बुधवार, 12 जनवरी 2022

संस्कारों को तिलांजलि अर्पित करता समाज (राष्ट्रीय युवा दिवस विशेष - 12 जनवरी 2022) A society without values ​​that abandons values ​​(National Youth Day Special - 12 January 2022)

आज हमारे आसपास का जो माहौल है उसे देखते हुए तो यही महसूस होता है कि लोगों का व्यवहार लगातार संस्कारो की सीमा लांघकर दुर्व्यवहार की ओर बढ़ रहा है। जंगली जानवरों से ज्यादा क्रूर मनुष्य के कृत्य, जिससे मानवता हर पल शर्मसार हो रही है। हर ओर द्वेष, लोभ, अपराध, जुल्म, छल, कपट, नशाखोरी, भ्रष्टाचार, मिलावटखोरी, झूठ, घरेलू कलह, शोर, प्रदूषण अपने चरम पर नजर आता है। बच्चों में बढ़ता अपराध और नशा एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। कहीं संयुक्त परिवार टुटकर छोटे टुकडों मे विभक्त हो रहे है तो कहीं रिश्ते तार-तार हो रहे है। आज के समय में लोगों के लिए आत्मसन्मान, स्वाभिमान, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा, समर्पण, समाधान, धैर्य, परोपकारिता, समता व बंधुता जैसे शब्दों का कोई मोल नजर नहीं आता है। अभी पैसा ही सब कुछ है चाहे वह किसी भी तरह से कमाया जाए, हर कोई सिर्फ अपना हित देखता है, चाहे उसके लिए कितनों का ही हक क्यो न छीनना पडे। ऐसा संस्कार विहीन समाज राष्ट्र को बर्बादी की ओर ले जाता है जहां हर तरफ समस्या ही समस्या होती है।

हर क्षेत्र में कार्यरत व्यक्ति को पता होता है कि उनके विभाग में कहाँ और कैसे उचित-अनुचित व्यवहार किया जाता हैं फिर भी सब मौन धारण कर तमाशबीनों की भूमिका निभाते है। गलत बात को कोई भी रोकना नहीं चाहता, जिससे गलत काम को लगातार बढ़ावा मिलता है। अब तो गलत वालों का समूह बढ़ता जा रहा हैं और सच की राह पर चलने वालों का समूह घट रहा हैं, ऐसा प्रतीत होता है। दूसरे की समस्या की गंभीरता का पता तब तक नहीं चलता, जब तक कि समस्या खुद पर न आ जाए। एक ही कार्यस्थल पर कार्यरत होते हुए भी, सहकर्मी एक-दुसरे की टांग खिंचाई मे लगे रहते है, आपस मे मधुर व्यवहार दर्शाकर भी द्वेष भावना बनाये रखते है, अब तो यह ढोंगी व्यवहार आस-पडोस व रिश्ते-नातों मे भी खूब नजर आता है। आखिर हमारा समाज तरक्की कर रहा है या अनैतिक हो रहा है, लोगों की कथनी-करनी में अंतर अर्थात बाहर दिखावे की जिंदगी और निजी जिंदगी अलग, ऐसी दोगली जिंदगी जीना अब सामान्य हो गया है। खुद के फायदे की बात है तो गलत भी सही है और जब दूसरे के फायदे की बात हो तो गलतियां ढूंढनी शुरू होती है। फैशन, स्टेटस सिंबल और दिखावे के नाम पर लोग जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं। बच्चों के रोल मॉडल अब देशभक्त, समाजसेवी नहीं बल्कि फैशनेबल फिल्मी सितारे बन गये है। हमें टेलीविजन और मोबाइल, सोशल मीडिया के फायदे-नुकसान के प्रति सजग होना आवश्यक है।

