गुरुवार, 19 अगस्त 2021

सच में हम मानव कहलाने योग्य है? (विश्व मानवता दिवस विशेष - 19 अगस्त 2021) Are we truly worthy of being called human? (World Humanity Day Special - August 19, 2021) (World Humanity Day Special – 19 August 2021)

 

आज के समाज की स्थिति को देखते हुए यह प्रश्न उठता है कि सच में क्या हम इंसान कहलाने के पात्र है? अर्थात जन्म मानव के शरीर में और विचार, कर्म जंगली जानवर से भी बदतर है। भ्रष्टाचार, अपराध, अत्याचार, नशाखोरी, लोभ, अश्लीलता, अनादर, घृणा, झूठ, छल, स्वार्थ लगातार बढ़ रहे हैं जो पूरी मानवता को खोखला कर रहा है। इंसानियत अक्सर हमारे सामने शर्मसार हो जाती है और हम बस तमाशा देखते रहते हैं। लोगों में परोपकार की भावना शून्य होती जा रही है। इंसान से इंसानियत और मानव से मानवता शब्द बना है। मानवता एक सद्गुण है जो मूल रूप से दूसरों के हित संबंधित है। इसमें एक दूसरे के लिए करुणा और प्रेम की भावनाएँ हैं। लोक कल्याण की इच्छा हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। मानवता के प्रति समर्पित होकर नैतिक मूल्यों की रक्षा के लिए ईमानदारी से प्रतिबद्ध हों, मानव जीवन की सार्थकता इसी में निहित है। मानवता मानव का गुणधर्म है जिसके मूल तत्व सत्य, अहिंसा, प्रेम, करूणा, दया, त्याग, पवित्रता, नैतिकता, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा हैं।

हर साल 19 अगस्त को हम विश्व मानवतावादी दिवस के रूप में मनाते हैं। इस विशेष दिवस का उद्देश्य दुनिया भर के असहाय नागरिकों की दुर्दशा के बारे में जागरूकता बढ़ाना है, संघर्षों में फंसे लोगों की मदद करना है, और उन मानवीय कार्यकर्ताओं के लिए सम्मान और समर्थन भी जुटाना है जो मदद करने के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं और कभी-कभी अपनी जिंदगी खो देते हैं। दुनिया भर में करोड़ों लोग युद्ध, गरीबी, भूख, बीमारी, खाद्य समस्याओं, संघर्षों और प्राकृतिक आपदाओं के कारण संकट में हैं और उन्हें मानवीय सहायता की आवश्यकता है। मानव जाति के लिए समर्पण मानवता का परम कर्तव्य है, इसलिए जीतना भी हमसे बन पडे सहायता के लिए आगे आना चाहीए।

समाज में स्वार्थवृत्ति चरम पर और द्वेष भावना हर ओर निहीत प्रतीत होती है। एक रुपये का ही फायदा क्यों न हो, लेकिन मिलावटखोर समाज में मासूमों को स्लो पॉइजन देकर (खाद्य पदार्थों में जानलेवा रसायनो का प्रयोग और खाने लायक न हों ऐसे खाद्य द्वारा) गंभीर बीमारियों से ग्रसित करके तड़पा-तड़पा कर मार डालते है। हर क्षेत्र में अपना काम करवाने के लिए भ्रष्टाचार और सिफारिश की कोशिश की जाती है, अपने फायदे के लिए दूसरे का हक छीन लिया जाता है और कथनी-करनी में अंतर किया जाता है। दुनिया को दिखाने के लिए इंसान का चेहरा अलग और हकीकत में अलग होता है। दौलत तय करती है इंसान की पहचान और हैसियत, लोग गरीबों की नहीं, अमीरों की मदद करना पसंद करते हैं, जबकि गरीब जरूरतमंद हैं। अब तो क्रोध मनुष्य के साथ-साथ ही चलता है जहां थोड़ा भी कमजोर मिलते ही क्रोध उतार दिया जाता है। अगर हर इंसान अपनी नजर में सबसे अच्छा है तो दूसरों की नजर में क्यों नहीं? मनुष्य अक्सर दूसरों के दोष ढूंढने में लगा रहता है दूसरों के सैकड़ों दोष तुरंत नजर आते है लेकिन हम अपने आप को सद्गुणों से परिपूर्ण समझते हैं।

हमेशा बुरी घटनाओं के घटित होने के बाद रैली और प्रदर्शन करके हम शोक व्यक्त करते है, लेकिन कभी आपने यह बुरी घटनाएं ही ना हो इसके लिए भागीदारी की है? जिम्मेदारी के रूप में मैं और मेरा परिवार, कभी इसके आगे अपना समाज, अपना देश और मानव जाति उत्थान की अभिव्यक्ति पर विचार किया है? मासूम बच्चे दूसरों की खुशी में खुश और दूसरों के गम में दुख महसूस करते है लेकिन हम बड़े होकर दूसरों के सुख-दुख में वैसा ही भाव महसूस करते है? हमारे आसपास अक्सर अवैध गतिविधियां घटित होती है जिसे हम अपनी जागरूकता से रोक सकते हैं लेकिन क्या हम अपने सामाजिक दायित्वों का अच्छी तरह निर्वहन करते हैं? आज की आधुनिकता की अंधी दौड़ में हर कोई दूसरों से आगे निकलने के लिए दौड़ रहा है वो भी सिर्फ दिखावे के लिए, परंतु इस भागमभाग में वह खुद का ही सुख चैन खो रहा है। स्टेटस सिंबल के नाम पर बदहाली की तरफ बढ़ रहे हैं।

