शनिवार, 17 अक्टूबर 2020

गरीबी उन्मूलन के बिना देश का विकास असंभव (अंतरराष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस विशेष - 17 अक्टूबर 2020) Development of the country is impossible without poverty eradication (International Day for the Eradication of Poverty Special - 17 October 2020)

 

किसी को भी गरीबी पसंद नहीं होती लेकिन किसी को जन्मजात मिलती है, तो किसी को बुरी स्थिति गरीब बना देती है। किसी का पूरा जीवन गरीबी में संघर्ष करते हुए बीतता है, तो किसी का जीवन केवल दो वक्त की रोटी और परिवार के भरण-पोषण के लिए भटकता रहता है। दुनिया में कही-कही गरीबी का ऐसा विकराल रूप है कि अगर कोई इसे देखे या सुने, तो वह कांप उठेगा। गरीबों को मजबूरी में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। आदमी सब कुछ दिखावा कर सकता है, लेकिन पैसे का दिखावा नही, यानी पैसे की कमी पैसे से ही पुरी होती है। दुनिया भर में लाखों - करोडों लोग अभी भी भूखे पेट सोते हैं। बच्चे कचरे के ढेर मे खाना चुनते नजर आते है। हमारे आसपास ही ऐसे कई दुखद दृश्य देखने को मिल जाते है। कोरोना काल की शुरुआत में मजदूरों का पलायन और उनकी दयनीय स्थिति किसी से छिपी नहीं है, जरा सोचिए हममें से कितने बुजुर्ग, बच्चे, गर्भवती महिलाएं या बीमार लोग तेज धूप में हजारों किलोमीटर भूखे-प्यासे यात्रा कर सकते हैं? यह गरीब ही था जिसने इतने कष्ट सहे।

गरीबी रेखा का निर्धारणः - वी. एम. दांडेकर और एन. राठ ने 1971 में राष्ट्रिय नमुना सर्वेक्षण के आंकडो के आधार पर गरीबी रेखा का मुल्यांकन किया। शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में 2250 कैलरी पर्याप्त माना, बाद में वाई. के. अलाघ टास्क फोर्स 1979 मे शहरी क्षेंत्रों के लिए 2100 से कम कैलरी व ग्रामीणो के लिए 2400 से कम कैलरीवालो को गरीबी के श्रेणी मे परिभाषीत किया। डी.टी. लकडावाला समिति 1993 ने कुछ अलग सुझाव दिये। तेंदुलकर कमेटी 2005, ने ग्रामीण 27 रूपये और शहरी 33 रूपये प्रतिदिन खर्च निर्धारित किया। सी. रंगराजन समिति 2012, ने शहरी 47 रूपये और ग्रामीण 32 रूपये प्रतिदिन खर्च निर्धारित किया। इस समिति के अनुसार तब देश मे 36.3 करोड जनता गरीब थी। विश्व बैंक के अनुसार भारत में 3.2 डॉलर यानी करीब 244 रुपए रोजाना कमाने वाला गरीब है। जबकि अमेरीका सरकार की गाइडलाइंस के अनुसार दो लोगों के परिवार के लिए 11 लाख 73384 रुपए सालाना से कम आमदनी गरीबी रेखा के नीचे समझी जाती है। सबसे ज्यादा गरीबी उपसहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया मे दिखती हैं। गरीबी को विभीन्न सामाजिक संकेतकों के माध्यम से देखा जाता है जैसे आय का स्तर, खर्च पॅटर्न, अशिक्षा का स्तर, कुपोषण के कारण, सामान्य प्रतिरोध का अभाव, स्वास्थ्य सेंवाओ और शुद्ध जल की पहुंच मे कमी, नौकरी के अवसरो में कमी, स्वच्छता व अन्य मदों का विश्लेषण। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में वर्ष 2006 से 2016 के बीच रिकॉर्ड 27.10 लोग गरीबी से बाहर निकले हैं. फिर भी करीब 37 करोड़ लोग आज भी गरीब हैं।

गरीबी में वृद्धि के कारणः - बढ़ती जनसंख्या, बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, सीमित संसाधन, कृषि उपज की कमी, प्राकृतिक आपदा, बाढ़, सूखा, खेतों का छोटे भागो में विखंडन, बड़े पैमाने पर रसायनों का उपयोग, किसानों के पास अपर्याप्त पूंजी, पारंपरिक कलागुणों व कार्यों का खत्म होना, अशिक्षा, स्वास्थ्य समस्याएं गरीबी के दुष्चक्र को बढ़ा रही हैं और यह समस्या समाज में गंभीर अपराधों और अन्य समस्याओं को जन्म देती है। खुद योजना आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका के संबंध में दायर अपने हलफनामे में कहा है कि देश में हर दिन लगभग ढाई हजार बच्चे कुपोषण के कारण काल का ग्रास बन जाते हैं। दूसरी ओर, खराब भंडारण प्रबंधन, गोदामों की कमी और लापरवाही के कारण हर साल हजारों टन अनाज सड़ जाता है।

गरीबी उन्मूलन के लिए सरकारी उपाय योजनाएँ:- मजदूरी रोजगार कार्यक्रम (मनरेगा), नई मंजिल’ (शिक्षा और आजिविका कार्यक्रम), स्वरोजगार कार्यक्रम, राष्ट्रिय आजीविका मिशन, दीनदयाल अंत्योदय योजना, महिला किसान सशक्तिकरण योजना, दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्या योजना - कौशल विकास कार्यक्रम, खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम (राष्ट्रिय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013) सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम - (राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम) इंदिरा गांधी राष्ट्रिय वृद्धावस्था पेंशन योजना, इंदिरा गांधी राष्ट्रिय विधवा पेंशन योजना, राष्ट्रिय विकलांगता पेंशन योजना, राष्ट्रिय पारिवारिक लाभ योजना, अन्नपूर्णा योजना, शहरी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम, राष्ट्रिय कृषि विकास योजना, प्रधानमंत्री जन धन योजना, ग्रामीण श्रम रोजगार गारंटी कार्यक्रम, प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, मेक इन इंडिया एंव अन्य।

कोरोना से गरीबी बढ़ेगीः - संयुक्त राष्ट्र संघ के एक शोध के अनुसार, अगर कोरोना सबसे खराब स्थिति में पहुंचता है, तो भारत में 10.4 करोड़ नए लोग गरीब हो जाएंगे। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने भारत में रोजगार पर एक रिपोर्ट जारी की थी। रिपोर्ट के अनुसार, भारत का कुल कार्यबल 50 करोड़ है। 90 फीसदी हिस्सा असंगठित क्षेत्र का है। कोरोना संकट के कारण 40 करोड से ज्यादा श्रमिक अधिक गरीब हो जाएंगे। भारत में गरीबों की श्रेणी में, शहरों में रहने वाले आदिवासी, पिछड़े वर्ग, दलित और श्रमिक वर्ग, जैसे कि कृषि मजदूर और सामान्य मजदूर अभी भी बहुत गरीब हैं, और ये भारत के सबसे गरीब वर्ग में आते हैं।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2019:- भरपेट भोजन नहीं मिलने के कारण उत्पन्न भूख की स्थिति संबंधी ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2019 में भारत 117 देशों में 102वें स्थान पर है जबकि पड़ोसी देश नेपाल, पाकिस्तान एवं बांग्लादेश की रैंकिंग हमसे बेहतर है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी उप प्रतिनिधि नागराज नायडू ने कहा, ‘दुनिया में कई लोग इतने भूखे हैं कि उनके लिए रोटी मिलना, भगवान मिलने के सामान है और ‘गरीबी किसी अपराध के बिना सजा देने के समान है। वैश्विक असमानता की पैठ भीतर तक है। यह हैरान करने वाली बात है कि पृथ्वी की 60 प्रतिशत से अधिक धन-सम्पत्ति करीब 2,000 अरबपतियों के पास है।

नीति आयोग के अनुसारः - नीति आयोग की 2019 एसडीजी इंडिया की रिपोर्ट से पता चला है कि देश के 22 से 25 राज्यों में गरीबी, भुखमरी और असमानता बढ़ी है और यह रिपोर्ट 2020-21 के बजट से एक महीने पहले जारी की गई थी जबकि 2005-06 से 2015-16 तक दस वर्षों में गरीबों की संख्या में गिरावट आयी थी। नीति आयोग के अनुसार, एसडीजी लक्ष्य 1 यानी गरीबी उन्मूलन के संदर्भ में वर्ष 2018 में 54 अंक से घटकर वर्ष 2019 में 50 अंक हुआ है और शून्य भूख एसडीजी लक्ष्य 48 अंक से 35 पर आ गया है, जो एक खराब स्थिति का संकेत देता है। राष्ट्रीय स्तर पर, आय असमानता सूचकांक में भी 7 अंकों की गिरावट आयी है, यानी असमानता बढ़ी है। नीति आयोग की सतत विकास लक्ष्य इंडेक्स (एसडीजी) 2019-20 की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2030 तक गरीबी मुक्त भारत के अपने लक्ष्य में भारत चार अंक और नीचे लुढ़क गया है, उसकी रिपोर्ट 2018 अनुसार, गरीबी और बेरोजगारी के कारण हर दिन बड़ी संख्या में लोग आत्महत्या कर रहे हैं।

गरीब और अमीर के बीच की आर्थिक खाई लगातार बढ़ रही:- ऑक्सफैम इंडिया की विषमता रिपोर्ट 2020 ने बताया है कि विश्वभर में गरीबी और अमीरी के बिच की आर्थिक खाई लगातार बढ रही है, 2019 में इसी रिपोर्ट में सामने आया था कि देश के टॉप एक प्रतिशत अमीर हर दिन 2200 करोड़ कमाते हैं और 2018 में इसी रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत के एक प्रतिशत अमीरों के पास देश की 73 प्रतिशत संपत्ति है। यह एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि वैश्विक वित्तीय संकट के दौर में अरबपतियों की संख्या दोगुनी बढ़ गई है। भारत के 63 अरबपतियों की कुल संपत्ति भारत के कुल केन्द्रीय बजट (2018-19) की राशि 24,42,200 करोड़ रुपए से भी अधिक है। विश्व के 2153 अरबपतियों की कुल संपदा विश्व की जनसंख्या के निचले 60 प्रतिशत लोगों (4.6 अरब लोगों) से अधिक है। क्रेडिट सुईस वैश्विक संपत्ति रिपोर्ट 2019, अनुसार विश्व आर्थिक व्यवस्था खराब बनी हुई है। विश्व आर्थिक फोरम के समावेशी विकास सूचकांक 2018 अनुसार उभर रही 74 अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में भारत देश का स्थान 62वें नंबर पर है। नेपाल (22 वां स्थान) बांग्लादेश (34) और श्रीलंका (40) इनसे भारत कहीं पीछे है। इसी रिपोर्ट के अनुसार 10 में से 6 भारतवासी 234 रूपये प्रतिदिन से कम आय पर परीवार का जीवनयापन करते हैं।

