रविवार, 26 जून 2022

नशे के गर्भ में पल रहा देश का युवा भविष्य (अंतर्राष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस विशेष – 26 जून 2022) The future of the country's youth is growing in the womb of drugs (International Anti-Drug Day Special – 26 June 2022)

 

हर साल 26 जून को नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य दुनिया को नशीली दवाओं के दुरुपयोग से मुक्त करने के लक्ष्य को प्राप्त करने में कार्रवाई और सहयोग को मजबूत करना है। इस वर्ष की थीम "स्वास्थ्य और मानवीय संकट में नशीली दवाओं की चुनौतियों का समाधान" है। नशा हमारे समाज का एक ऐसा नासूर है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी को लगातार लील रहा है, छोटे बच्चों से लेकर युवा और बुजुर्ग भी इसके गिरफ्त में है। सस्ते नशे के लिए घातक रासायनिक द्रव्यों (पेट्रोल, थिनर, हैंड सॅनिटायझर, व्हाइटनर, दर्दनिवारक लोशन, क्लीनिंग लिक्विड) को सूंघा जाता है, सड़क किनारे या सुनसान जगह पर बच्चे ऐसा नशा करते नजर आते है। थोडेसे भ्रामक क्षण की लालसा में अनमोल जीवन को नशे में अनुचित व्यवहार और गंभीर बीमारियों के साथ दर्दनाक तरीके से खत्म किया जा रहा है। नशा जिंदगी के साथ ही स्वास्थ्य, घर-परिवार, रिश्ते-नाते, आर्थिक, सामाजिक मान-सम्मान प्रतिष्ठा भी खाक में मिला देता है, नशेड़ियों से कोई भी सभ्य इंसान मधुर संबंध नहीं रखना चाहता। अनगिनत पैसा खर्च करके भी हम एक पल की जिंदगी खरीद नहीं सकते और नशे का जहर हम ख़ुशी से पीकर झूमते है, दुनिया में इससे बड़ी नासमझी और क्या होगी कि हम खुद ही मादक जहर का मजे से सेवन कर रहे है। रोज बड़ी मात्रा में नशीले पदार्थों की खेप पकड़ी जा रही है, करोडों का माल जप्त किया है ऐसी अक्सर खबरें मिलती है, दिनोंदिन नशे के मामले बड़ी मात्रा में बढ़ रहे है। 

नशा एक ऐसी बीमारी है जो मस्तिष्क और व्यवहार को प्रभावित करती है। जब आप नशीले पदार्थों के आदी होते हैं, तो आप उनका उपयोग करने की इच्छा का विरोध नहीं कर पाते, भले ही नशीले पदार्थों से कितना भी नुकसान हो। तंबाकू, अल्कोहल से लेकर मारिजुआना, ओपिओइड्स, हेरोइन, बेंजोडायजेपाइन, मेथमफेटामाइन, कोकीन, भांग, स्टेरॉयड जैसे अनेक जहरीले मादक पदार्थों का सेवन किया जाता है। देश में, भांग, हेरोइन और अफीम सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली नशीली दवाएं हैं लेकिन मेथामफेटामाइन का भी प्रचलन बढ़ रहा है। नशीली दवाओं का इंजेक्शन लगाने वाले उपयोगकर्ताओं की संख्या में भी काफी वृद्धि हुई है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हेरोइन के एक मिलियन उपयोगकर्ता हैं, लेकिन अनौपचारिक अनुमान बताते हैं कि 5 मिलियन एक वास्तविक आंकड़ा है।

ड्रग्स एंड क्राइम पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (यूएनओडीसी) की वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2021 अनुसार, पिछले साल कोविड-19 महामारी के दौरान दुनिया भर में लगभग 275 मिलियन लोगों ने ड्रग्स का इस्तेमाल किया, जो 2010 से 22 प्रतिशत अधिक है। मादक द्रव्यों का सेवन करने वाले व्यक्तियों की कुल संख्या का 13 प्रतिशत, अर्थात 36.3 मिलियन लोग मादक द्रव्यों के सेवन द्वारा संबंधित विकारों से पीड़ित हैं। नवीनतम वैश्विक अनुमानों के अनुसार, 5 से 64 वर्ष की आयु के लगभग 5.5 प्रतिशत लोगों ने पिछले वर्ष में कम से कम एक बार नशीली दवाओं का उपयोग किया है। अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर 11 मिलियन से अधिक लोग मादक दवाओं का इंजेक्शन लगाते हैं, जिनमें से आधे हेपेटाइटिस सी से पीड़ित हैं। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी के अनुसार, अकेले 2017 में अवैध दवाओं से दुनिया भर में लगभग 7.5 लाख लोगों की मौत होने का अनुमान है। भारत में मारे गए लोगों की अनुमानित संख्या 22,000 थी। कुछ अनुमानों के अनुसार, वैश्विक नशीले पदार्थों की तस्करी का व्यापार 650 अरब डॉलर का है। 2019 में भारत में मादक द्रव्यों के उपयोग की सीमा और पैटर्न पर राष्ट्रीय सर्वेक्षण अनुसार, देश की आबादी का लगभग 2.1% (2.26 करोड़ व्यक्ति) ओपिओइड का उपयोग करता है जिसमें अफीम हेरोइन, और फार्मास्युटिकल ओपिओइड शामिल हैं। एम्स की रिपोर्ट के अनुसार, 10-75 वर्ष (3.1 करोड़ व्यक्ति) आयु वर्ग के लगभग 2.8% भारतीय भांग, गांजा और चरस का उपयोग कर रहे थे। भारत में पिछले एक दशक में मादक द्रव्यों के सेवन और शराब की लत के कारण आत्महत्या करने वालों की संख्या दोगुनी से अधिक हो गई है।

