शुद्ध पानी, स्वच्छ ऑक्सीजन, सूर्यप्रकाश और
पोषक आहार जीवन का आधार है, इसके बगैर जीवन की कल्पना बेमानी है। पृथ्वी पर मनुष्य
की स्वार्थ वृत्ति और लापरवाही ने समस्त जीव सृष्टि के संकट निर्माण कर हानि पहुंचाई
है, जो घटक जीवन का आधार है वहीं मृत्यु का कारण बन गए है। अशुद्ध पानी, दूषित हवा,
हानिकारक रसायन युक्त विषाक्त भोजन और ओज़ोन परत के नुकसान से जहरीला सूर्यप्रकाश के
कारण हर साल करोड़ों मनुष्य जानलेवा बीमारियों से ग्रसित होकर असमय जान गवाते है। ग्लोबल
वार्मिंग के खतरे से परेशानी अधिक बढ़ गई है। इस
साल की गर्मी में लोगों ने जहरीले सूर्य प्रकाश की तपिश में एक नई समस्या का अनुभव
किया, ताप के साथ में लोगों को घबराहट, सांस लेने में दिक्कत, ज्यादा पसीना बहने से
कमजोरी की समस्या हुई। ग्लोबल वार्मिंग का यह सीधा असर है हमारे स्वास्थ्य पर। पहले
धूप में बाहर जाने पर ऐसा कभी महसूस नहीं किया गया लेकिन अभी की धुप में अधिकतर लोग
गश खाकर गिरने लगे है, धुप के कारण हर साल मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है।
हमारे पास खूब पैसा है,
हमारी सभी उत्पाद खरीदने की हैसियत है, इसलिए हमने खरीदना नहीं है। उस वस्तु या खाद्य
की सच में हमें बहुत आवश्यकता है, इसलिए हमने खरीदना है क्योंकि अक्सर नई खरीदारी कचरें
और पर्यावरण की हानि को बढ़ावा देती है। जरूरत से ज्यादा गाड़ियां सड़क पर दौड़ रही
है, अधिकतर घरों में आधुनिक उपकरण है, झूठा दिखावा और फैशन ने जरूरत की परिभाषा ही
बदल दी, जिससे बड़े पैमाने पर घातक ई-अपशिष्ट तैयार हो रहा है। लगातार प्रदूषण में बढ़ोतरी
और जीवनमान गिर रहा है। स्वास्थ्य
समस्या चरम पर पहुंच गई है, हमारी लापरवाही की बहुत बड़ी
कीमत पर्यावरण और समस्त जीव सृष्टि को झेलनी पड़ रही है। इसके लिए आने वाली पीढ़ी हमें
कभी माफ नहीं करेगी, क्योंकि उनके हिस्सें के भी प्राकृतिक संसाधन का हमने अति दोहन
करके नष्ट कर रहे है। शहर की सड़कों पर लोगों से ज्यादा वाहनों की भीड़ नजर आती है।
कटते जंगल, खत्म होते वन्यजीव, लोगों द्वारा अतिक्रमण, प्रदूषित जल स्त्रोत, सरकारी
नियमों और कानून की अवहेलना प्रकृति को विनाश की ओर ले जा चुकी है। वन्यजीव, पशु-पक्षी,
जल सृष्टि इन सबके जीवन से प्राकृतिकता छीन कर उन्हें हम तबाह कर रहे है। हम अपनी लालसा
में पर्यावरण का नुकसान करके खुद का फायदा नहीं, बल्कि खुद को और मानव जीवन को बर्बाद
कर रहे है।
देश में इस साल के पहले नौ माह में 93 प्रतिशत दिनों में गर्मी और ठंडी
लहरें, चक्रवात, बिजली, भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन जैसी गंभीर मौसमी घटनाएं हुईं।
पिघलते ग्लेशियर और गर्म होते महासागर सीधे तौर पर जीवों को नुकसान पहुंचाते हैं, उनके
प्राकृतिक आवासों को नष्ट करते हैं और लोगों की आजीविका और समुदायों पर कहर बरपाते
हैं। जलवायु परिवर्तन बिगड़ने से प्राकृतिक आपदाएं लगातार गंभीर होती जा रही हैं। शहरों
से अधिकतर बहने वाली नदियाँ तो गंदे नाले का रूप धारण कर चुकी है। नदियाँ औद्योगिक
कचरे से प्रदूषित हो गई हैं और इसकी समृद्ध जैव विविधता गंभीर रूप से खतरे में है।
पर्यावरण
प्रदर्शन सूचकांक 2024 अनुसार, समग्र सूचकांक में भारत 180 देशों में से 176वें स्थान
पर है। प्रदूषण के मामले में भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर है। बांग्लादेश दुनिया