आज के आधुनिक युग में भी, बुनियादी सेवाओं की कमी के कारण हर दिन कई लोग दम तोड देते हैं। दुर्गम भागों की स्थिति आज भी वैसी ही है। बढती महंगाई और प्राकृतिक आपदाएँ गरीबों की दुर्दशा को अधिक बढ़ाती हैं। आज भी बच्चों को भूख से, रोते बिलगते देखा जाता है। वक्त पर किसी को एम्बुलेंस नहीं मिलती, तो किसी को इलाज नहीं मिलता, तो किसी को राशन नहीं मिलता है और मानवता शर्मसार होती है, ऐसी खबरें अक्सर समाचार पत्रों, समाचार चैनलों या सोशल मीडिया के माध्यम से देखी और पढ़ी जाती हैं। गरीबी, बच्चों से उनका मासूम बचपन छीन लेता है। गरीबी, खराब माहौल को जन्म देती है, जहां शुद्ध भोजन, स्वच्छ हवा व पानी की कमी, बीमारी, निम्न व तंग जीवनस्तर, मलिन बस्तियां, गलीच्छ वातावरण, होता है। विकास करने के लिए, सबसे पहले, हर हाथ को काम, रोजगार, उचित वेतनमान, और व्यवसाय के लिए वित्तीय सहायता को मजबूत करना अत्यंत आवश्यक है। शहरों की ओर गाँवों का पलायन रोकना होगा, गाँवों को समृद्ध बनाना होगा ताकि वहाँ रोजगार के अवसर उपलब्ध हों। जब सभी के पास काम होगा तभी वे अपनी जरूरतों पर खर्च कर सकेंगे और जीवन स्तर में सुधार कर सकेंगे अर्थात गरीबी उन्मूलन के बिना देश का विकास असंभव है।

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

 

गरीबी निर्मूलन शिवाय देशाचा विकास अशक्य (जागतिक गरीबी उन्मूलन दिन विशेष - 17 ऑक्टोबर 2020) Development of a country is impossible without poverty eradication (World Poverty Eradication Day Special - 17 October 2020)


कोणालाही गरीबी आवडत नाही, परंतु कोणाचा जन्म गरीबीत होतो, तर कधी वाईट परिस्थिती एखाद्याला गरीब बनवते. कधी एखाद्याचे संपूर्ण आयुष्यच गरीबीत संघर्ष करीत संपतो तर कधी कुणाचे आयुष्य फक्त दोन वेळेच्या भाकरीसाठीच भटकत असते. जगात कुठे-कुठे तर गरीबांची अत्यंत गंभीर दयनीय स्थिती आहे की आपल्याला विश्वासच बसणार नाही. गरीबांना अनेक अडचणींचा सामना करावा लागतो, त्याचा आधारभूत गरजा सुद्धा पुर्ण होत नाही. माणूस सर्वकाही ढोंग करू शकतो, परंतु पैशाचे सोंग केली जात नाही, म्हणजेच पैशाचा अभाव पैशानेच पूर्ण होतो. जगभरातील कोट्यवधी लोक आजही उपाशीपोटी झोपतात. कर्चयाच्या ढीगात मुले अन्न निवडताना दिसतात. आपल्या आजूबाजूला अशी अनेक दृश्ये आढळतात. कोरोना काळाच्या सुरूवातीस परिस्थिती कोणापासून लपलेली नाही, लॉकडाउन मध्ये मजुरांचे पलायन आणि त्यांची दयनीय अवस्था, जरा कल्पना करून बघा की आपल्यातील किती वृद्ध, मुले, गरोदर स्त्रिया किंवा आजारी लोक हजारो किलोमीटर भुकेने-तहानलेल्या त्रासामध्ये ओझे घेवून भर उनात पायी चालू शकतात? त्या गरीबांनीच इतका त्रास सहन केला.

गरीबी रेषेचे निर्धारण :- वी.एम. दांडेकर आणि एन. राठ यांनी 1971 मध्ये राष्ट्रीय नमुना सर्वेक्षणातील आकडेवारीच्या आधारे दारिद्ररेषेचे मूल्यांकन करून शहरी आणि ग्रामीण दोन्ही भागात 2250 कॅलरी पुरेशी मानली. नंतर 1979, मध्ये अलाघ टास्क फोर्सने शहरी भागासाठी 2100 कॅलरीपेक्षा कमी आणि ग्रामस्थांसाठी 2400 पेक्षा कमी कॅलरीवाल्यांना गरिबीरेषेखाली मानले. डी.टी. लकडावाला समिती 1993 ने काही वेगळ्या सूचना केल्या. तेंडुलकर समिती 2005, ने ग्रामीण भागातील गरीबांसाठी 27 रुपये आणि शहरीसाठी 33 रुपये खर्च मानला. सी. रंगराजन समिती 2012 ने एका दिवसाला शहरी भागासाठी 47 रूपये आणी ग्रामीण भागासाठी 32 रुपये पेक्षा कमी खर्च करणार्यास गरीबीरेषेखाली निश्चित केले. या समितीच्या म्हणण्यानुसार, त्यावेळी देशातील 36.3 कोटी लोक गरीब होते. जागतिक बँकेच्या मते, दिवसाला 3.2 डॉलर किंवा सुमारे 244 रुपये कमावणारी व्यक्ती भारतात गरीब आहे. तर, अमेरिकी सरकारच्या मार्गदर्शक सूचनांनुसार, दोन लोकांच्या कुटुंबासाठी 11 लाख 73384 रुपयांपेक्षा कमी उत्पन्न हे दारिद्ररेषेखालील मानले जाते. उपसहारा प्रदेश आफ्रिका आणि दक्षिण आशियामध्ये सर्वाधिक गरीबी आहे. दारिद्र हे विविध सामाजिक निर्देशकांद्वारे मुल्यांकित केले जाते, जसे की उत्पन्नाची पातळी, खर्चाची पध्दती, निरक्षरतेची पातळी, कुपोषणामुळे, सर्वसाधारण प्रतिकारांची कमतरता, आरोग्य सेवांचा अभाव आणि शुद्ध पाण्याची कमतरता, नोकरीच्या संधी तोटा, स्वच्छता आणि इतर वस्तूंचे विश्लेषण. संयुक्त राष्ट्रांच्या अहवालानुसार 2006 ते 2016 या वर्षात देशातील दारिद्रतून 27.10 लोक बाहेर पडले आहेत. तरीही सुमारे 37 कोटी लोकसंख्या आजही गरीब आहेत.

वाढत्या गरीबीची कारणे : - वाढती लोकसंख्या, वाढती महागाई, प्रचंड बेरोजगारी, मर्यादित साधने, शेती उत्पादनांचा तुटवडा, नैसर्गिक आपत्ती, पूर, दुष्काळ, शेतीचे लहान-लहान तुकडे होणे, रसायनांचा मोठ्या प्रमाणात वापर, शेतकरी जवळील अपुरे भांडवल, पारंपारिक कौशल्यांचे आणि कामाचे निर्मूलन, अशिक्षितपणा, आरोग्याच्या समस्या यामुळे निर्धनतेचे चक्र वाढतच आहे आणि या समस्येमुळे समाजात गंभीर गुन्हे आणि इतर समस्या उद्भवतात. स्वतः नियोजन आयोगाने सर्वोच्च न्यायालयात जनहित याचिकेसंदर्भात दाखल केलेल्या प्रतिज्ञापत्रात म्हटले आहे की, दररोज देशातील सुमारे अडीच हजार मुले कुपोषणामुळे मृत्यूमुखी पडतात. दुसरीकडे, अन्न-धान्य साठवण व्यवस्थापनात कमी, गोदामांचा अभाव आणि निष्काळजीपणा यामुळे दरवर्षी हजारो टन धान्य सडते.

गरीबी निर्मूलनासाठी शासकीय उपाय योजना : - वेतन रोजगार कार्यक्रम (मनरेगा), नई मंजिल (शिक्षण व आजीविका कार्यक्रम), स्वयंरोजगार कार्यक्रम, राष्ट्रीय आजीविका मिशन, दीनदयाल अंत्योदय योजना, महिला किसान सशक्तिकरण योजना, दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना - कार्यक्रम, अन्न सुरक्षा कार्यक्रम (राष्ट्रीय अन्न सुरक्षा अधिनियम, 2013) सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम - (राष्ट्रीय सामाजिक सहाय्य कार्यक्रम) इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्ध पेंशन योजना, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा निवृत्तीवेतन योजना, राष्ट्रीय अपंगत्व पेन्शन योजना, राष्ट्रीय कुटुंब लाभ योजना, अन्नपूर्णा योजना, शहरी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम, राष्ट्रीय कृषी विकास योजना, प्रधानमंत्री जन धन योजना, ग्रामीण कामगार रोजगार हमी कार्यक्रम, पंतप्रधान ग्रामीण गृह योजना, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, मेक इन इंडिया, विद्याथ्र्यांसाठी शिष्यवृत्ती आणि इतर.

कोरोना गरीबी वाढवेल : - संयुक्त राष्ट्रांच्या संशोधनानुसार जर कोरोना सर्वात वाईट स्थितीत पोहोचला तर भारतातील 10.4 कोटी नवीन लोक गरीब होतील. आंतरराष्ट्रीय कामगार संघटनेने भारतात रोजगार विषयी एक अहवाल प्रसिद्ध केला. अहवालानुसार भारताची एकूण कामगार संख्या 50 कोटी आहे. त्यातील 90 टक्के हे असंघटित क्षेत्रातील कामगार आहेत. कोरोना संकटामुळे 40 कोटीहून अधिक कामगार जास्तच गरीब होतील. भारतातील गरीब वर्गात, आदिवासी, मागासवर्गीय, दलित आणि शहरी कामगार, शेती करणारे कामगार, सामान्य मजूर, अजूनही खूपच गरीब आहेत आणि ते भारतातील सर्वात गरीब वर्गात मोडतात.

ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2019 : - अन्नाच्या अभावामुळे उपासमारीच्या स्थितीत ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2019 मध्ये 117 देशांपैकी भारत 102 व्या क्रमांकावर आहे, तर शेजारी देश नेपाळ, पाकिस्तान आणि बांगलादेश आपल्यापेक्षा चांगल्या स्थितीत आहेत. संयुक्त राष्ट्रातील भारताचे कायमस्वरूपी प्रतिनिधी नागराज नायडू असे म्हणाले, जगातील बरीच माणसे इतकी भुकेली आहेत की, त्यांना भाकरी मिळणे म्हणजे देवाला भेटण्यासारखे आहे आणि “गरीबी कोणत्याही गुन्ह्याशिवाय शिक्षा देण्यासारखे आहे. जागतिक असमानता खूप आत पर्यंत शिरली आहे. हे आश्चर्यकारक आहे की पृथ्वीवरील संपुर्ण संपत्तीपैकी 60 टक्के संपत्ती ही फक्त 2 हजार अब्जाधीशांकडे आहे आणी ती सातत्याने प्रचंड वाढतच आहे.

नीती आयोगाच्या मते : - नीती आयोगाच्या 2019 च्या एसडीजी इंडियाच्या अहवालात असे दिसून आले आहे की देशातील 22 ते 25 राज्यांमध्ये गरीबी, भूक आणि असमानता वाढली आहे आणि 2020-21 च्या अर्थसंकल्पाच्या एका महिन्यापूर्वीच हा अहवाल प्रसिद्ध झाला. 2005-06 ते 2015-16 या दहा वर्षात गरीबांच्या संख्येत घट झाली होती. नीती आयोगाच्या मते, एसडीजी लक्ष्य 1 म्हणजेच गरीबी निर्मूलनाच्या संदर्भात 2018 मध्ये 54 गुणांवरून खाली घसरत सन 2019 मध्ये 50 गुणांवर आला आहे आणि शून्य भूक एसडीजीचे लक्ष्य 48 अंशांवरून खाली 35 पर्यंत खाली आले आहे, ही आंकडेवारी परिस्थिती खराब असल्याचे दर्शवित आहे. राष्ट्रीय स्तरावर, उत्पन्न असमानता निर्देशांकातही 7 अंकाची घट झाली आहे, म्हणजे असमानता वाढली आहे. नीती आयोगाच्या सतत टिकाऊ विकास लक्ष्य निर्देशांक (एसडीजी) 2019-2020 च्या अहवालानुसार, 2030 पर्यंत गरीबीमुक्त भारताच्या लक्ष्यात देश चार गुण खाली घसरला आहे. 2018 च्या अहवालानुसार दारिद्र आणि बेरोजगारीमुळे दररोज मोठ्यासंख्येने लोक आत्महत्या करीत आहेत.

गरीब आणि श्रीमंत यांच्यात आर्थिक दरी सतत वाढत आहे : - ऑक्सफॅम इंडियाची आर्थिक असमानता अहवाल 2020 मध्ये असे म्हटले आहे की जगातील गरिबी आणि श्रीमंत यांच्यातील आर्थिक दरी सतत वाढत आहे, 2019 मध्ये याच अहवालात असे दिसून आले होते की देशातील सर्वोच्च एक टक्का श्रीमंत लोक दररोज 2200 कोटी कमवतात आणि 2018 मध्ये याच अहवालात असे म्हटले गेले होते की भारतातील एक टक्के श्रीमंत हे देशाच्या 73 टक्के संपत्तीचे मालक आहेत. जागतिक आर्थिक संकटाच्या काळात अब्जाधीशांची संख्या दुप्पट झाली आहे हे एक महत्त्वाचे सत्य आहे. देशाच्या एकूण 63 अब्जाधीशांची संपत्ती भारताच्या केंद्रीय अर्थसंकल्प (2018-2019) च्या 24,42,200 कोटींपेक्षाही जास्त आहे. जगातील एकूण 2153 अब्जाधीशांची संपत्ती जगातील लोकसंख्येच्या तळाच्या 60 टक्के (4.6 अब्ज लोक) पेक्षा अधिक आहे. क्रेडिट सुईस ग्लोबल असेट्स रिपोर्ट 2019 नुसार जागतिक आर्थिक व्यवस्था खराब होत आहे. वर्ल्ड इकॉनॉमिक फोरमच्या सर्वसमावेशक विकास निर्देशांक 2018 नुसार 74 उदयोन्मुख अर्थव्यवस्था असलेल्या देशांमध्ये भारताचा क्रमांक 62 वा आहे. नेपाळ (22 वे), बांगलादेश (34) आणि श्रीलंका (40) व्या नंबरवर आहे, म्हणजे भारत देश यांचाही मागे आहे. या अहवालानुसार, 10 पैकी 6 भारतीय दररोज 234 रुपयांपेक्षा कमी कमवून कुटुंब चालवतात.

आजच्या आधुनिक युगात सुद्धा मूलभूत सेवा नसल्यामुळे दररोज बरेच लोक जीव गमावतात. दुर्गम भागांची अवस्था आजही अतीशय वाईट आहे. वाढती महागाई आणि नैसर्गिक आपत्ती गरिबांच्या दुर्दशामध्ये आणखी भर घालते. आजही मुले भुकेने रडताना दिसतात. जगात अनेक गरीबांना रुग्णवाहिका मिळत नाही, तर कोणाला वेळेवर उपचार मिळत नाही, तर कोणाला रेशन मिळत नाही आणि माणुसकी मारली जाते, अशा बातम्या अनेकदा वर्तमानपत्र, वृत्तवाहिन्या किंवा सोशल मीडियाच्या माध्यमातून पाहिल्या व वाचल्या जातात. गरीबी मुलांपासून त्यांचे निरागस बालपण हीरावून घेते. गरिबीमुळे खराब वातावरण निर्माण होते, गरीबीत स्वच्छ अन्न, शुद्ध हवा व पाण्याची कमतरता, रोगराई आणि निम्न राहणीमान, झोपडपट्ट्या, घाण वातावरणाची समस्या होते. देशाला विकसित करण्यासाठी, सर्वप्रथम, प्रत्येक हाताला काम मिळाले पाहीजे. रोजगार, योग्य वेतनश्रेणी आणि व्यवसायासाठी आर्थिक सहाय्य मजबूत करणे अत्यंत महत्वाचे आहे. शहरांकडे कामासाठी जाणारे गावांचे स्थलांतर थांबवावे लागेल, गावांना समृद्ध करावे लागेल जेणेकरुन तेथेच रोजगाराच्या संधी उपलब्ध असतील. जेव्हा प्रत्येकाकडे काम असेल, तरच ते गरीब त्यांच्या मुलभूत गरजेवर खर्च करण्यास सक्षम राहतील आणि राहणीमान सुधारतील म्हणजेच गरिबी निर्मूलनाशिवाय देशाचा विकास अशक्य आहे.

डॉ. प्रितम भि. गेडाम


शनिवार, 10 अक्टूबर 2020

वेगाने वाढत्या मानसिक आजारासाठी जास्ततर आपण स्वतःच जबाबदार (जागतिक मानसिक आरोग्य दिन विशेष - 10 ऑक्टोबर 2020) We are largely responsible for the rapidly increasing mental illness (World Mental Health Day Special - 10 October 2020)


आजच्या आधुनिक युगात स्त्रिया व वृद्ध लोकांबद्दल वाढते अत्याचार, स्वार्थप्रवृत्ति, प्रदूषित वातावरण, शोर, नशा, फसवणूक, निकृष्ठ गोष्टी, अपमानास्पद शब्द किंवा वर्तन, इतरांकडून अती अपेक्षा, वाढती जबाबदारी, संस्कारांची कमतरता, एकटेपणा, दुखी आठवणी, सहानुभूतीचा अभाव, निराशा, अपयश, परीस्थितीला घाबरून जाणे किंवा लवकर हतबळ होणे, रात्री उशिरा पर्यंत जागणे, पौष्टिक व संतुलित आहाराची कमतरता, कुटुंबात समजूतदार मार्गदर्शकांचा अभाव, भवितव्याची काळजी अशा गोष्टी माणसाला मानसिक आजार देतात. सध्या माणूस क्षणार्धात आनंदासाठी भटकत आहे, तो अत्यंत चिडचिडा, उग्र होत आहे, सहनशक्तीच्या अभावामुळे मनुष्य पटकन संयम गमावतो, भारतीय मनोविकृती संस्थेने नुकत्याच केलेल्या सर्वेक्षणात असे आढळले आहे की लॉकडाऊन नंतर मानसिक रोगांच्या बाबतीत 20 टक्क्यांनी वाढ झाली आहे, ज्यामध्ये दर पाच भारतीयांपैकी एक जण त्रस्त आहे.

आपला सर्वात मोठा शत्रू आपण स्वत : - आपल्या मनात जगभरातील विचार फिरत असतात, लहान समस्यादेखील गंभीर स्वरुपात बघतो. खूप टेंशन घेतो की समस्या कशी सुटेल? काय करायचं? लोक मनाच्या मनामध्ये हजारो गोंधळ निर्माण करून स्वतलाच गुंतून घेतात आणि अडकतात त्यामुळेच व्यक्ती आतून संकुचित होत जातो, मग नकारात्मक विचार मानवी मनामध्ये रुजतात, असे लोक कुटुंबापासून दूर जाऊ लागतात, अशाप्रकारे, हळूहळू ते सर्वसाधारणपणे मानसिक विकृतीकडे वाढत असतात आणि अनुचित घटनांना बळी पडतात. आज समाजात बर्याच समस्या आहेत आणि त्यात आपलाही छोटासा सहभाग आहे. आम्हाला बर्याच अडचणींची कारणे आधीच माहित असतात, तरीही आपण जे करू नये तेच मुद्दाम करतो. मादक पदार्थ हानिकारक आहेत हे जाणून देखील, लोक स्वतःहून व्यसनाचा आहारी जातात. फक्त जिभेच्या चवीसाठी, बाहेरचे नको ते उलट-सूलट खातात. आणि शरीर खराब करतात. शरीरासाठी फायदेशीर असलेल्या गोष्टींपासून आपण नेहमीच दूर पडतो. अर्थात जास्ततर शारीरिक, मानसिक रोगांचे मूळ आपणच तयार करतो.

