सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

हजारो मातृ भाषाओं का अस्तित्व खत्म होने के कगार पर (अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस - 21 फेब्रुवारी 2022) Thousands of mother tongues are on the verge of extinction (International Mother Language Day - 21 February 2022)


बचपन में जो हम पहली भाषा सीखते है, जिस भाषाई परिवेश में बढ़ते है वह बोली-भाषा मातृभाषा कहलाती है, यह भाषा हमें घर परिवार के सदस्यों से प्राप्त होती है, साथ ही नाते-रिश्तो के लोगों द्वारा यह मातृभाषा बढ़ती जाती है। हर साल 21 फेब्रुवारी को “अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस” के रूप में संपुर्ण विश्व में भाषाई सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषावाद को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है। 2022 के अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की थीम, "बहुभाषी शिक्षा के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग : चुनौतियां और अवसर" है, बहुभाषी शिक्षा को आगे बढ़ाने, सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षण और सीखने के विकास का समर्थन करने के लिए प्रौद्योगिकी की संभावित भूमिका को बढ़ाना है।

 16 मई 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने संकल्प में सदस्य राष्ट्रों से "दुनिया के लोगों द्वारा उपयोग की जाने वाली सभी भाषाओं के बचाव और सुरक्षा को बढ़ावा देने" का आह्वान किया। इसी संकल्प द्वारा, महासभा ने बहुभाषावाद और बहुसंस्कृतिवाद के माध्यम से विविधता और अंतर्राष्ट्रीय समझ में एकता को बढ़ावा देने के लिए 2008 को अंतर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष के रूप में घोषित किया और संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन को प्रमुख एजेंसी के रूप में नामित किया। यूनेस्को अनुसार वर्तमान में कम से कम 2680 देशी भाषाओं के लुप्त होने का खतरा है। हर दो हफ्ते में एक भाषा अपने साथ पूरी सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत लेकर गायब हो जाती है। डिजिटल दुनिया में सौ से भी कम भाषाओं का उपयोग किया जाता है।

भाषा जनसंख्या का एक महत्वपूर्ण गुण है, और भारत जैसे बहु-भाषाई और बहु-जातीय भूमि में इसकी बहुत प्रासंगिकता और महत्व है, देश में "कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी" ऐसी सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषावाद का अस्तित्व है। भारत की जनगणना एक सदी से भी अधिक समय से लगातार दशकीय जनगणनाओं में एकत्रित और प्रकाशित भाषा डेटा का सबसे समृद्ध स्रोत रही है। 2011 की जनगणना की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत देश में मातृभाषा के रूप में 19,569 भाषाएँ या बोलियाँ बोली जाती हैं। 121 भाषाएँ हैं जो 10,000 या उससे अधिक लोगों द्वारा बोली जाती हैं, जिनकी आबादी 121 करोड़ है। हालांकि, देश में 96.71 प्रतिशत आबादी की मातृभाषा 22 अनुसूचित भाषाओं में से एक है। संविधान की आठवीं अनुसूची में निम्नलिखित 22 भाषाएँ शामिल हैं- असमिया, बंगाली, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगु, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली और डोगरी।