नशे से शारीरिक और मानसिक परिवर्तन होते है, जैसे लाल आंखें, सांसों में दुर्गंध, खान-पान और नींद में बदलाव, चिड़चिड़ापन, गाली-गलौज करना, अस्वछता, शरीर और मस्तिष्क अनियंत्रित, कपकपी, बेवजह बड़बड़ाना, अपने अलावा अन्य का महत्त्व न समझना, अपने में ही खोये रहना, मादक पदार्थो के लिए चोरी करना या झूठ बोलना, नाटकीय दिखावा करना तथा सबसे बड़ा दोष नशे के हालत में अनुचित निर्णय लेना है। दुनिया में सबसे ज्यादा अपराध नशे के लिए या नशे की हालत में होने के कारण से होते है। नशीली दवाएं भावनाओं, मनोदशाओं, निर्णय लेने, सीखने और स्मृति को प्रभावित करती हैं। नशीली दवाओं के दुरुपयोग के कारण मस्तिष्क में लंबे समय तक चलने वाले परिवर्तन से अवसाद, आक्रामकता, व्यामोह और मतिभ्रम हो सकता है। नशीली दवाओं का सेवन और लत शरीर के लगभग हर अंग को प्रभावित करती है। साथ ही अन्य स्वास्थ्य समस्याओं जैसे कैंसर, दिल की बीमारी, फेफड़ों की बीमारी, मानसिक विकार और एचआईवी / एड्स, हेपेटाइटिस और तपेदिक जैसे संक्रामक रोग भी होते है।

अच्छे संस्कार, अच्छी परवरिश और पग-पग में बच्चों को योग्य मार्गदर्शन देना ही माता-पिता की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है, सिर्फ पैसा खर्चने से या लाड-प्यार देने से यह जिम्मेदारी पूरी नहीं होती है। वक्त रहते बच्चो को नहीं संभाला तो यह बच्चे बड़े होकर समाज के लिए नासूर बनते है और उन माता-पिता की लापरवाही की सजा पुरे समाज को भुगतनी पड़ती है। जाने-अनजाने में अक्सर हमारे आसपास नशे संबंधित अनैतिक गतिविधियां नजर आती है, लेकिन अधिकतर हम लोग ध्यान नहीं देते और अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों से दूर भागते है, परन्तु हमारी यह बुजदिली देश-दुनिया के लिए अत्यधिक घातक सिद्ध होती है। जिंदगी बर्बाद करने में और अपराधों को बढ़ाने में नशा सबसे ज्यादा जिम्मेदार है, जो लगातार बढ़ रहा है। समाज में ड्रग्स की अवैध तस्करी की समस्या के बारे में जागरूकता बढ़ाने में सबकी मदद से हम मिलकर विश्व में इस समस्या से निपट सकते हैं। अगर आपको लगता है कि आपके किसी जानने वाले को नशा संबंधित कोई समस्या है, तो तुरंत मदद लें। व्यसनी को जितनी जल्दी उपचार मिले, उतना ही अच्छा है। प्रधानमंत्री मोदीजी ने मन की बात सत्र के दौरान नशामुक्ति के हेतु समाधान तलाश रहे लोगों की मदद के लिए एक राष्ट्रीय टोल-फ्री हेल्प लाइन 1800-11-0031 का शुभारंभ किया है। नशीली दवाओं की तस्करी/दुर्घटना या गंभीर घटनाओं की कोई भी जानकारी हो तो कृपया तुरंत नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के टेलीफोन नंबर +91-11-26761000 पर संपर्क कर सकते है। नशा मुक्ति के लिए हमारे साथ अस्पताल, एनजीओ, नशा मुक्ति केंद्र और अन्य मदद समूह संगठन सदैव तत्पर है। नशा इंसान को मानसिक तौर पर गुलाम बनाता है, किसी भी चीज का अत्यधिक व्यसन बर्बादी लाता है। आज हमारे आधुनिक समाज में जहरीले नशे के मादक द्रव्यों के साथ-साथ खरीदारी की लत, फ़ास्ट फ़ूड की लत, टीवी की लत, सोशल मीडिया की लत, इंटरनेट गेमिंग की लत भी बहुत घातक स्तर पर बढ़कर मानसिक तनाव और घरेलू कलह की वजह बनी है। जिंदगी का मोल समझें, अपना और अपनों का ख्याल रखें, जिम्मेदार होकर स्वाभिमानी और समाधानी बनें, तनावमुक्त और नशामुक्त जीवन जियें।

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

नशेचा गर्कात देशातील तरुणाई (जागतिक अंमली पदार्थ विरोधी दिन विशेष - २६ जून २०२२) Youth of the country in the grip of drug addiction (World Anti-Drug Day Special - June 26, 2022)

 