जर आपण या 5 नियमांचे सतत पालन केले तर आपण नेहमी आनंदी, निरोगी, सकारात्मक उर्जेने भरलेले असाल. आपण इतर लोकांपेक्षा अधिक सक्षम व्हाल, आपली रोगप्रतिकार शक्ती व आत्मविश्वास वाढेल आणि आपण शारीरिक आणि मानसिक आजारांपासून दूर रहाल. कठीण काळात कधीही हार मानू नका, प्रयत्न करणे हे काम आहे. जर समस्या असेल तर वेळ देखील सतत बदलत असते, त्याच प्रकारे परिस्थिती कधीही एकसारखी नसते. माणसाच्या आत असलेली भीतीच माणसाला कमकुवत बनवते. माणसाला फक्त वाईट कृत्ये करण्यास घाबरायला पाहिजे. लोक काय म्हणतील ते विसरून जा कारण हे लोक आपल्या समस्या सोडवायला किंवा गरजा पूर्ण करण्यासाठी येत नाहीत, म्हणून चांगली कामे लहान किंवा मोठी असो, आयुष्यात कधीच करायला लाज वाटू नये. हे लेख वाचून एकदा स्वताचे व्यवहार, दिनचर्या बद्दल आत्मनिरीक्षण करून नक्कीच बघा. भावनिकदृष्ट्या मजबूत बना. आयुष्याचा प्रत्येक क्षण आनंदाने जगा, नेहमी हसत-खेळत, सकारात्मक आणि तणावमुक्त रहा.

मानवी सुरक्षा सुविधेसाठी नियम कायदे आहेत, परंतु लोक स्वतच नियम मोडतात. आपल्या जवळचा लोकांना विसरून सोशल मीडियाची सवय लावून तिथे मित्र शोधतात, अमुल्य वेळ घालवितात, तणावग्रस्त वातावरणात जगतात, व्यायाम करायला कंटाळा करतात. कंटाळवाणे, नकारात्मक आणि रडणारे- टीव्ही मालिका, कार्यक्रम पासून दूर रहावे कारण आपण ज्या प्रकारे पाहता, ऐकता, विचार करता, त्याचा परिणाम आपल्या मनावर पडतो आणि तेच आपल्या व्यवहारात उतरत असते। नेहमी निरोगी जीवनशैलीचे अनुसरण करावे. खरेदी किंवा व्यवहार करताना जागरूक रहा, आकर्षण आणि आवश्यकतेमधील फरक समजून घ्या. आपले कुटुंब, समाज, देश यांच्याबद्दलची आपली जबाबदारी समजून घ्या. मुलांना चांगले संस्कार देत नाहीत आणि जेव्हा एखादी समस्या उद्भवते तेव्हा पालक पश्चाताप करतात व इतरांना दोष देतात, आपली मुले मोठी होऊन देश आणि मानवजातीच्या विकासाचा आधार बनावे, उलट गुन्हे करून माणूसकीला काळीमा फासणारी कृत्य करणारी व्हायला नको, ही जबाबदारी पालकांची आहे. एक चुकीचा निर्णय तुमचे आयुष्य बदलू शकतो. नेहमी निर्णय घेण्यापूर्वी, संबंधित सर्व बाबींकडे लक्ष द्या, लोक काय करीत आहेत, त्याऐवजी, आपण काय करीत आहोत याचा विचार करा, कुजबूज करणारे आणि स्वार्थवृत्तिच्या लोकांपासून दूर रहा, लोकांना ओळखण्यास शिका. देखाव्याचा जीवनशैलीपासून दूर रहा, तुमची विचारशक्ती वाढवा, काळाची मागणी समजून घ्या आणि त्यानुसार स्वतःला बदला.

चांगले आरोग्य मिळविण्यास स्वतःकरीता वेळ काढा : - चांगले आरोग्य हा जीवनातील यशाचा आधार असतो, स्वतः समाधानी, संतुष्ट रहा, सकारात्मकतेला प्रोत्साहन देणारे मित्र, नातेवाईक आणि शेजार्यांशी नेहमीच स्वस्थ संबंध ठेवा. सकारात्मक आणि आशावादी दृष्टी आपल्याला मानसिकदृष्ट्या निरोगी करते. चांगले आणि आनंदी वाटणे, इतरांचा द्वेष किंवा हेवा न वाटणे हे मानसिक आरोग्य स्वस्थ असण्याचे सूचक आहे, तरीही जेव्हा आपण इतरांवर रागावतो तेव्हा त्याचा वाईट परिणाम आपल्याच शरीरावर, मनावर होतो. स्वतः हसणे, आपल्या आजूबाजूचा लोकांना हसविणे आणि वातावरण आनंदी ठेवणे, इतरांचा सन्मान करणे आणि सगळ्यांशी अत्यंत सभ्यपणे वागणे हे सर्व आपल्याला निरोगी बनविते. त्याचप्रमाणे, नैसर्गिक वातावरण हा आपल्या आरोग्याचा एक प्रमुख पाया आहे.

प्रत्येकजण आपल्या जीवनात निरोगी आणि आनंदी राहण्यासाठी या 5 गुणी नियमांचे अनुसरण करा.

व्यायाम : - आरोग्याच्या दृष्टीने व्यायाम हा नित्यचा भाग असावा. शारीरिक आरोग्य देखील आपल्याला मानसिकदृष्ट्या निरोगी ठेवण्यात महत्त्वपूर्ण भूमिका बजावते. व्यायाम, मग तो योग असो, जिम, खेळ, पायी चालणे, पाळीव प्राण्यांसोबत खेळणे, सायकल चालवणे किंवा कोणताही शारीरिक श्रम करणारा व्यायाम असो तो करायलाच पाहीजे. ध्यान केल्याने सुद्धा आरोग्याची पातळी सुधारते, यामुळे आपले मन शांत होते. आपण जितकी कॅलरी घेतोय, तितकी खर्च करायला हवी, म्हणजे शरीरात अन्नाचे योग्य पाचनकार्य आवश्यक आहे.

पौष्टिक आहार : - शरीराला आणि मनाला योग्य क्षमतेने कार्य करण्यासाठी आणि ऊर्जेसाठी आपल्याला एक चांगला पौष्टिक आहार हवा असतो कारण हा आहार आपल्याला शारीरिक आणि मानसिक दृष्ट्या मजबूत बनवितो. मानवी आहारात समाविष्ट पाच मुख्य पोषक घटक - कार्ब, प्रथिने, वसा, खनिज लवण आणि जीवनसत्त्वे वेगवेगळ्या पातळीवर, शारीरिक ताकत सोबत मानवी भावना, मनःस्थिती नियंत्रित आणि मानसिक समतोल राखण्यासाठी त्यांची महत्वाची भूमिका निभावतात. याव्यतिरिक्त, उदासीनता, ताणतणाव, चिंता, अल्झायमर यासारख्या प्रमुख मानसिक आजारांवर आहार, योग्य पौष्टिक पूरक आहार (न्यूट्रिशन सप्लीमेंट) सारख्या पद्धतीने उपचार करण्यास मदत होते.

संपूर्ण झोप : - प्रत्येक व्यक्तीला किमान आठ तास झोप मिळणे फार महत्वाचे आहे. अशी निश्चींत झोप दररोज आपल्या शरीराला आणि मेंदुला चार्ज करण्यासाठी अत्यंत आवश्यक आहे. तज्ञांचा असा विश्वास आहे की योग्य वेळी झोपेची योग्य मात्रा न मिळाल्यास शरीरातील हार्मोन्सचे प्रमाण असमतोल होतात. ते पाचन विकार, डोकेदुखी, औदासिन्य, चिंता आणि चिडचिडेपणाचे कारण बनतात. झोप न लागल्याने मानसिक आणि शारीरिक ताणतणाव वाढतो. शरीराची रोगप्रतिकारक प्रतिक्रिया बदलू लागते. याचा परिणाम तुमच्या शरीरातील कोलेस्टेरॉलच्या पातळीवर होतो, ज्याचा परिणाम शरीराच्या रक्तवाहिन्यांवर परिणाम होतो. आपल्या झोपेची वेळ ठरवा, दररोज त्याच वेळी झोपायला जा, आणि ही सवय बनवा. इलेक्ट्रॉनिक संसाधनाचा वापर कमी किंवा आवश्यक असल्यास तरच करावा. निसर्गाशी जवळीक करावी. आज मोबाइल इंटरनेट, सोशल मीडियाच्या व्यसनाने लाखो लोकांच्या झोपेचा त्रास झाला आहे.

देखावांपासून दूर रहा : - आपल्या समाजात, देखावा ही अशी फॅशन बनली आहे. स्वताला सर्वश्रेष्ट बनविण्याचा नादात दररोज अनेकांचे जीवन उध्वस्त होत आहेत. जग आपल्याबद्दल काय म्हणेल, ही भावना मनात बाळगूण ते देखावा करतात, मनाला मारून जे आवडत नाही ते काम करतात. खोटे बोलतात, नकारात्मक विचार करतात. लोक आतून एक आणि बाहेरून दूसरे असतात, अशे लोक वेळेनुसार बदल सहन करत नाहीत, भीतीच्या दळपणात वावरतात, चिंतेने चुकीचे निर्णय घेतात किंवा आपले जीवन नष्ट करतात. त्यांचा जवळ दर्शविण्यासाठी हजारो आहेत, परंतु संकटकाळी कोणीही नसते. मनुष्याने नेहमीच साधे जीवन जगले पाहिजे, म्हणजेच आपण वेळ व आवश्यकतेनुसार कोणत्याही परिस्थितीशी जुळवून घेतले पाहिजे. आपल्या स्वार्थासाठी लोक जवळीक करण्याचा प्रयत्न करतात पण चांगले लोक तुमच्या कार्यावर, वागणूकीवर, स्वभावावर प्रभावित होतात आणि तुमचे आपले बनतात. तेव्हा जगाला तुम्ही जसे आहात तसेच दर्शवावे.

सामाजिक कार्य : - मनुष्य म्हणून जन्मला, तर माणूस म्हणून जगा, म्हणजे प्रत्येक व्यक्तीला परोपकाराची भावना असावी. जीवन असे जगावे की आपल्यामुळे इतरांना कधीही त्रास होवू नये. दररोज एक तरी काम आपण समाज, असहाय लोक, पर्यावरण, प्राणी आणि पक्ष्यांसाठी निस्वार्थपणे केलेच पाहिजे अर्थातच आपण इतरांकरीता ही जगणे शिकले पाहिजे, जेणेकरुन आपल्याला माणूसकी म्हणून दूसर्यांचा कामी येण्याचे समाधान मिळेल. अशा कामाने मनाला अमर्याद शांती संतुष्टी प्राप्त होते, जी तुम्हाला पैसे खर्च करूनही मिळू शकत नाही. तणावमुक्त जीवन जगण्याचा हा सर्वोत्तम मार्ग आहे.

