बुधवार, 29 सितंबर 2021

आधुनिक जीवनशैली पहुंचा रही हृदय को आघात (विश्व हृदय दिवस - 29 सितंबर 2021) Modern lifestyle is causing heart attacks (World Heart Day - 29 September 2021)

 

आज के आधुनिक जीवनशैली ने मनुष्य का जीवन चक्र ही बिगाड़ दिया है जिसका गंभीर परिणाम मनुष्य के स्वास्थ्य पर हो रहा है, अनिद्रा, जंक फूड, धूम्रपान, अल्कोहोल, तनाव, खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों की कमी, यांत्रिक संसाधनों का अत्यधिक प्रयोग, प्रकृति से दूरी, प्रदूषण, बढता वजन, आलस्य जैसी बातें मनुष्य को कमजोर बना रही है। मानव का शरीर और मन दोनों पर तनाव लगातार दबाव बना रहा है जिसके कारण बीमारियों का जाल बढ़ता जा रहा है। लोगों में पहले बीमारियां उम्र के हिसाब से दिखायी पडती थी लेकिन अब जीवनशैली के बदलाव के कारण किसी भी उम्र में कोई भी गंभीर बीमारी होने लगी है। इसी में प्रमुखता से बढ़ने वाली बीमारियों में हृदय रोग है, जो तेजी से विश्वभर में अत्यधिक असमय मौतों का कारण है। हृदय लगातार रक्त पंप कर पूरे शरीर में ऑक्सीजन युक्त रक्त को पहुँचाता है, परंतु कार्य करते वक्त कोई असामान्य व्यवधान उत्पन्न होता है, जो हृदय की मांसपेशियों और रक्त नलिकाओं की दीवार को प्रभावित करती है, तब उसे हृदय रोग कहा जा सकता है। हृदयघात के रोगियों में से 50 फीसदी मरीज तो अस्पताल जाने से पहले ही दम तोड़ देते है। कोरोनरी आर्टरी डिजीज, कार्डियोमायोपैथी, एथेरोस्क्लेरोसिस, हार्ट संक्रमण, जन्मजात हार्ट डिजीज यह सभी हृदय संबंधित बीमारी है।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड् ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े कहते हैं कि भारत में वर्ष 2014 के बाद हार्ट अटैक से मरने वालों की संख्या बढ़ी है। 2016 में 21,914 लोगों ने हार्ट अटैक के कारण जान गंवाई, 2017 में मरने वालों की संख्या 23,249 रही, 2018 में 25,764 और 2019 में 28,005 लोगों की हार्ट अटैक से मौत हुई। अधिकतर हमारे देश में घरों में होने वाले हृदय संबंधी मौत के केसेस परिवार के सदस्य योग्य कारण सहित दर्ज नहीं करवाते है इसलिए मौत के आंकड़े हकीकत में कहीं ज्यादा हो सकते है। भारत में अब हर 04 बीमारी से मरने वाली मौतों में एक मौत हार्ट अटैक से होती है एनसीआरबी की रिपोर्ट कहती है कि ये बीमारी अब हर 14-18, 18-30, 30-34 आयु वर्ग में भी खूब बढ रही है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट कहती है कि दुनिया में बीमारियों की वजह से होने वाली मौतों में सबसे बड़ा हिस्सा हृदय रोग (कार्डियोवास्कुलर डिजीज) का होता है। वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन के अनुसार हर साल 17.9 मिलियन यानि करीब 02 करोड़ लोग मरते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में हृदय रोग से हर 36 सेकंड में एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। हर साल लगभग 6,55,000 अमेरिकी हृदय रोग से जान गंवाते हैं। भारत में भी पिछले एक दशक में इस बीमार के शिकार लोगों में 50 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हो चुकी है। इंडियन हार्ट एसोसिएशन के मुताबिक, भारत में होने वाले कुल हार्ट अटैक का 50 प्रतिशत 50 से कम उम्र और 25 प्रतिशत 40 से कम उम्र के लोगों में होता है। छाती में दर्द, सांस फूलना, घबराहट, जी मिचलाना, पेट दर्द, पसीना आना, अनियमित दिल की धड़कन, घुटन की अनुभूति, सूजे हुए टखने, थकान, हाथ, जबड़े, पीठ या पैर में दर्द जैसे लक्षण दिल के दौरे का संकेत दे सकते है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन अनुसार हृदय रोग (कार्डियोवैस्कुलर डिजीज) संबंधित प्रमुख तथ्य

हृदय रोग (सीवीडी) विश्व स्तर पर मृत्यु का प्रमुख कारण हैं। 2019 में सीवीडी से अनुमानित 17.9 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई, जो सभी वैश्विक मौतों का 32 प्रतिशत है। इनमें से 85 फीसदी मौतें हार्ट अटैक और स्ट्रोक के कारण हुईं। सीवीडी से होने वाली मौतों के तीन चौथाई से अधिक निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होते हैं। 2019 में गैर-संचारी रोगों के कारण 1.7 करोड़ अकाल मृत्यु (70 वर्ष से कम आयु) में से 38 प्रतिशत सीवीडी के कारण हुई। हृदय रोग का जल्द से जल्द पता लगाना आवश्यक है ताकि उचित सलाह और दवाओं के साथ इलाज शुरू हो सके। तंबाकू के उपयोग, अस्वास्थ्यकर आहार और मोटापा, शारीरिक निष्क्रियता और शराब के हानिकारक उपयोग जैसे व्यवहार संबंधी जोखिम कारकों से जागरूकता द्वारा अधिकांश हृदय रोगों को रोका जा सकता है।

