश्चित करण्याच्या प्रयत्नांवर देखील प्रभाव पाडतात. युथ इन इंडिया, २०१७ च्या अहवालानुसार, १९७१ ते २०११ दरम्यान तरुणांची वाढ १६८ दशलक्ष वरून ४२२ दशलक्ष झाली आहे.

संयुक्त राष्ट्रसंघ, आर्थिक आणि सामाजिक व्यवहार विभाग अंतर्गत, लोकसंख्या विभाग यांनी जारी केलेल्या आकडेवारीनुसार, ८ जुलै २०२२ पर्यंत भारताची सध्याची लोकसंख्या १,४०,७८,७३,९९८ आहे आणि जगाची एकूण लोकसंख्या ७,९५,९१,५०,८४५ आहे. जे नवीनतम संयुक्त राष्ट्र डेटाच्या वर्ल्डोमीटर तपशीलावर आधारित आहे. भारताची लोकसंख्या जगाच्या लोकसंख्येच्या १७.७ टक्के आहे, परंतु जगातील गोड्या पाण्याच्या संसाधनांपैकी फक्त ४ टक्के आहे. एकूण जमीन क्षेत्र २,९७३,१९० चौ. किमी आहे. म्हणजेच जगाच्या एकूण क्षेत्रफळाच्या २.४ टक्के हिस्सा भारताचा आहे. अन्न आणि कृषी संघटना (एफएओ) च्या मते, भारतातील सुमारे १४.८ टक्के (जवळपास २२.४ कोटी) लोकसंख्या कुपोषित आहे. भारतातील पाच वर्षांखालील बालकांच्या मृत्यूंपैकी ६९% मृत्यू कुपोषणामुळे होतात, गरिबी हे कुपोषणाचे एक मूळ कारण आहे आणि गरिबी निर्मूलन अद्याप खूप दूर आहे. भारतातील डॉक्टर-लोकसंख्येचे प्रमाण १:१४५६ आहे, डब्ल्यूएचओच्या शिफारसी १:१००० च्या तुलनेत. युनायटेड नेशन्स ग्लोबल अर्बनायझेशन प्रॉस्पेक्ट्सनुसार, देशातील झोपडपट्ट्यांमध्ये राहणाऱ्या लोकांची संख्या १०४ दशलक्ष किंवा भारताच्या एकूण लोकसंख्येच्या ९ टक्के असल्याचा अंदाज आहे. प्रत्येक १० झोपडपट्ट्यांपैकी सहा घरांमध्ये पाण्याचा निचरा करण्याची योग्य व्यवस्था नाही. भारतातील ६३ टक्के झोपडपट्टी घरे एकतर ड्रेनेज कनेक्शन नसलेली आहेत किंवा उघड्या नाल्यांना जोडलेली आहेत. जगातील अविकसित देशांप्रमाणे भारतातही अशा लोकांची संख्या मोठी आहे ज्यांना जगण्यासाठी पुरेसे अन्न मिळत नाही. एवढेच नाही तर त्यांना मिळणाऱ्या अन्नातही पोषक तत्वांचा अभाव असतो. प्यू रिसर्च सेंटरने अहवाल दिला होता की, भारतातील जे लोक दररोज १५० रुपये कमवू शकत नाहीत (खरेदी शक्तीवर आधारित उत्पन्न) त्यांची संख्या गेल्या एका वर्षात झपाट्याने वाढली आहे. अशा लोकांची संख्या एका वर्षात सहा कोटींनी वाढली असून एकूण गरिबांची संख्या १३४ दशलक्ष झाली आहे.

११६ देशांच्या ग्लोबल हंगर इंडेक्स २०२१ मध्ये, भारत २०२० मध्ये ९४ व्या स्थानावरून १०१ व्या स्थानावर घसरला आहे. भारत आपल्या बहुतेक शेजाऱ्यांपेक्षा मागे आहे. पाकिस्तान ९२व्या, नेपाळ ७७व्या, बांगलादेश ७६व्या आणि श्रीलंका ६५व्या स्थानावर आहे. गरीबी निर्मूलनासाठी काम करणाऱ्या ऑक्सफॅम या संस्थेच्या म्हणण्यानुसार, जगभरात दर मिनिटाला ११ लोक भुकेने मरतात. संयुक्त राष्ट्रांच्या पर्यावरण कार्यक्रमाच्या २०२१ च्या अन्न कचरा निर्देशांक अहवालानुसार, भारतात, घरगुती अन्नाचा कचरा दरवर्षी ५० किलो किंवा देशभरात एकूण ६८,७६०,१६३ टन इतका असल्याचा अंदाज आहे. यूएनईपी च्या अहवालानुसार, २०१९ मध्ये अंदाजे ९३१ दशलक्ष टन अन्न वाया गेले. गेल्या पाच वर्षांत ३८,००० मेट्रिक टनांहून अधिक अन्नधान्य वाया गेल्याचे ग्राहक व्यवहार, अन्न आणि सार्वजनिक वितरण मंत्रालयाने उघड केले आहे. संयुक्त राष्ट्रांच्या अन्न सुरक्षा आणि पोषण स्थिती २०२२ अहवालात म्हटले आहे की २०२१ मध्ये जगभरात भुकेने ग्रस्त लोकांची संख्या ८२८ दशलक्ष झाली आहे.