मादक पदार्थांचे सेवन आणि अवैध तस्करी विरुद्ध आंतरराष्ट्रीय दिवस दरवर्षी २६ जून रोजी साजरा केला जातो. जगाला अंमली पदार्थांच्या व्यसनापासून मुक्त करण्याचे उद्दिष्ट साध्य करण्यासाठी कृती आणि सहकार्य मजबूत करणे हे या दिवसाचे उद्दिष्ट आहे. या वर्षीची थीम "आरोग्य आणि मानवतावादी संकटातील अंमली पदार्थांचे आव्हाने सोडवणे" आहे. अंमली पदार्थांचे व्यसन हे समाजाचे एक असे संकट आहे, जे सतत पिढ्यानपिढ्या पसरत चालले आहे, लहान मुलांपासून तरूण आणि वृद्धांपर्यंत सुद्धा त्याच्या विळख्यात आहेत. स्वस्त नशेसाठी घातक रासायनिक पदार्थांचा उग्र वास (पेट्रोल, थिनर, हँड सॅनिटायझर, व्हाइटनर, वेदना कमी करणारे लोशन, क्लिनिंग लिक्विड) ओढला जातो, मुले रस्त्याच्या कडेला किंवा घाण निर्जन ठिकाणी अशी नशा घेताना दिसतात. थोड्याशा गुंगीत टाकणाऱ्या क्षणाचा मोहात व्यसनाधीनाचे अयोग्य वर्तन आणि गंभीर आजारांनी अनमोल जीव वेदनादायकपणे संपविले जात आहे. जीवनाबरोबरच नशा आरोग्य, कुटुंब, नातेसंबंध, आर्थिक, सामाजिक मान-प्रतिष्ठाही नष्ट करते, कोणताही सुसंस्कृत माणूस नशा करणाऱ्यांशी सौहार्दपूर्ण संबंध ठेवू इच्छित नाही. असंख्य पैसा खर्च करूनही आपण एक क्षणाचे आयुष्य विकत घेवू शकत नाही आणि आपण आनंदाने नशेचे विष प्राशन करतोय, यापेक्षा मूर्खपणा या जगात कोणता असू शकतो की आपण स्वतः नशेच्या आहारी जावून जीव संपवतोय. दररोज मोठ्या प्रमाणात अमली पदार्थांची खेप पकडली जावून हजारो कोटींचा माल जप्त करण्यात आला आहे, अशा बातम्या वारंवार येत असतात, दिवसेंदिवस अमली पदार्थांच्या व्यसनाची प्रकरणे मोठ्या प्रमाणात वाढत आहेत.

व्यसन हा एक आजार आहे ज्याचा मेंदू आणि वर्तनावर वाईट परिणाम होतो. जेव्हा तुम्हाला ड्रग्सचे व्यसन असते, तेव्हा तुम्ही ते वापरण्याच्या प्रतिकार करू शकत नाही, मग ते तुम्हाला कितीही नुकसान करीत असले तरीही. तंबाखू, अल्कोहोलपासून ते गांजा, ओपिओइड्स, हेरॉइन, बेंझोडायझेपाइन्स, मेथॅम्फेटामाइन, कोकेन, भांग, स्टिरॉइड्स सारखे अनेक विषारी अंमली पदार्थ वापरली जातात. देशात, भांग, हेरॉईन आणि अफू ही सर्वात जास्त वापरली जाणारी अंमली पदार्थं आहेत परंतु मेथॅम्फेटामाइनचा वापर देखील वाढत आहेत. ड्रग्सचे इंजेक्‍शन घेणाऱ्यांच्या संख्येतही लक्षणीय वाढ झाली आहे. संयुक्त राष्ट्रांच्या अहवालानुसार, भारतात हेरॉईनचे दहा लाख वापरकर्ते आहेत, परंतु अनधिकृत अंदाजानुसार ५ दशलक्ष ही वास्तविक आकडेवारी आहे.

युनायटेड नेशन्स मधील ऑन ड्रग्ज अँड क्राइम्स (यूएनओडीसी) च्या वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट २०२१ नुसार, गेल्या वर्षी कोविड-१९ महामारी दरम्यान जगभरात सुमारे २७५ दशलक्ष लोकांनी ड्रग्सचा वापर केला, २०१० च्या तुलनेत २२ टक्के वाढ झाली आहे. व्यसन करणाऱ्यांच्या एकूण संख्येपैकी १३ टक्के, म्हणजे ३६.३ दशलक्ष लोक अंमली पदार्थांच्या वापराच्या विकारांनी ग्रस्त आहेत. ताज्या जागतिक अंदाजानुसार, ५ ते ६४ वयोगटातील सुमारे ५.५ टक्के लोकांनी गेल्या वर्षी किमान एकदा तरी अंमली पदार्थं वापरले आहे. असा अंदाज आहे की जागतिक स्तरावर ११ दशलक्षाहून अधिक लोक अंमली पदार्थांचे इंजेक्शन घेतात, त्यापैकी निम्मे हेपेटायटीस सी ग्रस्त आहेत. ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीज स्टडीनुसार, बेकायदेशीर औषधांमुळे २०१७ मध्ये जगभरात सुमारे ७.५ लाख लोकांचा मृत्यू झाल्याचा अंदाज आहे. भारतातील अंदाजे मृतांची संख्या २२,००० होती. काही अंदाजानुसार, जागतिक अंमली पदार्थांच्या तस्करीचा व्यापार ६५० अब्ज डॉलर इतका आहे. २०१९ मध्ये भारतातील अंमली पदार्थांच्या वापराच्या प्रमाणात आणि नमुन्यावरील राष्ट्रीय सर्वेक्षणानुसार, देशातील लोकसंख्येपैकी सुमारे २.१% (२.२६ कोटी लोक) ओपिओइड्स वापरतात ज्यात अफू, हेरॉइन आणि फार्मास्युटिकल ओपिओइड्सचा समावेश आहे. एम्सच्या अहवालानुसार, १०-७५ वर्षे वयोगटातील सुमारे २.८% भारतीय (३.१ कोटी लोक) गांजा आणि चरस वापरत आहेत. गेल्या दशकात भारतात अंमली पदार्थांचे सेवन आणि दारूचे व्यसन दुपटीने वाढले आहे.