मानव जाति के कल्याण के लिए कानून और नियम बनाए जाते हैं ताकि व्यवस्था सुचारू रूप से चले लेकिन नियमों के उल्लंघन में पढ़े-लिखे और अनपढ़ सब एक जैसे हैं, जानवरों को भी अगर नियम सिखाये तो वे भी नियम से व्यवहार करना सीख जाते है लेकिन विवेक बुद्धि होकर भी मनुष्य स्वयं स्वार्थवृत्ति से व्यवहार करता है। समाज में शरीफ डरकर और बदमाश निडर होकर रहते है, गलती करके भी हमेशा लड़ने तैयार रहते है, मौल्यवान समय की बर्बादी करते है, युवा सोशल मीडिया के नशेड़ी बन गये है, कोरोना महामारी में भी बड़ी संख्या में लोग कोरोना नियम का उल्लंघन करते है, सरकारी नियम और ट्रैफिक नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जाती है, आजकल हर कोई कहता है कि जमाना खराब है लेकिन जमाना तो हम सभी से मिलकर ही बना है, पालक भी कहते है कि बच्चे बहुत बिगड़ गये है, बच्चों में अपराधवृत्ति लगातार बढ़ रही है, फैशन और नशे की ओर आकर्षित हो रहे है लेकिन क्या पालक बच्चों को सही परिवेश निर्माण करके दे रहे है? माता-पिता स्वयं अक्सर बच्चों के सामने अनुचित व्यवहार का प्रयोग करते हैं और चाहते है कि उनके बच्चे समाज के सुजान नागरिक बनें लेकिन यह कभी न भूलें कि बच्चों को पहली सीख घर से ही मिलती है और बाद में बाहर से। कितना भी पैसा, शोहरत, रसूख हो लेकिन इंसानियत ही न हो तो आप इंसान कहलाने के काबिल नही हो सकते।

पालको की बच्चों की ओर थोड़ी सी भी लापरवाही बच्चों के साथ ही सम्पूर्ण मानव जाति के लिए अत्यंत घातक सिद्ध होती है। पालको से प्रार्थना है कि जिंदगी में आप अपने बच्चों को कुछ दो या ना दो लेकिन अच्छे संस्कार जरूर देना, अच्छे संस्कार ही अच्छा आचरण व्यवहार सिखाते है, जीवन के हर समस्या से लड़ना सिखाते है और अच्छा इंसान बनाते है। आपके द्वारा दिये गये संस्कार बच्चो का संपूर्ण जीवन सुखमय बना देते है। समाज में हजारो स्वार्थियों के बाद एक परोपकारी नजर आता है, जहां एक व्यक्ति की सीमा समाप्त होती है, वहीं दूसरे व्यक्ति की सीमा शुरू होती है इसलिए कभी भी अपनी सीमा नहीं लांघनी चाहीये। कृपया लोगों में प्रसिद्धी पाने व सिर्फ फोटो खींचने के लिए, असहायों की मदद ना करें, अच्छा काम करके भूल जाये और आगे बढते रहें। जन्म इंसान के रूप में मिला है तो इंसानियत से जीना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। जीवन में अच्छे कर्म करने की खुशी आप कहीं से नहीं खरीद सकते, वह आपके अच्छे कर्मों से ही मिलेगी। बुरे कर्म करके इंसान खुश नहीं रह सकता। इंसान की छोटी सी जिंदगी बुरे कामों में न गंवाएं, ईमानदारी और स्वाभिमान के साथ गौरवान्वित होकर मानव की तरह जिएं।

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

माणुसकीच नसेल तर माणूस म्हणून घ्यायला लाज वाटायला हवी (जागतिक मानवता दिन विशेष - 19 ऑगस्ट 2021) If there is no humanity, it should be a shame to be considered a human being (World Humanitarian Day Special - 19 August 2021)