जो व्यक्ति जितने ऊँचे पद पर आसीन होता है, वह उतना ही कार्य के लिए जनता के प्रति जवाबदेह और जिम्मेदार होता है। हम अक्सर समस्या के लिए एक-दूसरे पर दोष मढ़ते है लेकिन जिन्हें हम मतदान द्वारा चुनकर समाज के विकास के लिए सत्ता पर विराजमान करते हैं उनसे ही सवाल पूछने से हम खुद कतराते हैं। जितना रौब या समझाइश हम अपने घर पर दिखाते है उतनी हिम्मत हम अपने अधिकारों के प्रति क्यों नहीं दिखाते? सरेआम सरकारी नियमों की धज्जियां उड़ाई जाती है। मासूमो के मजबुरी का फायदा उठाने के लिए लालची लोग गिद्ध की भांति नोच खाने के लिए सदैव तत्पर रहते है। ऑक्सीजन की अहमियत जानते हुए भी बड़ी संख्या में पेड़ काट दिए जाते हैं, खुद के छोटे-से फायदे के लिए प्रदूषण, नशा और मिलावटखोरी द्वारा मासूम लोगो को स्लो पॉइजन देकर गंभीर बीमारियों से ग्रसित करके तडपाकर मारा जा रहा है। लोग घर के सामने की सड़क को भी अपनी निजी संपत्ति की तरह उपभोग की वस्तु मानकर धीरे-धीरे अतिक्रमण करके सडक कम कर देते है लेकिन ये कभी नहीं सोचते कि हमारी छोटी सी गलती दूसरों के लिए कितनी दर्दनाक साबित हो सकती है। एक तरफ भुखमरी से जाने जा रही है तो दूसरी तरफ हजारों टन अनाज बर्बाद हो रहा है। हर दिन हम अपने सामने कई समस्याएं देखते हैं, अर्थात एक की लापरवाही, भ्रष्टाचार की सजा दूसरे भुगतते हैं लेकिन कोई कुछ नहीं कहता, तो कोई अपने पद का दुरुपयोग करता है, तो कोई पहचान और सिफारिश से ईमानदारों का हक छीन लेता है। लोग अक्सर सरकारी नियमों का उल्लंघन और असभ्य भाषा व्यवहार का प्रयोग करते है, खुली जगह कचरा जलाते है या फेंकते है, हमेशा लड़ने-झगड़ने के लिए तैयार रहते है, बच्चों के सामने ही सफेद झूठ बोलते है या उनसे झूठ बुलवाते है। लोकलाज, फालतू की झंझट ऐसा सोचकर, सच डरकर और बुराई डराकर जी रही है। हर समय आम मनुष्य को डरकर जीने की आदत हो गई है।

अब मनुष्य का दर्जा, प्रतिष्ठा उसकी दौलत तय करती है न कि उसके सदगुण। एक रुपये कीमत की वस्तु को झूठ दिखावे का लेबल लगाकर सौ रूपये मे बेचा जाता है जबकि अच्छी वस्तु को लागत का भी मोल नहीं मिलता, ये सत्य परिस्थिति है। हमारे देश में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है फिर भी अनाथालयों से अधिक वृद्धाश्रम बढ़ रहे हैं क्योंकि घरों में बुर्जुगों का वर्चस्व और सन्मान कम आंका जा रहा है। आज मानव उपभोग की वस्तु बनकर रह गया है, जब तक फायदा है तब तक महत्व है, जैसे ही फायदा खत्म, वैसे ही रिश्ते-नाते, आदर, अपनापन खत्म।