व्यसनाचा आहारी गेल्यामुळे शारीरिक आणि मानसिक बदल होतात. डोळे लाल होणे, तोंडाची दुर्गंधी येणे, खाण्यापिण्याच्या सवयी आणि झोपेत बदल, चिडचिडपणा, शिवीगाळ करणे, अस्वच्छता, शरीर आणि मन अनियंत्रित, अनावश्यक कुरकुर करणे, स्वतःशिवाय इतरांना महत्त्व न देणे, स्वत:मध्ये हरवणे, व्यसनासाठी चोरी करणे किंवा खोटे बोलणे, नाट्यमय देखावे करणे आणि सर्वात मोठा दोष नशेच्या अवस्थेत अयोग्य निर्णय घेणे हा आहे. जगातील बहुतांश गुन्हे हे नशेमुळे किंवा नशेच्या अवस्थेत होतात. अंमली पदार्थं माणसाच्या भावना, मन, निर्णय क्षमता, शिकवण आणि स्मरणशक्तीवर परिणाम करतात. अंमली पदार्थांच्या सेवनामुळे मेंदूमध्ये दीर्घकाळ होणारे बदल म्हणजे डिप्रेशन, आक्रमकता आणि मतिभ्रम सारखे विकार होऊ शकतात. अंमली पदार्थांचे व्यसन शरीराच्या जवळजवळ प्रत्येक भागावर दुष्परिणाम करते. तसेच इतर आरोग्य समस्या जसे की कर्करोग, हृदयरोग, फुफ्फुसाचे आजार, मानसिक विकार आणि संसर्गजन्य रोग जसे की एचआईवी / एड्स, हिपॅटायटीस आणि क्षयरोग होऊ शकतात.

चांगले संस्कार, चांगले संगोपन आणि प्रत्येक पावलावर मुलांना योग्य मार्गदर्शन करणे ही पालकांची सर्वात मोठी जबाबदारी असते, ही जबाबदारी पैसे खर्चून किंवा लाड पुरवून पूर्ण होत नाही. त्यांनी वेळीच मुलांची काळजी घेतली नाही तर ही मुले मोठी होऊन समाजासाठी नासूर बनतात आणि त्या पालकांच्या निष्काळजीपणाची शिक्षा संपूर्ण समाजाला भोगावी लागते. कळत-नकळत आपण अनेकदा आपल्या आजूबाजूला अंमली पदार्थं संबंधित अनैतिक कृत्ये पाहतो, परंतु आपल्यापैकी बहुतेकजण लक्ष देत नाहीत आणि आपल्या सामाजिक जबाबदाऱ्यांपासून दूर पळतात, परंतु आपला हा मूर्खपणा देशासाठी आणि जगासाठी अत्यंत घातक ठरतो. जीवन उध्वस्त करण्यासाठी आणि वाढत्या गुन्ह्यांसाठी व्यसन सर्वाधिक जबाबदार आहेत, जे सातत्याने वाढत आहे. समाजातील बेकायदेशीर अंमली पदार्थांच्या तस्करीच्या समस्येबद्दल जागरुकता निर्माण करण्यासाठी सर्वांच्या मदतीने आपण एकत्रितपणे जगातील ह्या समस्येचा सामना करू शकतो. जर तुम्हाला वाटत असेल की तुम्हाला किंवा तुमच्या ओळखीच्या कोणाला नशा संबंधित समस्या आहे, तर ताबडतोब मदत घ्यावे. व्यसनी व्यक्तीला जितक्या लवकर उपचार मिळतील तितके चांगले. मन की बात सत्रादरम्यान, पंतप्रधान मोदींनी व्यसनमुक्तीसाठी उपाय शोधत असलेल्या लोकांना मदत करण्यासाठी राष्ट्रीय टोल-फ्री हेल्पलाइन १८००-११-००३१ सुरू केली आहे. तुम्हाला अमली पदार्थांची तस्करी/अपघात किंवा गंभीर घटनांबद्दल काही माहिती असल्यास, कृपया नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्युरोशी +९१-११-२६७६१००० या दूरध्वनी क्रमांकावर त्वरित संपर्क साधावे. व्यसनमुक्तीसाठी रुग्णालये, स्वयंसेवी संस्था, व्यसनमुक्ती केंद्रे आणि इतर मदत गट संस्था आपल्यासोबत नेहमीच तत्पर आहेत. व्यसनाधीनता माणसाला मानसिक गुलाम बनवते, कोणत्याही गोष्टीचे अतिरेकी व्यसन विध्वंस आणते. आज आपल्या आधुनिक समाजात विषारी औषधांसोबतच शॉपिंगचे व्यसन, फास्ट फूडचे व्यसन, टीव्हीचे व्यसन, सोशल मीडियाचे व्यसन, इंटरनेट गेमिंगचे व्यसन हे देखील अतिशय घातक पातळीवर वाढले आहे, ज्यामुळे मानसिक तणाव आणि घरगुती कलह निर्माण होत आहे. जीवनाचे मूल्य समजून घ्या, स्वतःची आणि आपल्या प्रियजनांची काळजी घ्या, जबाबदार व्हा, स्वाभिमानी आणि समाधानी बना, तणावमुक्त आणि व्यसनमुक्त जीवन जगा.