        आजच्या समाजाची स्थिती पाहता प्रश्न पडतो की आपण खरोखर मानव म्हणण्यास पात्र आहोत का? म्हणजे, जन्म मानवी शरीरात आणि विचार, कृती वन्य प्राण्यापेक्षाही वाईट. भ्रष्टाचार, गुन्हेगारी, अत्याचार, अंमली पदार्थांचे व्यसन, लोभ, अश्लीलता, अनादर, द्वेष, लबाडी, फसवणूक, स्वार्थ सातत्याने वाढत आहे, जे संपूर्ण मानवतेला पोकळ करत आहे. आपल्या समोर अनेकदा मानवतेला सुद्धा लाजवेल अशी घटना घडतात आणि आपण फक्त पाहत राहतो. लोकांमध्ये परोपकाराची भावना शून्य होत आहे. मानवता हा शब्द मानवापासून बनला आहे. मानवता हा एक गुण आहे जो इतरांच्या कल्याणाशी संबंधित आहे. यात एकमेकांबद्दल करुणा आणि प्रेमाच्या भावना आहेत. लोककल्याणाची इच्छा आपल्या जीवनाचे ध्येय असावे. मानवतेला समर्पित राहून नैतिक मूल्यांचे रक्षण करण्यासाठी प्रामाणिकपणे वचनबद्ध रहावे, मानवी जीवनाची सार्थकता यातच आहे. मानवता ही मानवाची गुणवत्ता आहे ज्यांचे मूलभूत घटक सत्य, अहिंसा, प्रेम, करुणा, दया, त्याग, शुद्धता, नैतिकता, प्रामाणिकपणा आणि कर्तव्यनिष्ठा आहेत.

     दरवर्षी 19 ऑगस्ट रोजी आपण जागतिक मानवतावादी दिन साजरा करतो. या विशेष दिवसाचा उद्देश जगभरातील असहाय नागरिकांच्या दुर्दशा बद्दल जागरूकता निर्माण करणे आहे. संघर्षात असलेल्यांना मदत करण्यासाठी, आणि त्या मानवतावादी कामगारांसाठी आदर आणि समर्थन वाढवणे जे मदतीसाठी आपला जीव धोक्यात घालतात आणि कधीकधी प्राण सुद्धा गमावतात. युद्ध, गरिबी, भूक, रोग, अन्न समस्या, संघर्ष आणि नैसर्गिक आपत्ती यामुळे जगभरातील कोट्यवधी लोक संकटात आहेत आणि त्यांना मानवतावादी मदतीची गरज आहे. मानवजातीला शरण जाणे हे मानवतेचे परम कर्तव्य आहे, म्हणूनच जेवढे आपल्याला शक्य होईल तेवढे मदतीसाठी पुढे आले पाहिजे.

    समाजात स्वार्थ शिगेला पोहोचला आहे आणि तिरस्कार सर्वत्र रुजलेला दिसतो. फक्त एक रुपयाचा सुद्धा फायदा का नसावा, पण भेसळ करणारे लोक समाजातील निष्पापांना स्लो पॉइझन देऊन (अन्नपदार्थांमध्ये घातक रसायनांचा वापर आणि जे खाण्यास योग्य नाही अशा अन्नाद्वारे) गंभीर आजारांनी ग्रस्त करून, त्यांना मृत्यू दिला जातो. प्रत्येक क्षेत्रात भ्रष्टाचार आणि शिफारशी द्वारे काम करून घेण्याचा प्रयत्न केला जातो, स्वतःच्या फायद्यासाठी इतरांचे अधिकार काढून घेतले जातात आणि शब्द व कृतीत फरक जाणवतो. एखाद्या व्यक्तीची ओळख व स्थिती संपत्ती द्वारे निश्चित होते, लोकांना श्रीमंतांना मदत करायला आवडते, गरीबांना नाही, जेव्हा की गरीब गरजू आहेत. कमजोरांवर राग काढला जातो, प्रत्येकजण स्वतःच्या नजरेत सर्वोत्तम असतो तर इतरांच्या नजरेत का नाही? माणूस बऱ्याचदा इतरांमध्ये दोष शोधण्यात मग्न असतो, इतरांचे शेकडो दोष लगेच दिसतात, पण आपण स्वतःला गुणांनी परिपूर्ण समजतो.

    नेहमी वाईट घटना घडल्यानंतर आपण रॅली आणि प्रदर्शनाद्वारे आपला शोक व्यक्त करतो, पण या वाईट घटना घडूच नयेत यासाठी आपण कधी पुढाकार घेतो का? एक जबाबदारी म्हणून मी आणि माझे कुटुंब, पण यापुढे आपला समाज, आपला देश आणि मानवजातीच्या उन्नतीची अभिव्यक्ती विचारात घेतली आहे का? निरागस मुले इतरांच्या आनंदात आनंदी आणि इतरांच्या दुःखात दुःखी वाटतात, पण मोठे असून सुद्धा आपल्याला इतरांच्या सुख-दु:खात तीच भावना जाणवते का? अनेकदा आपल्या आजूबाजूला अवैध घटना घडतात, ज्यांना आपण आपल्या जागरूकतेने थांबू शकतो, पण आपण आपल्या सामाजिक जबाबदाऱ्या चांगल्या प्रकारे पार पाडतो का? आधुनिकतेच्या अंध शर्यतीत प्रत्येकजण इतरांपेक्षा पुढे जाण्यासाठी धावत आहे ते सुद्धा फक्त देखाव्यासाठी, पण यात तो स्वतःचा आनंद आणि शांती गमावत आहे. स्टेटस सिम्बॉल च्या नावाखाली आपण माणुसकी पासून दूर चाललोय.