जर आपण या 5 नियमांचे सतत पालन केले तर आपण नेहमी आनंदी, निरोगी, सकारात्मक उर्जेने भरलेले असाल. आपण इतर लोकांपेक्षा अधिक सक्षम व्हाल, आपली रोगप्रतिकार शक्ती व आत्मविश्वास वाढेल आणि आपण शारीरिक आणि मानसिक आजारांपासून दूर रहाल. कठीण काळात कधीही हार मानू नका, प्रयत्न करणे हे काम आहे. जर समस्या असेल तर वेळ देखील सतत बदलत असते, त्याच प्रकारे परिस्थिती कधीही एकसारखी नसते. माणसाच्या आत असलेली भीतीच माणसाला कमकुवत बनवते. माणसाला फक्त वाईट कृत्ये करण्यास घाबरायला पाहिजे. लोक काय म्हणतील ते विसरून जा कारण हे लोक आपल्या समस्या सोडवायला किंवा गरजा पूर्ण करण्यासाठी येत नाहीत, म्हणून चांगली कामे लहान किंवा मोठी असो, आयुष्यात कधीच करायला लाज वाटू नये. हे लेख वाचून एकदा स्वताचे व्यवहार, दिनचर्या बद्दल आत्मनिरीक्षण करून नक्कीच बघा. भावनिकदृष्ट्या मजबूत बना. आयुष्याचा प्रत्येक क्षण आनंदाने जगा, नेहमी हसत-खेळत, सकारात्मक आणि तणावमुक्त रहा.

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

बढते मानसिक रोगों के लिए अधिकतर हम खुद जिम्मेदार (विश्व मानसिक स्वास्थ दिन विशेष - 10 अक्टूबर 2020) We ourselves are largely responsible for the increasing mental illness (World Mental Health Day Special - 10 October 2020)

 

आज के आधुनिक युग मे महिलाओं, बडे बुजुर्गो के प्रति बढते अत्याचार, स्वार्थप्रवृत्ति, प्रदूषित वातावरण, शोर, नशा, धोखा, गुणवत्ताहीन चीज़ें, अपमानजनक बातें या व्यवहार, दूसरों से अधिक अपेक्षा करना, बढती जिम्मेदारियां, संस्कार की कमी, अकेलापन, दुखद यादें, समझदार हमदर्द की कमी, निराशा, परेशानी, असफलता, मुश्किलो मे घबराना या जल्द हार मान जाना, देर रात तक जगना, पौष्टिक और संतुलित आहार की कमी, परिवार में योग्य मार्गदर्शक की कमी जैसी बातें मनुष्य को मानसिक रूप से बीमार बनाती हैं। वर्तमान समय में, मनुष्य क्षणिक खुशी के चक्कर में भटक रहा है, वह चिडचिडा, गुस्सैल हो रहा है, धीरज की अत्यधिक कमी की वजह से आदमी जल्दी से धैर्य खोता है, इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी के एक हालिया सर्वेक्षण में पाया गया कि लॉकडाउन के बाद से मानसिक रोगों के मामलों में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिसमें हर पांच में से एक भारतीय इनसे प्रभावित है। 

आपका सबसे बड़ा शत्रु आप स्वयं :- हमारे दिमाग में दुनिया भर के विचार चलते रहते हैं, यहां तक ​​कि छोटी-छोटी समस्याओं को भी गंभीर रूप देते है। बहुत अधिक टेंशन लेते है ​​कि समस्या कैसे हल होगी? क्या करेंगे? मन के मन में हजारों उलझने खुद ही पैदा करके खुद को उलझा लेते है और इससे अंदर ही अंदर मनुष्य संकुचित होता जाता है, फिर नकारात्मक विचार मनुष्य के मन में जड़ जमा लेते हैं, ऐसे लोग परिवार, अपनो से दूर होने लगते हैं, जिसके कारण वह धीरे-धीरे सामान्य रूप से मानसिक विकार की ओर अग्रसर होते है और अनुचित घटनाओं का शिकार होते है। आज समाज में बहुत सी समस्याएं हैं और इसमें हमारी भी एक छोटी सी हिस्सेदारी है। हम पहले से ही बहुत सारी समस्याओं के कारण जानते हैं, फिर भी हम जानबूझकर वही करते हैं जो हमें नहीं करना चाहिए। यह जानते हुए भी कि नशा हानिकारक है, लोग अपने आप नशा करते हैं, हमारी चटोरी जीभ, सिर्फ जीभ के स्वाद के लिए, जैसा चाहे वैसा बाहर का उल्टा-सीधा खाद्यपदार्थ खाते है और शरीर को खराब करते हैं। अक्सर उन चीजों से दूर भागते हैं जो शरीर के लिए फायदेमंद हैं। हम ज्यादातर तनाव, बीमारियों की जड़ खुद तैयार करते हैं।

                मानव सुरक्षा के लिए नीतिनियम हैं, फिर भी लोग नियमों को तोड़ते हैं। सोशल मीडिया के आदी होकर, दुनियाभर का टाइमपास कर कीमती समय बर्बाद करेंगे, तनावपूर्ण वातावरण में रहेंगे, लेकिन व्यायाम करने के लिए आलस करते हैं, जबकि यह जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। उबाऊ, नकारात्मक और रोने-धोने वाले टीवी धारावाहिकों, कार्यक्रमों से दूर रहें, जिस तरह से आप देखते हैं, सुनते-सोचते हैं, आपके विचारों पर वही प्रभाव पड़ता है जो फिर व्यवहार में उतरता हैं इसलिए अक्सर एक स्वस्थ जीवनशैली का पालन करें। खरीदारी या व्यवहार करते समय जागरूक रहें, आर्कषण और आवश्यकता के बीच के अंतर को समझें। अपने परिवार, समाज, देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझें। बच्चों को अच्छे संस्कार नही देते और जब कोई समस्या आती है तो दूसरों को दोष देते हैं, हमारे बच्चे बड़े होकर देश और मानव जाति के विकास का आधार बने, ना कि उल्टे अपराध करके वे समाज की समस्या बनें, यह माता-पिता की जिम्मेदारी है। एक गलत निर्णय आपके जीवन को बदल सकता है। अक्सर निर्णय लेने से पहले, संबंधित सभी पहलुओं को देखें, लोग क्या कर रहे, इसके बजाय, यह सोचें कि हम क्या कर रहे हैं, लोगों की कानाफुसी और दोगले किस्म के लोगों से दूर रहे, लोगों को पहचानना सीखें। आडंबरपूर्ण जीवनशैली से दूर रहें, अपनी विचारशक्ति बढ़ाएँ, समय की माँगों को समझें और उसी के अनुसार खुद को बदलते रहें।

अच्छे स्वास्थ्य हेतु अपने लिए समय निकालें :- अच्छा स्वास्थ्य जीवन में सफलता का आधार है, अपने आप को संतुष्ट, समाधानी रखें, सकारात्मकता को बढ़ावा देने वाले दोस्तों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों के साथ हमेशा स्वस्थ रिश्ते बनाए रखें। सकारात्मक और आशावादी दृष्टि हमें मानसिक रूप से स्वस्थ बनाती है। अच्छा और खुश महसूस करना, दूसरों से ईर्ष्या या जलन न होना मानसिक आरोग्य का स्वस्थ संकेतक है, वैसे भी जब हम दूसरों पर क्रोधित होते हैं, तो इसका हमारे शरीर, मन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। खुद हंसना, आसपास के लोगों को हंसाना और माहौल को खुशनुमा बनाए रखना, दूसरों का सम्मान करना और सबसे विनम्र व्यवहार करना यह सभी हमें स्वस्थ बनाते हैं। इसी तरह, प्राकृतिक वातावरण हमारे स्वास्थ्य का एक प्रमुख आधार है।

प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में स्वस्थ और खुश रहने के लिए इन 5 बिंदुओं के नियमों का पालन करें।

·         व्यायाम :- अच्छे स्वास्थ्य के संदर्भ में व्यायाम दिनचर्या का हिस्सा होना चाहिए। शारीरिक स्वास्थ्य भी हमें मानसिक रूप से स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। व्यायाम, चाहे वह योग, जिम, खेल, टहलना, पालतू जानवरों के साथ खेलें या साइकिल चलाएं या कोई अन्य व्यायाम हो जिसमें शारीरिक परिश्रम शामिल हो। मेडिटेशन से भी स्वास्थ्यस्तर में सुधार होता है यह हमारे दिमाग को शांत रखता है। हम जितनी कैलोरी लेते है, उतना खर्च करना हैं, यानी शरीर में भोजन का सही पाचन जरूरी है।

·         पौष्टिक आहार :- हमें अपने शरीर और दिमाग को सुचारू रूप से काम करने के लिए और ऊर्जा के लिए एक अच्छे पौष्टिक आहार की आवश्यकता होती है क्योंकि यह एक ऐसा आहार है जो हमें शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाता है। मानव आहार में शामिल पांच मुख्य पोषक तत्व - कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, खनिज लवण और विटामिन अलग-अलग रूपों में, विभिन्न स्तरों पर, मानवीय भावनाओं और मनोदशाओं को नियंत्रित करने और बनाए रखने में अपनी भूमिका निभाते हैं। इसके साथ, अवसाद, तनाव, चिंता, अल्जाइमर जैसी बड़ी मानसिक बीमारियों को आहार, उचित पोषण पूरक (न्यूट्रिशन सप्लीमेंट) जैसे तरीकों से इलाज में मदद होती हैं।

·         पूरी नींद :- हर व्यक्ति के लिए कम से कम आठ घंटे की नींद लेना बहुत ज़रूरी है। ऐसी नींद हमारे शरीर और दिमाग को हर दिन चार्ज करने के लिए बेहद आवश्यक है। विशेषज्ञों का मानना ​​है कि सही समय पर सही मात्रा में नींद नहीं लेने से शरीर में हार्मोन की मात्रा में असंतुलन हो जाता है। यह पाचन विकार, सिरदर्द, अवसाद, चिंता और चिड़चिड़ापन पैदा करते है। नींद नहीं लेने से मानसिक और शारीरिक दोनों तनाव बढ़ते है। शरीर की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया बदलने लगती है। यह आपके शरीर में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को प्रभावित करता है। जो शरीर की रक्त वाहिकाओं को प्रभावित करता है। अपना सोने का समय तय कर लें और रोज उसी समय सो जायें। इलेक्ट्रॉनिक संसाधनों का उपयोग कम करें, या तब ही उपयोग करें जब बहुत आवश्यक हो। आज, मोबाइल इंटरनेट और सोशल मीडिया की लत ने लाखों लोगों की नींद में खलल डाला है।