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

मंगलवार, 7 जून 2022

कुपोषण, भुखमरी, खाद्य बर्बादी रोके बगैर खाद्य सुरक्षा असंभव (विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस विशेष - 7 जून 2022) Food security is impossible without preventing malnutrition, hunger, and food waste (World Food Security Day Special - 7 June 2022)


खाद्य सुरक्षा स्वास्थ्य का एक प्रमुख निर्धारक है। यह व्यक्ति और अंततः समाज के अस्तित्व, कल्याण, आजीविका और उत्पादकता को प्रभावित करता है। पर्याप्त सुरक्षित और पौष्टिक भोजन प्राप्त करना जीवन को बनाए रखने और अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने की कुंजी है। खाद्य सुरक्षा यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है कि खाद्य श्रृंखला के उत्पादन से लेकर कटाई, प्रसंस्करण, भंडारण, वितरण और खपत तक हर चरण में भोजन सुरक्षित है। हानिकारक बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी या रसायनों वाले असुरक्षित भोजन से डायरिया से लेकर कैंसर तक 200 से अधिक बीमारियां हो सकती हैं। यह बीमारी और कुपोषण का एक दुष्चक्र भी बनाता है, विशेष रूप से बच्चों, बुजुर्गों और बीमारों को प्रभावित करता है। संयुक्त राष्ट्र ने दूषित भोजन और पानी के स्वास्थ्य प्रभावों पर वैश्विक ध्यान आकर्षित करने के लिए 7 जून को विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस के रूप में घोषित किया है। 2022 की थीम 'सुरक्षित भोजन, अच्छा स्वास्थ्य' है।

दुनिया के अविकसित देशों की तरह भारत में भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिन्हें जीवित रहने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं मिलता है। इतना ही नहीं, उन्हें जो भोजन मिलता है उसमें पोषक तत्वों की भी कमी होती है। इस खाद्य समस्या ने देश की बड़ी आबादी पर गंभीर संकट खड़ा कर दिया है। आज भी बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक लोगों के भूख से मरने की खबरें आ रही हैं। खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार, भारत की लगभग 14.8 प्रतिशत आबादी कुपोषित है। प्यू रिसर्च सेंटर ने बताया था कि भारत में ऐसे लोगों की संख्या पिछले एक साल में तीव्र गति से बढ़ गई हैं जो 150 रुपये प्रति दिन (क्रय शक्ति के आधार पर आय) नहीं कमा सके। सालभर में ऐसे लोगों की संख्या में छह करोड़ की वृद्धि हुई है, जिससे कुल गरीबों की संख्या 13.4 करोड़ हो गई है। 1974 के बाद पहली बार देश में गरीब लोगों की संख्या बढ़ी है लेकिन 45 साल बाद भारत फिर से अत्यधिक गरीबी का देश बन गया है। नीति आयोग ने हाल ही में बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) जारी किया है जिसमें कहा गया है कि हर चार में से एक भारतीय बहुआयामी गरीब है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, खाद्य सुरक्षा, पोषण और खाद्य बचत का अटूट संबंध है। अनुमानित 600 मिलियन अर्थात दुनिया में 10 में से 1 व्यक्ति दूषित भोजन खाने से बीमार पड़ जाते हैं और हर साल 420,000 लोग जान गवाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप 33 मिलियन स्वस्थ जीवन वर्ष का नुकसान होता है। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में असुरक्षित भोजन के परिणामस्वरूप उत्पादकता और चिकित्सा व्यय में प्रत्येक वर्ष 110 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान होता है 5 साल से कम उम्र के बच्चे खाद्य जनित बीमारी के बोझ का 40% वहन करते हैं, जिसमें हर साल 125,000 मौतें होती हैं। खाद्य जनित रोग स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर दबाव डालकर और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं, पर्यटन और व्यापार को नुकसान पहुंचाकर सामाजिक आर्थिक विकास में बाधा डालते हैं।