    कायदे आणि नियम मानवजातीच्या कल्याणासाठी बनवले जातात जेणेकरून प्रणाली सुरळीत चालेल, परंतु नियमांचे उल्लंघन करण्यात, सुशिक्षित आणि निरक्षर सर्वच समाविष्ट आहेत. जर प्राण्यांना देखिल नियम शिकवले गेले, तर ते सुद्धा नियमांनुसार वागायला शिकतात पण विवेक बुद्धि असूनही माणूस स्वतः स्वार्थाने वागतो. समाजात सभ्य, भीतीने राहतात आणि बदमाश निर्भयपणे जगतात, चुका करूनही लढण्यासाठी सदैव तयार असतात, मौल्यवान वेळ वाया घालवतात, तरुणांना सोशल मीडियाचे व्यसन लागले आहे. कोरोना महामारीमध्येही मोठ्या संख्येने लोक कोरोना नियमांचे उल्लंघन करतात, वाहतुकीचे नियम तसेच अनेक क्षेत्रात सरकारी नियम उघडपणे मोडले जातात, आजकाल प्रत्येकजण म्हणतो की जग खूप वाईट आहे पण जग तर आपल्या सर्वांना मिळूनच बनलेले आहे, पालक देखील म्हणतात की मुले खूप बिघडली आहेत, मुलांमध्ये गुन्हेगारी वाढत आहे, फॅशन आणि नशेकडे आकर्षित होत आहेत पण पालक मुलांना योग्य वातावरण निर्माण करून देत आहेत का? पालक स्वतः अनेकदा मुलांसमोर अयोग्य वर्तन करतात, मुलांचा चुकांकडे दुर्लक्ष करतात आणि ते इच्छितात की त्यांची मुले समाजाचे कर्तव्यनिष्ठ व दक्ष नागरिक व्हावी, पण हे विसरू नका की मुलांना त्यांचे पहिले धडे घरातूनच मिळतात आणि नंतर बाहेरून. पैसा, कीर्ती, प्रतिष्ठा कितीही असली तरी जर माणुसकी नसेल तर माणूस म्हणता येणार नाही.

    मुलांकडे पालकांची थोडीशीही निष्काळजीपणा मुलांसाठी तसेच संपूर्ण मानवजातीसाठी अत्यंत घातक ठरते. पालकांना प्रार्थना आहे की आयुष्यात तुम्ही तुमच्या मुलांना काही  देऊ किंवा नका देऊ पण चांगले संस्कार अवश्य द्या चांगले संस्कार शिष्टाचार चांगले आचरण, वर्तन शिकवतात, जीवनाच्या प्रत्येक समस्येशी लढायला आणि एक चांगला माणूस बनायला शिकवतात. तुम्ही दिलेले संस्कार मुलांचे संपूर्ण आयुष्य सुखी करतात. समाजात हजारो स्वार्थी लोकांनंतर एक परोपकारी दिसून येतो, जिथे एका व्यक्तीची मर्यादा संपते तिथे दुसऱ्या व्यक्तीची मर्यादा सुरू होते म्हणून आपली मर्यादा कधीही ओलांडू नका. कृपया प्रसिद्धी मिळवण्यासाठी आणि फोटो काढण्यासाठी असहाय लोकांना मदत करू नका, चांगले काम करून विसरून जावे. जर आपण मानव म्हणून जन्माला आलो आहोत, तर आपले ध्येय मानवतेसह जगणे असावे. तुम्ही आयुष्यात चांगली कामे केल्याचे आनंद विकत घेऊ शकत नाही, ते तुमच्या सत्कर्मानेच मिळेल. वाईट कृत्ये करून माणूस आनंदी होऊ शकत नाही. वाईट कृतीत माणसाचे आयुष्य वाया घालवू नका, प्रामाणिकपणा आणि स्वाभिमान बाळगून माणुसकीने जगावे.

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

गुरुवार, 12 अगस्त 2021

पुस्तकालयों में अमूल्य धरोहर की बर्बादी और उपेक्षा (राष्ट्रीय पुस्तकालयाध्यक्ष दिवस विशेष - 12 अगस्त 2021) Invaluable heritage in libraries is being wasted and neglected (National Librarians Day Special - August 12, 2021)


समाज में बौद्धिक, शैक्षिक और मानवीय सर्वांगीण विकास के लिए पुस्तकालय महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनका महत्व कभी भी कम नहीं आंका जा सकता है, समय के साथ पुस्तकालयों का महत्व अत्यधिक बढ़ रहा है। इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है लेकिन जब हम अपने समाज में आसपास के पुस्तकालयों को देखते है तो ऐसा लगता है कि पुस्तकालय विकास की ओर नहीं बल्कि बर्बादी की दिशा में अग्रसर है। पुस्तकालयों में उपलब्ध अमूल्य धरोहर जर्जर अवस्था में नजर आ रहा है। सुविधाएं नदारद और पुस्तकालयों में समस्याओं का अंबार लगा है लेकिन समस्याओं को दूर करनेवाले संबंधित व्यक्ती विशेष की ओर से सकारात्मक आश्वासन जरूर मिलता है कि जल्द ही समस्याओं का समाधान किया जाएगा। दिन, महीने, साल, दशक बीत गए लेकिन समस्या कम होने का नाम नहीं ले रहे।


