किसी को भी गरीबी पसंद नहीं
होती लेकिन किसी को जन्मजात मिलती है, तो किसी को बुरी स्थिति गरीब बना देती है। किसी
का पूरा जीवन गरीबी में संघर्ष करते हुए बीतता है, तो किसी का जीवन केवल दो वक्त की
रोटी और परिवार के भरण-पोषण के लिए भटकता रहता है। दुनिया में कही-कही गरीबी का ऐसा
विकराल रूप है कि अगर कोई इसे देखे या सुने, तो वह कांप उठेगा। गरीबों को मजबूरी में
काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। आदमी सब कुछ दिखावा कर सकता है, लेकिन पैसे
का दिखावा नही, यानी पैसे की कमी पैसे से ही पुरी होती है। दुनिया भर में लाखों - करोडों
लोग अभी भी भूखे पेट सोते हैं। बच्चे कचरे के ढेर मे खाना चुनते नजर आते है। हमारे
आसपास ही ऐसे कई दुखद दृश्य देखने को मिल जाते है। कोरोना काल की शुरुआत में मजदूरों
का पलायन और उनकी दयनीय स्थिति किसी से छिपी नहीं है, जरा सोचिए हममें से कितने बुजुर्ग,
बच्चे, गर्भवती महिलाएं या बीमार लोग तेज धूप में हजारों किलोमीटर भूखे-प्यासे यात्रा
कर सकते हैं? यह गरीब ही था जिसने इतने कष्ट सहे।
गरीबी रेखा का निर्धारणः - वी. एम. दांडेकर और एन. राठ ने 1971 में राष्ट्रिय
नमुना सर्वेक्षण के आंकडो के आधार पर गरीबी रेखा का मुल्यांकन किया। शहरी और ग्रामीण
दोनों क्षेत्रों में 2250 कैलरी पर्याप्त माना, बाद में वाई. के. अलाघ टास्क फोर्स
1979 मे शहरी क्षेंत्रों के लिए 2100 से कम कैलरी व ग्रामीणो के लिए 2400 से कम कैलरीवालो
को गरीबी के श्रेणी मे परिभाषीत किया। डी.टी. लकडावाला समिति 1993 ने कुछ अलग सुझाव
दिये। तेंदुलकर कमेटी 2005, ने ग्रामीण 27 रूपये और शहरी 33 रूपये प्रतिदिन खर्च निर्धारित
किया। सी. रंगराजन समिति 2012, ने शहरी 47 रूपये और ग्रामीण 32 रूपये प्रतिदिन खर्च
निर्धारित किया। इस समिति के अनुसार तब देश मे 36.3 करोड जनता गरीब थी। विश्व बैंक
के अनुसार भारत में 3.2 डॉलर यानी करीब 244 रुपए रोजाना कमाने वाला गरीब है। जबकि अमेरीका
सरकार की गाइडलाइंस के अनुसार दो लोगों के परिवार के लिए 11 लाख 73384 रुपए सालाना
से कम आमदनी गरीबी रेखा के नीचे समझी जाती है। सबसे ज्यादा गरीबी उपसहारा अफ्रीका और
दक्षिण एशिया मे दिखती हैं। गरीबी को विभीन्न सामाजिक संकेतकों के माध्यम से देखा जाता
है जैसे आय का स्तर, खर्च पॅटर्न, अशिक्षा का स्तर, कुपोषण के कारण, सामान्य प्रतिरोध
का अभाव, स्वास्थ्य सेंवाओ और शुद्ध जल की पहुंच मे कमी, नौकरी के अवसरो में कमी, स्वच्छता
व अन्य मदों का विश्लेषण। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में वर्ष
2006 से 2016 के बीच रिकॉर्ड 27.10 लोग गरीबी से बाहर निकले हैं. फिर भी करीब 37 करोड़
लोग आज भी गरीब हैं।
गरीबी में वृद्धि के कारणः - बढ़ती जनसंख्या, बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, सीमित
संसाधन, कृषि उपज की कमी, प्राकृतिक आपदा, बाढ़, सूखा, खेतों का छोटे भागो में विखंडन,
बड़े पैमाने पर रसायनों का उपयोग, किसानों के पास अपर्याप्त पूंजी, पारंपरिक कलागुणों
व कार्यों का खत्म होना, अशिक्षा, स्वास्थ्य समस्याएं गरीबी के दुष्चक्र को बढ़ा रही
हैं और यह समस्या समाज में गंभीर अपराधों और अन्य समस्याओं को जन्म देती है। खुद योजना
आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका के संबंध में दायर अपने हलफनामे में कहा