बच्चे अपने माता-पिता को घर के बुजुर्ग से दुर्व्यवहार करते देखते हैं और यही माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे संस्कारशाली बनकर समाज में उनका नाम रोशन कर उनकी सेवा करें। सभी माता-पिता अपने बच्चों की खुशी और उज्ज्वल भविष्य के लिए चिंतित हैं लेकिन बच्चों को सही वातावरण निर्माण करके देने की जिम्मेदारी भी उनकी ही होती हैं, वे अपने बच्चों को समाज या देश पर थोप नहीं सकते। हमारे बच्चे बाहर किस माहौल में रहते हैं? किन दोस्तों के साथ समय व्यतीत करते है? कितना सच और झूठ बोलते है? किनसे मिलते-जुलते है? आज इस विषय से कितने प्रतिशत पालक जागरूक है, बच्चों के साथ माता-पिता रोज कितना समय बिताते है, इस विषय पर गंभीरता से सोचना बहुत जरूरी है। बहुत बार माता-पिता या बड़ों का व्यवहार ही शर्मनाक लगता है, अगर बड़ों में ही समझ न हो तो वे बच्चों को क्या संस्कार देंगे? यह आज के समय की सबसे बड़ी समस्या बनकर सामने आ रही है जो अपराधों को बढ़ावा देने का कार्य कर रही है। अक्सर देखा गया है कि हंसकर बच्चों की गलतियों को नजरअंदाज कर दिया जाता है और कहते है कि बच्चा है, लेकिन अच्छे कार्य को प्रोत्साहन और बुरे काम की निंदा होना बेहद जरूरी है तभी बच्चों को सही-गलत के बिच का अर्थ समझ आयेगा। बच्चे को पहली सिख घर से मिलती है, ये बात हमेशा याद रखें। माता-पिता को बच्चों की मानसिकता के साथ-साथ आवश्यकता और दिखावे के बीच के अंतर को समझना चाहिए।

आज का दिन बहुत विशेष है क्योंकि “राष्ट्रीय युवा दिवस” पूरे देश में एक युवा शक्ति के रूप में मनाया जाता है। आज स्वामी विवेकानंद और राजमाता जिजाऊ जयंती है। जीजामाता ने पुत्र छत्रपती शिवाजी महाराज पर संस्कारशील मार्गदर्शन करके पुरे विश्व में श्रेष्ठ माता व गुरु के रूप में आदर्श स्थापित किया है। युवाओं के प्रेरणास्थान स्वामी विवेकानंद ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि "उठो, जागो, तब तक संघर्ष करो जब तक सफलता न मिल जाए" ऐसा ऊर्जावान संदेश दिया। सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता फिर भी आज का युवा मेहनत करने के बजाय जल्दी तरक्की पाने के लिए शॉर्टकट का मार्ग अपनाना पसंद करते है, ऊपर से देश में बढ़ती बेरोजगारी, आर्थिक विषमता, महंगाई और भी अन्य सामाजिक समस्याएं विकास में रुकावट पैदा करती हैं। विश्व स्तर पर भारत में युवाओं की जनसंख्या सबसे ज्यादा है। यह युवा देश के विकास में मजबूत शक्ति बने न कि देश पर बोझ बन समस्या बढ़ाये ये माता-पिता, पालक साथ ही सरकार की भी जिम्मेदारी है। युवा शक्ती में उत्साह, साहस, धैर्य, सुनहरे सपने होते है अर्थात इस अमूल्य धरोहर का सही प्रयोग ही देश के उन्नती का मार्ग है। देश का भविष्य इन्हीं युवाओं के कंधों पर है इसलिये जैसे मजबूत भवन के लिए मजबूत नींव जरूरी है वैसे ही देश को सुदृढ व विकसीत बनाने के लिए युवाओं को योग्य संस्कार, मार्गदर्शन व उचित वातावरण निर्माण कर देना आवश्यक है और तभी संस्कारशील समाज का निर्माण होकर देश प्रगति पथ पर अग्रसर होगा।

डॉ. प्रितम भि. गेडाम


दिशाहीन होवून भटकतोय संस्कार विहीन समाज (राष्ट्रीय युवा दिवस विशेष - 12 जनवरी 2022) A society without culture is wandering without direction (National Youth Day Special - 12 January 2022)