प्रदूषण, अन्न भेसळ, ग्लोबल वॉर्मिंग, धोकादायक ई-कचरा, प्रदूषित हवा-पाणी, सुपीक शेतजमिनीचा अभाव, नैसर्गिक संसाधनांचा अतिवापर व ऱ्हास, वृक्षतोड, जंगलांचा नाश, वन्यजीव आणि मानव यांच्यातील वाढता संघर्ष, इंधनाचा वाढता वापर. कधी दुष्काळ, कधी पूर, स्वच्छ हवा आणि पाण्याचा अभाव, पर्यावरणाचा ऱ्हास, वाढती काँक्रीटची जंगले, बेरोजगारी, भूक, महागाई, जीवनसंघर्ष आणि वाढते गंभीर आजार या सर्व समस्यांचे कारण वाढती लोकसंख्या आहे. जास्त लोकसंख्या म्हणजे अधिक गरजा. आजही आपल्या समाजातील अनेक असहाय्य लोक, भिकारी, आजारी, हतबल लोक, असहाय मुले रस्त्यावरील कचरा, खराब झालेल्या अन्नाच्या ढिगाऱ्यातून अन्न निवडताना दिसतात, ही आपल्यासाठी अत्यंत लाजिरवाणी बाब आहे. लोकसंख्या वाढीमुळे झोपडपट्ट्या, घाणेरडे वातावरण, निरक्षरता, गरिबी, अपुरे पोषण, योग्य संगोपनाचा अभाव, आर्थिक विषमता अशा गंभीर समस्या आहेत, अशा गरीब परिस्थितीत लहानपणापासूनच मुलांच्या जीवनाचा संघर्ष सुरू होतो.

आज भारत जगातील सर्वात मोठी युवा शक्ती असलेला देश म्हटले जाते, युवकांना योग्य साधनसंपत्ती, रोजगार, व्यवसाय, शिक्षण, आरोग्य सेवा, उज्वल भविष्यासाठी योग्य नियोजन आणि सर्वांना समान संधी मिळाल्या तर युवाशक्ती देशाला महाशक्ति बनवू शकते. अन्यथा ही युवाशक्ती बेरोजगारी, महागाई, गरिबी, साधनांची कमतरता यामुळे चुकीच्या दिशेने वाटचाल करेल आणि समाजासमोरील समस्या वाढवेल. आज आपल्या देशात अशी समस्या सामान्य झाली आहे, तरुणांमधील गुन्हेगारीचा प्रमाण खूप वाढला आहे. आपण आपल्या बाळाला जीवनाच्या मूलभूत गरजा देखील पुरवू शकणार नाही हे माहीत असताना आपण आपल्या आयुष्यात नवजात बाळाच्या जन्माचा आनंद खरोखरच घेऊ शकतो का? आजच्या भागमभागासारख्या वातावरणात श्रीमंत माणसाला वेळ नाही, गरीब माणूस दोन वेळच्या भाकरीची व्यवस्था करण्यात धडपडत आहे, कुणी जबाबदारीने तर कुणी मजबुरीने बांधलेले आहे. आधुनिकतेची उधळण प्रत्येकावर पडली आहे, आता लहान मुलांकडूनच नाही तर मोठे वडिलधाऱ्यांकडूनही देखील मोठ्याप्रमाणावर संस्कारांची अवहेलना केली जात आहे. परंतु, मुलांना जन्म दिल्यानंतर, ते मूल सुसंस्कृत नागरिक होईपर्यंत त्या मुलाची संपूर्ण जबाबदारी पालकांची असते, मुलांचे भविष्य पालकांच्या हातात असते. आपण आपली जबाबदारी झटकू शकत नाही. मुलांच्या जन्मापूर्वी पालकांनी त्यांच्या भविष्याचा गांभीर्याने विचार करण्याची आज नितांत गरज आहे.

डॉ. प्रितम भि. गेडाम