देश में तेजी से बढ़ती आबादी की सुविधाओं के लिए नई कॉलोनी, जिम, स्पा, स्विमिंग पूल, गेम जोन, गार्डन, सामाजिक और धार्मिक संस्थान, बाजार, मॉल, हॉस्पिटल सब तैयार किये जाते है लेकिन इन विकसित समाज में पुस्तकालय का कोई महत्वपूर्ण स्थान नजर नहीं आता है। जिस गति से शहरीकरण हो रहा है उसकी तुलना में पुस्तकालय लगातार कम हो रहे है। आजादी के पहले और बाद में भी देश भर में बड़ी संख्या में पुस्तकालयों का विस्तार हुआ। अनेक पुस्तकालय सौ साल से अधिक पुराने हैं, जहां कभी इन पुस्तकालयों में 15-20 कर्मचारी सेवा प्रदान करने के लिए कार्यरत रहते थे आज वहां 1-2 कर्मचारी ही बड़ी मुश्किल से नजर आ रहे हैं। इन पुस्तकालयों में दुर्लभ बेशकीमती खजाने के रूप में साहित्य संग्रह हैं जो अन्यत्र कहीं भी ढूंढने पर भी नजर नही आयेगा। इन अमूल्य धरोहरों की सुरक्षा आभूषणों के समान होनी चाहिए लेकिन इसके उलट यह साहित्य बर्बादी की दास्तान बयां कर रहा है। देश के हर जिले और कस्बे में ऐसे कई पुराने पुस्तकालयों की बदहाली देखी जा सकती है।

इस क्षेत्र का एक विशेषज्ञ ही पुस्तकालय में योग्य प्रबंधन और पाठकों को बेहतर सेवाएं प्रदान कर सकता है लेकिन देश के कई राज्यों के स्कूलों, सार्वजनिक पुस्तकालयों और अन्य विभागों में सालों से लाइब्रेरी स्टाफ की भर्ती नहीं की गई है। कर्मचारी सेवानिवृत्त होते रहते है लेकिन नए कर्मचारी नहीं आते, कई स्थानों पर चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों भरोसे पुस्तकालय चल रहे हैं, पुस्तकालय में कार्यरत कर्मचारी अल्प वेतन भोगी होते है और उन्हें कई महीनों तक वेतन भी नहीं मिलता है। एक तरफ हम शिक्षा को बढ़ावा दे रहे हैं और दूसरी तरफ पुस्तकालयों के विकास की अनदेखी कर रहे हैं। इन पुस्तकालयों में पाठकों के लिए अत्याधुनिक संसाधन देखना तो दूर बुनियादी पुस्तकालय सेवाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। कई पुस्तकालयों में साहित्य के नाम पर कुछ समाचार पत्र ही दिखाई देते हैं। जिस तरह शहर अब महानगर का रूप ले रहे हैं, पुस्तकालयों की संख्या तदनुसार नहीं बढ़ रही है। पुस्तकालय में पढ़ने के लिए दूर-दूर से छात्र आते हैं, देश में पुस्तकालयों की कमी है।

देश भर में हजारों पुस्तकालय अपने अस्तित्व की अंतिम लड़ाई लड़ रहे हैं अर्थात कई पुस्तकालय पर्याप्त निधी और बेहतर प्रबंधन की कमी के कारण खत्म होने के कगार पर हैं, वहां की बेहद अमूल्य पुस्तकें, पांडुलिपियां,  बहुमूल्य पाठ्य साहित्य सामग्री खराब हो रही है, कई पुस्तकालयों में पाठकों के लिए पर्याप्त मेज, कुर्सियाँ, पंखे, रोशनी, पीने का पानी, शौचालय, बिजली भी नहीं है और पुस्तकालय भवन की खिड़कियां, दरवाजे, दीवारें कमजोर हो गई हैं। बारिश में छत से पानी टपकता है। पुस्तकालय भवन जर्जर हालत में है, जिससे कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। छोटे शहरों से लेकर बड़े शहरों तक हर जगह यही स्थिति देखी जा रही है फिर भी ऐसी परिस्थितियों में भी पाठक बड़ी संख्या में पुस्तकालयों का उपयोग कर रहे हैं। उज्जवल भविष्य के लिए बेहतर अध्ययन एवं प्रतियोगी परीक्षाओं के कारण पुस्तकालय के प्रति युवाओं का रुझान बढ़ा है। पुस्तकालय, पाठकों को स्कूल से जीवन के अंत तक साथ देते है और आज ऐसे कई पुस्तकालय खुद ही अपने अंतिम दिनों में पहुंच गए हैं। देश के सामाजिक विकास में पुस्तकालयों का अमूल्य योगदान है|