स्वास्थ्य विभाग की पहल

भारत सरकार की राष्ट्रीय स्वास्थ्य विभाग की ओर से, बीमारियों, प्राथमिक चिकित्सा, निर्देशिका सेवाओं, स्वास्थ्य कार्यक्रमों, नीतियों, कानूनों और दिशानिर्देशों के विभिन्न मुद्दों से संबंधित प्रश्नों के समाधान के लिए स्वास्थ्य संबंधी जानकारी प्रदान करने के लिए एक वॉयस पोर्टल बनाया गया है। उपयोगकर्ताओं को एक टोल फ्री नंबर (1800-180-1104) डायल कर उस जानकारी के बारे में बोलना होगा जो वे चाह रहे हैं - जैसे, बीमारी का नाम। यह उन्नत प्रणाली उपयोगकर्ता की इनपुट आवाज को पहचानने में सक्षम है। वर्तमान में जानकारी 5 भाषाओं अंग्रेजी, हिंदी, तमिल, बांग्ला और गुजराती में उपलब्ध है, लेकिन भविष्य में और अधिक भारतीय भाषाओं को शामिल किया जाएगा।

तत्परता और जागरूकता आवश्यक

बहुत बार बेहोश रोगी को तत्काल कार्डियो पल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) देने की आवश्यकता पडती है, यह एक आपातकालीन स्थिति की चिकित्सा प्रक्रिया है, जिसे मरीज के शरीर पर इस्तेमाल किया जाता है, जिससे शरीर में पहले से मौजूद खून पुनः संचारित होने लगता है जिससे किसी की जान बचाना संभव होता है। बहुत बार दिल का दौरा पड़ने पर जब तक चिकित्सा सेवा उपलब्ध न हो जाये तब तक लोग असहाय होकर क्या करना है यह नहीं जानते। ऐसे में सीपीआर का जानकार व्यक्ति प्राथमिक चिकित्सा के तौर पर जागरूक रहकर सीपीआर के द्वारा किसी का जीवन बचाने में मदद करने के लिए अधिक सशक्त साबित हो सकता है। एम्बुलेंस के लिए आपातकालीन हेल्पलाइन नंबर 112 या 102 पर कॉल करें अन्यथा नजदीकी अस्पताल को कॉल कर सकते है।

हृदय संबंधीत रोगो के रोकथाम के लिए रणनीतियाँ आवश्यक

स्वास्थ्य शिक्षा और हृदय रोगों के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना, धूम्रपान और तंबाकू के सेवन को हतोत्साहित करना और स्वस्थ आहार और व्यायाम दिनचर्या को अपनाना बेहतर हृदय स्वास्थ्य को बढ़ावा देगा। नमक का सेवन कम हो, खाने में तेल का उपयोग भी कम होना चाहीए, उच्च वसा वाले डेयरी, कार्बोहाइड्रेट, संतृप्त वसा को कम करने और फलों, हरी सब्जियों का दैनिक सेवन बढ़ाने से भी समग्र स्वास्थ्य में सुधार होगा। उच्च रक्तचाप और मधुमेह पर नियंत्रण बनाए रखें, नियमित रूप से चलने, योग और ध्यान जैसी स्वस्थ व्यायाम गतिविधियों को बढ़ावा देने से निश्चित रूप से हृदय रोग की बढ़ती बीमारी को रोकने में मदद मिलेगी। अर्थात एक स्वस्थ जीवन शैली, संतुलित आहार और नियमित शारीरिक व्यायाम बचपन से ही शुरू कर देना चाहिए। निम्न और मध्यम आय वाले देश वैश्विक बोझ का लगभग 80 प्रतिशत वहन करते हैं। एशियाई भारतीयों में हृदय रोगों से जुड़ी मृत्यु दर किसी भी अन्य आबादी की तुलना में 20-50 प्रतिशत अधिक है इसलिए, उभरती हुई महामारी में जोखिम कारकों की भूमिका को स्पष्ट रूप से समझने और उनके प्रभावी नियंत्रण के लिए सभी प्रयासों को सक्रिय रूप से अमल में लाने की आवश्यकता है।

आजकल खाद्य पदार्थों में मिलावट आम बात हो गई है, ऐसा ही प्रतीत होता है। त्योहारों में तो यह समस्या अत्यधिक बढ जाती है। जानलेवा रसायन का खाद्य पदार्थों में उपयोग, बासी व निम्न दर्जे के खाद्यपदार्थ बेचे जाते है। अक्सर बाहर मिलने वाले खाद्य पदार्थ नमक, तेल, मसाले, शक्कर, वसा से भरपूर सेहत के लिए हानिकारक होते है, जो सिर्फ जुबान को स्वाद देकर स्वास्थ्य को नुकसान करते है क्योंकि इनमें आवश्यक पोषक तत्वों की भारी कमी होती है। खाद्यपदार्थ, तेल में तलने के बाद बचे हुए तेल को बार-बार खाने में उपयोग स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक घातक है और ऐसे तेल से निर्मित खाद्य पदार्थ बेचना भी कानूनन जुर्म है जिस पर प्रशासन के खाद्य व औंषधी विभाग द्वारा कार्यवाही की जाती है, क्योंकि यह तेल सीधे हृदय रोग के साथ कैंसर, जैसे अनेक जानलेवा बीमारी को बढ़ाता है इस नियम का विशेष रूप से खाद्य पदार्थ विक्रेताओं द्वारा कड़ाई से पालन होना चाहीये। स्वाद के मोह में हमारी चटोरी जुबान हमारे लिए सबसे ज्यादा घातक है, खान-पान संबंधी खाद्य पदार्थों का चयन स्वास्थ्य के हिसाब से करें ना कि जुबान के स्वाद के हिसाब से। हमेशा तनाव मुक्त जीवन जीने का निश्चय करें, पौष्टिक खाएं, स्वस्थ रहें।