आज आपल्या आजूबाजूचे वातावरण पाहिल्यास असे जाणवते की, माणसांचे वर्तन हे सातत्याने संस्काराच्या मर्यादा ओलांडून गैरवर्तनाकडे वाटचाल करत आहे. वन्य प्राण्यांपेक्षा अधिक क्रूर मानवाची कृत्ये, प्रत्येक क्षणाला माणुसकीला काळिमा फासणारा आहे. सर्वत्र द्वेष, लोभ, ताणतनाव, गुन्हेगारी, फसवणूक, अंमली पदार्थांचे व्यसन, भ्रष्टाचार, भेसळ, खोटेपणा, घरगुती वाद, गोंगाट, प्रदूषण हे सर्वत्र शिगेला पोहोचलेले दिसते. मुलांमध्ये वाढती गुन्हेगारी आणि अंमली पदार्थांचे व्यसन ही मोठी समस्या बनत आहे. कुठे संयुक्त कुटुंब लहान तुकड्यांमध्ये विभागले जात आहे, तर कुठे नाती ताणली जात आहेत. आजच्या काळात स्वाभिमान, प्रामाणिकपणा, कर्तव्यदक्षता, समर्पण, समाधान, संयम, परोपकार, समता, बंधुता या शब्दांना माणसांसाठी काहीच किंमत वाटत नाही. सध्या पैसा हेच सर्वस्व आहे, तो कसाही कमावला जात असला तरी, प्रत्येकजण फक्त आपले हित पाहतो, भलेही त्याला अनेकांचे हक्क हिरावून घ्यावे लागतील. असा संस्कारहीन समाज राष्ट्राला विनाशाकडे नेतो, जिथे सर्वत्र समस्या असतात.

प्रत्येक क्षेत्रात काम करणाऱ्या व्यक्तीला त्यांच्या विभागात कुठे आणि कसे न्याय्य-अन्यायकारक वागणूक होत असते, हे माहीत असूनही सर्वजण मौन पाळत प्रेक्षकांची भूमिका बजावतात. चुकीची गोष्ट थांबवायची कोणातच हिम्मत नसते, त्यामुळे चुकीच्या कामांना सतत प्रोत्साहन मिळते. आता चुकीच्या लोकांचा समूह वाढत आहे आणि सत्याच्या मार्गावर चालणाऱ्यांचा समूह कमी होत आहे, असे दिसून येते. जोपर्यंत समस्या स्वतःवर येत नाही तोपर्यंत दुसऱ्याच्या समस्येचे गांभीर्य कळत नाही. एकाच कामाच्या ठिकाणी काम करूनही सहकारी एकमेकांचे पाय ओढण्यात मग्न असतात, आपापसात गोडवा दाखवूनही द्वेषाची भावना जपत असतात, आता हे दांभिक वर्तन नात्यातही खूप पाहायला मिळते. शेवटी आपला समाज प्रगती करत आहे की अनैतिक होत आहे? माणसांच्या बोलण्यात आणि वागण्यातला फरक म्हणजे बाहेरून दिसणारे आयुष्य आणि वैयक्तिक आयुष्य वेगवेगळे, असे दुहेरी आयुष्य जगणे आता सामान्य झाले आहे. जेव्हा स्वतःच्या फायद्याचा विचार येतो तेव्हा चूक देखील बरोबर असते आणि दुसऱ्याच्या फायद्याचा विचार केला की दोष शोधू लागतात. लोक फॅशन, स्टेटस सिम्बॉल आणि शो च्या नावाखाली आयुष्य नाश करत आहेत. मुलांचे रोल मॉडेल आता फॅशनेबल फिल्म स्टार बनले आहेत, इतिहास घडविणारे शहीद देशभक्त, समाजसेवक नाहीत. टेलिव्हिजन आणि मोबाईल, सोशल मीडियाचे फायदे आणि तोटे याची पुरेपूर जाणीव आपण ठेवायला हवी.