का सबसे प्रदूषित देश है। स्विस वायु गुणवत्ता निगरानी संस्था आयक्यूएयर द्वारा जारी
रिपोर्ट अनुसार, भारत को 2023 में बांग्लादेश और पाकिस्तान के बाद तीसरा सबसे प्रदूषित
देश घोषित किया गया। भारत 2024 ग्लोबल नेचर कंजर्वेशन इंडेक्स में 45.5 बेहद खराब स्कोर
के साथ 176वें स्थान पर है। यह 180 देशों में से किरिबाती (180), तुर्की (179), इराक
(178) और माइक्रोनेशिया (177) के साथ सबसे कम रैंक वाले पाँच देशों में से एक है। भारत
की निम्न रैंकिंग अकुशल भूमि प्रबंधन और बढ़ती जैव विविधता के खतरों के कारण है।
भारत हर साल लगभग
5.8 मिलियन टन प्लास्टिक जलाता है और 3.5 मिलियन टन प्लास्टिक कचरे के रूप में पर्यावरण
में छोड़ता है।
दिल्ली में
धुंध का मौसम आम तौर पर हर सर्दियों में होता है, और 33 मिलियन लोगों की आबादी वाला
राजधानी क्षेत्र लगातार दुनिया के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में शुमार होता है। पिछले
हफ्ते, शहर के अधिकारियों ने स्कूल बंद करने का आदेश दिया। व्यवसायों और कार्यालयों
को अब आधी क्षमता पर खोलने का आदेश दिया गया है, क्योंकि नई दिल्ली में बढ़ता वायु
प्रदूषण इस सप्ताह "खतरनाक" स्तर पर पहुंच गया है। वायु गुणवत्ता सूचकांक
493 की "गंभीर प्लस" रीडिंग दर्ज की गई, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा
निर्धारित सीमा से 30 गुना अधिक है। निरी के अनुमान अनुसार, दिल्ली में प्रतिदिन लगभग 8000 मीट्रिक टन ठोस
कचरा उत्पन्न होता है।
देश में कणीय
वायु प्रदूषण के मुख्य कारणों में औद्योगिक और वाहन उत्सर्जन, निर्माण से धूल और मलबा,
बिजली के लिए तापीय ऊर्जा पर निर्भरता, अपशिष्ट जलाना, कम आय और ग्रामीण परिवारों द्वारा
खाना पकाने के लिए लकड़ी और गोबर का उपयोग शामिल हैं। भारत ने 1 जुलाई, 2022 से चयनित
19 एकल-उपयोग प्लास्टिक वस्तुओं के निर्माण, वितरण, स्टॉक, बिक्री और खपत पर प्रतिबंध
लगा दिया है। कैरी बैग (माइक्रोन मर्यादा से कम) एकल-उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तु है
जिस पर सबसे अधिक प्रतिबंध है। लेकिन आज भी बहुत सी जगह प्रतिबंधित प्लास्टिक बैग का
उपयोग धड़ल्ले से नजर आता है। ऐसा नहीं कि लोग जानते नहीं है, परंतु स्वार्थवृत्ति और
लापरवाही ज्यादा प्रिय है, चाहे पर्यावरण का संतुलन ही बिगड़ जायें। हर कोई अपना प्रत्यक्ष
फायदा देखते है, अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें ही होने वाले स्वास्थ्य का नुकसान नहीं देखतें।
आज हमें सुकून के पल ढूंढना है तो प्रकृति के अलावा कोई सहारा नहीं है। प्रकृति ही
जीवन है।
प्रति व्यक्ति
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के मामले में अलग-अलग देशों में व्यापक रूप भिन्न है। संयुक्त
राज्य अमेरिका और रूसी संघ में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन 6.6 टन कार्बन डायॉक्साईड समकक्ष
के वैश्विक औसत से लगभग तीन गुना है, जबकि भारत और अफ्रीकी संघ में यह वैश्विक औसत
के आधे से भी कम है। वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक आय वाली 10 प्रतिशत आबादी लगभग आधे
उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार है। हम सभी पर्यावरण को बचाने में अहम भूमिका निभा सकते
है। हम अपने घर में ऊर्जा स्त्रोतों एवं उपकरणों में गुणवत्तापूर्ण बदलाव करके पर्यावरण
