आज हमारे आसपास का जो माहौल है उसे देखते हुए तो यही महसूस
होता है कि लोगों का व्यवहार लगातार संस्कारो की सीमा लांघकर दुर्व्यवहार की ओर
बढ़ रहा है। जंगली जानवरों से ज्यादा क्रूर मनुष्य के कृत्य, जिससे मानवता हर पल
शर्मसार हो रही है। हर ओर द्वेष, लोभ, अपराध, जुल्म, छल, कपट, नशाखोरी,
भ्रष्टाचार, मिलावटखोरी, झूठ, घरेलू कलह, शोर, प्रदूषण अपने चरम पर नजर आता है।
बच्चों में बढ़ता अपराध और नशा एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। कहीं संयुक्त
परिवार टुटकर छोटे टुकडों मे विभक्त हो रहे है तो कहीं रिश्ते तार-तार हो रहे है।
आज के समय में लोगों के लिए आत्मसन्मान, स्वाभिमान, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा,
समर्पण, समाधान, धैर्य, परोपकारिता, समता व बंधुता जैसे शब्दों का कोई मोल नजर
नहीं आता है। अभी पैसा ही सब कुछ है चाहे वह किसी भी तरह से कमाया जाए, हर कोई
सिर्फ अपना हित देखता है, चाहे उसके लिए कितनों का ही हक क्यो न छीनना पडे। ऐसा
संस्कार विहीन समाज राष्ट्र को बर्बादी की ओर ले जाता है जहां हर तरफ समस्या ही
समस्या होती है।
हर क्षेत्र में
कार्यरत व्यक्ति को पता होता है कि उनके विभाग में कहाँ और कैसे उचित-अनुचित
व्यवहार किया जाता हैं फिर भी सब मौन धारण कर तमाशबीनों की भूमिका निभाते है। गलत
बात को कोई भी रोकना नहीं चाहता, जिससे गलत काम को लगातार बढ़ावा मिलता है। अब तो
गलत वालों का समूह बढ़ता जा रहा हैं और सच की राह पर चलने वालों का समूह घट रहा
हैं, ऐसा प्रतीत होता है। दूसरे की समस्या की गंभीरता का पता तब तक नहीं चलता, जब
तक कि समस्या खुद पर न आ जाए। एक ही कार्यस्थल पर कार्यरत होते हुए भी, सहकर्मी
एक-दुसरे की टांग खिंचाई मे लगे रहते है, आपस मे मधुर व्यवहार दर्शाकर भी द्वेष
भावना बनाये रखते है, अब तो यह ढोंगी व्यवहार आस-पडोस व रिश्ते-नातों मे भी खूब
नजर आता है। आखिर हमारा समाज तरक्की कर रहा है या अनैतिक हो रहा है, लोगों की
कथनी-करनी में अंतर अर्थात बाहर दिखावे की जिंदगी और निजी जिंदगी अलग, ऐसी दोगली
जिंदगी जीना अब सामान्य हो गया है। खुद के फायदे की बात है तो गलत भी सही है और जब
दूसरे के फायदे की बात हो तो गलतियां ढूंढनी शुरू होती है। फैशन, स्टेटस सिंबल और
दिखावे के नाम पर लोग जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं। बच्चों के रोल मॉडल अब देशभक्त,
समाजसेवी नहीं बल्कि फैशनेबल फिल्मी सितारे बन गये है। हमें टेलीविजन और मोबाइल,
सोशल मीडिया के फायदे-नुकसान के प्रति सजग होना आवश्यक है।
जो व्यक्ति जितने ऊँचे पद पर आसीन होता है, वह उतना ही कार्य
के लिए जनता के प्रति जवाबदेह और जिम्मेदार होता है। हम अक्सर समस्या के लिए
एक-दूसरे पर दोष मढ़ते है लेकिन जिन्हें हम मतदान द्वारा चुनकर समाज के विकास के
लिए सत्ता पर विराजमान करते हैं उनसे ही सवाल पूछने से हम खुद कतराते हैं। जितना
रौब या समझाइश हम अपने घर पर दिखाते है उतनी हिम्मत हम अपने अधिकारों के प्रति
क्यों नहीं दिखाते? सरेआम सरकारी नियमों की धज्जियां उड़ाई जाती है। मासूमो के
मजबुरी का फायदा उठाने के लिए लालची लोग गिद्ध की भांति नोच खाने के लिए सदैव
तत्पर रहते है। ऑक्सीजन की अहमियत जानते हुए भी बड़ी संख्या में पेड़ काट दिए जाते
हैं, खुद के छोटे-से फायदे के लिए प्रदूषण, नशा और मिलावटखोरी द्वारा मासूम लोगो
को स्लो पॉइजन देकर गंभीर बीमारियों से ग्रसित करके तडपाकर मारा जा रहा है। लोग घर
के सामने की सड़क को भी अपनी निजी संपत्ति की तरह उपभोग की वस्तु मानकर धीरे-धीरे
अतिक्रमण करके सडक कम कर देते है लेकिन ये कभी नहीं सोचते कि हमारी छोटी सी गलती
दूसरों के लिए कितनी दर्दनाक साबित हो सकती है। एक तरफ भुखमरी से जाने जा रही है
तो दूसरी तरफ हजारों टन अनाज बर्बाद हो रहा है। हर दिन हम अपने सामने कई समस्याएं
देखते हैं, अर्थात एक की लापरवाही, भ्रष्टाचार की सजा दूसरे भुगतते हैं लेकिन कोई
कुछ नहीं कहता, तो कोई अपने पद का दुरुपयोग करता है, तो कोई पहचान और सिफारिश से