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

आधुनिक जीवनशैली आणि वाढते हृदयविकार (जागतिक हृदय दिन विशेष - २९ सप्टेंबर २०२१) Modern Lifestyle and Increasing Heart Disease (World Heart Day Special - 29 September 2021)

 

आजच्या आधुनिक जीवनशैलीमुळे माणसाचे जीवनचक्र बिघडले आहे. ज्याचे गंभीर परिणाम मानवी आरोग्यावर होत आहेत. निद्रानाश, जंक फूड, धूम्रपान, अल्कोहोल, तणाव, पदार्थांमध्ये पोषक घटकांची कमतरता, यांत्रिक संसाधनांचा अति वापर, निसर्गापासून अंतर, प्रदूषण, वाढते वजन, आळस यासारख्या गोष्टी माणसाला कमकुवत करत आहेत. मानवी शरीर आणि मनावर ताण सतत दबाव निर्माण करत आहे ज्यामुळे रोगांचे जाळे वाढत आहे. पूर्वी आजार वयानुसार लोकांमध्ये दिसून यायचे पण आता जीवनशैलीतील बदलामुळे कोणताही गंभीर आजार कोणत्याही वयात होऊ लागला आहे. हृदयरोग हा अशाच प्रमुख आजारांपैकी एक आहे, ज्यामुळे जगभरात झपाट्याने अकाली मृत्यू होत आहेत. संपूर्ण शरीरात ऑक्सिजनयुक्त रक्त पोहोचवण्यासाठी हृदय सतत रक्त पंप करते. परंतु काम करताना कोणताही असामान्य हस्तक्षेप होतो, जे हृदयाच्या स्नायूवर आणि रक्तवाहिन्यांच्या भिंतीवर परिणाम करते, तेव्हा त्याला हृदयरोग म्हणता येईल. 50 टक्के हृदयविकाराचे रुग्ण रुग्णालयात जाण्यापूर्वीच जीव गमावतात. कोरोनरी धमनी रोग, कार्डिओमायोपॅथी, एथेरोस्क्लेरोसिस, हृदय संसर्ग, जन्मजात हृदयरोग हे सर्व हृदयाशी संबंधित आजार आहेत.


 नॅशनल क्राईम रेकॉर्ड ब्युरो (एनसीआरबी) ची आकडेवारी सांगते की भारतात 2014 पासून हृदयविकाराच्या झटक्याने मृत्यूची संख्या वाढली आहे. 2016 मध्ये, हृदयविकारामुळे 21,914 लोकांनी आपला जीव गमावला, 2017 मध्ये मृतांची संख्या 23,249 होती, 2018 मध्ये 25,764 आणि 2019 मध्ये 28,005 लोकांचा हृदयविकाराच्या झटक्याने मृत्यू झाला. आपल्या देशात हृदयविकाराच्या मृत्यूची बहुतेक प्रकरणे घरी होवून कुटुंबातील सदस्य योग्य कारणासह नोंदणी करत नाहीत, म्हणूनच मृतांचा आकडा प्रत्यक्षात आणखीही खूप जास्त असू शकतात. भारतात आता आजारांमुळे होणाऱ्या प्रत्येक 04  मृत्यू पैकी एक मृत्यू हृदयविकारामुळे होतो. एनसीआरबीचा अहवाल म्हणतो की हा रोग आता प्रत्येक 14-18, 18-30, 30-34 वयोगटात देखील वाढत आहे.

जागतिक आरोग्य संघटनेच्या अहवालात म्हटले आहे की जगातील आजारांमुळे होणाऱ्या मृत्यूंमध्ये हृदय व रक्तवाहिन्यासंबंधी रोग (कार्डियोवास्कुलर डिजीज) मृत्यूचा सर्वात मोठा वाटा आहे. वर्ल्ड हार्ट फेडरेशनच्या मते, दरवर्षी 17.9 दशलक्ष लोक मरतात. युनायटेड स्टेट्स मध्ये, दर 36 सेकंदात एक व्यक्ती हृदयरोगामुळे मरतो. दरवर्षी सुमारे 6,55,000 अमेरिकन हृदयरोगामुळे आपला जीव गमावतात. भारतातही, गेल्या दशकात, या रोगाच्या बळींमध्ये 50 टक्क्यांहून अधिक वाढ झाली आहे. इंडियन हार्ट असोसिएशनच्या मते, भारतातील 50 टक्के हृदयविकाराचे 50 वयाखालील लोकांमध्ये आणि 40 वर्षांखालील लोकांमध्ये 25 टक्के होतात. छातीत दुखणे, श्वास लागणे, दम गुदमरणे, मळमळ, पोटात दुखणे, घाम येणे, अनियमित हृदयाचा ठोका, अस्वस्थ संवेदना, सुजलेल्या घोट्या, थकवा, जबडा पाठ किंवा हाता-पायात वेदना, यासारखी लक्षणे हृदयविकाराचा झटका दर्शवू शकतात.

जागतिक आरोग्य संघटनेच्या म्हणण्यानुसार हृदयरोगाशी (कार्डियोवैस्कुलर डिजीज) संबंधित मुख्य तथ्ये

       हृदय व रक्तवाहिन्यासंबंधी रोग (सीव्हीडी) हे जागतिक स्तरावर मृत्यूचे प्रमुख कारण आहेत. 2019 मध्ये अंदाजे 17.9 दशलक्ष लोक सीव्हीडीमुळे मरण पावले, जे सर्व जागतिक मृत्यूंपैकी 32 टक्के आहे, यापैकी 85% मृत्यू हृदयविकाराचा झटका आणि स्ट्रोकमुळे होतो. सीव्हीडी मृत्यूंपैकी तीन चतुर्थांश मृत्यू कमी आणि मध्यम उत्पन्न असलेल्या देशांमध्ये होतात. 2019 मध्ये असंसर्गजन्य रोगांमुळे 17 दशलक्ष अकाली मृत्यू (70 वर्षांपेक्षा कमी) मृत्यूंपैकी 38 टक्के सीव्हीडीमुळे झाले. हृदयविकाराचा लवकर शोध घेणे आवश्यक आहे जेणेकरून योग्य सल्ला आणि औषधांनी उपचार सुरु करता येतील. तंबाखूचा वापर, अस्वास्थ्यकर आहार, लठ्ठपणा, आळस आणि अल्कोहोलचा हानिकारक वापर सारख्या जोखीम घटकांच्या जागरूकतेमुळे बहुतेक हृदयरोग टाळता येईल.