116 देशों के ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2021 में भारत 2020 के 94वें स्थान से फिसलकर अब 101वें स्थान पर आ गया है। भारत अपने अधिकांश पड़ोसियों से पीछे है। पाकिस्तान 92वें, नेपाल 77वें, बांग्लादेश 76वें और श्रीलंका 65वें स्थान पर है। इंडेक्स के मुताबिक भारत से अधिक सिर्फ 15 देशों की हालत खराब है। 2014 की रैंकिंग में भारत 55वें स्थान पर था। द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2019 के अनुसार, दशकों की लगातार गिरावट के बाद, 2015 से वैश्विक भूख लगातार बढ़ रही है। 2018 में, दुनिया भर में अनुमानित 821 मिलियन लोग भूख से पीड़ित थे। गरीबी उन्मूलन के लिए काम करने वाली संस्था ऑक्सफैम के मुताबिक, दुनिया भर में हर मिनट भूख से 11 लोगों की मौत हो जाती है। पिछले एक साल में दुनिया भर में सूखे जैसे हालात छह गुना बढ़ गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में लगभग 155 मिलियन लोग गंभीर खाद्य असुरक्षा संकट का सामना कर रहे हैं, जो पिछले साल के आंकड़े से 20 मिलियन अधिक है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट 2021 अनुसार, भारत में, घरेलू खाद्य अपशिष्ट प्रतिवर्ष 50 किलोग्राम या देशभर में प्रतिवर्ष कुल 68,760,163 टन होने का अनुमान है। यूएनईपी रिपोर्ट मुताबिक 2019 में अनुमानित 93.1 करोड़ टन खाना बर्बाद हुआ। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 में 690 मिलियन से अधिक लोग भूख से प्रभावित थे। हमारी एक और समस्या यह है कि देश अपनी कृषि उपज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा, फलों और सब्जियों का 16% कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की कमी के कारण हर साल खो देता है। भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में हर साल अनाज का ढेर सड़ता है। उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने खुलासा किया है कि पिछले पांच वर्षों में 38,000 मीट्रिक टन से अधिक खाद्यान्न का नुकसान हुआ है। भारत ने वित्त वर्ष 2022 में अब तक 610.22 बिलियन का सामान आयात किया है, जो पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 54.71 प्रतिशत अधिक है। पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी असमय होने वाली मौतों में से 80 प्रतिशत दूषित भोजन और पानी के कारण होती हैं। भारत में खाद्य पदार्थों में मिलावट तो खेतों से ही शुरू हो जाती है जहां उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग किया जाता है।

आज इतनी बड़ी मात्रा में गरीबी, मंहगाई, बेरोजगारी, आर्थिक असमानता के साथ सभी लोगों के लिए पौष्टिक भोजन प्राप्त करना मुश्किल हो गया है, खाद्य सुरक्षा तो दूर, गरीबों को स्वच्छ ऑक्सीजन या स्वच्छ पानी भी नहीं मिलता। बड़ी मुश्किल से दो रोटियों का इंतजाम करने में गरीब का जीवन ख़त्म हो जाता है, तो फिर भरपूर पौष्टिक आहार कहां से मिलेगा? शरीर को स्वस्थ रखने के लिए कई पोषक तत्वों की जरूरत होती है, इनकी कमी से हम कई बीमारियों के शिकार हो सकते हैं। कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन, खनिज ऐसे पोषक तत्व हैं जिनकी शरीर को सबसे अधिक आवश्यकता होती है।

खाद्य सुरक्षा अच्छे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करती है। देश के विकास के लिए खाद्य सुरक्षा योजना और कार्यान्वयन का उचित संचालन आवश्यक है। खाद्य असुरक्षा समाज के हर तत्व को प्रभावित करती है, समाज में आर्थिक असंतुलन, कुपोषण, गरीबी, भुखमरी, बीमारी, मिलावटखोरी ये समस्याएं बढ़कर अन्य समस्याओं को जन्म देती हैं। देश का विकास बाधित होता है, आर्थिक तनाव बढ़ता है और मानवीय जीवन मूल्यों का ह्रास होता है। देश के हर नागरिक के लिए सरकार को खाद्य सुरक्षा की गारंटी के साथ युद्ध स्तर पर काम करने की जरूरत है। कुपोषण, गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी, आर्थिक असमानता, भूख, खाद्य असुरक्षा जैसी समस्याओं को नियंत्रित करने की जरूरत है। ताकि प्रत्येक नागरिक को उसका सही पौष्टिक आहार मिल सके, जिससे सभी को विकास के अवसर मिलेंगे, जीवन प्रत्याशा बढ़ेगी, बीमारी कम होकर उसपर खर्च कम होगा, आयात कम होकर निर्यात बढ़ेगा, देश आत्मनिर्भर बनेगा, देश की आय बढ़ेगी और देश समृद्धि के प्रगतिपथ पर अग्रसर होगा।

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

अन्न सुरक्षा प्रत्येकाचा अधिकार (जागतिक अन्न सुरक्षा दिन विशेष - ७ जून २०२२) Food Security Everyone's Right (World Food Security Day Special - 7 June 2022)

 