संरक्षण में बेहतर सहभाग दे सकते है, उदाहरण के लिए बेहतर इन्सुलेशन के माध्यम से तेल
या गैस भट्टी को इलेक्ट्रिक हीट पंप से बदलने से कार्बन फुटप्रिंट को प्रति वर्ष
900 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य तक कम किया जा सकता है। अपने घर को कोयले
से चलने वाली बिजली के बजाय पवन या सौर जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में बदलने से,
कार्बन फुटप्रिंट को प्रति वर्ष 1.5 टन कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य तक कम किया जा सकता
है। अक्सर सफर के लिए ट्रेन, बस या सार्वजनिक परिवहन का विचार करें। कार का उपयोग करने
वाली जीवनशैली की तुलना में कार-मुक्त जीवन कार्बन फुटप्रिंट को प्रति वर्ष 2 टन कार्बन
डाइऑक्साइड समतुल्य तक कम कर सकता है। डीजल या गैसोलीन से चलने वाली कार के बजाय इलेक्ट्रिक
वाहन का उपयोग करने से कार्बन फुटप्रिंट में प्रति वर्ष 2 टन कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य
की कमी हो सकती है। एक हाइब्रिड वाहन प्रति वर्ष 700 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य
कम कर सकता है।
विमान उड़ानों
में बहुत ज्यादा ईंधन लगता है, लंबी दूरी के लिए जहां संभव हो, लोगों से वर्चुअली मिलें।
एक छोटी लंबी दूरी की उड़ान को टालकर कार्बन फ़ुटप्रिंट को लगभग 2 टन कार्बन डाइऑक्साइड
समतुल्य तक कम किया जा सकता है। जलवायु की सुरक्षा के लिए, संभव हो सकें तो उत्पाद
कम खरीदें, काम चल सकें तो सेकेंड-हैंड खरीदें और जो उत्पाद का उपयोग हो सकता हैं उनकी
मरम्मत करके पुनः उपयोग में लाये। 2019 में अकेले प्लास्टिक से 1.8 बिलियन मीट्रिक
टन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन हुआ, जो पूर्ण वैश्विक का 3.4 प्रतिशत है। 10 प्रतिशत से
भी कम का पुनर्चक्रण किया जाता है, एक बार प्लास्टिक को त्यागने के बाद यह सैकड़ों
वर्षों तक पर्यावरण से ख़त्म नहीं होता है। नए कपड़े की कम खरीदी और अन्य उपभोग्य वस्तुएं
कम मात्रा में खरीदने से भी कार्बन फुटप्रिंट कम हो सकता है। उत्पादित प्रत्येक किलोग्राम
कपडे से लगभग 17 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य उत्पन्न होता है।
मिश्रित आहार
के बजाय शाकाहारी आहार पर आने से कार्बन फुटप्रिंट को प्रति वर्ष 500 किलोग्राम कार्बन
डाइऑक्साइड समतुल्य तक कम किया जा सकता है। केवल वही खरीदें जिसकी आपको आवश्यकता है,
जो आप खरीदते हैं उसका पूर्ण उपयोग करें चाहे वह उत्पाद हो या अन्न, कचरें का कम निर्माण
हो इसका ध्यान रखें। भोजन की बर्बादी को कम करने से कार्बन फ़ुटप्रिंट में प्रति वर्ष
300 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य की कमी हो सकती है। दूसरों को भी ऐसा करने
के लिए प्रेरित करें सार्वजनिक स्थानों की सफाई में शामिल होना चाहिए। लोग हर साल
2 अरब टन कूड़ा फेंक देते हैं। लगभग एक तिहाई पानी की आपूर्ति बाधित होने से लेकर मिट्टी
में जहर घोलने तक पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। इस समस्या को हम अपनी सूझबूझ और
सहभागिता से खत्म कर सकते है। पर्यावरण की रक्षा हम सबकी सुरक्षा है, खुद के फायदे
से पहले पर्यावरण का फायदा देखें।
डॉ. प्रितम भी. गेडाम





























