है कि देश में हर दिन लगभग ढाई हजार बच्चे कुपोषण के कारण काल का ग्रास बन जाते हैं।
दूसरी ओर, खराब भंडारण प्रबंधन, गोदामों की कमी और लापरवाही के कारण हर साल हजारों
टन अनाज सड़ जाता है।
गरीबी उन्मूलन के लिए सरकारी उपाय योजनाएँ:- मजदूरी रोजगार कार्यक्रम
(मनरेगा), नई मंजिल’ (शिक्षा और आजिविका कार्यक्रम), स्वरोजगार कार्यक्रम, राष्ट्रिय
आजीविका मिशन, दीनदयाल अंत्योदय योजना, महिला किसान सशक्तिकरण योजना, दीनदयाल उपाध्याय
ग्रामीण कौशल्या योजना - कौशल विकास कार्यक्रम, खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम (राष्ट्रिय
खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013) सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम - (राष्ट्रीय सामाजिक सहायता
कार्यक्रम) इंदिरा गांधी राष्ट्रिय वृद्धावस्था पेंशन योजना, इंदिरा गांधी राष्ट्रिय
विधवा पेंशन योजना, राष्ट्रिय विकलांगता पेंशन योजना, राष्ट्रिय पारिवारिक लाभ योजना,
अन्नपूर्णा योजना, शहरी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम, राष्ट्रिय कृषि विकास योजना, प्रधानमंत्री
जन धन योजना, ग्रामीण श्रम रोजगार गारंटी कार्यक्रम, प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना,
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, मेक इन इंडिया एंव अन्य।
कोरोना से गरीबी बढ़ेगीः - संयुक्त राष्ट्र संघ के एक शोध के अनुसार, अगर
कोरोना सबसे खराब स्थिति में पहुंचता है, तो भारत में 10.4 करोड़ नए लोग गरीब हो जाएंगे।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने भारत में रोजगार पर एक रिपोर्ट जारी की थी। रिपोर्ट के
अनुसार, भारत का कुल कार्यबल 50 करोड़ है। 90 फीसदी हिस्सा असंगठित क्षेत्र का है। कोरोना
संकट के कारण 40 करोड से ज्यादा श्रमिक अधिक गरीब हो जाएंगे। भारत में गरीबों की श्रेणी
में, शहरों में रहने वाले आदिवासी, पिछड़े वर्ग, दलित और श्रमिक वर्ग, जैसे कि कृषि
मजदूर और सामान्य मजदूर अभी भी बहुत गरीब हैं, और ये भारत के सबसे गरीब वर्ग में आते
हैं।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2019:- भरपेट भोजन नहीं मिलने के कारण उत्पन्न भूख
की स्थिति संबंधी ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2019 में भारत 117 देशों में 102वें स्थान पर
है जबकि पड़ोसी देश नेपाल, पाकिस्तान एवं बांग्लादेश की रैंकिंग हमसे बेहतर है। संयुक्त
राष्ट्र में भारत के स्थायी उप प्रतिनिधि नागराज नायडू ने कहा, ‘दुनिया में कई लोग
इतने भूखे हैं कि उनके लिए रोटी मिलना, भगवान मिलने के सामान है और ‘गरीबी किसी अपराध
के बिना सजा देने के समान है। वैश्विक असमानता की पैठ भीतर तक है। यह हैरान करने वाली
बात है कि पृथ्वी की 60 प्रतिशत से अधिक धन-सम्पत्ति करीब 2,000 अरबपतियों के पास है।
नीति आयोग के अनुसारः - नीति आयोग की 2019 एसडीजी इंडिया की रिपोर्ट से पता
चला है कि देश के 22 से 25 राज्यों में गरीबी, भुखमरी और असमानता बढ़ी है और यह रिपोर्ट
2020-21 के बजट से एक महीने पहले जारी की गई थी जबकि 2005-06 से 2015-16 तक दस वर्षों
में गरीबों की संख्या में गिरावट आयी थी। नीति आयोग के अनुसार, एसडीजी लक्ष्य 1 यानी