वर्ल्ड डाटा डॉट इन्फो प्रोजेक्ट दर्शाता है कि, विश्वस्तर पर सबसे ज्यादा बोली जानेवाली शीर्ष पांच मातृभाषा निम्नलिखित है - चीनी 1,349 मिलियन (17.4%), हिन्दी 566 मिलियन (7.3%), स्पेनिश 453 मिलियन (5.8%), अंग्रेज़ी 409 मिलियन (5.3%), अरबी 354 मिलियन (4.6%) अर्थात यह विश्व के 40.4 प्रतिशत लोगों की मातृभाषा है। उच्च भाषाई विविधता का एक क्षेत्र पापुआ-न्यू गिनी है, जहां लगभग 3.9 मिलियन की आबादी द्वारा बोली जाने वाली अनुमानित 832 भाषाएं हैं। इससे वक्ताओं की औसत संख्या लगभग 4,500 हो जाती है, जो संभवत: दुनिया के किसी भी क्षेत्र में सबसे कम है। ये भाषाएँ 40 से 50 अलग-अलग परिवारों से संबंधित हैं। विश्व स्तर पर छोटे-छोटे देशो की मातृभाषायें भी सभी ओर प्रचलित है, शिक्षा, व्यवसाय और हर क्षेत्र में, यहाँ तक की डिजिटल स्वरुप में भी उन भाषाओं में बड़े स्तर पर कार्य किये जाते है, जबकि दुनिया में दूसरे क्रमांक का सबसे बड़ी आबादी वाले हमारे देश की हिंदी भाषा, हिंदी दिवस और हिंदी पखवाड़ा या कुछ कार्यक्रम मनाने तक सिमित नजर आती है। अगर हम ही अपने मातृभाषाओं को प्रोत्साहन नहीं देंगे तो दूसरो से क्या उम्मीद करेंगे। हमारे देश में अधिकतर लोग अपनी मातृभाषा में बात करने को कतराते है, जबकि प्रत्येक नागरिक को खुद के मातृभाषा पर गर्व महसूस होना चाहिए। आज हम जिस आधुनिक और उन्नत समाज में रह रहे हैं, उसमें कुछ लोग इतने छोटे सोच के हो गए हैं कि अगर कोई व्यक्ति अपनी मातृभाषा में बोलता है, तो उसके शैक्षिक कौशल को कम करके आंका जाता है। अगर हम खुद अपनी मातृभाषा को बढ़ावा न देकर, मातृभाषा में बात करने को शर्म महसूस करेंगे, तो विश्व में भाषाई और सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषावाद का अस्तित्व ही हम खुद खत्म कर देंगे, वैसे भी तेजी से भाषाएँ लुप्त हो रही है।

बच्चे की मातृभाषा में प्रारंभिक स्कूली शिक्षा, सीखने में सुधार कर सकती है, छात्रों की भागीदारी बढ़ा सकती है और स्कूल छोड़ने वालों की संख्या को कम कर सकती है, जैसा कि दुनिया भर से सबूतों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण में बताया गया है, साथ ही नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी सिफारिश की गई है। माता-पिता अपने बच्चों को शिक्षा की गुणवत्ता की परवाह किए बिना 'अंग्रेजी-माध्यम' स्कूलों में भेजना पसंद करते हैं क्योंकि यह धारणा है कि अंग्रेजी भाषा की महारत बाद के जीवन में सफलता सुनिश्चित करती है। बच्चे जिस भाषा को अच्छी तरह समझते जानते है उस भाषा में शिक्षा से बच्चों में एक सकारात्मक और निडर वातावरण निर्मित होता है। बच्चों में उच्च आत्म-सम्मान होता है" तभी वह अच्छी शिक्षा कहलाती है। अगर बच्चे को ऐसी भाषा में पढ़ाया जाता है जिसे वे नहीं समझते हैं, तो परिणाम विपरीत होंगे। यदि ऐसी भाषा में पढ़ाया जाता है, जो समझ नहीं आती है तो इसके परिणामस्वरूप रटकर याद किया जाता है और इसे कॉपी करके लिखा जाता है। प्रारंभिक वर्षों में मातृभाषा की उपेक्षा करने वाले शिक्षा के मॉडल अनुत्पादक, अप्रभावी हो सकते हैं और बच्चों के सीखने पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 में यह भी कहा गया है कि जहां तक संभव हो, स्कूल में शिक्षा का माध्यम बच्चे की मातृभाषा होनी चाहिए।