स्टाफ की कमी और उचित निगरानी के अभाव के कारण किताब चोरी की कई घटनाएं होती हैं, कई किताबों के पृष्ठ भी फटे हुए मिलते हैं, लोग किताबों में से अपनी पसंद की तस्वीरें या कतरन काटते हैं, इससे कई बेशकीमती किताबें नष्ट हो चुके हैं| फटी-पुरानी किताबें, नई पुस्तकों का अभाव, समाचारपत्रों का न होना यह सब मिलकर पुस्तकालय की प्रतिष्ठा को धूमिल कर रहे हैं। टूटे हुए फर्नीचर का ढेर लगा है। छत की सीलिंग भी धीरे-धीरे कर गिरने लगी है, पुस्तकालय में बुक रैक दुरुस्त नहीं है, परिणामस्वरूप पुस्तकालय में रखी पुस्तकों में किताबों में दीमक तो हैं ही, साथ ही चींटी के साथ चूहे भी साहित्य बर्बाद कर रहे हैं।

अक्सर ऐसे समस्याग्रस्त पुस्तकालयों के अमूल्य धरोहर को बचाने व सुधार हेतु संबंधित अधिकारियों या समिति को ज्ञापन देकर सूचित किया जाता है, बार-बार उनका ध्यान आकर्षित किया जाता है और उनका भी यह कहना है कि जल्द ही समस्या का समाधान हो जाएगा लेकिन समय बीतता जाता है और समस्या बढ़ती जाती है। आखिर क्यों पुस्तकालयों की अमूल्य धरोहर की बर्बादी और उपेक्षा लगातार बढ़ती जा रही है। बहुत बार खबरें मिलती है कि ऐसे कई पुस्तकालयों के प्रांगण में शाम से असामाजिक गतिविधियां सक्रिय होती है, कई पुस्तकालयों पर अवैध कब्जा करने का प्रयास किया जा रहा है, तो कई पुस्तकालयों की बगल में कूड़े के ढेर लगाये है, जिससे पुस्तकालयों में दुर्गंध और मच्छरों का प्रकोप है। बारिश में कीचड़ जमा हो जाता है, तो कई घास उग आयी है। ऐसे में पाठक अपने आप को असुरक्षित महसूस करते हैं।

इन समस्याओं के कारण योग्य साहित्य पाठकों तक नहीं पहुंच पाता है फिर पुस्तकालय सूचना विज्ञान के पितामह पद्मश्री डॉ. एस. आर. रंगनाथन द्वारा दर्शाये फाइव लॉ का पालन करना तो बहुत दूर की बात है। देशभर में डॉ. एस. आर. रंगनाथन जी का जन्मदिन “राष्ट्रीय पुस्तकालयाध्यक्ष दिवस” के रूप में 12 अगस्त को मनाया जाता है। उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है, विश्व स्तर पर पुस्तकालय सूचना विज्ञान के क्षेत्र में उनके अतुलनीय योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा 1957 में उन्हे पद्मश्री से सम्मानित किया गया। आज अगर डॉ. रंगनाथनजी होते तो समस्याओं से जूझ रहे ऐसे पुस्तकालयों को देखकर क्या सोचते? विदेशों में इस अमूल्य धरोहर के प्रबंधन और उपयोगिता पर विशेष ध्यान दिया जाता है, इससे जुड़े हर पहलू का महत्व समझा जाता है और होना भी चाहिए क्योंकि यह अनमोल अत्यंत दुर्लभ साहित्य फिर कभी नहीं मिलेगा, लेकिन हम महत्व तो मानते है परंतु वास्तविकता में जानते नहीं।

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

ग्रंथालयातील अमूल्य साहित्याची दुर्दशा आणि उपेक्षा (राष्ट्रीय ग्रंथपाल दिन विशेष - 12 ऑगस्ट 2021) The plight and neglect of invaluable library materials (National Librarian Day Special - 12 August 2021)

समाजात बौद्धिक, शैक्षणिक आणि मानवी सर्वांगीण विकासासाठी ग्रंथालये महत्वाची भूमिका बजावतात. त्यांचे महत्व कधीही कमी लेखले जाऊ शकत नाही, काळानुसार ग्रंथालयांचे महत्व अफाट वाढत आहे, तसेच या क्षेत्रात लक्षणीय प्रगती देखील झाली आहे, पण जेव्हा आपण आपल्या समाजातील आजूबाजूच्या ग्रंथालयांकडे बघतो तर असे दिसून येते की ग्रंथालय विकासाकडे नाही तर नष्ट होण्याचा मार्गावर जात आहे. ग्रंथालयांमध्ये उपलब्ध असलेला अमूल्य साहित्य वारसा जीर्ण अवस्थेत दिसतो. ग्रंथालयांमध्ये सुविधांचा अभाव आणि समस्यांचे डोंगर उभे आहेत, परंतु समस्या सोडवणारे संबंधित व्यक्ती किंवा विभागाकडून निश्चितच सकारात्मक आश्वासन असते की समस्या लवकरच सोडवल्या जातील. दिवस, महिने, वर्षे, दशके गेली पण समस्या थांबायचे नाव घेत नाही.