आरोग्य विभागाचा पुढाकार

भारत सरकारच्या राष्ट्रीय आरोग्य विभागाच्या वतीने, रोग, प्रथमोपचार, निर्देशिका सेवा, आरोग्य कार्यक्रम, धोरणे, कायदे आणि मार्गदर्शक तत्त्वांच्या विविध समस्यांमधून संबंधित प्रश्नांची पूर्तता करण्यासाठी आरोग्याशी संबंधित माहिती प्रदान करण्यासाठी व्हॉइस पोर्टल तयार केले आहे, वापरकर्त्यांना टोल फ्री नंबर (1800-180-1104) डायल करून शोधत असलेल्या माहितीबद्दल बोलावे लागेल - उदाहरणार्थ, रोगाचे नाव वगैरे. ही प्रगत प्रणाली वापरकर्त्याचा इनपुट आवाज ओळखण्यास सक्षम आहे. सध्या माहिती इंग्रजी, हिंदी, तमिळ, बांगला आणि गुजराती या 5 भाषांमध्ये उपलब्ध आहे, पण भविष्यात आणखी भारतीय भाषांचा समावेश केला जाईल.

तयारी आणि जागरूकता आवश्यक

बऱ्याचदा, बेशुद्ध रुग्णाला ताबडतोब कार्डिओ पल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) देणे आवश्यक असते. ही एक आपत्कालीन वैद्यकीय प्रक्रिया आहे, जे रुग्णाच्या शरीरावर वापरले जाते, ज्यामुळे शरीरात थांबलेल्या रक्त वाहिन्यात पुन्हा रक्त सक्रिय होऊन फिरू लागते ज्याद्वारे एखाद्याचे प्राण वाचवणे शक्य होते. हृदयविकाराच्या झटक्यानंतर अनेक वेळा लोक असहाय असतात आणि वैद्यकीय सेवा उपलब्ध होईपर्यंत काय करावे हे त्यांना कळत नाही. अशा परिस्थितीत, सीपीआरमध्ये जाणकार व्यक्ती, प्रथमोपचार म्हणून जागरूक असून, सीपीआरद्वारे एखाद्याचे जीवन वाचविण्यात मदत करण्यासाठी अधिक सक्षम असल्याचे सिद्ध होऊ शकते. रुग्णवाहिकेसाठी आपत्कालीन हेल्पलाइन क्रमांक 112 किंवा 102 वर कॉल करा अन्यथा आपण जवळच्या हॉस्पिटलला कॉल करू शकता.

हृदय व रक्तवाहिन्यासंबंधी रोग प्रतिबंधक धोरण आखणे गरजेचे

आरोग्य शिक्षण आणि हृदयरोगाबद्दल जागरूकता वाढवणे, धूम्रपान आणि तंबाखू सेवनापासून परावृत्त करणे आणि पौष्टिक अन्न आणि व्यायामाचा दिनक्रम स्वीकारल्यास हृदयाचे आरोग्य चांगले राहते. मीठ कमी वापरावे, अन्नामध्ये तेलाचा वापर देखील कमी केला पाहिजे. उच्च चरबीयुक्त डेअरी, कार्बोहायड्रेट्स, संतृप्त चरबी कमी करणे आणि फळे, हिरव्या भाज्या यांचे दैनंदिन सेवन वाढल्याने एकूण आरोग्य सुधारेल. उच्च रक्तदाब आणि मधुमेहावर नियंत्रण ठेवावे. चालणे, योग आणि ध्यान यासारख्या व्यायामाच्या क्रियाकलापांना नियमितपणे प्रोत्साहन देऊन हृदयरोगाच्या वाढत्या घटना रोखण्यासाठी हे निश्चितपणे मदत करेल, म्हणजेच, निरोगी जीवनशैली, संतुलित आहार आणि नियमित शारीरिक व्यायाम लहानपणापासूनच सुरू करायला हवा. कमी आणि मध्यम उत्पन्न असलेल्या देशांनी आजारपणात जागतिक बोजाच्या सुमारे 80 टक्के भार उचलला आहे. आशियाई भारतीयांमध्ये हृदयरोगाशी संबंधित मृत्यू दर इतर लोकसंख्येच्या तुलनेत 20-50 टक्के जास्त आहे. म्हणूनच, जोखीम घटकांची भूमिका स्पष्टपणे समजून आणि त्यांच्या प्रभावी नियंत्रणासाठी सर्व प्रयत्न सक्रियपणे करणे आवश्यक आहे.