लोगों की सोच और भावनाओं को तैयार करने में मातृभाषा महत्वपूर्ण है। अपनी मातृभाषा को अच्छी तरह जानना गर्व की बात है। यह आत्मविश्वास को बढ़ाती और व्यक्ति के दिमाग में जागरूकता पैदा करती है जबकि उन्हें बेहतर तरीके से अपनी सांस्कृतिक पहचान से जुड़ने में मदद करती है। किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को परिभाषित करने में मातृभाषा का बहुत बड़ा सकारात्मक प्रभाव होता है। मातृभाषा बौद्धिक विकास के साथ, अतिरिक्त सीखने के लिए एक मजबूत आधार विकसित करती है, वाणिज्यिक लाभ, संचार कौशल विकसित करना और समझना, व्यवसाय व नौकरी के अवसर पैदा करती है, मजबूत पारिवारिक बंधनों का विकास करती है, मातृभाषा गौरवास्पद महसूस कराती है। शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए भाषा नीतियों को मातृभाषा सीखने पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

यदि आप किसी व्यक्ति से उस भाषा में बात करते हैं जिसे वह समझता है, तो आपकी बात उसके दिमाग में जाती है। अगर आप उससे उसकी भाषा में बात करते हैं तो आपकी बात उसके दिल तक जाती है - नेल्सन मंडेला

डॉ. प्रितम भी. गेडाम

मातृभाषा प्रत्येकासाठी अभिमानाची बाब (आंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिन - 21 फेब्रुवारी 2022) Mother tongue is a matter of pride for everyone (International Mother Language Day - 21 February 2022)

 

आपण लहानपणी जी पहिली भाषा शिकतो, ज्या भाषिक वातावरणात आपण मोठे होतो, त्या बोलीभाषेला मातृभाषा म्हणतात, ही भाषा आपल्याला कुटुंबातील सदस्यांकडून मिळते, तसेच नातेवाईकांकडून ही मातृभाषा वाढत जाते. जगभरात भाषिक सांस्कृतिक विविधता आणि बहुभाषिकतेला प्रोत्साहन देण्यासाठी दरवर्षी 21 फेब्रुवारी हा दिवस "आंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिन" म्हणून साजरा केला जातो. 2022 च्या आंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिनाची थीम "बहुभाषिक शिक्षणासाठी तंत्रज्ञानाचा वापर : आव्हाने आणि संधी" आहे, बहुभाषिक शिक्षणाच्या प्रगतीमध्ये तंत्रज्ञानाची संभाव्य भूमिका वाढवणे, सर्वांसाठी दर्जेदार शिक्षण आणि शिक्षणाच्या विकासास समर्थन देणे.

16 मे 2007 रोजी, युनायटेड नेशन्स जनरल असेंब्लीने आपल्या ठरावात सदस्य राष्ट्रांना "जगातील लोकांद्वारे वापरल्या जाणाऱ्या सर्व भाषांच्या संरक्षण आणि संरक्षणास प्रोत्साहन देण्याचे" आवाहन केले. त्याच ठरावाद्वारे, बहुभाषिकता आणि बहुसांस्कृतिकतेद्वारे विविधतेतील एकता आणि आंतरराष्ट्रीय समज वाढवण्यासाठी 2008 हे आंतरराष्ट्रीय भाषा वर्ष म्हणून महासभेने घोषित केले आणि युनायटेड नेशन्स एज्युकेशनल, सायंटिफिक आणि कल्चरल ऑर्गनायझेशनला प्रमुख एजन्सी म्हणून नियुक्त केले. युनेस्कोच्या म्हणण्यानुसार किमान 2680 देशी भाषा सध्या नामशेष होण्याच्या धोक्यात आहेत. दर दोन आठवड्यांनी एक भाषा तिच्या संपूर्ण सांस्कृतिक आणि बौद्धिक वारशासह नाहीशी होत आहे.

