शायरी याद आते ही जहन मे जो पहले नाम आता है वो है मिर्जा गालिब, मिर्जा गालिब के बगैर शायरी का सफर अधूरा है मिर्जा असदुल्लाह बेग खान उर्फ गालिब उर्दू-फारसी के सर्वकालिक महान शायर खुद गजलों और शायरी के माध्यम से अपने मन और देश के मिज़ाज को लोगों तक पहुँचाया करते थे। उन्होंने जिस शेरोशायरी की रचना की, वह लोगों की ज़ुबान और जहन पर बनी हुई है। गालिब को शायरी के पर्याय के रूप में भी जाना जाता है। गालिब की रचना भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में पसंद की जाती है। उन्हें भारतीय भाषा में फारसी कविता के प्रवाह को लोकप्रिय बनाने का श्रेय भी दिया जाता है। गालिब द्वारा लिखे गए पत्र, जो उस समय प्रकाशित नहीं हुए थे, उन्हें भी उर्दू लेखन के महत्वपूर्ण दस्तावेज़ माना जाता है।
मुग़लों के पतन के दौरान, उन्होंने मुग़लों के साथ बहुत समय बिताया। मुगल साम्राज्य के पतन के बाद, ब्रिटिश सरकार ने गालिब की अनदेखी की और उन्हें भुगतान की जानेवाली पेंशन को रोक दिया। वह अपने नाम की हर रचना मिर्जा, असद या गालिब के नाम से लिखते थे, इसलिए वे इसी नाम से प्रसिद्ध हुए।
मिर्जा गालिब का व्यक्तित्व बहुत आकर्षक था। वह वस्त्र विन्यास पर विशेष ध्यान रखते थे। खाने-खिलाने के शौकीन, स्वादिष्ट भोजन के प्रेमी थे। मिर्जा गालिब जीवन के संघर्षों से दूर नहीं भागते थे उन्होंने संघर्ष को जीवन का एक हिस्सा और एक अनिवार्य भाग माना। वह इंसान की भावनाओं और विचारों के उच्च संबंध को वर्णन करने में बहुत माहिर थे, और उनकी यह वर्णनशैली एक ऐसे नये तरीके से थी की इसे पढकर पाठक मोहित हो जाते थे। उनके स्वभाव में हास्य और वक्रता भी थी जो उनके शायरी से झलकती थी। ये सभी लक्षण उनकी कविता में भी परिलक्षित होते हैं। वह मदिराप्रेमी भी थे, इसलिए मदिरा के संबंध में, उन्होने अपनी भावनाये व्यक्त की है और वे शेर इतने मजाकिया और विनोदी है कि उनका जोड उर्दू कविता में अन्यत्र नहीं मिलता। वह बेहद शिष्ट और मिलनसार थे। उनके दोस्तों का बडा वर्ग था जिसमे सभी धर्मों और प्रांतों के लोग मौजूद थे और वे सर्व धर्मप्रिय व्यक्ति थे। इस उदार व्यक्तित्व के धनी और इस उदार दृष्टि के बावजूद आत्मभिमानी थे।
मिर्जा गालिब की रचनाये
मिर्जा गालिब ने न केवल शेरो-शायरी कविता में, बल्कि गद्य लेखन में भी एक नई राह प्रशस्त की है। अपनी रचनाओं में सरल शब्दों का प्रयोग किया है। उर्दू गद्य लेखन की नींव के कारण, उन्हें आधुनिक उर्दू गद्य का जन्मदाता भी कहा जाता है। उनकी अन्य रचनाएँ लतायफे गैबी, दुरपशे कावेयानी, नाम-ए-गालिब, मेहनीम, आदि गद्य में हैं। फारसी के कुलियात मे फारसी कविताओं का संग्रह है। दस्तंब मे उन्होने 1857 ईं. के बलवे का आंखो देखा हाल फारसी गद्य में लिखा गया है इसके अलावा उनका उर्दू-ए-हिंदी, उर्दू-ए-मुअल्ला भी मौजूद है। उनकी रचनाएँ देश की तत्कालीन, राजनीतिक, आर्थिक स्थिति का वर्णन करती हैं। उनकी सुंदर शायरी का संग्रह दीवान-ए-गालिब के रूप में 10 भागों में प्रकाशित हुआ है, जिसका कई देशी और विदेशी भाषाओं में अनुवाद किया गया है।