अन्न भेसळ ही आजकाल एक सामान्य बाब झाली आहे, असे वाटते. सणांच्या काळात ही समस्या अधिकच वाढते. अन्नपदार्थांमध्ये घातक रसायनांचा वापर केला जातो, अस्वच्छ, शिळे आणि निकृष्ट दर्जाचे खाद्यपदार्थ विकले जातात. बरेचदा बाहेर मिळणारे खाद्यपदार्थ मीठ, तेल, मसाले, साखर, चरबीने परिपूर्ण असून आरोग्यासाठी हानिकारक असतात, जे केवळ जिभेला चव देऊन आरोग्याला हानी पोहोचवतात, कारण यात आवश्यक पोषक तत्वांचा प्रचंड अभाव असतो. अन्नपदार्थ, तेलात तळल्यानंतर उरलेल्या तेलाचा वारंवार वापर आरोग्यासाठी अत्यंत घातक असतो  आणि अशा तेलापासून बनवलेले पदार्थ विकणे देखील कायद्याने गुन्हा आहे, ज्यावर प्रशासनाकडून कारवाई केली जाते, कारण हे तेल थेट हृदयरोगासह कर्करोगासारख्या अनेक घातक आजारांना वाढवते. हा नियम विशेषतः अन्न विक्रेत्यांनी काटेकोरपणे पाळला पाहिजे. चविष्ट पदार्थांच्या मोहामुळे आपली जीभ आपल्यासाठी सर्वात घातक आहे, आरोग्यानुसार आहारातील पदार्थ निवडा, जिभेच्या चवीनुसार नाही. नेहमी तणावमुक्त जीवनाचा निर्धार करा, पौष्टिक खा, निरोगी रहा.

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

शुक्रवार, 10 सितंबर 2021

समस्याओं से डरकर नहीं बल्कि डटकर मुकाबला करना ही जीवन (विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस विशेष - 10 सितंबर 2021) Life is about facing problems boldly, not being afraid of them (World Suicide Prevention Day Special - 10 September 2021)


जिंदगी की भागमभाग में ज्यादातर लोगों में तनाव, गुस्सा, परेशानी, डर, अवसाद का भाव देखने को मिलता है, जरा सी डांट-फटकार या घर में नोकझोंक होने पर शीघ्र अनुचित निर्णय लेते है। आज के आधुनिक युग में छोटे बच्चे से लेकर बड़े बुजुर्ग, पढ़े-लिखे और अमीर से लेकर गरीब तक सभी वर्ग में आत्महत्या की घटनाएं अत्यधिक बढ़ती जा रही है, हर रोज आत्महत्याओं की खबरें देखने-सुनने को मिलती है। इसी समस्या की ओर जागरूकता दिवस के रूप में “विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस” दुनियाभर में हर साल 10 सितंबर को मनाया जाता है, 2003 से दुनिया भर में विभिन्न गतिविधियों के साथ आत्महत्याओं को रोकने के लिए विश्वव्यापी प्रतिबद्धता और कार्रवाई करने के लिए यह विशेष दिन है। इस वर्ष 2021 की थीम "कार्रवाई के माध्यम से आशा निर्माण करना" यह है। हर 40 सेकेंड में कोई न कोई अपनी जान लेता है। विश्व में हर साल 7-8 लाख लोग आत्महत्या के कारण अपनी जान गवांते है। 77% वैश्विक आत्महत्याएं निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होती है। आत्महत्या 15-19 वर्ष के बच्चों में मृत्यु का चौथा प्रमुख कारण है। 2012 की लैंसेट रिपोर्ट के अनुसार, भारत में आत्महत्या की दर 15-29 आयु वर्ग में सबसे अधिक थी। भारत में हर घंटे एक छात्र आत्महत्या करता है, हर दिन लगभग 28 ऐसी आत्महत्याएं होती हैं।


राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी आंकड़े

2019 में देश में आत्महत्या से प्रति दिन औसतन 381 मौतें दर्ज की गई, जो वर्ष भर में कुल 1,39,123 मौतें हुईं, जिनमें से 67 प्रतिशत 93,061 युवा वयस्क (18-45 वर्ष) थे, 2018 (89,407) की संख्या की तुलना में भारत में युवा आत्महत्याओं में 4 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 2019 में, भारतीय आत्महत्या दर 12.70 प्रतिशत थी जिसमें पुरुष 14.10 प्रतिशत और महिलाएं 11.10 प्रतिशत थीं। फांसी को आत्महत्या के प्रयास का सबसे आम तरीका माना गया। साल 2019 में करीब 74,629 लोगों (53.6 फीसदी) ने फांसी लगा ली। 2017 में देश भर में कुल 129887 आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए। 2016 में आत्महत्या से 9,478 छात्र, 2017 में 9,905 और 2018 में 10,159 छात्रों की मौत हुई। देश में आत्महत्या के कुछ कारण पेशेवर समस्याओं, दुर्व्यवहार, हिंसा, उत्पीड़न, पारिवारिक समस्याओं, आर्थिक नुकसान, अलगाव की भावना और मानसिक विकारों के कारण है। ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरों में आत्महत्या की दर अधिक है। हर आत्महत्या विनाशकारी होती है और इसका उनके आसपास के लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ता है हालाँकि, जागरूकता बढ़ाकर हम दुनिया भर में आत्महत्या की घटनाओं को कम कर सकते है।

आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं है, जीवन तो निरंतर चलने का नाम है जिसमें सुख-दुख आते रहते है। समस्याओं से डर जाना या हार मान लेना तो कमजोरी है और आत्महत्या उसी कमजोरी पर कायरता की निशानी है। पशु-पक्षी भी कभी हार नहीं मानते और कभी आत्महत्या नहीं करते, वो हर हाल में जीना सीख जाते हैं, हम तो फिर इंसान हैं, हमारे पास विवेक बुद्धि है, हम शारीरिक और मानसिक रूप से सक्षम हैं, मदद करने के लिए रिश्ते-नाते, संसाधन, संस्थाएं, प्रशासन, नियम, कानून और अन्य सुविधाएं हैं, हम हार क्यों मानते है। हमेशा याद रखें कि मुसीबतों से डरकर नौका पार नहीं होती और हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती। क्या हम दुनिया के सबसे दुखी लोग हैं? नहीं, कदापि नहीं, लोग हमसे ज्यादा समस्याओं से जूझ रहे हैं। जिंदगी के प्रति सिर्फ हमारा नजरिया बदल गया है, जब हम लोगों की समस्याओं को जानेंगे तो पता चलेगा कि हमारी समस्या दूसरों की तुलना में कुछ भी नहीं और समय कभी एक सा नहीं रहता।