दर थोड्या अंतरावर भाषा बदलते, अशी सांस्कृतिक विविधता आणि बहुभाषिकता देशात आहे. भाषा हा लोकसंख्येचा एक महत्त्वाचा गुणधर्म आहे आणि भारतासारख्या बहुभाषिक आणि बहु-वांशिक भूमीत तिचे खूप महत्त्व आहे. भारताची जनगणना ही एका शतकाहून अधिक काळ सलग दशकीय जनगणनेमध्ये संकलित आणि प्रकाशित झालेल्या भाषा डेटाचा सर्वात समृद्ध स्रोत आहे. 2011 च्या जनगणनेच्या अहवालानुसार भारतात 19569 भाषा किंवा बोली मातृभाषा म्हणून बोलल्या जातात. 10,000 किंवा त्याहून अधिक लोक 121 भाषा बोलतात, ज्यांची लोकसंख्या 121 कोटी आहे. तथापि, देशातील 96.71 टक्के लोकांची मातृभाषा ही 22 अनुसूचित भाषांपैकी एक आहे. संविधानाच्या आठव्या अनुसूचीमध्ये खालील 22 भाषांचा समावेश करण्यात आला आहे - आसामी, बंगाली, गुजराती, हिंदी, कन्नड, काश्मिरी, कोकणी, मल्याळम, मणिपुरी, मराठी, नेपाळी, उडिया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिळ, तेलगू, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली आणि डोगरी.

वर्ल्ड डाटा डॉट इन्फो प्रकल्प दर्शवितो की जागतिक स्तरावर सर्वाधिक बोलल्या जाणाऱ्या पहिल्या पाच मातृभाषा :- चीनी 1,349 दशलक्ष (17.4%), हिंदी 566 दशलक्ष (7.3%), स्पॅनिश 453 दशलक्ष (5.8%), इंग्रजी 409 दशलक्ष (5.3%), व अरबी 354 दशलक्ष (4.6%) आहेत, म्हणजे जगाच्या लोकसंख्येच्या 40.4 टक्के लोकांची मातृभाषा ह्या पांच आहे. पापुआ-न्यू गिनी हे उच्च भाषिक विविधतेचे क्षेत्र आहे, सुमारे 3.9 दशलक्ष लोकसंख्येद्वारे अंदाजे 832 भाषा बोलल्या जातात, हे वक्त्यांची सरासरी संख्या सुमारे 4,500 वर आणते, जी कदाचित जगातील कोणत्याही प्रदेशापेक्षा सर्वात कमी आहे. या भाषा 40 ते 50 वेगवेगळ्या कुटुंबांच्या आहेत. छोट्या देशांच्या मातृभाषाही जागतिक स्तरावर प्रचलित आहेत, शिक्षण, व्यवसाय आणि प्रत्येक क्षेत्रात अगदी डिजिटल स्वरूपातही त्या भाषांमध्ये मोठ्या प्रमाणावर काम केले जाते, तर जगातील दुसऱ्या क्रमांकाची लोकसंख्या असलेल्या आपल्या देशातील हिंदी, मराठी व इतर भाषा केवळ दिनविशेष आणि काही कार्यक्रम साजरे करण्यापुरती आपल्याला आठवण येते. आपण आपल्या मातृभाषेला प्रोत्साहन दिले नाही तर इतरांकडून काय अपेक्षा ठेवणार? आपल्या देशातील बहुतेक लोक आपल्या मातृभाषेत बोलण्यास लाजतात, जेव्हाकी प्रत्येक नागरिकाला आपल्या मातृभाषेचा अभिमान वाटला पाहिजे. आज आपण ज्या आधुनिक आणि प्रगत समाजात राहतो त्या समाजात काही लोक इतके लहान मनाचे झाले आहेत की, एखादी व्यक्ती त्यांच्या मातृभाषेत बोलली तर त्यांच्या शैक्षणिक कौशल्याला कमी लेखले जाते. मातृभाषेचा संवर्धन न करून, मातृभाषेत बोलण्याची आपल्यालाच लाज वाटत असेल, तर जगातील भाषिक-सांस्कृतिक वैविध्य आणि बहुभाषिकतेचे अस्तित्व आपणच संपवून टाकू, तसंही भाषा झपाट्याने लोप पावत आहेत.