·         दिखावे से दूरी बनाए रखें :- हमारे समाज में, दिखावा एक फैशन बन गया है खुद को सर्वश्रेष्ठ दिखाने और स्टेटस मेंटमेन के चक्कर में न जाने कितनो के जीवन को बर्बाद कर देता है। दुनिया हमारे बारे में क्या कहेगी, बस यही सोच-सोचकर झूठा दिखावा करते हैं, गलत काम करते है। बोलबचन, झूठ, कथनी-करनी मे अंतर रखते है। चेहरे पर दिखावेवाला मुखौटा लगाकर घूमते हैं, वे समय के साथ बदलाव को बर्दाश्त नहीं कर पाते, डर के साये में रहते हैं, जल्दी से तनाव में आकर अपना जीवन खराब करते हैं या गलत निर्णय लेकर खुद को खत्म कर लेते हैं। दिखाने के लिए हजारो अपने लेकिन वास्तव मे कोई नही। जीवन में हंसी-मजाक, मौज-मस्ती, घूमना-फिरना, खान-पान सब करें, लेकिन मनुष्य को हमेशा सादा और सरल जीवन जीना चाहिए, अर्थात हमने आवश्यकतानुसार किसी भी परिस्थिति के अनुकूल होना चाहिए। उगते सुरज को सलाम करने का दौर है अर्थात अधिकतर लोग तो स्वार्थ के खातिर आपसे जुडते है लेकिन अच्छे लोग तो आपके कार्य, व्यवहार, स्वभाव से प्रभावित होकर आपके अपने बनते है। दुनिया को वैसे ही दिखाओ जैसे आप हो।

·         सामाजिक कार्य :- इंसान के रूप में जन्म लिया हैं, तो एक इंसान बनकर जिएं, अर्थात प्रत्येक व्यक्ति में परोपकार की भावना होनी चाहिए। जीवन को इस तरह से जिएं कि हमारी वजह से किसी का अहित न हो। हर दिन एक तो भी कार्य हमारे समाज, असहाय लोगों, पर्यावरण, जानवरों और पक्षियों के लिए निस्वार्थभाव से करना चाहिए ताकि हम खुद पर गर्व कर सकें कि हमने आज कुछ अच्छा किया है अर्थात थोडा-सा दुसरो के लिए भी जीना सीखें, इससे मन को असीम शांति मिलती है जो कि आप करोड़ों रुपये खर्च करके भी नही पा सकते। यह तनावमुक्त जीवन जीने का सबसे अच्छा तरीका है।

अगर आप लगातार इन 5 नियमों का पालन करते हैं तो आप हमेशा खुश, स्वस्थ, सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर रहेंगे। आप अन्य लोगों की तुलना में अधिक सक्षम होंगे, आपकी प्रतिरक्षा शक्ती बढ़ेगी और आप शारीरिक और मानसिक बीमारियों से दूर रहेंगे। कठिन समय में कभी भी हिम्मत न हारें, कोशिश करना काम है। अगर समस्या है तो समय भी परिवर्तनशील है, उसी तरह से स्थिति भी कभी एक जैसी नहीं रहती। मनुष्य के अंदर का भय ही मनुष्य को कमजोर बनाता है। मनुष्य को केवल बुरे कर्म करने से डरना चाहिए, यह भूल जाओ कि लोग क्या कहेंगे क्योंकि ये लोग आपकी समस्याओं, परेशानीयों को हल करने नहीं आते हैं इसलिए अच्छे कर्म छोटे या बड़े हो, जीवन में कभी भी इसे करने में शर्म न करें, नर्वस न हों, भावनात्मक रूप से मज़बूत बनें। जीवन के हर एक पल को जी भर के जिए, मुस्कुराते रहे, हमेशा सकारात्मक रहे और तनावमुक्त रहे।

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

शुक्रवार, 2 अक्टूबर 2020

अमली पदार्थांचे प्राशन, प्राणघातक आजार आणि वेदनादायक मृत्यूला निमंत्रण (राष्ट्रीय अमली पदार्थ विरोधी दिन आणि मद्य निषेध आठवडा विशेष - 2-8 ऑक्टोबर) Drug abuse is an invitation to fatal diseases and painful deaths (National Anti-Drug Day and Alcohol Prohibition Week Special - October 2-8)

मादक पदार्थांचे व्यसन जगभरात मानवी समाजासाठी शाप म्हणून उदयास आले आहे. लाखों निष्पाप मुले आणि जबाबदार तरूण देखील व्यसनाधीन झाले आहेत. नशा इतका हावी झाला आहे की सण, उत्सव, दैनंदिन कामकाज, सुख-दुःख, एखाद्याला भेटायला गेल्यास, माणूस कुठेही नशा करण्याचे निमित्त शोधून काढतात. ते अमली पदार्थांसाठी आपले अमूल्य जीवन संपवितात. नशा करणारा माणूस आतून पूर्णपणे संपून बर्बाद होतो. समाजा कडून तिरस्कार होतो आणि शारीरिक आणि मानसिक आजारात वेदनेने मरतो. आतातर 5-6 वर्षांपासूनची लहान मुले सुद्धा तंबाखू खाताना, जीवघेणे  रसायनांचा उग्र वास घेवून नशा करताना दिसतात. भारतातील प्रत्येक तिसर्या दारुचे व्यसन कारणाऱ्यास अल्कोहोलशी संबंधित समस्या संदर्भात मदत करण्याची गरज आहे.

अमली पदार्थाचा जाळ्यात अडकलेले निष्पाप बालपण :- मुलांच्या मादक पदार्थांच्या नशेच्या घटना सतत वाढत आहेत. गलिच्छ वातावरण, झोपडपट्टी क्षेत्राव्यतिरिक्त, त्यात संपन्न घरांमधील मुले देखील आहेत. लहान वयातच नशा मुलांच्या मेंदूवर, विकासावर घातक परिणाम करतो. अशी मुले मानसिक आजाराची शिकार होतात. नशेचे इंजेक्शन घेतल्यास एचआयव्ही सारख्या धोकादायक आजारांचीही शक्यता असते. आपल्या आजूबाजूचे वातावरण नशेसाठी सर्वात मोठे कारण आहे, ज्यांचे पालक किंवा शालेय शिक्षक मादक पदार्थांचे व्यसनाधीन असतात अशा मुलांमधे नशा करण्याचा धोका सर्वात जास्त असतो, चांगल्या संस्काराची कमतरता, ख़राब शेजार, वाईट संगत, मुलांवर इंटरनेट, टीव्ही फिल्म्सचे प्रभाव, नेहमी व्यस्त पालक जे मुलांना वेळ देत नाहीत, बर्याचदा मुलांच्या चुकांकडे दुर्लक्ष करतात आणि विचार न करता मुलांच्या बेकायदेशीर मागण्या पूर्ण करतात, पालकांचा मुलांवर नियंत्रण नसणे, अशी मुले नशेकडे त्वरित आकर्षित होतात. याव्यतिरिक्त, रस्त्यावर काम करणारी मुले सर्वात जास्त अमली पदार्थांच्या आहारी जातात.

मुलांमध्ये अमली पदार्थांचे व्यसन करण्याचे प्रमाण सातत्याने वाढत आहेत :- भारतीय शासनाच्या सामाजिक न्याय व अधिकारीता मंत्रालय तर्फे वर्ष 2018 मधील राष्ट्रिय सर्वेक्षणानुसार देशात 10 ते 17 वर्षाचा वयोगटातील तब्बल 1.48 कोटी मुले व्यसन करतात. व्हाइटनर, पंचर सोल्यूशन, कफ सिरप, पेट्रोल, थिनर, सनफिक्स बॉन्ड फिक्स यासारख्या तीक्ष्ण रासायनिक हानिकारक ज्वलनशील पदार्थांचा वास घेवून नशा करणाऱ्या मुलांची संख्या 50 लाख आहे आणि 20 लाख मुले भांग, 30 लाख मुलं दारू, तर 40 लाख मुलं अफीमचा नशा करतात. सिगारेट, तंबाखू, ड्रग्स सह इंजेक्शन व इतर पदार्थांचा नशा ही मोठ्या प्रमाणावर करतात. ही मुले रेल्वे स्थानक, बसस्थानक, झोपडपट्टी, निर्जन भागात, सार्वजनिक उद्याने अशा ठिकाणी गटांमध्ये मिळून नशा करतांनी आढळतात. लहान मुलापर्यंत हे जीवघेणे नशेचे विष सहज उपलब्धता ही सर्वात मोठी समस्या आहे. 2016 मध्ये दिल्ली सरकारच्या समाजकल्याण विभागाच्या पुढाकाराने केलेल्या सर्वेक्षणानुसार, देशाच्या राजधानीत 70 हजार मुले अमली पदार्थांच्या आहारी असल्याचे आढळले. आज कोरोना काळात, नशा करण्यासाठी अल्कोहोल आधारित हैंड सेनेटिझर प्यायचे व्यसन लागत आहे, असे अनेक प्रकरण समोर आलेत, ज्यामध्ये सेनेटिझरचे प्राशन करणारी व्यसनी व्यक्ती मृत्युमुखी पडली आहेत.

नशेमुळे गुन्ह्यांमध्ये झपाट्याने वाढ :- क्राइम ब्युरोच्या नोंदीनुसार मोठ्या प्रमाणात गुन्हे, खून, दरोडा, अपहरण इतर सर्व प्रकारच्या गुन्हांमध्ये नशेचे प्रमाण 73.5% आणि बलात्कार सारख्या जघन्य गुन्ह्यात हे 87% टक्के पर्यंत आहे. देशातील वाढत्या गुन्हेगारी, गंभीर आजार आणि हिंसाचारामध्येही नशेची महत्त्वपूर्ण भूमिका आहे. नशेमुळे या लहान निर्दोषांचे बालपण उध्वस्त होत आहे, तसेच यांचात बालगुन्हेगारी, आजारपण ही फार वाढते. मुलांचा मानसिक विकास नशेच्या तावडीत थांबून जातो. नशेत माणसाचा स्वतावर नियंत्रण नसते आणि नकारात्मक विचार वेगाने वाढतात. पैशासाठी मुले खोटे बोलायला लागतात, जबाबदारी पासून दूर पडतात आणि नशेकरीता मोबाईल, पर्स, चेन स्नॅचिंग, वाहने चोरी सारखे गुन्हे करतात आणि ते मोठे होवून गंभीर गुन्हे करायला लागतात. अशाप्रकारे, आपल्या समाजात एक नवीन गुन्हेगारी साम्राज्य सुरू व्हायला लागते. आजकाल ही लहान किशोरवयीन मुले मोठ्या गुन्ह्यात खूपच सक्रिय दिसत आहेत. आपण दररोज अशा बातम्या पाहतो आणि वाचतोच. कित्येकदा आपल्याला विश्वास सुदधा बसत नाही की ही ऐवढी लहान-लहान मुले माणुसकीला काळीमा फासणारी घाण कृत्य कशी काय करू करतात? पण हे कटु सत्य आहे. कधी-कधी लोक या मुलांना चोरी करताना पकडतात आणि त्यांना थोडेसे रागाहून, थापड़ मारून सोडून देतात, परंतु मुळात त्यांना योग्य मार्गदर्शन देण्याचा किंवा सुधरविण्याचा प्रयत्न होतांना दिसतच नाही. ही मुले आपल्या राष्ट्राचे उज्ज्वल भविष्य आहेत. जर आपण आज त्यांचे अस्तित्व व्यवस्थापित केले नाही तर आपण त्यांना भविष्यातील आधारस्तंभ कसे म्हणावे?