समस्याओं को बढ़ाने में हमारा सबसे बड़ा हाथ है, दूसरों पर हमारा अति विश्वास, अति-उम्मीद या निर्भरता, हमारे व्यवहार का प्रभाव, बुरी संगत, बुरी आदतें, लालच, जागरूक न होना, नियमों का उल्लंघन करना, संयम व संतोष की कमी, आत्मचिंतन का अभाव, अपनो के साथ समस्या साझा न करना, लोग क्या कहेंगे यह सोचकर डर जाना, समाज में स्टेटस का दिखावा करना, वास्तविकता को झुठलाना, जिम्मेदारी व कर्तव्य से दूर भागना, नकारात्मक विचारों का जाल बुनना, परिस्थितीनुसार सामंजस्य स्थापित न करना, आवेश में अनुचित निर्णय लेना, आत्मग्लानि या दबाव में रहना ऐसी जटिलताएं मनुष्य द्वारा खुद निर्माण की हुई होती है, जिन्हें वह अपने सूझबूझ विवेकबुद्धी से सुलझा सकते है। समस्याओं से डरकर भागना कायरता और बुजदिली कहलाती है, कोई भी समस्या डर से नहीं बल्कि उस समस्या का मुकाबला करने से दूर होती है। ईमानदारी और सच्चाई से जीना है तो लोकलाज कभी न सोचें चाहे कितना ही संघर्ष हों।

अनेक महान समाज सुधारक, क्रांतिकारी, वैज्ञानिक, व्यावसायिक जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी सफलता का परचम लहराया, बहुत ही साधारण ग्रामीण दशरथ मांझी ने लगातार 22 वर्षों तक निःस्वार्थ भाव से पहाड़ तोड़कर रास्ता बनाया और माउंटेन मॅन कहलाए, पैरालंपिक में दिव्यांग खिलाड़ियों ने पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया, रूह कांप जाए ऐसी - ऐसी सफल लोगों की संघर्षमय जीवन की दास्तान है, हमारे आसपास भी ऐसे बहुत से प्रेरणास्रोत व्यक्तित्व मिलेंगे जो आज भी संघर्षमय जीवन जीकर समाज के सामने एक नई मिसाल कायम कर रहे हैं। लॉकडाउन में लाखों लोगों का हजारों किलोमीटर पलायन, चिलचिलाती धूप और कड़ाके की ठंड में देश की रक्षा करते वीर जवान, थोडेसे पीने के पानी के लिए हर दिन कई किलोमीटर का सफर तय करती ग्रामीण महिलाएं, कई दुर्गम इलाकों में पढ़ने के लिए रोज जंगल, नदि-नाले, खराब रास्तों से होकर गुजरते बच्चे, अकाल बाढ़ और प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहे मेहनतकश किसान भी रोजाना संघर्ष ही करते हैं। अब तो कोरोना और महंगाई ने संघर्ष अधिक बढ़ा दिया है, दुनियाभर में रोज करोडो लोग बेघर, बेसहारा, अनाथ, बीमार, होकर भी जिंदगी जीते है जिन्हें भरपेट भोजन और पानी तक नसीब नहीं होता है। विश्व की आधी आबादी गरीबी में जीवन बसर कर रही है, आज भी 75-80 साल के बुजुर्ग दो वक्त की रोटी के लिए काम करते नजर आते है। इतना कष्ट सहने के बाद भी उनका संघर्ष जारी है और इसे ही कहते है जिंदादिली, क्योंकि जिंदगी अनमोल है, पूरी दुनिया की दौलत बेचकर भी एक पल की जिंदगी नहीं खरीद सकते। अक्सर देखा जाता है कि संपन्न परिवार के शिक्षित व्यक्तिगण वित्तीय संकट उभरने पर आत्महत्या का प्रयास करते है परंतु वे परिस्थिती अनुसार नहीं ढलते, अमीरी के बाद गरीबी आई तो क्या हुआ, संघर्ष करने से क्यू डरना, आधी आबादी गरीबी से संघर्ष कर जीवनयापन कर रही है।

आत्महत्या को रोकना अक्सर संभव होता है और हम सभी इसे रोकने में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं। अपनी कार्रवाई के माध्यम से, हम किसी के सबसे बुरे क्षणों में - समाज के एक सदस्य के रूप में, बच्चे के रूप में, माता-पिता के रूप में, मित्र के रूप में, एक सहकर्मी के रूप में या एक पड़ोसी के रूप में, किसी के लिए बदलाव ला सकते हैं। छोटी सी परवाह जीवन बचा सकती है और संघर्षरत व्यक्ति में आशा की भावना पैदा कर सकती है। संघर्ष करने वालों में सकारात्मक प्रोत्साहन, आत्मविश्वास जगाकर उन्हें सशक्त और हौसले से मज़बूत करना हैं। चुनौतियाँ, असफलताएँ, पराजय और अंततः प्रगति, वही हैं जो आपके जीवन को सार्थक बनाती हैं। कभी हार न मानने की आदत ही जीत की आदत बन जाती है, इसलिए कुछ भी हो लेकिन हार नहीं मानना है और जितनी भी जिंदगी मिली है जिंदादिली से जियो


डॉ. प्रितम भि. गेडाम

कधीही व कोणत्याही समस्येवर आत्महत्या हे उपाय नाही (जागतिक आत्महत्या प्रतिबंध दिन - 10 सप्टेंबर 2021) Suicide is not a solution to any problem, anytime (World Suicide Prevention Day - 10 September 2021)