मुलाच्या मातृभाषेतील प्राथमिक शिक्षणामुळे शिक्षणात सुधारणा होऊ शकते, विद्यार्थ्यांचा सहभाग वाढवू शकतो आणि शाळा गळती कमी करू शकतो, जसे की इंडियास्पेंडनी जगभरातील पुराव्यांचे विश्लेषण करून दर्शविले, नव्या राष्ट्रीय शैक्षणिक धोरणातही याची शिफारस करण्यात आली आहे. इंग्रजी भाषेचे प्रभुत्व पुढील आयुष्यात यश मिळवून देते या विश्वासामुळे पालक आपल्या मुलांना 'इंग्रजी माध्यमाच्या' शाळांमध्ये शिक्षणाचा दर्जा विचारात न घेता पाठवण्यास प्राधान्य देतात. मुलाला चांगल्या प्रकारे समजेल अशा भाषेत शिक्षण दिल्याने मुलांमध्ये सकारात्मक आणि निर्भय वातावरण निर्माण होते. मुलांमध्ये उच्च आत्मसन्मान असतो" तेव्हाच त्याला चांगले शिक्षण म्हणतात. मुलाला समजत नसलेल्या भाषेत शिकवले तर त्याचे उलटे परिणाम होतील. समजत नसलेल्या भाषेत शिकवल्यास त्याचा परिणाम पोपटासारखं रटून अभ्यास करण्यात येतो, अशा अवस्थेत ज्ञान नाही मिळत, फक्त मार्क मिळू शकतात. सुरुवातीच्या काळात मातृभाषेकडे दुर्लक्ष करणारे शिक्षणाचे मॉडेल अनुत्पादक, कुचकामी असू शकतात आणि मुलांच्या शिक्षणावर नकारात्मक परिणाम होऊ शकतो. शिक्षण हक्क कायदा, 2009 असेही नमूद करतो की शक्यतोपर्यंत, शाळेतील शिक्षणाचे माध्यम मुलाची मातृभाषा असावी.

लोकांच्या विचार आणि भावनांना आकार देण्यासाठी मातृभाषा महत्त्वाची असते. आपली मातृभाषा चांगली जाणणे ही अभिमानाची गोष्ट आहे. यामुळे आत्मविश्वास वाढतो आणि व्यक्तीच्या मनात जागरुकता निर्माण होते. त्यांना त्यांच्या सांस्कृतिक ओळखीशी अधिक चांगल्या प्रकारे जोडण्यास मदत होते. एखाद्या व्यक्तीच्या व्यक्तिमत्त्वाची व्याख्या करण्यात मातृभाषेचा मोठा सकारात्मक प्रभाव पडतो. बौद्धिक विकासाबरोबरच, मातृभाषा अतिरिक्त शिक्षणासाठी, व्यावसायिक फायद्यासाठी मजबूत पाया विकसित करते, संवाद कौशल्य आणि समज विकसित करते, व्यवसाय आणि नोकरीच्या संधी निर्माण करते, मजबूत कौटुंबिक बंधने विकसित करते, मातृभाषेचा अभिमान निर्माण करते. शिक्षणाचा दर्जा सुधारण्यासाठी भाषा धोरणांमध्ये मातृभाषा शिकण्यावर भर देणे आवश्यक आहे.

जर तुम्ही एखाद्या व्यक्तीशी त्याला समजेल अशा भाषेत बोललात तर तुमचे शब्द त्याच्या कानात जातात. पण जर तुम्ही त्याच्याशी त्याच्या भाषेत बोललात तर तुमचे शब्द त्याच्या हृदयात जातात - नेल्सन मंडेला

डॉ. प्रितम भी. गेडाम