एखादी व्यक्ती जितक्या उच्च पदावर असते तितकीच ते त्याच्या कामासाठी जनतेला जबाबदार असते. समस्येसाठी आपण अनेकदा एकमेकांवर आरोप करतो, पण ज्यांना आपण मतदानाने निवडून समाजाच्या विकासासाठी सत्तेत बसवतो, त्यांनाच प्रश्न विचारण्यात आपण टाळाटाळ करतो. आपण आपल्या लोकांवर किंवा घरी जेवढे आपुलकीने, धाडसाने वागतो, इतके धाडस आपण बाहेर आपल्या हक्कांसाठी का दाखवत नाही? सरकारी नियमांचे सर्रास पायमल्ली केली जाते. भोळ्याभाबड्या लोकांच्या मजबुरीचा गैरफायदा घेण्यासाठी लोभी लोक गिधाडासारखे नेहमी तयार असतात. ऑक्सिजनचे महत्त्व जाणून सुद्धा मोठ्या प्रमाणात झाडे तोडली जातात, स्वतःच्या क्षुल्लक फायद्यासाठी निरपराध लोकांना प्रदूषण, नशा, भेसळ द्वारे स्लो पॉयझन देऊन, गंभीर आजारांनी ग्रासून त्यांचा छळ केला जात आहे. लोक घरासमोरील रस्त्याला आपल्या वैयक्तिक मालमत्तेप्रमाणे उपभोगाची वस्तू मानतात आणि हळूहळू अतिक्रमण करून रस्ता कमी करतात, पण आपली छोटीशी चूक इतरांसाठी किती वेदनादायी ठरू शकते याचा कधी विचारच करत नाही. एकीकडे लोक भुकेने जीव गमावत आहेत तर दुसरीकडे हजारो टन धान्याची नासाडी होत आहे. रोज अनेक समस्या आपल्या समोर दिसतात, म्हणजे एकाचा निष्काळजीपणा, भ्रष्टाचाराची शिक्षा दुसऱ्यांना भोगावी लागते, पण कुणी काही बोलत नाही, तर कुणी आपल्या पदाचा गैरवापर करतो, तर कुणी ओळख आणि शिफारस द्वारे प्रामाणिक माणसाचा हक्क हिरावून घेतो. लोक अनेकदा सरकारी नियमांचे उल्लंघन करतात, असभ्य भाषेचे वर्तन करतात, उघड्यावर कचरा जाळतात किंवा फेकतात, नेहमी भांडायला तयार असतात, मुलांसमोर खोटे बोलतात किंवा त्यांना खोटे बोलायला लावतात. लोकांच्या दुःखावर हसल्या जाते आणि सुखावर हेवा करतात. लोक काय म्हणतील, कशाला विनाकारण त्रास, आपण दूरच बरे, अशा विचारात सत्य हे भयात आणि वाईट भीती दाखवून जगत असते. प्रत्येक वेळी सर्वसामान्यांना भीतीने जगण्याची सवय झाली आहे.

आता माणसाचा दर्जा, प्रतिष्ठा त्याची संपत्ती ठरवते, त्याचे गुण नव्हे. एक रुपया किमतीचा वस्तूवर देखाव्याचा खोटा लेबल लावून शंभर रुपयांना विकला जातो, जेव्हाकी चांगल्या गोष्टीला किंमतही मिळत नाही, हीच खरी परिस्थिती आहे. आपल्या देशात लोकसंख्या झपाट्याने वाढत आहे तरीही वृद्धाश्रम अनाथाश्रमांहून अधिक वाढत आहेत कारण घरांमध्ये ज्येष्ठांचे वर्चस्व आणि आदर कमी लेखला जात आहे. आज माणूस ही उपभोगाची वस्तू बनली आहे, जोपर्यंत फायदा आहे, तोपर्यंत महत्त्व आहे, जेव्हा फायदा संपतो तेव्हा जिव्हाळा संबंध, आदर आणि आपलेपणा देखील संपतो.