जीवनाच्या धावपळीत बहुतेक लोकांमध्ये तणाव, राग, त्रास, भीती, नैराश्याच्या भावना दिसतात, घरात थोडे रागावले किंवा भांडण झाल्यास, पटकन अयोग्य निर्णय घेतात. आजच्या आधुनिक युगात लहान मुलांपासून मोठ्यांपर्यंत, शिक्षित आणि श्रीमंत ते गरीब अशा सर्व वर्गात आत्महत्येच्या घटना खूप वाढत आहेत, रोज आत्महत्येच्या बातम्या येत असतात. या समस्येवर, "जागतिक आत्महत्या प्रतिबंध दिन" दरवर्षी 10 सप्टेंबर रोजी जगभरात जागरूकता दिवस म्हणून साजरा केला जातो. 2003 पासून जगभरात विविध उपक्रमांसह आत्महत्या थांबवण्यासाठी जागतिक स्तरावर वचनबद्धता आणि कारवाई करण्यासाठी हा एक विशेष दिवस आहे. या वर्षी 2021 ची थीम "कृतीद्वारे आशा निर्माण करणे" आहे. प्रत्येक 40 सेकंदात कोणीतरी स्वतःचा जीव घेतो. दरवर्षी जगात 7-8 लाख लोक आत्महत्येमुळे आपला जीव गमावतात. जागतिक स्तरावर 77% आत्महत्या कमी आणि मध्यम उत्पन्न असलेल्या देशांमध्ये होतात. 15-19 वर्षांच्या मुलांमध्ये आत्महत्या हे मृत्यूचे चौथे प्रमुख कारण आहे. 2012 मधे लॅन्सेटच्या अहवालानुसार, भारतात आत्महत्येचे प्रमाण 15-29 वयोगटात सर्वाधिक होते. भारतात दर तासाला एक विद्यार्थी आत्महत्या करतो, दररोज सुमारे 28 अशा आत्महत्या होत आहेत.


नॅशनल क्राईम रेकॉर्ड ब्युरो (एनसीआरबी) द्वारे जारी केलेल्या आकडेवारी प्रमाणे

2019 मध्ये, देशात दररोज सरासरी 381 आत्महत्या झाल्याची नोंद आहे, म्हणजेच वर्षभरात एकूण 1,39,123 मृत्यू झाले, त्यापैकी 67 टक्के 93,061 तरुण प्रौढ (18-45 वर्षे) होते, 2018 च्या (89,407) संख्येच्या तुलनेत भारतातील तरुणांच्या आत्महत्या 4 टक्क्यांनी वाढल्या. 2019 मध्ये, आत्महत्या दर 12.70 टक्के होता ज्यात पुरुष 14.10 टक्के आणि महिला 11.10 टक्के होते. फाशी ही आत्महत्या करण्याच्या प्रयत्नांची सर्वात सामान्य पद्धत मानली गेली. 2019 मध्ये सुमारे 74,629 लोकांनी (53.6 टक्के) फाशी लावून घेतली, 2017 मध्ये देशभरात एकूण 129887 आत्महत्येची नोंद झाली. 2016 मध्ये 9,478 विद्यार्थ्यांनी, 2017 मध्ये 9,905 विद्यार्थ्यांनी आणि 2018 मध्ये 10,159 विद्यार्थ्यांनी आत्महत्या केली. देशात आत्महत्येची काही कारणे व्यावसायिक समस्या, गैरवर्तन, हिंसा, छळ, कौटुंबिक समस्या, आर्थिक नुकसान, अलिप्तपणाची भावना आणि मानसिक विकारांमुळे आहे. आत्महत्येचे प्रमाण ग्रामीण भागापेक्षा शहरांमध्ये जास्त आहेत. प्रत्येक आत्महत्या विनाशकारी असते आणि मृतकाच्या संबंधित लोकांवर खोल परिणाम करते. तथापि, जागरूकता वाढवून आपण जगभरातील आत्महत्येच्या घटना कमी करू शकतो.

आत्महत्या हा कोणत्याही समस्येवर उपाय नाही, आयुष्य हे सतत चालत राहिले पाहिजे ज्यात सुख आणि दु:ख येत राहतात. समस्यांना घाबरणे किंवा त्यापासून पळणे कमकुवतपणा आहे आणि आत्महत्या हे त्याच कमजोरीवर भ्याडपणाचे लक्षण आहे. जनावरे, पक्षी सुद्धा हार मानत नाहीत आणि कधीही आत्महत्या करीत नाही, ते कोणत्याही परिस्थितीत जगायला शिकतात, मग आपण तर माणूस आहोत, आपल्याकडे विवेकबुद्धी विचारशक्ती आहे, आपण शारीरिक आणि मानसिकदृष्ट्या सक्षम आहोत, मदत करण्यासाठी कुटुंब, नातलग, संसाधने, संस्था, प्रशासन, नियम, कायदे आणि इतर सुविधा आहेत, मग आपण हार का पत्करायची, धीर का सोडायचा. नेहमी लक्षात ठेवा की संकटाच्या भीती ने आपण कधीच यशस्वी होऊ शकत नाही. काय आपण जगातील सर्वात दुःखी लोक आहोत का? नाही बिलकुल नाही, लोक आपल्यापेक्षा जास्त समस्यांना तोंड देत आहेत. समस्यांमुळे केवळ जीवनाकडे पाहण्याचा आपला दृष्टिकोन बदलला आहे. जेव्हा आपल्याला लोकांच्या समस्या समजेल तेव्हा कळेल की आपली समस्या इतरांच्या तुलनेत काहीच नाही आणि वेळही कधी एकसारखा राहत नाही.