गरीबी उन्मूलन के संदर्भ में वर्ष 2018 में 54 अंक से घटकर वर्ष 2019 में 50 अंक हुआ
है और शून्य भूख एसडीजी लक्ष्य 48 अंक से 35 पर आ गया है, जो एक खराब स्थिति का संकेत
देता है। राष्ट्रीय स्तर पर, आय असमानता सूचकांक में भी 7 अंकों की गिरावट आयी है,
यानी असमानता बढ़ी है। नीति आयोग की सतत विकास लक्ष्य इंडेक्स (एसडीजी) 2019-20 की रिपोर्ट
के अनुसार वर्ष 2030 तक गरीबी मुक्त भारत के अपने लक्ष्य में भारत चार अंक और नीचे
लुढ़क गया है, उसकी रिपोर्ट 2018 अनुसार, गरीबी और बेरोजगारी के कारण हर दिन बड़ी संख्या
में लोग आत्महत्या कर रहे हैं।
गरीब और अमीर के बीच की आर्थिक खाई लगातार बढ़ रही:- ऑक्सफैम इंडिया की विषमता
रिपोर्ट 2020 ने बताया है कि विश्वभर में गरीबी और अमीरी के बिच की आर्थिक खाई लगातार
बढ रही है, 2019 में इसी रिपोर्ट में सामने आया था कि देश के टॉप एक प्रतिशत अमीर हर
दिन 2200 करोड़ कमाते हैं और 2018 में इसी रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत के एक प्रतिशत
अमीरों के पास देश की 73 प्रतिशत संपत्ति है। यह एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि वैश्विक
वित्तीय संकट के दौर में अरबपतियों की संख्या दोगुनी बढ़ गई है। भारत के 63 अरबपतियों
की कुल संपत्ति भारत के कुल केन्द्रीय बजट (2018-19) की राशि 24,42,200 करोड़ रुपए से
भी अधिक है। विश्व के 2153 अरबपतियों की कुल संपदा विश्व की जनसंख्या के निचले 60 प्रतिशत
लोगों (4.6 अरब लोगों) से अधिक है। क्रेडिट सुईस वैश्विक संपत्ति रिपोर्ट 2019, अनुसार
विश्व आर्थिक व्यवस्था खराब बनी हुई है। विश्व आर्थिक फोरम के समावेशी विकास सूचकांक
2018 अनुसार उभर रही 74 अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में भारत देश का स्थान 62वें नंबर
पर है। नेपाल (22 वां स्थान) बांग्लादेश (34) और श्रीलंका (40) इनसे भारत कहीं पीछे
है। इसी रिपोर्ट के अनुसार 10 में से 6 भारतवासी 234 रूपये प्रतिदिन से कम आय पर परीवार
का जीवनयापन करते हैं।
आज के आधुनिक युग में भी, बुनियादी सेवाओं की कमी के कारण हर दिन कई लोग दम तोड देते हैं। दुर्गम भागों की स्थिति आज भी वैसी ही है। बढती महंगाई और प्राकृतिक आपदाएँ गरीबों की दुर्दशा को अधिक बढ़ाती हैं। आज भी बच्चों को भूख से, रोते बिलगते देखा जाता है। वक्त पर किसी को एम्बुलेंस नहीं मिलती, तो किसी को इलाज नहीं मिलता, तो किसी को राशन नहीं मिलता है और मानवता शर्मसार होती है, ऐसी खबरें अक्सर समाचार पत्रों, समाचार चैनलों या सोशल मीडिया के माध्यम से देखी और पढ़ी जाती हैं। गरीबी, बच्चों से उनका मासूम बचपन छीन लेता है। गरीबी, खराब माहौल को जन्म देती है, जहां शुद्ध भोजन, स्वच्छ हवा व पानी की कमी, बीमारी, निम्न व तंग जीवनस्तर, मलिन बस्तियां, गलीच्छ वातावरण, होता है। विकास करने के लिए, सबसे पहले, हर हाथ को काम, रोजगार, उचित वेतनमान, और व्यवसाय के लिए वित्तीय सहायता को मजबूत करना अत्यंत आवश्यक है। शहरों की ओर गाँवों का पलायन रोकना होगा, गाँवों को समृद्ध बनाना होगा ताकि वहाँ रोजगार के अवसर उपलब्ध हों। जब सभी के पास काम होगा तभी वे अपनी जरूरतों पर खर्च कर सकेंगे और जीवन स्तर में सुधार कर सकेंगे अर्थात गरीबी उन्मूलन के बिना देश का विकास असंभव है।
डॉ. प्रितम भि. गेडाम