ईमानदारों का हक छीन लेता है। लोग अक्सर सरकारी नियमों का उल्लंघन और असभ्य भाषा
व्यवहार का प्रयोग करते है, खुली जगह कचरा जलाते है या फेंकते है, हमेशा
लड़ने-झगड़ने के लिए तैयार रहते है, बच्चों के सामने ही सफेद झूठ बोलते है या उनसे
झूठ बुलवाते है। लोकलाज, फालतू की झंझट ऐसा सोचकर, सच डरकर और बुराई डराकर जी रही
है। हर समय आम मनुष्य को डरकर जीने की आदत हो गई है।
अब मनुष्य का दर्जा, प्रतिष्ठा उसकी दौलत तय करती है न कि उसके
सदगुण। एक रुपये कीमत की वस्तु को झूठ दिखावे का लेबल लगाकर सौ रूपये मे बेचा जाता
है जबकि अच्छी वस्तु को लागत का भी मोल नहीं मिलता, ये सत्य परिस्थिति है। हमारे
देश में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है फिर भी अनाथालयों से अधिक वृद्धाश्रम बढ़ रहे
हैं क्योंकि घरों में बुर्जुगों का वर्चस्व और सन्मान कम आंका जा रहा है। आज मानव
उपभोग की वस्तु बनकर रह गया है, जब तक फायदा है तब तक महत्व है, जैसे ही फायदा
खत्म, वैसे ही रिश्ते-नाते, आदर, अपनापन खत्म।
बच्चे अपने माता-पिता को घर के बुजुर्ग से दुर्व्यवहार करते
देखते हैं और यही माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे संस्कारशाली बनकर समाज में
उनका नाम रोशन कर उनकी सेवा करें। सभी माता-पिता अपने बच्चों की खुशी और उज्ज्वल
भविष्य के लिए चिंतित हैं लेकिन बच्चों को सही वातावरण निर्माण करके देने की
जिम्मेदारी भी उनकी ही होती हैं, वे अपने बच्चों को समाज या देश पर थोप नहीं सकते।
हमारे बच्चे बाहर किस माहौल में रहते हैं? किन दोस्तों के साथ समय व्यतीत करते है?
कितना सच और झूठ बोलते है? किनसे मिलते-जुलते है? आज इस विषय से कितने प्रतिशत
पालक जागरूक है, बच्चों के साथ माता-पिता रोज कितना समय बिताते है, इस विषय पर
गंभीरता से सोचना बहुत जरूरी है। बहुत बार माता-पिता या बड़ों का व्यवहार ही
शर्मनाक लगता है, अगर बड़ों में ही समझ न हो तो वे बच्चों को क्या संस्कार देंगे?
यह आज के समय की सबसे बड़ी समस्या बनकर सामने आ रही है जो अपराधों को बढ़ावा देने
का कार्य कर रही है। अक्सर देखा गया है कि हंसकर बच्चों की गलतियों को नजरअंदाज कर
दिया जाता है और कहते है कि बच्चा है, लेकिन अच्छे कार्य को प्रोत्साहन और बुरे
काम की निंदा होना बेहद जरूरी है तभी बच्चों को सही-गलत के बिच का अर्थ समझ आयेगा।
बच्चे को पहली सिख घर से मिलती है, ये बात हमेशा याद रखें। माता-पिता को बच्चों की
मानसिकता के साथ-साथ आवश्यकता और दिखावे के बीच के अंतर को समझना चाहिए।
आज का दिन बहुत
विशेष है क्योंकि “राष्ट्रीय युवा दिवस” पूरे देश में एक युवा शक्ति के रूप में
मनाया जाता है। आज स्वामी विवेकानंद और राजमाता जिजाऊ जयंती है। जीजामाता ने पुत्र
छत्रपती शिवाजी महाराज पर संस्कारशील मार्गदर्शन करके पुरे विश्व में श्रेष्ठ माता
व गुरु के रूप में आदर्श स्थापित किया है। युवाओं के प्रेरणास्थान स्वामी
विवेकानंद ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि "उठो, जागो, तब तक संघर्ष
करो जब तक सफलता न मिल जाए" ऐसा ऊर्जावान संदेश दिया। सफलता का कोई शॉर्टकट
नहीं होता फिर भी आज का युवा मेहनत करने के बजाय जल्दी तरक्की पाने के लिए शॉर्टकट
का मार्ग अपनाना पसंद करते है, ऊपर से देश में बढ़ती बेरोजगारी, आर्थिक विषमता,
महंगाई और भी अन्य सामाजिक समस्याएं विकास में रुकावट पैदा करती हैं। विश्व स्तर
पर भारत में युवाओं की जनसंख्या सबसे ज्यादा है। यह युवा देश के विकास में मजबूत शक्ति बने न कि देश पर बोझ बन
समस्या बढ़ाये ये माता-पिता, पालक साथ ही सरकार की भी जिम्मेदारी है। युवा शक्ती
में उत्साह, साहस, धैर्य, सुनहरे सपने होते है अर्थात इस अमूल्य धरोहर का सही
प्रयोग ही देश के उन्नती का मार्ग है। देश का भविष्य इन्हीं युवाओं के कंधों पर है
इसलिये जैसे मजबूत भवन के लिए मजबूत नींव जरूरी है वैसे ही देश को सुदृढ व विकसीत
बनाने के लिए युवाओं को योग्य संस्कार, मार्गदर्शन व उचित वातावरण निर्माण कर देना
आवश्यक है और तभी संस्कारशील समाज का निर्माण होकर देश प्रगति पथ पर अग्रसर होगा।
डॉ.
प्रितम भि. गेडाम