आज अनेक घरात मुले आपल्या आई-वडीलांना घरातील वृद्धाशी गैरवर्तन करताना बघतात आणि हीच आई-वडील आपल्या मुलांपासून अपेक्षा करतात की त्यांची मुले सुसंस्कृत होऊन आपली सेवा करून समाजात आपले नाव रोशन करावे. सर्व पालकांना त्यांच्या मुलांच्या आनंदाची आणि उज्ज्वल भविष्याची काळजी असतेच पण मुलांसाठी योग्य वातावरण निर्माण करणे देखील त्यांची जबाबदारी असते. ते आपल्या मुलांना समाजावर किंवा देशावर लादू शकत नाहीत. आपली मुलं बाहेर कोणत्या वातावरणात राहतात?  कोणत्या मित्रांसोबत वेळ घालवतात? किती खरे-खोटे बोलतात? कोणाशी भेटीगाठी करतात? आज किती टक्के पालकांना या विषयाची जाणीव आहे, पालक दररोज मुलांसोबत किती वेळ घालवतात, या प्रकरणाचा गांभीर्याने विचार होणे अत्यंत गरजेचे आहे. अनेक वेळा आई-वडील किंवा वडीलधार्‍यांचे वागणे लज्जास्पद वाटते, मोठ्यांनाच संस्कार नसणार तर ते मुलांना काय शिकवणं देणार? गुन्ह्यांना प्रोत्साहन देणारी ही आजच्या काळातील सर्वात मोठी समस्या म्हणून समोर येत आहे. असे अनेकदा दिसून आले आहे की, मूल लहान आहे, असे हसत म्हणून मुलांच्या चुकांकडे दुर्लक्ष केले जाते, परंतु चांगल्या कामांना प्रोत्साहन देणे आणि वाईट कृत्यांचा निषेध करणे खूप गरजेचे आहे, तरच मुलांना योग्य आणि अयोग्य मधला अर्थ कळेल. मुलांना पहिली शिकवण घरातूनच मिळते, ही गोष्ट नेहमी लक्षात ठेवावी. पालकांनी मुलांच्या मानसिकतेबरोबरच गरज आणि देखाव्यातला फरक समजून घेतला पाहिजे.

आजचा दिवस खूप खास आहे कारण "राष्ट्रीय युवा दिन" संपूर्ण देशात युवा शक्ती म्हणून साजरा केला जातो. आज स्वामी विवेकानंद आणि राजमाता जिजाऊ यांची जयंती आहे. जिजामाता यांनी सुपुत्र छत्रपती शिवाजी महाराज यांना सुसंस्कृत  मार्गदर्शन करून सर्वोत्कृष्ट माता आणि गुरु म्हणून संपूर्ण जगात आदर्श निर्माण केला आहे. तरुणांचे प्रेरणास्थान स्वामी विवेकानंद यांनी तरुणांना संबोधित करताना “उठा, जागे व्हा, यश मिळेपर्यंत संघर्ष करा” असा ऊर्जावान संदेश दिला. यशाचा कोणताही शॉर्टकट नसतो, तरीही आजची तरुणाई मेहनत करण्याऐवजी झटपट प्रगती करण्यासाठी शॉर्टकटचा मार्ग अवलंबणे पसंत करतात, वरून देशातील वाढती बेरोजगारी, आर्थिक विषमता, महागाई आणि इतर सामाजिक समस्या विकासात अडथळे निर्माण करतात. जागतिक स्तरावर भारतामध्ये तरुणांची सर्वाधिक लोकसंख्या आहे. ह्या युवकाने देशाच्या विकासाची खंबीर शक्ती बनावे, उलट देशावर ओझे बनून समस्या वाढवू नये, ही जबाबदारी पालक, समाज तसेच शासनाची आहे. युवाशक्तीमध्ये ध्येय, उत्साह, धाडस, संयम, चिकाटी, सोनेरी स्वप्ने असतात, म्हणजेच या अमूल्य वारशाचा योग्य वापर हा देशाच्या प्रगतीचा मार्ग आहे. देशाचे भवितव्य या तरुणांच्या खांद्यावर आहे, कारण ज्याप्रमाणें भक्कम इमारतीसाठी असा मजबूत पाया आवश्यक आहे तसेच देशाला सशक्त आणि विकसित बनविण्याकरिता तरुणांना योग्य संस्कारमूल्ये, मार्गदर्शन आणि योग्य वातावरण निर्माण करून देणे आवश्यक आहे, तेव्हाच खऱ्या अर्थाने सुसंस्कृत समाज घडून देश प्रगतीच्या मार्गावर लागेल.

डॉ. प्रितम भि. गेडाम