गालिब की शायरी ने उर्दू अदब को नए पंख और नया आसमान दिया है। मिर्जा गालिब का नाम उर्दू शायरी मे शिखर पर हमेशा बरकरार रहेंगा। उर्दू और फारसी के सर्वश्रेष्ठ शायर के रूप में उनकी प्रतिष्ठा दूर-दूर तक फैल गई और अरब और अन्य देशों में बहुत लोकप्रिय हो गए। गालिब की शायरी का एक बड़ा हिस्सा फारसी में है, लेकिन उर्दू में कम है, पर जितना भी लिखा गया है, वह लोगों को आने वाले कई सदियों तक सोचने पर मजबूर करने के लिए काफी है। गालिब की शायरी की सबसे खूबसूरत बात यह है कि वह किसी एक रंग या एक संवेदना से नहीं बंधी हैं, उनका शेर हर मौके पर मौजूद है। गालिब संभवतः उर्दू के एकमात्र ऐसे शायर हैं जिनका कोई न कोई शेर जीवन के अवसर पर जरूर आधारित है। गालिब की शायरी में, एक तड़प, एक तंज, एक चाहत, एक उम्मीद, एक आशिकाना अंदाज़ देखने को मिलता है जो आसानी से पाठकों के दिल को छू जाती है।
मिर्जा गालिब के जीवन पर अनेक फिल्मों, धारावाहिकों और नाटकों का मंचन किया गया है। हालाँकि, गालिब गजलों की दुनिया में बहुत प्रसिद्ध हुए और उनके राह पर देशो-दुनियाँ के गायक भी चल पडे। जगजीत सिंह, मेंहदी हसन, आबिदा परवीन, फ़रीदा खानम, टीना सानी, बेगम अख्तर, गुलाम अली, राहत फतेह अली खान कुछ ऐसे ही गायक है। भारत और पाकिस्तान सरकार की ओर से मिर्जा गालिब पर सिक्के, डाक टिकट जारी किए गए। मिर्जा गालिब ने जो दुनिया को दिया है वह अतुलनीय है। अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर बेहतरीन कार्यों के लिए मिर्जा गालिब के नाम पर कई पुरस्कार और सम्मान दिए जाते हैं। गालिब संग्रहालय दिल्ली में बनाया गया है। गालिब अकादमी, गालिब संस्थान, गालिब हवेली देश में प्रसिद्ध है। पूरी दुनिया में उनकी याद में मुशायरों का आयोजन किया जाता है। मिर्जा गालिब हमेशा अपनी रचनाओं से पाठकों के दिलों में राज करेंगे चाहे कितनी भी सदिया गुजर जाये और वे आज भी नए रचनाकारों को प्रेरणा देते है और हमेशा प्रेरित करते रहेंगे। गालिब साहब के जन्मदिन के मौके पर कुछ ऐसे ही चंद शेर उनकी प्रसिद्ध रचनाओं से पेश करते हैं।
हाथों के लकीरो मे मत जा ए गालिब
किस्मत उनकी भी होती है जिनके हाथ नही होते।
फिर उसी बेवफा पे मरते है
फिर वही जिंदगी हमारी है
बेखुदी बेसबब नही गालिब
कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है।
आह को चाहीए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होते तक।
बागीचा-ए-अतफाल है दुनिया मिरे आगे
होता है शब-ओ-रोज तमाशा मिरे आगे।
बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
आदमी को भी मयस्सर नही इंसाँ होना।
दिल-ए- नादाँ तुझे हुआ क्या है
आखिर इस दर्द की दवा क्या है।
हम को मालूम है जन्नत की हकीक़त लेकिन
दिल के खुश रखने को गालिब ये खयाल अच्छा है।
इशरत-ए-कतरा है दरिया मे फना हो जाना
दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना।
हाँ मय-खाने का दरवाज़ा गालिब और कहाँ वाइज
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले।
डाॅ. प्रितम भि. गेडाम