देशात झपाट्याने वाढणाऱ्या लोकसंख्येच्या सुविधांसाठी नवीन वसाहती, जिम, स्पा, जलतरण, गेम झोन, गार्डन्स, सामाजिक आणि धार्मिक संस्था, बाजारपेठा, मॉल्स, रुग्णालये सर्व तयार केली जातात. पण या विकसित सोसायट्यांमध्ये ग्रंथालयाला कोणतेही महत्वाचे स्थान आहे असे वाटत नाही. शहरीकरण ज्या वेगाने वाढत आहे त्या तुलनेत ग्रंथालये सतत कमी होत आहेत. स्वातंत्र्यापूर्वी आणि नंतर देशभरात मोठ्या प्रमाणात ग्रंथालयांचा विस्तार झाला. अनेक ग्रंथालये शंभर वर्षांपेक्षाही जुनी आहेत, येथील साहित्य संग्रह देखील तेवढेच जुने आहे, म्हणजे हे अतिशय मोल्यवान साठा आहे. येथे एकेकाळी 15-20 कर्मचारी ग्रंथालयांमध्ये सेवा देण्यासाठी काम करायचे, आज तिथे केवळ 1-2 कर्मचारी दिसून येतात. या ग्रंथालयांमध्ये दुर्मिळ मौल्यवान खजिन्याच्या स्वरूपात साहित्य संग्रह आहेत जे तुम्ही कुठेही शोधले तरी सापडणार नाही. या अमूल्य साहित्याचे संरक्षण दागिन्यांसारखे व्हायला पाहिजे, परंतु याउलट हे साहित्य नष्ट होण्याची स्थिती सांगत आहे. अशा अनेक जुन्या ग्रंथालयांची दुर्दशा देशातील प्रत्येक जिल्ह्यात आणि शहरात दिसून येते.

केवळ ग्रंथालय माहिती शास्त्र क्षेत्रातील तज्ञच ग्रंथालयाचे योग्य व्यवस्थापन करू शकतात आणि वाचकांना उत्तम सेवा पुरवू शकतात, पण देशातील अनेक राज्यातील शाळा, सार्वजनिक ग्रंथालये आणि इतर विभागातील ग्रंथालयात खुप वर्षांपासून कर्मचाऱ्यांची भरतीच केलेली नाही आहे. कर्मचारी निवृत्त होत राहतात पण नवीन कर्मचारी रूजू होत नाहीत, अनेक ठिकाणीतर हे ग्रंथालय चतुर्थ श्रेणी कर्मचाऱ्यांच्या भरोस्यावर चालू आहेत, अनेक ग्रंथालयात काम करणारे कर्मचारी अत्यंत कमी पगारावर आहेत आणि त्यांना अनेक महिने वेळेवर पगारही मिळत नाही. एकीकडे आपण दर्जेदार शिक्षणाचा प्रचार-प्रसार करतोय आणि दुसरीकडे समाजातील या महत्वपूर्ण ग्रंथालयांच्या विकासाकडे दुर्लक्ष करत आहोत. या ग्रंथालयांमध्ये वाचकांसाठी अत्याधुनिक संसाधने मिळणे तर दूर, मूलभूत ग्रंथालयीन सेवा देखील नाहीत. अनेक ग्रंथालयांमध्ये साहित्याच्या नावावर फक्त काही वृत्तपत्रे येतात. ग्रंथालयात अभ्यास करण्यासाठी विद्यार्थी खुप दुर-दुरून येतात, शहरे आता महानगराचे रूप धारण करत असल्याने ग्रंथालयांची संख्या त्यानुसार वाढत नाही आहे. देशात ग्रंथालयांची फार कमतरता आहे.

देशभरातील हजारो ग्रंथालये त्यांच्या अस्तित्वाची शेवटची लढाई लढत आहेत म्हणजेच पुष्कळ ग्रंथालये पुरेसा निधी आणि उत्तम व्यवस्थापनाअभावी नामशेष होण्याच्या मार्गावर आहेत, तेथील अमूल्य पुस्तके, हस्तलिखिते, मौल्यवान पाठ्यसामग्री खराब व गहाळ होत आहे, अनेक ग्रंथालयात वाचकांसाठी पुरेसे टेबल, खुर्च्या, पंखे, लाइट, पिण्याचे पाणी, स्वच्छतागृहे नाही, तर कुठे वीज देखील नाही आणि ग्रंथालय इमारतीच्या खिडक्या, दरवाजे, भिंती कमकुवत झाल्या आहेत. पावसात छतावरून पाणी टपकते. ग्रंथालयाची इमारत जीर्ण अवस्थेत आहेत, त्यामुळे कधीही मोठा अपघात होऊ शकतो. ही परिस्थिती लहान शहरांपासून मोठ्या महानगरापर्यंत सर्वत्र दिसून येते, तरी अशा परिस्थितीतही वाचक मोठ्या प्रमाणात ग्रंथालयांचा वापर करत आहेत. उज्ज्वल भविष्यासाठी उत्तम अभ्यास आणि स्पर्धा परीक्षांमुळे तरुणांचा ग्रंथालय / वाचनालयाकडे कल वाढला आहे. ग्रंथालये वाचकांना शाळेपासून आयुष्याच्या शेवट पर्यंत साथ देतात आणि आज अशी अनेक ग्रंथालय स्वताच्याच शेवटच्या दिवसांपर्यंत पोहोचली आहे, जेव्हाकि देशाच्या सामाजिक विकासात ग्रंथालयांचे अमूल्य योगदान असते.