जागतिक आरोग्य संघटनेच्यामते अल्कोहोलच्या दुष्परिणामांवर धक्कादायक तथ्य आणि आकडेवारी

·         दारूच्या व्यसनाने दरवर्षी 30 लाखहून अधिक लोक जीव गमावतात. दारू हे दर 20 मृत्यूंपैकी 1 मृत्यूचे कारण आहे. दर 10 सेकंदात एक व्यक्तीचा मद्यपान संबंधित कारणामुळे मृत्यू होतो.

·         जगात जवळपास 38.3% लोकसंख्या दारू पीते, म्हणजेच हे लोक वर्षाला सरासरी 17 लिटर अल्कोहोलचे प्राशन करतात. एकंदरीत, अल्कोहोलमुळे जागतिक आजारांचे ओझे 5.3% टक्क्यांनी जास्त वाढते.

·         सुमारे 3.10 कोटी लोक अंमली पदार्थांच्या दुष्प्रभावाने आजारी आहेत. सुमारे 1.10 कोटी लोक ड्रग्स इंजेक्ट करतात, त्यापैकी 13 लाख एचआयव्हीने जगत आहेत, 55 लाख हेपेटायटीस सी सह जगतात.

·         200 पेक्षा जास्त रोग आणि गंभीर जखमांसाठी मद्यपान हे एक मुख्य कारण आहे. नशेमुळे आयुष्यात मृत्यू आणि अपंगत्व वेळेपुर्वी येते. 20-39 वयोगटात होणाऱ्या मृत्यूंपैकी दरवर्षी, अंदाजे 13.5% मृत्यू दारूमुळे होतो.

·         सुमारे 23.7 कोटी पुरुष आणि 4.6 कोटी महिला दारूशी संबंधित समस्यांचा सामना करत आहेत. भारतात दरवर्षी रस्त्यांवर होणाऱ्या अपघातात सुमारे 1 लाख मृत्यूचा अप्रत्यक्षरित्या अल्कोहोलच्या गैरवापराशी संबंध असतो. दुसरीकडे, दरवर्षी 30 हजार कर्करोगाच्या मृत्यूमागील एक कारण म्हणजे मद्यपान होय.

सामाजिक न्याय आणि अधिकारिता मंत्रालयाच्या अहवालानुसार, भारतातील सुमारे 15.10 कोटी लोक दारूचे गंभीर शिकार आहेत, त्यातील 7.7 कोटी लोकांना उपचारांची तातडीने गरज आहे. वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2020 नुसार, जगातील जवळपास 6.66 कोटी लोक गंभीर नशामुळे विविध विकारांनी ग्रस्त आहेत. कोरोना कालावधीत ही आकडेवारी आणखी वाढण्याची अपेक्षा आहे. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनायझेशनने सुरू केलेला “सेफर”, एक उपचारात्मक उपक्रम आहे जो उच्च प्रभाव, पुरावा-आधारित, खर्च-प्रभावी हस्तक्षेपाचे निरीक्षण करून दारूमुळे होणारे मृत्यू, आजार आणि अपघात कमी करण्याचा प्रयत्न करतो.

नारकोटिक्स कंट्रोल ब्युरोने नुकतीच आंतरराष्ट्रीय ड्रग्ज रॅकेटकडून सुमारे 1300 कोटी रुपयांची ड्रग्ज जप्त केली, भारतात जप्त करण्यात आलेल्या 100 कोटी रुपयांची ड्रग्ज, तर ऑस्ट्रेलियामधून 1200 कोटी रुपयांची ड्रग्ज जप्त करण्यात आली. काही दिवसांपूर्वी पोलिसांनी नवी मुंबईत अफगाणिस्तानातून भारतात आणलेली 1000 कोटी रुपयांची ड्रग्ज जप्त केली आहे. 20 सप्टेंबर 2020 रोजी सीमा सुरक्षा दलाने जम्मू आंतरराष्ट्रीय सीमेवर 300 कोटी किंमतीची 62 किलो हेरॉईन जप्त केली. अशी बरीचशी ड्रग्ज, नकली दारू, नशेचा भरमसाठ साठा जप्त केल्या जातो. परंतु अशा जीवघेणा अमली पदार्थांचे व्यसन लोकांमध्ये कमी होतांनी दिसत नाही.. विषारी दारूमुळे मृत्यूची संख्याही वाढत आहे, दोन महिन्यांपूर्वीच विषारी दारूमुळे पंजाबमध्ये शेकडो लोकांचा जीव गेला. बर्याच राज्यात अशाच घटना घडल्या आहेत. व्यसनाधीन लोक केवळ स्वताची नासाडी करीत नाहीत तर कुटुंब, शेजारी, नातेवाईक, समाज यांनाही लाजिरवाणे करतात. बॉलिवूड सुद्धा ड्रग्सच्या नशेपासून दूर नाहीत, सुशांतच्या बाबतीत ड्रग कनेक्शन विषयी नवीन माहिती गोळा केली जात आहे ज्यात सिनेमातील मोठया स्टार्सची नावे पुढे येत आहेत. पार्टीचा नावाखाली पुर्वीपासूनच नशा केला जात आहे.

स्वातंत्र्यानंतर देशात दारूचे व्यसन 60 ते 80 टक्क्याने वाढले आहे. हे खरे आहे की दारू विक्रीतून सरकारला मोठ्या प्रमाणात महसूल मिळतो. परंतु या प्रकारच्या उत्पन्नामुळे आपल्या सामाजिक संरचनेला तोटा होतो आणि कुटुंबचे कुटुंबे उद्ध्वस्त होतात. आपण वेगाने विनाशाकडे जात आहोत. सामाजिक न्याय आणि अधिकारिता मंत्रालयाने देशातील सर्वाधिक प्रभावित 272 जिल्ह्यांमध्ये 2020-21 साठी अमली पदार्थ विरोधी कार्य योजनेंतर्गत व्यसनमुक्ती अभियान सुरू केले आहे. केंद्र व राज्य सरकार दरवर्षी कोट्यवधी रुपये व्यसनमुक्तीसाठी अनुदान, लोकजागृती कार्यक्रम, जाहिराती आणि आरोग्यसेवा यासाठी खर्च करतात. व्यसनाधीनतेपासून मुक्त होण्यासाठी व्यसनी लोकांकरीता सर्वात महत्वाची गोष्ट म्हणजे आत्मसंयम आणि दृढ इच्छाशक्ती, योग्य उपचार, मार्गदर्शन, कुटूंबाचा आणि प्रियजनांचा आधार, र्निव्यसनी मित्र, सकारात्मक प्रोत्साहन देणारी माणसं, पौष्टिक आहार, व्यायाम, आनंदीत वातावरण, स्वत:ला व्यस्त ठेवणे, जबाबदारी समजून घेणे, कौटुंबिक निष्ठा आणि सकारात्मक विचार करणे आवश्यक आहे. पालकांनी मुलांसाठी वेळ द्यावा, त्यांच्याशी मैत्रीपुर्वक वागावे, मुलांच्या मित्रमंडळी संगतीवर लक्ष द्यावे, मुलांचे बदलत असलेले वर्तन समजून घ्यावे, समस्या दिसताच मुलांना विश्वासात घेवून त्यांचाशी बोलावे, त्वरीत तज्ञांचा सल्ला घ्यावा, चांगले पालक आणि जबाबदार नागरिक होण्याचे कर्तव्य पार पाळावे.

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

नशे की आदत, घातक बीमारियाँ और दर्दनाक मौत को दावत (नेशनल एंटी-ड्रग डे और मद्य निषेध सप्ताह विशेष - 2-8 अक्टूबर 2020) Drug addiction, deadly diseases and painful death (National Anti-Drug Day and Prohibition Week Special - 2-8 October 2020)


पूरी दुनिया में नशा, मानव समाज के लिए एक अभिशाप बनकर उभरा है। लाखों मासूम बच्चे और जिम्मेदार युवापीढ़ी  भी नशे के आदी हो गए हैं। नशा इतना हावी हो गया है कि आदमी त्योहारों, समारोहों, रोजमर्रा की गतिविधियों में, किसी से मिलने पर, हर जगह नशा करने के लिए बहाने ढूंढता है। वह नशे के लिए अपने बहुमूल्य जीवन को भेट चढ़ाता है, नशे से आदमी भीतर से पूरी तरह खोखला, बर्बाद हो जाता है, समाज से तिरस्कार मिलता है और शारीरिक और मानसिक रूप से बीमार हो कर तड़प-तड़पकर मरता है। 5-6 साल तक के छोटे-छोटे बच्चे भी तम्बाकू खाते, हानिकारक रसायनों को सूँघते और नशा करते हुए नजर आते है। भारत में हर तीसरे शराब उपयोगकर्ता को शराब से जुड़ी समस्याओं के लिए मदद की जरूरत है।

नशे की गिरफ्त में मासूम बचपन :- छोटे बच्चों के नशे के मामले पहले भी आते रहे हैं। स्लम एरिया के अलावा, इसमें संपन्न घरों के बच्चे भी हैं। कम उम्र में नशा बच्चों के दिमाग को, विकास को प्रभावित करता है। ऐसे बच्चे मानसिक बीमारी के शिकार हो जाते हैं। नशे में इंजेक्शन लगाने पर एचआईवी जैसे खतरनाक बिमारीयों की भी संभावना होती है। आसपास का वातावरण नशे के लिए सबसे बड़ा कारक है, जिन बच्चों के माता-पिता या स्कूल के शिक्षक नशे के आदी होते हैं, उनमें सबसे अधिक जोखिम होता है, अच्छे संस्कार की कमी, खराब पड़ोस, बुरी संगत, बच्चों पर इंटरनेट, टीवी-फिल्मों का असर, हमेशा व्यस्त रहने वाले माता-पिता जो बच्चों को समय नहीं देते हैं, अक्सर बच्चों की गलतियों को अनसुना करते हैं और बिना सोचे-समझे बच्चों की अवैध मांगों को पूरा करते हैं, माता-पिता का बच्चों पर नियंत्रण नहीं होता है, ऐसे बच्चे नशे की ओर जल्दी आकर्षित हो जाते हैं। इसके अलावा, सड़कों पर काम करने वाले बच्चे नशे के सबसे अधिक आदी होते हैं।