समस्या वाढवण्यात सर्वात मोठा हात आपलाच आहे, इतरांवर आपला अति विश्वास, अति-अपेक्षा, किंवा अवलंबित्व, आपल्या वर्तनाचा परिणाम, वाईट संगती, वाईट सवयी, लोभ, जागरूक नसणे, नियमांचे उल्लंघन करणे, संयम आणि समाधानाचा अभाव, आत्मचिंतनाचा अभाव, आपल्या लोकांशी समस्या सामायिक न करणे, लोक काय म्हणतील या विचाराने घाबरणे, समाजात खोटा देखावा करणे, वास्तविकता नाकारणे, जबाबदारी आणि कर्तव्यापासून पळून जाणे, नकारात्मक विचारांचे जाळे विणणे, परिस्थितीनुसार जुळवून न घेणे, रागाच्या भरात अयोग्य निर्णय घेणे, एखाद्या न्यूनगंड दडपणाखाली जगणे अशा गुंतागुंती माणसाने स्वतः निर्माण केल्या आहेत, ज्यांना आपण बुद्धी आणि समजुतपणाने सोडवू शकतो. समस्यांपासून पळून जाणे याला भ्याडपणा आणि मूर्खपणा म्हणतात. कोणतीही समस्या भीतीने नाही तर समस्येला मात करून दूर होते. जीवनात कितीही संघर्ष असो जर आपल्याला प्रामाणिकपणाने आणि सत्याने जगायचे असेल तर कधीही लोकांचा विचार करू नका.

अनेक महान समाज सुधारक, क्रांतिकारी, शास्त्रज्ञ, व्यावसायिक ज्याने प्रतिकूल परिस्थितीतही शेकडो समस्यांना तोंड देत यशाचा झेंडा उंचावला, अत्यंत साधे गावकरी दशरथ मांझी यांनी सलग 22 वर्षे नि:स्वार्थीपणे डोंगर फोडून मार्ग काढला आणि माउंटन मॅन नावाने ओळखले गेले, दिव्यांग खेळाडूंनी पॅरालिम्पिकमध्ये पदके जिंकून देशाचे नाव उंचावले, आत्मा थरथरेल अशा काही यशस्वी लोकांच्या संघर्षमय जीवनाचा गोष्टी आहेत, अशी अनेक प्रेरणादायी व्यक्तिमत्वे आपल्या आजूबाजूला देखील मिळतील जे आजही संघर्षमय जीवन जगून समाजासमोर नवे आदर्श मांडत आहेत. टाळेबंदी मध्ये लाखो लोकांचे हजारो किलोमीटर स्थलांतर आणि जीवनावश्यक वस्तू साठी धडपड, उन्हात पावसात आणि कडक थंडीत देशाचे रक्षण करणारे शूर सैनिक, थोड्याशा पाण्यासाठी दररोज अनेक किलोमीटर प्रवास करणाऱ्या ग्रामीण महिला, अनेक दुर्गम भागात शाळेत जाण्यासाठी जंगले, नद्या-नाले, डोंगरभाग आणि खराब रस्त्यांमधून दररोज जाणारी मुले, दुष्काळ, पूर आणि नैसर्गिक आपत्तीशी झटणारे कष्टकरी शेतकरीही दररोज संघर्षच करतात. आतातर कोरोना आणि महागाईमुळे संघर्ष अधिकच वाढला आहे. दररोज जगभरातील मोठी लोकसंख्या बेघर, निराधार, अनाथांचे, जीवन जगतात ज्यांना पुरेसे अन्न आणि पाणीही मिळत नाही. जगातील अर्धी लोकसंख्या गरिबीत आहे. आजही 75-80 वर्षांची म्हातारी लोक सुद्धा दोन वेळच्या भाकरीसाठी काम करताना दिसतात. इतका त्रास सहन करूनही त्यांचा संघर्ष सुरूच आहे आणि यालाच जिवंतपणा म्हणतात, कारण जीवन अमूल्य आहे, संपूर्ण जगाची संपत्ती विकूनही तुम्ही एका क्षणाचे आयुष्य विकत घेऊ शकत नाही. असे अनेकदा दिसून येते की आर्थिक संकट उद्भवल्यावर संपन्न कुटुंबातील सुशिक्षित व्यक्ती आत्महत्येचा प्रयत्न करतात, परंतु ते परिस्थितीनुसार जुळवून घेत नाहीत, जर श्रीमंतीनंतर गरिबी आली तर काय झाले, लढायला का घाबरता, हे दिवस ही बदलतील, अर्धी लोकसंख्या गरिबीशी लढत आयुष्य जगत आहे.

आत्महत्या रोखणे अनेकदा शक्य होते आणि ते रोखण्यात आपण सर्वजण प्रमुख भूमिका बजावू शकतो. आपल्या कृतीतून, आपण एखाद्याच्या सर्वात वाईट क्षणांमध्ये - समाजाचा एक सदस्य म्हणून, मुलाच्या स्वरूपात, पालक म्हणून, मित्र म्हणून, सहकारी किंवा शेजारी म्हणून बदल घडवू शकतो. थोडीशी काळजी एक जीव वाचवू शकते आणि संघर्ष करणाऱ्या व्यक्तीमध्ये आशेची भावना निर्माण करू शकते. संघर्ष करणाऱ्यांमध्ये सकारात्मक ऊर्जा, प्रोत्साहन, आत्मविश्वास वाढवून त्यांना मजबूत आणि धैर्यवान बनवायचे आहे. आव्हाने, अपयश, पराभव आणि शेवटी प्रगती तेच आहे जे आयुष्य सार्थकी लावते. कधीही धीर न सोडण्याची सवय जिंकण्याची सवय बनते, त्यामुळे काहीही झाले तरी हार मानू नका आणि जेवढेही आयुष्य मिळाले आहे ते आनंदाने जगा.

डॉ. प्रितम भि. गेडाम