कर्मचाऱ्यांची कमतरता आणि योग्य देखरेखीच्या अभावामुळे ग्रंथालयात पुस्तक चोरीच्या अनेक घटना घडतात, पुष्कळशा पुस्तकांची पानेही फाटलेली आढळतात, लोक पुस्तकांमधून त्यांच्या आवडीचे फोटो किंवा माहिती कापतात, यामुळे अनेक मौल्यवान पुस्तके नष्ट झाली आहेत. फाटलेली जुनी पुस्तके, नवीन पुस्तकांचा अभाव, मासिके व वर्तमानपत्रांचा अभाव, हे सर्व मिळून ग्रंथालयाची प्रतिष्ठा डागाळत आहेत. कित्येक ग्रंथालयात तुटलेल्या फर्निचर चा ढीग लागला आहे. ग्रंथालयातील पुस्तक रॅक दुरूस्त नाहीत, सगळे अस्त-व्यस्त असल्यामुळे ग्रंथालयात असलेल्या अमूल्य पुस्तकांमध्ये दीमक लागली आहे, तसेच मुंग्यांसह उंदीर देखिल साहित्य उद्ध्वस्त करत आहेत.

अनेकदा अशा समस्याग्रस्त ग्रंथालयांचा अमूल्य साहित्यवारसा जतन आणि सुधारण्यासाठी संबंधित अधिकारी किंवा समितीला निवेदन देऊन कळवले जाते, त्यांचे वारंवार लक्ष वेधले जाते आणि ते सुद्धा उत्तराचा स्वरूपात म्हणतात की लवकरच समस्या सुटेल पण वेळ निघत जातो आणि वेळेनुसार समस्या देखिल वाढत जातात. पण, ग्रंथालयातील अमूल्य साहित्य संग्रहाची दुर्दशा, अपव्यय आणि दुर्लक्ष का होत आहे? बऱ्याचदा बातमी ऐकायला मिळते की अनेक जुन्या ग्रंथालयांवर बेकायदेशीरपणे अतिक्रमण करण्याचा प्रयत्न केला जातो, तर कुठे अनेक ग्रंथालयांचा बाजूलाच केरकचरा टाकण्यात येतो, ज्यामुळे ग्रंथालयांमध्ये दुर्गंध आणि डासांचा प्रादुर्भाव असतो. ग्रंथालयाचा आवारात पावसात चिखल जमा होतो, त्यामुळे बरेच गवत वाढत असते. अशा परिस्थितीत वाचक स्वतःला असुरक्षित समझतात.

या अशा समस्यांमुळे वाचकांपर्यंत योग्य साहित्य पोहोचत नाही, मग ग्रंथालय माहिती विज्ञानाचे जनक पद्मश्री डॉ. एस. आर. रंगनाथन यांनी दर्शविलेल्या फाइव लॉ चे पालन करणे तर खूप दूर आहे. देशभरात डॉ. एस. आर. रंगनाथन यांचा वाढदिवस 12 ऑगस्ट रोजी “राष्ट्रीय ग्रंथपाल दिन” म्हणून साजरा केला जातो. त्यांनी ह्या क्षेत्रात अनेक महत्त्वाच्या पदांवर काम केले आहे, त्यांना जागतिक स्तरावर ग्रंथालय माहिती विज्ञान क्षेत्रात अतुलनीय योगदानासाठी 1957 मध्ये भारत सरकारने पद्मश्री पुरस्काराने सन्मानित केले. जर आज डॉ. रंगनाथनजी असते तर अशा समस्याग्रत ग्रंथालयांना पाहून त्यांना काय वाटले असते? परदेशात या अमूल्य दुर्मिळ साहित्याचे उत्कृष्ट व्यवस्थापन आणि उपयोगितांकडे विशेष लक्ष दिले जाते, त्याच्याशी संबंधित प्रत्येक पैलूचे महत्त्व समजले जाते आणि असेच असायला पण हवे कारण हे अनमोल अत्यंत दुर्मिळ साहित्य पुन्हा कधीच सापडणार नाही, परंतु आपण फक्त महत्त्व मानतो पण वास्तवात जाणत नाही.

डॉ. प्रितम भि. गेडाम