अन्न सुरक्षा हे आरोग्याचे प्रमुख निर्धारक आहे. त्याचा परिणाम व्यक्ती आणि अखेरीस समाजाच्या जगण्यावर, कल्याणावर, उपजीविकेवर आणि उत्पादकतेवर होतो. पुरेशा प्रमाणात सुरक्षित आणि पौष्टिक अन्न मिळणे ही जीवन टिकवून ठेवण्यासाठी आणि चांगले आरोग्य वाढवण्याची गुरुकिल्ली आहे. उत्पादन ते कापणी, प्रक्रिया, साठवणूक, वितरण, तयारी आणि वापरापर्यंत अर्थात अन्न साखळीच्या प्रत्येक टप्प्यावर अन्न सुरक्षित राहावें याची खातरजमा करण्यात अन्न सुरक्षेची महत्त्वाची भूमिका आहे. हानिकारक जीवाणू, विषाणू, परजीवी किंवा रासायनिक पदार्थ असलेल्या असुरक्षित अन्नामुळे अतिसारापासून कर्करोगापर्यंत २०० हून अधिक रोग होतात. हे रोग आणि कुपोषणाचे दुष्टचक्र देखील तयार करते, विशेषत: लहान मुले, वृद्ध आणि आजारी लोकांना प्रभावित करते. दूषित अन्न आणि पाण्याच्या आरोग्यावर होणाऱ्या परिणामांकडे जागतिक लक्ष वेधण्यासाठी संयुक्त राष्ट्रसंघाने ७ जून रोजी “जागतिक अन्न सुरक्षा दिवस” हा विशेष दिवस घोषित केला आहे. २०२२ या वर्षीची थीम 'सुरक्षित अन्न, उत्तम आरोग्य' ही आहे.

जगातील अविकसित देशांप्रमाणे भारतातही अशा लोकांची संख्या मोठी आहे ज्यांना जगण्यासाठी पुरेसे अन्न मिळत नाही. एवढेच नाही तर त्यांना मिळणाऱ्या अन्नातही पोषक तत्वांचा अभाव असतो. अन्नाची ही समस्या देशाच्या मोठ्या लोकसंख्येच्या गंभीर संकटाचे कारण बनलेली आहे. आजही लहान मुलांपासून वयोवृद्ध पर्यंत लोक भुकेने जीव गमावतांना आढळतात, अशी बातमी नेहमीच येत असते. अन्न आणि कृषी संघटनेच्या (एफएओ) अहवालानुसार, भारतातील सुमारे १४.८ टक्के लोकसंख्या कुपोषित आहे. प्यू रिसर्च सेंटरने अहवाल दिला होता की, गेल्या एका वर्षात भारतात दिवसाला १५० रुपये (खरेदी शक्तीवर आधारित उत्पन्न) मिळवू न शकणाऱ्या लोकांची संख्या प्रचंड वाढली आहे. वर्षभरात अशा लोकांच्या संख्येत सहा कोटींनी वाढ झाली असून त्यामुळे गरिबांची एकूण संख्या आता १३.४ कोटींवर पोहोचली आहे. १९७४ नंतर प्रथमच देशातील गरिबांची संख्या तर वाढलीच पण ४५ वर्षांनंतर भारत पुन्हा मोठ्या प्रमाणात दारिद्र्य असलेला देश बनला आहे. नीति आयोगाने अलीकडेच बहु-आयामी गरीबी निर्देशांक (एमपीआई) जारी केला ज्यामध्ये असे म्हटले आहे की प्रत्येक चार भारतीयांपैकी एक बहुआयामी गरीब आहे.

जागतिक स्वास्थ संगठन च्या मते, अन्न सुरक्षा, पोषण आणि अन्न बचाव यांचा अतूट संबंध आहे. अंदाजे ६०० दशलक्ष अर्थात जगातील १० पैकी जवळजवळ १ माणूस दूषित अन्न खाल्ल्यानंतर आजारी होवून ४,२०,००० लोक दरवर्षी मृत्युमुखी पडतात, परिणामी ३३ दशलक्ष निरोगी जीवन वर्षे गमावतात. कमी आणि मध्यम उत्पन्न असलेल्या देशांमध्ये असुरक्षित अन्नामुळे उत्पादकता आणि वैद्यकीय खर्चामध्ये दरवर्षी ११० अब्ज गमावले जातात. ५ वर्षांखालील मुलांना अन्नजन्य रोगाचा ४०% भार सहन करावा लागतो, त्यामुळे दरवर्षी १,२५,००० मुलांचे जीव दगावतात. अन्नजन्य रोग आरोग्य सेवा प्रणालींवर ताण आणून आणि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था, पर्यटन आणि व्यापाराला हानी पोहोचवून सामाजिक-आर्थिक विकासात अडथळा आणतात.

