आज के समाज की स्थिति को देखते हुए यह प्रश्न उठता है कि सच में क्या हम इंसान कहलाने के पात्र है? अर्थात जन्म मानव के शरीर में और विचार, कर्म जंगली जानवर से भी बदतर है। भ्रष्टाचार, अपराध, अत्याचार, नशाखोरी, लोभ, अश्लीलता, अनादर, घृणा, झूठ, छल, स्वार्थ लगातार बढ़ रहे हैं जो पूरी मानवता को खोखला कर रहा है। इंसानियत अक्सर हमारे सामने शर्मसार हो जाती है और हम बस तमाशा देखते रहते हैं। लोगों में परोपकार की भावना शून्य होती जा रही है। इंसान से इंसानियत और मानव से मानवता शब्द बना है। मानवता एक सद्गुण है जो मूल रूप से दूसरों के हित संबंधित है। इसमें एक दूसरे के लिए करुणा और प्रेम की भावनाएँ हैं। लोक कल्याण की इच्छा हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। मानवता के प्रति समर्पित होकर नैतिक मूल्यों की रक्षा के लिए ईमानदारी से प्रतिबद्ध हों, मानव जीवन की सार्थकता इसी में निहित है। मानवता मानव का गुणधर्म है जिसके मूल तत्व सत्य, अहिंसा, प्रेम, करूणा, दया, त्याग, पवित्रता, नैतिकता, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा हैं।
हर साल 19 अगस्त को हम विश्व मानवतावादी दिवस के रूप में मनाते हैं। इस विशेष दिवस का उद्देश्य दुनिया भर के असहाय नागरिकों की दुर्दशा के बारे में जागरूकता बढ़ाना है, संघर्षों में फंसे लोगों की मदद करना है, और उन मानवीय कार्यकर्ताओं के लिए सम्मान और समर्थन भी जुटाना है जो मदद करने के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं और कभी-कभी अपनी जिंदगी खो देते हैं। दुनिया भर में करोड़ों लोग युद्ध, गरीबी, भूख, बीमारी, खाद्य समस्याओं, संघर्षों और प्राकृतिक आपदाओं के कारण संकट में हैं और उन्हें मानवीय सहायता की आवश्यकता है। मानव जाति के लिए समर्पण मानवता का परम कर्तव्य है, इसलिए जीतना भी हमसे बन पडे सहायता के लिए आगे आना चाहीए।
समाज में स्वार्थवृत्ति चरम पर और द्वेष भावना हर ओर निहीत प्रतीत होती है। एक रुपये का ही फायदा क्यों न हो, लेकिन मिलावटखोर समाज में मासूमों को स्लो पॉइजन देकर (खाद्य पदार्थों में जानलेवा रसायनो का प्रयोग और खाने लायक न हों ऐसे खाद्य द्वारा) गंभीर बीमारियों से ग्रसित करके तड़पा-तड़पा कर मार डालते है। हर क्षेत्र में अपना काम करवाने के लिए भ्रष्टाचार और सिफारिश की कोशिश की जाती है, अपने फायदे के लिए दूसरे का हक छीन लिया जाता है और कथनी-करनी में अंतर किया जाता है। दुनिया को दिखाने के लिए इंसान का चेहरा अलग और हकीकत में अलग होता है। दौलत तय करती है इंसान की पहचान और हैसियत, लोग गरीबों की नहीं, अमीरों की मदद करना पसंद करते हैं, जबकि गरीब जरूरतमंद हैं। अब तो क्रोध मनुष्य के साथ-साथ ही चलता है जहां थोड़ा भी कमजोर मिलते ही क्रोध उतार दिया जाता है। अगर हर इंसान अपनी नजर में सबसे अच्छा है तो दूसरों की नजर में क्यों नहीं? मनुष्य अक्सर दूसरों के दोष ढूंढने में लगा रहता है दूसरों के सैकड़ों दोष तुरंत नजर आते है लेकिन हम अपने आप को सद्गुणों से परिपूर्ण समझते हैं।