बच्चों में नशे का प्रमाण लगातार बढ़ रहा :- भारत सरकार के सामाजिक न्याय एंव अधिकारीता मंत्रालय के वर्ष 2018 के राष्ट्रिय सर्वेक्षण अनुसार देश में 10 से 17 साल के 1.48 करोड बच्चे नशीले पदार्थों का सेवन कर रहे है। व्हाइटनर, पंचर बनाने के सोलूशन, कफ सिरप, पेट्रोल, थिनर, सनफिक्स बॉन्ड फिक्स जैसे तेज हानिकारक रासायनिक ज्वलनशील नशीले पदार्थों को सूंघकर नशा करनेवाले बच्चों की संख्या साधारणत 50 लाख है, तकरीबन 30 लाख बच्चे शराब पीते हैं, 40 लाख बच्चे नशे के लिए अफीम लेते हैं और 20 लाख बच्चे भांग का नशा करते हैं इसके अलावा सिगरेट, तंबाकू, नशीली दवाओं से इंजेक्शन लगाना इत्यादि का नशा भी बडी मात्रा में कर रहे हैं। ये बच्चे रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, स्लम एरिया, सुनसान खंडहर, सार्वजनिक पार्क में समूह बनाकर नशे करते पाए जाते हैं। सबसे बड़ी समस्या समाज में इन नशे की आसान उपलब्धता है। दिल्ली सरकार के समाज कल्याण विभाग की पहल पर 2016 में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, राजधानी में 70 हजार बच्चें नशा करनेवाले पाये गये थे। आज कोरोना काल में, नशे के लिए बच्चों से लेकर वयस्कों तक, हैंड सैनिटाइज़र पीने की भी लत लग रही है क्योंकि इसमें अल्कोहल होता है, अल्कोहल आधारित सैनिटाइज़र पीने के कई मामले सामने आए हैं जिसमें नशेड़ीयों की मौत हुईं हैं।

नशे के कारण अपराध में तेजी से वृद्धि :- अपराध ब्यूरो रिकॉर्ड के अनुसार, बड़े-बड़े अपराधों, हत्या, डकैती, लूट, अपहरण आदि सभी प्रकार की घटनाओं में, नशे का मामला लगभग 73.5% और बलात्कार जैसे जघन्य अपराध में 87% तक होता है। देश में बढ़ते अपराध, बीमारियों और हिंसा में भी नशा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नशाखोरी के कारण इन मासूमों का बचपन बर्बाद होता है, साथ ही उनमें अपराध की प्रवृत्ति भी पैदा होती है। नशे के चंगुल में बच्चों का मानसिक विकास रुक जाता है। नशे में मनुष्य का मस्तिष्क पर नियंत्रण नही होता और नकारात्मक विचारो मे वृद्धि होती हैं। पैसों की खातिर, बच्चे अक्सर झूठ बोलना, जिम्मेदारी से भागना, मोबाइल, पर्स, चेन स्नैचिंग, वाहन चोरी करना, और नशे के लिए अपराध करना शुरू कर देते हैं। ये ही बड़े होकर संगीन अपराधों को अंजाम देने लगते हैं। इसी तरह से हमारे समाज में नई आपराधिक साम्राज्य की शुरूआत होती है आजकल बड़े अपराधों में नाबालिग अपराधी बहुत सक्रिय प्रतीत होते हैं। हम प्रतिदिन ऐसी खबरें देखते और पढ़ते हैं। कभी-कभी लोग इन बच्चों को चोरी करते हुए पकड़ लेते हैं, डाट डपटकर, तमाचा लगाकर छोड़ देते है, लेकिन जमीनी तौर पर उन्हें उचित मार्गदर्शन देने का कोई प्रयास नहीं किया जाता। ये बच्चे हमारे राष्ट्र के उज्जवल भविष्य हैं। यदि आज हम उनके अस्तित्व को नहीं संभालेंगे तो उन्हें भविष्य का आधारस्तंभ कैसे कहे?

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा शराब के दुष्प्रभावों पर चौंकाने वाले तथ्य और आंकड़े

·         शराब की लत हर साल 30 लाख से अधिक लोगों को मार देती है। हर 20 मौतों में 1 मौत के लिए शराब कारण है। शराब संबंधित कारण से हर 10 सेकंड में एक व्यक्ति की मृत्यु होती है।

·         38.3% आबादी वास्तव में शराब पीती है, जिसका अर्थ है कि ये लोग औसतन 17 लीटर शराब का उपभोग करते हैं। कुल मिलाकर, शराब वैश्विक बीमारी के बोझ को 5.3% से अधिक बढ़ाती है।

·         कुछ 3.10 करोड़ लोग नशीली दवाओं के दुरुपयोग से बीमार हैं। लगभग 1.10 करोड़ लोग ड्रग्स इंजेक्ट करते हैं, जिनमें से 13 लाख एचआईवी के साथ, 55 लाख हेपेटाइटिस सी के साथ जी रहे हैं ।

·         200 से अधिक बीमारियों और गंभीर चोटों के लिए शराब का सेवन एक प्रमुख कारण है। नशा जीवन में अपेक्षाकृत जल्दी मृत्यु और विकलांगता का कारण है। 20-39 वर्ष की आयु में, कुल मृत्यु का लगभग 13.5% शराब के कारण होता है।

·         लगभग 23.7 करोड़ पुरुष और 4.6 करोड़ महिलाएं शराब से संबंधित समस्याओं का सामना कर रहे हैं। भारत में हर साल सड़क दुर्घटनाओं में लगभग 1 लाख मौतें अप्रत्यक्ष रूप से शराब के दुरुपयोग से संबंधित हैं। दूसरी ओर, हर साल 30 हजार कैंसर रोगियों की मृत्यु के पीछे शराब का उपयोग एक कारण है।

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 15.10 करोड़ लोग शराब के गंभीर शिकार हैं, जिनमें से 5.7 करोड़ लोगों को उपचार की तत्काल आवश्यकता है। वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2020 के अनुसार, दुनिया में लगभग 3.56 करोड़ लोग गंभीर नशे के कारण विभिन्न विकारों से पीड़ित हैं। यह आंकड़ा कोरोना अवधि में और बढ़ने की उम्मीद है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा शुरू किया गया सेफर, एक उपचारात्मक पहल है जो उच्च-प्रभाव, साक्ष्य-आधारित, लागत प्रभावी हस्तक्षेपों का निरीक्षण करके हानिकारक शराब के उपयोग से होने वाली मौतों, बीमारियों और दुर्घटनाओं को कम करने का प्रयास करता है।

नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने हाल ही में अंतरराष्ट्रीय ड्रग रैकेट से लगभग 1,300 करोड़ रुपये की ड्रग्स की खेप बरामद की है, भारत में 100 करोड़ रुपये की ड्रग्स जब्त की गई है, जबकि ऑस्ट्रेलिया से 1,200 करोड़ रुपये की ड्रग्स जब्त की गई है। नवी मुंबई में कुछ दिन पहले अफगानिस्तान से भारत लाई गई 1,000 करोड़ रुपये की ड्रग्स को पुलिस ने जब्त कर लिया है। 20 सितंबर, 2020 को, सीमा सुरक्षा बल ने जम्मू इंटरनेशनल बॉर्डर पर 300 करोड़ रुपये की 62 किलोग्राम हेरोइन जब्त की। ऐसे कई मादक पदार्थ, नकली शराब हमेशा जब्त की जाती हैं लेकिन लोगों में इस तरह के घातक नशीले पदार्थों की लत कम नहीं हो रही हैं। जहरीली शराब भी मौतों की संख्या बढ़ा रही है, अभी दो महीने पहले, जहरीली शराब ने पंजाब में हाहाकार मचाया था जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए। इसी तरह की घटनाएं कई राज्यों में हुई हैं। नशेड़ी न केवल खुद बर्बाद हो जाता है, बल्कि परिवार, पड़ोसियों, रिश्तेदारों, समाज को भी शर्मसार करता है। बॉलीवुड भी नशे से अछूता नहीं है, सुशांत के मामले में अब ड्रग कनेक्शन के बारे में नई जानकारी इकट्ठा की जा रही है जिसमें बड़े फिल्म सितारों के नाम आगे आ रहे हैं। पार्टी के नाम पर लंबे समय से घातक नशे का इस्तेमाल किया जाता रहा है।

आजादी के बाद से देश में शराब की खपत 60 से 80 गुना तक बढ़ गई है। सच है कि शराब की बिक्री से सरकार को बड़ी मात्रा में राजस्व प्राप्त होता है। लेकिन इस प्रकार की आय हमारी सामाजिक संरचना को नुकसान पहुंचा रही है और परिवार के परिवार तबाह हो रहे हैं। हम तेजी से विनाश की ओर बढ़ रहे हैं। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने देश के 272 सबसे अधिक प्रभावित जिलों में 2020-21 के लिए नशा-विरोधी कार्य योजना के तहत नशामुक्ति अभियान चलाया है। हर साल, केंद्र और राज्य सरकारें नशामुक्ति हेतु अनुदान, जनजागरूकता कार्यक्रमों और विज्ञापनों, स्वास्थ्य व्यवस्था पर अरबों रुपये खर्च करती हैं। नशीली दवाओं की लत से छुटकारा पाने में नशा करनेवालों के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात आत्मनियंत्रण और मजबूत इच्छाशक्ति होने के साथ-साथ योग्य उपचार, उचित मार्गदर्शन, परिवार और अपनों का सहयोग, निर्व्यसनी मित्र, सकारात्मक प्रोत्साहन देनेवाले व्यक्तिगण, पौष्टिक आहार, व्यायाम, खुशहाल वातावरण, स्वयम को व्यस्त रखना, ज़िम्मेदारी समझना, परिवार के प्रति निष्ठाभाव और सकारात्मक सोच की आवश्यकता होती है। पालक बच्चों के लिए समय निकालें, उनसे मित्रतापुर्वक बर्ताव करें, बच्चों की संगत पर ध्यान रखे, बच्चों के बदलते व्यवहार को समझें, समस्या नजर आने पर उन्हे विश्वास में लेकर उनसे बात करें, तुरंत तज्ञो की सलाह लें, एक अच्छे पालक और जिम्मेदार नागरिक होने का फर्ज निभायें।

डॉ. प्रितम भि. गेडाम