११६ देशांमधील ग्लोबल हंगर इंडेक्स २०२१ मध्ये, भारत २०२० च्या ९४ व्या स्थानावरून आता १०१ व्या स्थानावर घसरला आहे. भारत बहुतेक शेजारी देशांच्या मागे आहे. पाकिस्तान ९२, नेपाळ ७७, बांगलादेश ७६ आणि श्रीलंका ६५ व्या क्रमांकावर आहे. निर्देशांकानुसार, भारतापेक्षा फक्त १५ देश वाईट स्थितीत आहेत. २०१४ च्या क्रमवारीत भारत ५५ व्या स्थानावर होता. द स्टेट ऑफ फूड सिक्युरिटी अँड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड २०१९ नुसार, अनेक दशकांच्या सतत घसरणीनंतर, २०१५ पासून जागतिक उपासमारी हळूहळू वाढत आहे. २०१८ मध्ये जगातील अंदाजे ८२१ दशलक्ष लोक उपासमारीने ग्रस्त होते. ऑक्सफॅम या गरिबी निर्मूलनासाठी काम करणाऱ्या संस्थेने म्हटले आहे की, जगभरात भुकेने दर मिनिटाला ११ लोकांचा मृत्यू होतो. गेल्या एका वर्षात संपूर्ण जगात दुष्काळासारख्या परिस्थितीचा सामना करणाऱ्यांची संख्या सहा पटीने वाढली आहे. अहवालात म्हटले आहे की जगातील सुमारे १५५ दशलक्ष लोक अन्न असुरक्षिततेच्या तीव्र संकटाचा सामना करत आहेत आणि हा आकडा मागील वर्षाच्या आकडेवारीपेक्षा २० दशलक्ष अधिक आहे.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम च्या अन्न कचरा निर्देशांक अहवाल २०२१ प्रमाणे भारतात, घरगुती अन्न कचऱ्याचा अंदाज दरवर्षी ५० किलो आहे, किंवा देशभरातील वर्षाला एकूण ६८,७६०,१६३ टन इतका आहे. यूएनईपी च्या अहवालानुसार, २०१९ मध्ये अंदाजे ९३१ दशलक्ष टन अन्न वाया गेले. अहवालात नमूद केले आहे की, २०१९ मध्ये, ६९० दशलक्षाहून अधिक लोक उपासमारीने प्रभावित झाले. आपल्याकडे आणखी एक चिंताजनक गोष्ट आहे म्हणजे देश कमकुवत कोल्ड चेन पायाभूत सुविधेचा अभावामुळे आपल्या शेतातील उत्पादनाचा महत्त्वपूर्ण भाग दरवर्षी १६% फळे आणि भाज्या (शीतगृह सुविधा अभावी) वाया घालवतो. भारतीय अन्न महामंडळाच्या (एफसीआय) गोदामांमध्ये दरवर्षी धान्याचे डोंगर सडत आहेत. गेल्या पाच वर्षांपासून ३८,००० मेट्रिक टन पेक्षा जास्त अन्नधान्याचे नुकसान झाल्याचे ग्राहक व्यवहार, अन्न आणि सार्वजनिक वितरण मंत्रालयाने उघड केले आहे. भारताने आर्थिक वर्ष २०२२ मध्ये आतापर्यंत ६१०.२२ अब्ज डॉलर किमतीच्या वस्तूंची आयात केली, जी त्याच्या मागील आर्थिक वर्षाच्या तुलनेत ५४.७१ टक्क्यांनी वाढली आहे. पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडियाच्या अहवालात सांगितले की सर्व अकाली मृत्यूंपैकी ८० टक्के मृत्यू दूषित अन्न आणि पाण्यामुळे होतात. भारतातील अन्न भेसळ हे शेतातूनच सुरू होते जिथे खते आणि कीटकनाशकांचा अतिवापर होतो.

आज इतक्या मोठ्या प्रमाणावर गरिबी, महागाई, बेरोजगारी, आर्थिक असमानता वाढली असतांना प्रत्येक माणसाला पोषक आहार घेणे कितपत शक्य आहे, अन्न सुरक्षा तर दूर पण गरिबांना शुद्ध प्राणवायू किंवा शुद्ध पाणी सुध्दा मिळत नाही. मोठ्या कष्टाने दोन वेळच्या भाकरीची व्यवस्था करण्यात गरिबांचे जीवन संपून जाते, तर पोषक तत्वाने भरपूर अन्न कुठून कमविणार. शरीराला निरोगी ठेवण्यासाठी अनेक पोषक तत्वांची गरज असते, त्यांच्या कमतरतेमुळे आपण अनेक प्रकारच्या आजारांना बळी पडू शकतो. कार्बोहायड्रेट, प्रथिने, चरबी, जीवनसत्त्वे, खनिजे हे पोषक घटक आहेत ज्यांची शरीराला सर्वात जास्त गरज असते.

अन्न सुरक्षेमुळे मानवांचे शारीरिक व मानसिक आरोग्य सुदृढ राखण्यास मदत होते. देशाचा विकासासाठी नागरिकांचे अन्न सुरक्षेसंबंधी नियोजन व अंमलबजावणी योग्यरीत्या हाताळणे खूप गरजेचे आहे. अन्न सुरक्षेचा दुष्परिणाम समाजाचा प्रत्येक घटकांवर होतो, समाजात असमतोलपणा वाढतो, कुपोषण, दारिद्र्यता, उपासमार, आजार, मुत्यूदर वाढतात. ह्या समस्या इतर समस्यांना जन्म देतात. देशाचा विकासात मोठा अडथळा निर्माण होतो, आर्थिक ताण वाढतो, मानवी जीवनाचा ह्रास होतो. देशाचा प्रत्येक नागरिकापर्यंत शासनाने अन्न सुरक्षेच्या गॅरंटी सह युद्धस्तरावर कार्य करणे गरजेचे आहे. कुपोषण, गरिबी, महागाई, बेरोजगारी, आर्थिक असमानता, उपासमार, अन्नाची नासाडी सारख्या समस्यांवर नियंत्रण करणे आवश्यक आहे. जेणेकरून प्रत्येक नागरिकाला त्याचा हक्काचे पोषण आहार मिळू शकेल, त्यामुळे सर्वांना जीवनात विकासाचा संधी मिळतील, आयुष्यमान वाढेल, रोगराई कमी होईल, आजारावरील खर्च कमी होईल, आयात कमी होवून निर्यात वाढेल, देश आत्मनिर्भर होईल, देशाचे उत्पन्न वाढेल आणि देशाच्या सुखी समृद्धि होण्यास हातभार लागेल.

डॉ. प्रितम भि. गेडाम