हमेशा बुरी घटनाओं के घटित होने के बाद रैली और प्रदर्शन करके हम शोक व्यक्त करते है, लेकिन कभी आपने यह बुरी घटनाएं ही ना हो इसके लिए भागीदारी की है? जिम्मेदारी के रूप में मैं और मेरा परिवार, कभी इसके आगे अपना समाज, अपना देश और मानव जाति उत्थान की अभिव्यक्ति पर विचार किया है? मासूम बच्चे दूसरों की खुशी में खुश और दूसरों के गम में दुख महसूस करते है लेकिन हम बड़े होकर दूसरों के सुख-दुख में वैसा ही भाव महसूस करते है? हमारे आसपास अक्सर अवैध गतिविधियां घटित होती है जिसे हम अपनी जागरूकता से रोक सकते हैं लेकिन क्या हम अपने सामाजिक दायित्वों का अच्छी तरह निर्वहन करते हैं? आज की आधुनिकता की अंधी दौड़ में हर कोई दूसरों से आगे निकलने के लिए दौड़ रहा है वो भी सिर्फ दिखावे के लिए, परंतु इस भागमभाग में वह खुद का ही सुख चैन खो रहा है। स्टेटस सिंबल के नाम पर बदहाली की तरफ बढ़ रहे हैं।
मानव जाति के कल्याण के लिए कानून और नियम बनाए जाते हैं ताकि व्यवस्था सुचारू रूप से चले लेकिन नियमों के उल्लंघन में पढ़े-लिखे और अनपढ़ सब एक जैसे हैं, जानवरों को भी अगर नियम सिखाये तो वे भी नियम से व्यवहार करना सीख जाते है लेकिन विवेक बुद्धि होकर भी मनुष्य स्वयं स्वार्थवृत्ति से व्यवहार करता है। समाज में शरीफ डरकर और बदमाश निडर होकर रहते है, गलती करके भी हमेशा लड़ने तैयार रहते है, मौल्यवान समय की बर्बादी करते है, युवा सोशल मीडिया के नशेड़ी बन गये है, कोरोना महामारी में भी बड़ी संख्या में लोग कोरोना नियम का उल्लंघन करते है, सरकारी नियम और ट्रैफिक नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जाती है, आजकल हर कोई कहता है कि जमाना खराब है लेकिन जमाना तो हम सभी से मिलकर ही बना है, पालक भी कहते है कि बच्चे बहुत बिगड़ गये है, बच्चों में अपराधवृत्ति लगातार बढ़ रही है, फैशन और नशे की ओर आकर्षित हो रहे है लेकिन क्या पालक बच्चों को सही परिवेश निर्माण करके दे रहे है? माता-पिता स्वयं अक्सर बच्चों के सामने अनुचित व्यवहार का प्रयोग करते हैं और चाहते है कि उनके बच्चे समाज के सुजान नागरिक बनें लेकिन यह कभी न भूलें कि बच्चों को पहली सीख घर से ही मिलती है और बाद में बाहर से। कितना भी पैसा, शोहरत, रसूख हो लेकिन इंसानियत ही न हो तो आप इंसान कहलाने के काबिल नही हो सकते।
पालको की बच्चों की ओर थोड़ी सी भी लापरवाही बच्चों के साथ ही सम्पूर्ण मानव जाति के लिए अत्यंत घातक सिद्ध होती है। पालको से प्रार्थना है कि जिंदगी में आप अपने बच्चों को कुछ दो या ना दो लेकिन अच्छे संस्कार जरूर देना, अच्छे संस्कार ही अच्छा आचरण व्यवहार सिखाते है, जीवन के हर समस्या से लड़ना सिखाते है और अच्छा इंसान बनाते है। आपके द्वारा दिये गये संस्कार बच्चो का संपूर्ण जीवन सुखमय बना देते है। समाज में हजारो स्वार्थियों के बाद एक परोपकारी नजर आता है, जहां एक व्यक्ति की सीमा समाप्त होती है, वहीं दूसरे व्यक्ति की सीमा शुरू होती है इसलिए कभी भी अपनी सीमा नहीं लांघनी चाहीये। कृपया लोगों में प्रसिद्धी पाने व सिर्फ फोटो खींचने के लिए, असहायों की मदद ना करें, अच्छा काम करके भूल जाये और आगे बढते रहें। जन्म इंसान के रूप में मिला है तो इंसानियत से जीना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। जीवन में अच्छे कर्म करने की खुशी आप कहीं से नहीं खरीद सकते, वह आपके अच्छे कर्मों से ही मिलेगी। बुरे कर्म करके इंसान खुश नहीं रह सकता। इंसान की छोटी सी जिंदगी बुरे कामों में न गंवाएं, ईमानदारी और स्वाभिमान के साथ गौरवान्वित होकर मानव की तरह जिएं।
डॉ. प्रितम भि. गेडाम


